विज्ञान और सनातन का कोई संस्थापक नहीं

हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित ‘सनातन भारत’ ग्रंथ के विमोचन समारोह में रामजन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने भारत की सनातन संस्कृति और उसके सभी पहलुओं पर व्यापक प्रकाश डाला।

मैंने सनातन भारत ग्रंथ का अवलोकन किया। सनातन भारत को समझने के लिए एक साथ जो सामग्री चाहिए वह हिंदी विवेक की तरफ से एक स्थान पर उपलब्ध कराई जा रही है। हम लोग जीवन में कभी ना कभी अपने धर्म, राष्ट्र का चिंतन करते हैं। ऐसे में हमारे मन में कई सवाल भी पैदा होते हैं। उस समय यदि हिंदी विवेक की ऐसी पुस्तक अपने पास हो तो आप के सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा। इसलिए ऐसे पवित्र और ज्ञानवर्धन ग्रंथ को अपने घरों में जरूर स्थापित करना चाहिए। इस ग्रंथ को समाज को समर्पित करने के लिए मैं हिंदी विवेक की पूरी टीम का भूरि-भूरि अभिनंदन करता हूं।

हिंदी विवेक का प्रथम अंक जब मेरे पास आया, मैंने सबसे पहले यह पूछा कि यह किसके द्वारा लिखा गया है? किसी मराठी भाषी ने इसे हिंदी में लिखा है जो साफ-साफ पकड़ में आता है। जिसकी जो मूल भाषा होती है, वही सही ठंग से लिख पाता है। अपने भावों को सही शब्द दे पाता है। आज हिंदी विवेक की भाषा को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता है कि यह किसी अहिंदी भाषी द्वारा लिखा गया है।

भाषा और विचारों सहित सभी दृष्टि से यह अंक महत्वपूर्ण और सुंदर है। यह अंक सभी को लेना चाहिए और घर में रखना चाहिए। हर किसी को एक नहीं बल्कि दो अंक लेने चाहिए और किसी एक को यह गिफ्ट भी करना चाहिए। वर्तमान में विचारों का प्रसार बहुत जरूरी है। उत्तम पुस्तकों के संग्रह से ऐसे विचारों को पैदा किया जा सकता है और उसे दूसरी पीढ़ी को सौंपा जा सकता है। अगर आप धार्मिक और सामाजिक पुस्तकों का संग्रह नहीं करते हैं तो आप आने वाली पीढ़ी के गुनहगार हैं। पुस्तकों को पढ़ना जरूरी है लेकिन अगर वह आप के घर में सिर्फ रखी भी हों तो उसका भी परिवार के संस्कार पर असर पड़ता है।

सनातन भारत का विचार इस ग्रंथ में आप को प्राप्त होता है। लेकिन भारत क्या है, और सनातन क्या है? यह भी समझना बहुत आवश्यक है। हम सनातन शब्द के अर्थ की तरफ जाते हैं। सनातन का सीधा अर्थ है कि जो पहले था, आज भी है और आगे भी रहेगा। जिसका कभी नाश नहीं हो सकता है, उसे सनातन कहते हैं। जिन विचारों का कभी नाश नहीं हो सकता है, उनका संग्रह ही हमारा धर्म है। सनातन धर्म का ना कभी नाश हुआ है और ना ही कभी होगा, क्योंकि उसकी उत्पत्ति किसी के द्वारा नहीं की गयी है। जबकि, बाकी धर्मों का कोई ना कोई संस्थापक रहा है। हालांकि बाकी धर्मों को लेकर इस बात पर भी संशय है कि ये धर्म हैं या फिर पंथ! लेकिन सभी लोगों को धर्म शब्द ही पता है, इसलिए ही इसका उपयोग किया जा रहा है। धर्म शब्द का अर्थ रिलीजन नहीं है। धर्म नानट्रांसेबल शब्द है, इसका किसी भाषा में अनुवाद नहीं हो सकता है।

पिंड शब्द को सुनकर हमारे मन में एक विचार आता है जो अंग्रेजी के राइस बॉल कहने पर नहीं आता है। इसलिए सनातन धर्म में कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका अनुवाद नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार हम जब सनातन शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो हमारे सामने सिद्धांतों का एक प्रवाह आता है। जिस प्रकार विज्ञान का कोई संस्थापक नहीं है बल्कि अलग-अलग वैज्ञानिक इस पर अपना तर्क देते हैं उसी प्रकार सनातन धर्म का कोई संस्थापक नहीं बल्कि अलग अलग ऋषि इस पर अपने तर्क देते हैं। सनातन धर्म में व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा के बीच एक संतुलन बनाने का तरीका बताया गया है जो कभी डगमगाए नहीं इसलिए इतिहास और भूगोल में कहीं-कहीं इनका पालन करना पड़ता है।

