बाहर से देखने पर पालघर जिला हरियाली से भरा लगता है, परंतु बढ़ती जनसंख्या और वृक्षों की कटाई के कारण यह जिला भी बड़ी तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है। इस दिशा में व्यापक पहल किए जाने की आवश्यकता है।
पालघर जिले में वन क्षेत्र है। पहाड़, नदी, समुद्र भी है जिसे देखकर हमें यही लगता है कि यहां का पर्यावरण एकदम शुद्ध और साफ होगा, यहां की हवाएं शुद्ध होगी और यहां का पानी भी शुद्ध होगा। यही कारण है कि यहां की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है। लेकिन हकीकत अलग ही है। यहां पर्यावरण तेजी से अशुद्ध होता जा रहा है। हम यहां बता दें कि पालघर जिले की स्थापना 1 अगस्त 2014 को महाराष्ट्र राज्य सरकार ने 36वें जिले के रूप में की थी, तब से अब तक यहां के पर्यावरण की स्थित खराब ही होती जा रही है। हर दिन पर्यावरण का माहौल बिगड़ता रहा है। हवा-पानी भी अब दूषित होने लगा है। जिले में वसई विरार महानगरपालिका एक बड़ा क्षेत्र है और यहां पर एक डम्पिंग ग्राउंड है जो कि भोइदापाड़ा में है। यहां लगभग 7 सौ टन कचरा रोजाना जमा होता है।
सूत्र बताते हैं कि वसई में ही वसंत नगरी के पास भी एक डम्पिंग ग्राउंड की जगह आरक्षित बताई जा रही थी मगर वहां भी अवैध निर्माण कर डम्पिंग ग्राउंड को गायब कर दिया गया। अब इस डम्पिंग ग्राउंड की वजह से यहां का पानी, हवा सब दूषित हो रहा है यहां तक कि यहां की भूमि भी दूषित हो रही है। जिसका विरोध भी कई वर्षों से हो रहा है लेकिन बावजूद इसके प्रशासन कुछ ठोस कदम उठाते हुए दिखाई नहीं दे रहा है। इस डम्पिंग ग्राउंड के आसपास कई किलोमीटर तक हर सुबह दूषित धुआं आप को दिखाई देता है जो कि लोगों को बीमार कर रहा है। इसकी आवाज भी कई बार उठाई जा चुकी है यहां तक कि शिवसेना के बड़े-बड़े पदाधिकारियों ने इस पर आंदोलन भी किए और मांग भी की लेकिन इसके बावजूद अभी भी स्थितियां जस की तस हैं। आखिर कब चेतेगा प्रशासन और कब डम्पिंग ग्राउंड के कचरे का सही से निस्तारण किया जाएगा!
पालघर में पर्यावरण दूषित होने का एक और भी मुख्य कारण है कि इस जिले में सर्वाधिक पेड़ काटे जा रहे हैं। अवैध निर्माण किए जा रहे हैं। कितनी ही बस्तियां, कितनी कम्पनियां बिना योजना और प्लानिंग के पेड़ काट कर बनाई जा रही हैं। हजारों लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं। इस पर भी प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। सूत्रों की माने तो पालघर जिले में सिर्फ वसई तालुका में 80 फीसदी कम्पनियां अवैध तरीके से बनाई गई हैं। बहुत सी कम्पनियां तो वन विभाग के हरित क्षेत्र पर ही बना दी गई हैं। और ये कम्पनियां हवा और पानी को दूषित कर रही हैं। इस पर भी प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। इसके अलावा सभी को याद होगा कि 2016 से ही प्लास्टिक की थैली को बैन कर दिया गया है। इसके बावजूद आज भी खुलेआम थैलियां बिक रही हैं और उनका निस्तारण नहीं हो पा रहा है। ये हमारी भूमि और पर्यावरण को दूषित कर रही है। प्लास्टिक की थैलियों की वजह से ही हमारे शरीर में भी बहुत सारे प्लास्टिक के कारण दाखिल हो रहे हैं जो हमारे लिए घातक हैं। इस बात पर हम ना तो स्वयं ध्यान दे पाते हैं और ना ही प्रशासन इस पर कोई ठोस कदम उठा रहा है। प्लास्टिक की थैलियों की वजह से जानवर बीमार हो जाते हैं, मर जाते हैं। लेकिन इससे प्रशासन को क्या? प्रशासन सोया हुआ है और जनता मूकदर्शक बनी हुई है।
अन्य बहुत सारी योजनाएं प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए की जाती हैं लेकिन प्रशासन इस पर कोई अमल नहीं कर पा रहा है। एक योजना बनी थी, हर सोसाइटी में कम्पोजिट मशीन लगाने की, जिसके तहत हर सोसाइटी अपने कचरे का निस्तारण स्वयं करेगी। इस योजना पर बात हो रही थी, काम हो रहा था लेकिन वह योजना कहां खो गई इसका भी पता नहीं चला। हमें खुद अपने आप को बचाना है, अपने पर्यावरण को बचाना है तो हमें आवाज उठानी होगी। हमें खुद कचरे का निस्तारण करना होगा। कचरा कम से कम करना होगा और प्रशासन पर भी दबाव बना कर दूषित हो रहे पर्यावरण को बचाना होगा। वरना हमारी उम्र कम होती चली जाएगी और हम बीमार हो कर एक दिन यूं ही चले जाएंगे।
अभी हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा 22 विधायकों का मंडल जापान में भेजा गया था और वहां पर वह वेस्ट मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी पर भी कुछ सीख कर आया है, जिसके तहत यहां पर शायद कुछ परिवर्तन होने की सम्भावनाओं ने जन्म लिया है। इस परिवर्तन के लिए मीरा भायंदर की गीता जैन कुछ करना चाहती हैं। उन्होंने कहा, वे जापान गई थी और वहां पर उन्होंने वेस्ट मैनेजमेंट को बड़े ही ध्यान से देखा। वहां पर ऐसी टेक्नोलॉजी है कि वहां पर काम करने वाले लोग हाथ तक नहीं लगाते। वहां पर सफाई करने वाले लोग मरते नहीं, ना ही वहां पर किसी तरह के हादसे होते हैं। ऑटोमेटिक प्लांट लगे हुए हैं। सब कुछ अपने आप होता है। गीता ने बताया कि, वे इस प्लांट को जल्द से जल्द यहां पर लगाना चाहती हैं और इस प्लांट की सबसे बड़ी बात है कि इससे कोई भी चीज वेस्ट नहीं होती है कचरे से मेटल, गैस, खाद और बिजली बनता है। इस प्लांट की कीमत 3 हजार करोड़ है। इसे हम वसई विरार महानगर पालिका के साथ मिलकर ले सकते है। इस प्लांट से कुछ ही समय में आमदनी भी शुरू हो जाएगी।
– देवेंद्र खन्ना