आपसी गुटबाजी और बाहरी लोगों को कमान देने के कारण पालघर में भाजपा की यह स्थिति हुई है। निर्णय लेने के सूत्र एक जाति विशेष में सिमट कर रह गए हैं। इस पर व्यापक तरीके से ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि वहां पर फिर से भगवा लहरा सके।
भारतीय जनता पार्टी की पालघर जिले में जो वर्तमान स्थिति है, वह इस प्रकार है। जिला परिषद में 13 सदस्य है, जिसमें उपाध्यक्ष और उप सभापति एवं एक सभापति के रूप में भाजपा का संख्याबल है। जिले में भाजपा के विधायक और सांसद एक भी नहीं हैं। जव्हार पंचायत समिति में है और वसई पंचायत समिति में उप सभापति है। कुछ अन्य जगहों पर पंचायत समिति सदस्य हैं। तलासरी नगर परिषद में सीपीएम के साथ भाजपा की युति है और वहां पर कुछ सभापति और नगरसेवक हैं। दहाणू नगर परिषद में भाजपा की सत्ता थी लेकिन अब वहां पर प्रशासक है। बाकी के नगर पंचायत एवं नगरपरिषदों में भी भाजपा के नगरसेवक हैं। पालघर जिले में 125 से अधिक ग्राम पंचायतों में भाजपा के सरपंच हैं। वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो 2019 के पहले और अब में राजनीतिक रूप से बहुत बड़ा बदलाव दिखाई देता है। 2019 के पूर्व भाजपा के एक सांसद एवं 2 विधायक थे और जिला परिषद में भाजपा का वर्चस्व था। जिला परिषद् के अध्यक्ष भाजपा से थे। 3 उप सभापति थे और 4 पंचायत समितियों में भाजपा बहुमत में थी। 150 से अधिक ग्राम पंचायतों में भाजपा की सत्ता थी।
तब और अब में आया राजनीतिक बदलाव
2019 के पूर्व अच्छी परिस्थिति थी लेकिन इसके बाद जो मैंने आकड़े दिए हैं, उसमें कमी आई है। इसके पीछे अलग-अलग कारण हैं। स्व. चिंतामणि वनगा, स्व. विष्णु सावरा के अचानक चले जाने से पार्टी को यहां क्षति पहुंची। इसके साथ ही पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों एवं पदाधिकारियों की ओर से संगठनात्मक उपेक्षा किए जाने के कारण पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ा है। इसलिए इसका विश्लेष्ण करना आवश्यक है। पहले जो भाजपा का नेतृत्व था उनका ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान रहता था। लेकिन विगत कुछ वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा करने के कारण स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। शहरी क्षेत्रों की बात करें तो यहां पर भाजपा की सत्ता कभी नहीं थी। शहरी कार्यकर्ताओं के हाथों में नेतृत्व देना और उनकी बातों में आकर उन्हें ही सर्वोच्च प्राथमिकता देना तथा ग्रामीण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को दरकिनार करना पार्टी के लिए घातक सिद्ध हुआ है। जो जमीनी कार्यकर्त्ता हैं, उनकी उपेक्षा करने से ग्रामीण क्षेत्रों में जो भाजपा का वर्चस्व था वह कम हो गया। पार्टी में शामिल हुए नए-नए कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देना और पुराने कार्यकर्ताओं को नजरंदाज करने से पार्टी का संतुलन बिगड़ गया। अनुभवी कार्यकर्ताओं की ओर ध्यान नहीं देने और उन्हें योग्य नेतृत्व नहीं देने के कारण वे आज घर पर बैठे हुए दिखाई देते हैं।
निष्ठावान का निरादर और अवसरवादी का आदर