सनातन धर्म में कहीं भी आप को सृष्टि, समाज और प्रकृति के खिलाफ कोई विचार नहीं मिलेगा, यहां पर सब कुछ समाज और विश्व के हित के लिए कहा गया है। सम्पूर्ण लोक और समाज को जो टिका कर रखे, वही धर्म है। ये सभी हमें हमारे ऋषि-मुनियों से मिले हुए हैं। भागवत में सनातन का वास्तविक उल्लेख किया गया है और इसके 30 लक्षण बतलाए गये हैं। इन 30 लक्षणों में एक लक्षण विशेष तौर पर बताया गया है। वही धार्मिक है जो अपने पास आने वाले अन्न और वित्त का लोगों में वितरण करता रहता है। वह सभी को अपना मानकर सम्मान और बुद्धि के साथ करता है। श्रीमद्भागवत में विशेष रूप से चार रूप बताए गए हैं, जो सबसे महत्वपूर्ण हैं। सत्य, करुणा, तप और  शुद्ध जीवन जिसके भी जीवन में आ जाती है उसे पूर्ण रूप से धार्मिक कहा जा सकता है।

पूर्ण रूप से वैज्ञानिक विचार आप सभी को कहां मिलता है? धर्म, योग, आयुर्वेद, तंत्र विद्या, परम्परा और समाजशास्त्र को देखने के लिए सभी को एक बार सनातन भारत का अवलोकन करना होगा। विश्व के बाकी देशों और भारत के विचार में मूल अंतर कहां आता है? सर्वधर्म समभाव जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से पहले यह सोचना जरूरी है कि भारतीय विचार की विशेषता क्या है? भारत की परम्परा का डीएनए क्या है? भारत की विचारधारा में पूरा विश्व एक परिवार है, और सब कुछ एक परमात्मा का दिया हुआ है। कण-कण में परमात्मा व्याप्त है। दुनिया में विज्ञान जितना बढ़ता जाएगा भारत के वेदांत और योग को उतना ही प्रमाणित करता जाएगा।

अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया और सैकड़ों वर्षों तक शासन किया लेकिन उन्होंने यह समझ लिया कि अगर भारत को आगे भी गुलाम रखना है तो इसकी शिक्षा पद्धति को बदलना होगा और इसमें अंग्रेज सफल भी हो गए। लेकिन आजादी के करीब 70 सालों बाद तक हम उससे भी बुरा काम करते रहे और देश को सुधारने की तरफ नहीं ले गये। उसका जिम्मेदार कौन है? मोदी सरकार के आने से पहले तक किसी भी वैज्ञानिक कार्यक्रम में भारतीय विज्ञान जैसा शब्द इस्तेमाल नहीं होता था क्योंकि ऐसा बताया गया था कि भारत का कोई विज्ञान नहीं है। जबकि भारत के पास ही सबसे श्रेष्ठ विज्ञान था, लेकिन उसे छिपाया गया। देश आजाद हुआ उसके बाद भी इस तरह की सच्चाई को छुपाया गया, यह उससे भी बुरी बात थी। किसी देश को अगर खत्म करना है तो सबसे पहले उसके आत्मविश्वास को खत्म करना चाहिए क्योंकि शस्त्र से पराजित देश फिर से खड़ा हो सकता है लेकिन अगर किसी के मन पर प्रहार करते हैं तो वह देश खुद-ब-खुद खत्म हो जाता है।

भारत पर परमपिता की ऐसी कृपा रही है कि स्वामी विवेकानंद जी जैसे लोगों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और दुनिया को यह बताया कि सनातन धर्म ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है और इसी के सानिध्य में पूरे विश्व की रक्षा हो सकती है। राष्ट्र शब्द चर्चा में रहता है लेकिन यह कोई नया शब्द नहीं है। राष्ट्र का निर्माण तीन प्रमुख बातों से होता है। राष्ट्र के लिए भूमि, समाज और परम्परा होनी चाहिए। भारत में यह तीनों बातें सर्वदा विद्यमान थी और आगे भी रहेगी।

डॉ. हेडगेवार जी ने कहा है कि, हिंदू राष्ट्र के निर्माण की आवश्यकता नहीं है। भारत पहले से ही हिंदू राष्ट्र है, उसका सिर्फ साक्षात्कार कराने की आवश्यकता है। हिंदू साम्राज्य की बात अलग है लेकिन भारत पहले से ही हिंदू राष्ट्र है इसमें कोई संदेह नहीं है। संघ अपने विचारों पर चलता रहा और कई दशकों बाद विश्व को भारत के सामने नतमस्तक होने को मजबूर कर रहा है। देश की कितनी पीढ़ियां इस बात की चिंता करते हुए चली गयी कि राम मंदिर और कश्मीर का क्या होगा? लेकिन हम सभी भाग्यशाली हैं कि ऐसे ऐतिहासिक फैसले हम सभी के सामने हुए हैं। भारत और पश्चिमी देशों की विचारधारा का फर्क सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत पूरे विश्व को एक परिवार की दृष्टि से देखता है जबकि पश्चिमी देश पूरे विश्व को एक बाजार के रूप में देखते हैं। पश्चिमी देश लूटने के लिए ही आते हैं। भारत को कितनी बार लूटा गया लेकिन फिर भी यह आज पूरी तरह से खड़ा है। इस देश के मनीषियों ने जिस प्रकार से व्यवस्था बैठाई थी, उस व्यवस्था को भी इसका श्रेय जाता है। इसी को वर्णाश्रम पद्धति कहते थे।

