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पाकिस्तान-पोषित खालिस्तानी आंदोलन

पाकिस्तान-पोषित खालिस्तानी आंदोलन

by प्रमोद जोशी
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, राष्ट्र- धर्म रक्षक विशेषांक -जुलाई-२०२३, विशेष, सामाजिक
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पाकिस्तान अपनी जमीन पर खालिस्तानी समूहों को पनाह दे रहा है। जबकि, सबको लगता है कि इसकी जड़ें उन देशों में हैं जहां सिख ज्यादा संख्या में रहते हैं। पाकिस्तान इनके माध्यम से भारत के सबसे समृद्ध हिस्से को अशांत रखने की कुत्सित मानसिकता का परिचय देता है।

बहुत से लोगों को लगता है कि खालिस्तानी आंदोलन भारत के भीतर से निकला है और उसका असर उन देशों में भी है, जहां भारतीय रहते हैं। गहराई से देखने पर आप पाएंगे कि यह आंदोलन पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की देन है और वहां से ही इस आंदोलन को प्राणवायु मिल रही है। इस आंदोलन के प्रणेताओं ने अपने खालिस्तान का जो नक्शा बनाया है, उसमें लाहौर और ननकाना साहिब जैसी जगहें शामिल नहीं हैं, जो पाकिस्तान में हैं।

पिछले महीने 6 मई को पाकिस्तान से खबर आई कि आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के मुखिया परमजीत सिंह पंजवड़ की लाहौर में हत्या कर दी गई। उसे जौहर कस्बे की सनफ्लावर सोसाइटी में घुसकर गोलियां मारी गईं। पंजवड़ 1990 से पाकिस्तान में शरण लेकर बैठा था और उसे पाकिस्तानी सेना ने सुरक्षा भी दे रखी थी। बताते हैं कि सुबह 6 बजे बाइक पर आए दो लोगों ने इस काम को अंजाम दिया और फिर वे फरार हो गए।

यह खबर दो वजह से महत्वपूर्ण है। पंजवाड़ का नाम आतंकवादियों की उस सूची में शामिल है, जिनकी भारत को तलाश है। दाऊद इब्राहीम की तरह वह भी पाकिस्तान में रह रहा था, पर वहां की सरकार ने कभी नहीं माना कि वह पाकिस्तान में है। भारत सरकार ने नवम्बर 2011 में 50 ऐसे लोगों की सूची पाकिस्तान को सौंपी थी, जिनकी तलाश है। गृह मंत्रालय ने 2020 में जिन नौ आतंकियों की लिस्ट जारी की थी, उनमें पंजवड़ का नाम आठवें नम्बर पर था।

पहचान छिपाई

भारत की आतंकवादी सूची में उसका नाम होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है, उसकी पाकिस्तान में उपस्थिति। वहां वह कर क्या रहा था? इस मौत के बाद भी पाकिस्तान सरकार ने नहीं माना कि मारा गया व्यक्ति पंजवाड़ था। वहां के मीडिया में उसका नाम सरदार सिंह मलिक बताया गया। उसके अंतिम संस्कार के लिए जब बेटे ने वीजा मांगा, तब वह नहीं दिया गया। पंजवाड़ की पत्नी का पिछले साल सितम्बर में जर्मनी में निधन हुआ था, तब उनके पार्थिव शरीर को पाकिस्तान लाकर ननकाना साहिब में 22 अक्तूबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया था। तब पंजवाड़ के बड़े बेटे मनवीर सिंह को भी वहां देखा गया था। उसके एक दिन पहले ही पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से मुक्त हुआ था। अब वह जोखिम उठाना नहीं चाहता।

इस हत्या के पहले 2020 में लाहौर में खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का लीडर हरमीत सिंह उर्फ हैपी पीएचडी मारा गया था। भारतीय खुफिया एजेंसियों का कहना है कि उसकी हत्या खालिस्तान समर्थक ग्रुपों की आपसी रंजिश में हुई है। नशे की कमाई को लेकर ये लोग आपस में भिड़ते भी रहते हैं। इन नशीले पदार्थों को वे ड्रोनों से भारत के पंजाब में गिराते हैं। पिछले साल हरविंदर सिंह रिंदा नाम का आतंकवादी एक अस्पताल में दवाओं की ओवरडोज के कारण मरा था। उसपर भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 10 लाख रुपये का पुरस्कार घोषित कर रखा है। खुफिया-सूत्रों का कहना है कि वह जिंदा है और उसके मरने की खबर भारत सरकार को गच्चा देने के लिए जानबूझकर फैलाई गई।