पालघर जिला आदिवासी जनजाति बहुल क्षेत्र है। यहां पर आदिवासी नेतृत्व करने वाले जो लोग है, उन्हें भी नजरंदाज किया गया। इसके साथ ही मुझे ऐसा लगता है कि जिनके पास पैसा है उन्हें नेतृत्व देना और उसे आगे लाने की नीति पार्टी को कमजोर बना रही है। वहीं दूसरी ओर जो व्यक्ति परिश्रमी है, योग्य है जिन्हें आगे लाया जाना चाहिए, उन्हें मौका नहीं देने के कारण पार्टी की दुर्गति हुई है। जो व्यक्ति पार्टी का निष्ठापूर्वक सही ढंग से काम नहीं करते है और चुनाव के समय कई जगहों पर पार्टी के विरोध में काम करते हैं, ऐसे लोगों को प्रदेश स्तर तक वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा विशेष महत्व क्यों दिया जाता है जबकि ये लोग पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दबाते रहते हैं उन्हें उभरने नहीं देते हैं।
मौकापरस्त लोगों को आगे बढ़ाने से भुगतना पड़ा खामियाजा
जिजाऊ-श्रमजीवी संगठन आदि संस्थाओं से भाजपा में शामिल मौकापरस्त लोगों को आगे बढ़ाये जाने के कारण समर्पित निष्ठावान कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद-मनभेद की स्थिति निर्माण होती है और इसमें सबसे अधिक कार्यकर्ताओं की ऊर्जा शक्ति खत्म होती है। वे नाराज होकर पार्टी छोड़ कर अपने घर बैठ जाते हैं। परिणामत: 2019 के बाद भाजपा को चुनाव के दौरान खामियाजा भुगतना पड़ा। यदि समय रहते अब भी नहीं चेता गया तो गुटबाजी और अंदरूनी कलह बढ़ने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए पार्टी नेतृत्व को कठोर भूमिका अपनानी चाहिए।
जिला में व्यापक सुधार और परिवर्तन की आवश्यकता
पालघर जिले में भाजपा का पारम्परिक किला बचाए रखने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में फिर से सुधार एवं परिवर्तन करना होगा। खासकर, उन क्षेत्रों में जो नेतृत्व करनेवाले विश्वसनीय लोग हैं उनकी ओर विशेष रूप से ध्यान देना होगा और व्यापक स्तर पर अवसर देना होगा। नए और पुराने कार्यकर्ताओं को सम्भालकर और उनमें संतुलन व समन्वयन स्थापित कर उन्हें योग्य पदों पर नेतृत्व दिया जाना चाहिये। जो कार्यकर्त्ता घर बैठे हुए हैं, उनकी नाराजगी को दूर कर उन्हें फिर से पार्टी में सक्रिय किया जाना चाहिए।
जमीनी स्तर पर अपनाई जाए प्रभावी नेतृत्व योजना
आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण विधायक एवं सांसद आदिवासी समाज से ही होने चाहिए, इससे विजयी होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। आदिवासी समाज का नेतृत्व करनेवाले कर्मठ एवं प्रतिभाशाली कार्यकर्ताओं को आगे लाने की अत्यंत आवश्यकता है। इन आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के जो बाहरी लोग हैं वो ध्यान देने यहां आते थे। आदिवासी क्षेत्रों से किन्हें आगे लाया जा सकता है, पहले उनके द्वारा इस पर विशेष ध्यान दिया जाता था लेकिन दुर्भाग्यवश अब यह देखा जाता है कि चुनाव में कौन अधिक पैसा खर्च कर सकता है, इसे ही केंद्र में रखकर पद और टिकट दिए जाते हैं। जिन्हें सही अर्थों में आगे लेकर आने की आवश्यकता होती है, उन्हें आगे लाया नहीं जाता है जिसके कारण निष्ठावान कर्मठ कार्यकर्त्ता पीछे रह जाते हैं। चिंतामण वनगा और विष्णु सावरा की कभी आर्थिक स्थिति देखी नहीं गई। वसंत राव पटवर्धन जैसे नेतृत्व करने वाले और बाहर से समर्थन करने वाली मंडली ने उन्हें आगे बढ़ाया और स्थापित करने में अहम् योगदान दिया। इसी तरह की जमीनी स्तर पर कारगर नेतृत्व योजना अपनाई जानी चाहिए।
भाजपा समर्थक क्यों हो रहे है पार्टी से दूर?