देश में शूद्र को लेकर जो विवाद चल रहा है वह पूरी तरह से गलत है, और शूद्र को लेकर जो मन में विचार बनाया जा रहा है वह भी पूरी तरह से गलत है। अगर आज के कामकाज को देखें तो जितना भी टेक्नीकल काम है वह सभी शूद्र की श्रेणी में आता है। शूद्र को समाज पुरुष की नींव कहा गया है। भारत में शूद्र को जनमत के आधार पर रखा गया जिससे लोगों को अधिक लाभ मिल सके। भारतीय परम्परा पहले से चली आ रही है कि समाज के आधार पर भी उसके पुत्र को वह काम दिया जाएगा। देश के पूर्वजों को आज कोसने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उनका धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने एक व्यवस्था के तहत देश को बचाए रखा। ग्रीस पर एक ही आक्रमण हुआ और वह पूरी तरह से बिखर गया जबकि भारत पर समय-समय पर हमले होते रहे लेकिन भारत का क्षत्रिय वर्ग लड़ता रहा और आज भारत पूरी तरह से फिर से खड़ा है।

भारत एक ऐसा देश है जहां किसी की भी आराधना कर सकते हैं। सनातन धर्म में कोई बाध्यता नहीं है। मन-चित की एकाग्रता और शांति के लिए आप किसी की भी उपासना कर सकते हैं और यह वैज्ञानिक तौर पर भी प्रमाणित है। सनातन धर्म में प्रकृति के साथ जो मेल-मिलाप है वह किसी अन्य धर्म में नहीं मिलेगा। हम सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष, पानी, अग्नि सहित सभी की पूजा करते हैं इसलिए एक सच्चा सनातनी कभी किसी का विरोधक नहीं हो सकता है।

सनातन धर्म मानने वाला अनाक्रामक समाज है जिसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया और आक्रमण को कभी अच्छा माना नहीं, जबकि भारत में एक आक्रामक समाज भी है जो समाज के लिए घातक है। सनातन धर्म का अनाक्रामक होना ही उसके लिए अब मुसीबत बनना जा रहा है। हमें यहां यह भी समझना होगा कि यह धर्म आगे कैसे चलेगा। इसके लिए धार्मिक ग्रंथों का सहारा ही अंतिम होगा। धर्म के सामने जो चुनौतियां है उनका जिक्र भी इन ग्रंथों में किया गया है लेकिन इसका पूरा जिक्र नहीं किया गया है। इसके उपाय क्या होंगे इसका भी जिक्र नहीं किया गया है। भारत को जिहादी इस्लाम जिस तरह से घेर रहा है उसकी तुलना में हम कितना टिक सकेंगे इस पर विचार करने की जरूरत है। आज सावधान होने की आवश्यकता है क्योंकि आज लोकतंत्र है, देश में जिसकी संख्या अधिक होगी सरकार उसकी बनेगी। भारत पर इससे पहले कई आक्रमण हुए लेकिन वह सभी शस्त्र और बल से हुए थे जबकि भविष्य में होने वाला आक्रमण जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा।

ईसाई मशीनरी के लोग अब पाखंड के लिए भगवा धारण करने लगे हैं और आरती भी करते हैं। मतांतरण के लिए हर तरह का छल और कपट करते हैं। उड़ीसा का उदाहरण है कि वनवासी लोगों को कुछ किलो चावल देकर उनका मातांतरण करवा रहे हैं और उनके लगे में क्रॉस डालकर उसे जगन्नाथ बता रहे हैं। उत्तराखंड में भी भगवाधारी ईसाई घूम रहे हैं और भोले-भाले लोगों को बहला-फुसलाकर उनका मतांतरण करवा रहे हैं। इसके खिलाफ सभी को आवाज उठानी होगी और लड़ाई लड़नी होगी। खासकर उदासीन हिंदू समाज से जो सबकुछ जानते हुए भी चुप बैठा है। देश की सत्ता में सिर्फ उनको ही रखना होगा जो सनातन को आगे बढ़ाना चाहते हैं और राष्ट्र का विकास करना चाहते हैं।

– स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज 

(सनातन भारत ग्रंथ विमोचन समारोह के दौरान उनके उद्बोधन के सम्पादित अंश)

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