यूज एंड थ्रो

कहा यह भी जा रहा है कि पंजवाड़ की हत्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने कराई है। वह लाहौर में 33 साल से रह रहा था। पाकिस्तानी आईएसआई अब खालिस्तानी आतंकियों की छंटनी कर रही है और नए लोगों की भरती कर रही है। पंजवाड़ की उम्र काफी हो गई थी, जिसके कारण वह बोझ बन गया था। उसे ठिकाने लगा दिया गया। पाकिस्तान इन लोगों का ‘यूज एंड थ्रो’ की तरह इस्तेमाल करता है।

भारत में कई तरह की आतंकी गतिविधियों का संचालन पाकिस्तान से होता है। इसमें खालिस्तानियों की खास भूमिका है। इस आलेख में आप आगे देखेंगे कि यह पूरा आंदोलन ही पाकिस्तान की देन है। पाकिस्तानी सेना ने अपनी एक खालिस्तान-शाखा ही बना रखी है, जिसका कार्यालय रावलपिंडी में है। वे भरती किए गए नए सिख नौजवानों को पाकिस्तान लाते हैं और उनके दिमाग में यह बात भरते हैं कि भारत में सिखों पर अत्याचार हो रहा है।

लालकिले पर हमला

26 जनवरी 2021 को लालकिले के द्वार तोड़कर जब भीड़ भीतर प्रवेश कर गई थी और अपना झंडा फहराया था, तब भी उन्हें लेकर आशंका व्यक्त की गई थी। उन्हीं दिनों खालिस्तान-समर्थक ग्रुप पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन और उसके टूलकिट का प्रकरण उछला जिसे सबसे पहले स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सोशल मीडिया पर शेयर किया था। उस सिलसिले में कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी भी हुई थी।

किसान आंदोलन शुरू होने के पहले ही पंजाब में पाकिस्तान से भेजे गए ड्रोनों की मदद से हथियार गिराने की घटनाएं हुई थीं। कनाडा स्थित कुछ समूहों ने सन 2018 से ‘रेफरेंडम-2020’ नाम से एक अभियान शुरू किया, जिसके लक्ष्य बहुत खतरनाक हैं।

नया गिरोह

भारतीय खुफिया एजेंसियों का कहना है कि पाकिस्तान ने ‘लश्कर-ए-खालसा’ नाम से एक नया गिरोह खड़ा कर दिया है। आईबी की रिपोर्ट के अनुसार लश्कर-ए-खालसा आतंकी ग्रुप इस समय सोशल मीडिया में काफी एक्टिव है और वह युवाओं को बरगला कर आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए मना रहा है। यह बात भी सामने आई है कि लश्कर-ए-खालसा नाम के इस आतंकी संगठन का इस्तेमाल जम्मू और कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इस काम में पंजाब और कश्मीर के उन अपराधियों को भी शामिल किया जा रहा है, जो नशे का अवैध कारोबार करते हैं।

पिछले कुछ समय में सीमा पर मंडरा रहे कई ड्रोनों को मारकर गिराया गया है, जिनसे हथियार और ड्रग्स बरामद हुई हैं। पंजाब में पाकिस्तान की 553 किलोमीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जहां कटीले तार बिछाए गए हैं। इस सीमा पर बीएसएफ की कड़ी निगरानी रहती है। फिर भी इनकी घुसपैठ होती रहती है।

पंजाब के मोहाली में पुलिस के खुफिया विंग मुख्यालय में पिछले साल 9 मई की रात रॉकेट चालित ग्रेनेड से हमला किया गया, जिससे इमारत की एक मंजिल की खिड़की के शीशे टूट गए। 23 दिसम्बर 2021 को लुधियाना के कोर्ट काम्प्लेक्स में बम ब्लास्ट हुआ था। 11 जनवरी को पुलिस ने गुरदासपुर से ढाई किलो आरडीएक्स बरामद किया। इसके बाद 14 जनवरी को अमृतसर में 5 किलो विस्फोटक मिला। 21 जनवरी, 2022 को फिर गुरदासपुर से 2 हैंड ग्रेनेड और 4 किलो आरडीएक्स मिला था। यह सूची काफी लम्बी है।