पहले ऐसा था कि पालघर जिले के जो मतदाता थे वे भाजपा के समर्पित मतदाता थे। दूसरी ओर महाराष्ट्र के अन्य आदिवासी क्षेत्रों के जो मतदाता थे वे कांग्रेस समर्थक माने जाते थे। परंतु वर्तमान के कुछ वर्षों में इन्हें नजरंदाज करने के कारण भाजपा से वे सभी दूर जा रहे हैं। जो संघ परिवार के कारण पार्टी से जुड़े हुए थे वो धीरे-धीरे दूर होते जा रहे हैं। इस परिस्थित में सुधार लाने के लिए स्थानीय नेतृत्व के साथ बैठकर, उन्हें आगे लाकर विचार मंथन एवं चिंतन किये जाने की आवश्यकता है।
हिंदुत्व और राष्ट्रीय विचारों के वाहक को बनाया जाए प्रत्याशी
पालघर जिले में एक लोकसभा और 6 विधानसभा हैं। इस सम्बंध में अभी से विचार किये जाने की आवश्यकता है। आज अनेकानेक चेहरे सामने दिखाई दे रहे हैं। ऐसी चर्चा चल रही है कि राजेंद्र गावित को फिर से मौका मिल सकता है लेकिन वे पूरी तरह से हिंदुत्व के विरोधी रहे हैं। इस जिला में जो ईसाई मिशनरी की गतिविधियां चल रही हैं, उसे पूरा सपोर्ट राजेंद्र गावित का है। यदि ऐसा चेहरा फिर से लाया गया तो वह जीते या हारे, भारतीय जनता पार्टी को विचारों की दृष्टि से उसका उपयोग ‘शून्य’ है। इसलिए हिंदुत्व एवं राष्ट्रीय विचारधारा पर चलने वाले व्यक्ति को मौका देना आज के समय की सबसे बड़ी मांग है। हिंदुत्व का चेहरा कौन है? यह भारतीय जनता पार्टी के विचारों को लेकर चलनेवाले वहीं के लोग एवं स्थानीय कार्यकर्त्ता बता सकते हैं।
विक्रमगढ़ विधानसभा में विजयी मंत्र
विधानसभा की दृष्टि से यदि विचार करे तो विक्रमगढ़ विधानसभा किन्हीं कारणों से हमारे हाथ से निकल गई लेकिन पुनः आज वहां सार्थक काम करने की आवश्यकता है। तभी भाजपा वहां विजयी हो सकती है। इसके लिए वहां से चुनाव लड़ने के इच्छुक भाजपा के 5-6 उमीदवारों में से किसी एक का चयन आपस में सहमति बनाकर अभी से कर लेना चाहिये और अभी से चुनाव की तैयारियों में जुट जाना चाहिए ताकि चुनावी समर में प्रत्याशी को लेकर होनेवाली दुविधा, संघर्ष से बचा जा सके। यदि सुनियोजित रणनीति बनाई गई तो सहज रूप से विधानसभा में भाजपा के विजयी होने की सम्भावना बढ़ सकती है।
दहाणू विधानसभा में है जीत की सम्भावना
दहाणू विधानसभा में थोड़े मतों के अंतर से भाजपा की हार हुई थी। अपने ही एक अयोग्य व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने के कारण पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। यदि इसकी पुनरावृत्ति नहीं करनी है तो उस विधानसभा की ओर बहुत ध्यान देकर कार्य करने पर हम आसानी से जीत सकते हैं, बस सही नियोजन करने की आवश्यकता है। स्थानीय लोगों का पसंदीदा और हिंदुत्व को लेकर चलनेवाला उम्मीदवार देने की आवश्यकता है।
पालघर में नहीं है भाजपा का कोई सामर्थ्यवान नेता
पालघर विधानसभा में भाजपा के लिए पोषक वातावरण है लेकिन वहां पर पार्टी का कोई चेहरा नहीं है, सही चेहरा सामने लाने की आवश्यकता है। बोईसर विधानसभा में भाजपा का चेहरा है किंतु वहां पर बहुजन विकास आघाडी का अत्यधिक प्रभाव होने के कारण चुनौती बड़ी है। कठोर परिश्रमी भाजपा उमीदवार देने पर उलटफेर की सम्भावना है। वसई विधानसभा और नालासोपारा विधानसभा में बहुजन विकास आघाडी के प्रबल विधायक हैं। इसलिए वहां पर बहुत अधिक ताकत के साथ पार्टी को जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।
बाहरी प्रत्याशी न उतारे भाजपा
इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान आयात किया हुआ उम्मीदवार पार्टी की ओर से थोपा गया तो स्थानीय कार्यकर्त्ता निश्चित रूप से नाराज होंगे क्योंकि लोकसभा और विधानसभा में योग्य नेतृत्व करनेवाले एवं भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा पर चलनेवाले पुराने अनुभवी कार्यकर्ता व पदाधिकारी हैं।
अवसरवादी नेताओं के भितरघात से भाजपा रहे सावधान
दहाणू क्षेत्र में सीपीएम, विक्रमगढ़ विधानसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस और जिजाऊ संगठन की बढ़ती हुई शक्ति भाजपा को विधानसभा और लोकसभा में प्रभावित कर सकती है। श्रमजीवी को सहला कर भाजपा के साथ लाने की कवायद कितनी कारगर सिद्ध होगी, इसका सटीक विश्लेषण करना जरूरी है। जिजाऊ और श्रमजीवी जैसे संगठनों की संदिग्ध गतिविधियों पर विशेष ध्यान देकर उनकी वास्तविकता समाज के सामने लायी जानी चाहिए।
सम्पूर्ण पालघर जिला में भाजपा का विजयी परचम फहराने का मौका
2024 में एक अच्छा मौका भारतीय जनता पार्टी को इस पालघर जिले में है। कुल मिलकर कहूं तो 2019 के पहले और बाद में हुए परिवर्तनों को ध्यान में रख कर सुधार करना, स्थानीय आदिवासी नेतृत्व करनेवाले बंधुओं को मौका देना, पुराने निष्ठावान करमारे जैसे श्रेष्ठ-ज्येष्ठ कार्यकर्त्ताओं से विचार विनिमय कर तथा हिंदुत्व को साथ लेकर काम किया गया तो निश्चित रूप से पार्टी को इसका लाभ मिलेगा। पैसे के बल पर और बैनरबाजी करनेवालों को दरकिनार कर भाजपा की विचारधारा से जुड़े प्रखर हिंदुत्ववादी नेतृत्व को यदि भविष्य में मौका मिलेगा तो 2024 के बाद भाजपा की बहुत अच्छी स्थिति पालघर में होगी।
भाजपा की चुनौती और समाधान
एक बात का उल्लेख जरूर करना चाहूंगा। पालघर जिले का नेतृत्व जिन्हें दिया जाना चाहिए था उसे न देकर एक ही समाज के घटक के पास नेतृत्व दिया गया है। पद पर भले ही विविध लोग दिखाई देते हैं लेकिन प्रत्यक्ष निर्णय लेने वाले, नेतृत्व करनेवाले, सभी निर्णय केवल एक ही समाज घटक के पास सीमित हैं। ऐसे 3 से 4 लोग ही पालघर जिला भाजपा को चला रहे हैं। एक ही समाज घटक से सम्बंधित लोग पार्टी के लिए नुकसानदायक हैं। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। सभी लोगों का प्रतिनिधित्व एवं सहमति से सामूहिक निर्णय लेने पर ही पार्टी को मजबूती मिलती है। भाजपा का यहां पर उज्ज्वल भविष्य है, बस कुछ बातों की ओर ध्यान देने पर और स्थिति सम्भालने पर पालघर में भाजपा को यश प्राप्त होगा। यहां पर भाजपा के लिए मौका ही मौका है। बस अवसर का लाभ उठाने की आवश्यकता है।