जन-समर्थन नहीं

गिने-चुने लोगों को छोड़ दें, तो सिखों के बीच इस आंदोलन का कोई समर्थन नहीं है, पर थोड़े से लोग ही मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात हाल में अमृतपाल सिंह प्रकरण में साबित हुई है, जो एक नए भिंडरावाले के रूप में उभरना चाहता है। इसने ‘वारिस पंजाब दे’ के नाम से एक संगठन खड़ा किया है। अमृतपाल गिरफ्तार कर लिया गया है और इस समय वह असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है, पर खालिस्तानी सक्रियता जारी है।

दुनियाभर में सिखों और शेष भारतीयों के बीच योजनाबद्ध तरीके से कटुता पैदा करने की कोशिशें की जा रही है। फरवरी में ऑस्ट्रेलिया के तीन हिंदू मंदिरों पर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। फिर तथाकथित ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ के दौरान मारपीट की दो घटनाएं हुईं। गत 12 जनवरी को मेलबर्न के स्वामी नारायण मंदिर में भारत विरोधी नारे लिखे गए। इसके बाद 15 मार्च को ब्रिसबेन में भारतीय वाणिज्य दूतावास को बंद करने पर मजबूर कर दिया।

सबसे गम्भीर घटना लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग में हुई, जहां रविवार 19 मार्च को कुछ लोगों ने तिरंगे झंडे को उतार कर खालिस्तानी झंडा लगा दिया। इस घटना से भारतवंशियों में रोष फैल गया और दुनिया के कई देशों में उन्होंने तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन किए हैं। ऐसी ही एक घटना अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय कौंसुलेट में हुई। खालिस्तान समर्थकों के एक ग्रुप ने 20 मार्च को सैन फ्रांसिस्को में भारतीय दूतावास पर हमला कर वहां तोड़फोड़ की थी।

अमृतपाल प्रकरण

अमृतपाल सिंह प्रकरण से भी इस बात की पुष्टि हो रही है कि पाकिस्तान इस आंदोलन के नेतृत्व में भी बदलाव चाहता है। पिछले दिनों जब पुलिस अमृतपाल सिंह की तलाश कर रही थी, तब शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने कहा था कि उसे आत्मसमर्पण करने के बजाय पाकिस्तान चले जाना चाहिए।

पंजाब में ही नहीं दुनिया के जिन देशों में सिख परिवार रहते हैं, वहां खालिस्तान के बीज बोने की कोशिश की जाती है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में इन तत्वों की सक्रियता हाल में देखने को मिली है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर एक साल तक चले किसानों के आंदोलन के दौरान भी सोशल मीडिया पर खालिस्तान समर्थक सक्रिय हुए थे।

पाकिस्तानी भूमिका

खालिस्तानी आंदोलन की पृष्ठभूमि काफी पीछे ले जाती है, पर इसमें पाकिस्तानी भूमिका सत्तर के बाद बढ़ी है। 14 दिसम्बर 1920 को स्थापित शिरोमणि अकाली दल ने स्वतंत्रता के बाद पंजाबी सूबा आंदोलन चलाया। इस मांग के पीछे दो आत्यंतिक प्रवृत्तियां थीं। सम्प्रभु राज्य या भारत के भीतर स्वायत्त राज्य की स्थापना। धर्म-आधारित विभाजन में बहुत खून बहा था, जिसके कारण भारत सरकार ने शुरू में इस मांग को खारिज कर दिया।

अंततः इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने मांग को स्वीकार कर लिया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम संसद में पास हो गया, जो 1 नवम्बर 1966 से लागू हो गया। पर इतने भर से संतोष नहीं हुआ। अकाली दल ने 1973 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास करके स्वायत्तता की मांग की। 1982 में अकाली दल और जरनैल सिंह भिंडरावाले ने संकल्प को लागू करने के लिए धर्मयुद्ध मोर्चा शुरू करने के लिए हाथ मिलाया।

आंदोलन के पीछे अमेरिका और पाकिस्तान की भूमिका होने का इशारा 2007 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘काओबॉयज ऑफ रॉ’ में बी रामन ने किया था, जो कैबिनेट सचिवालय में एडीशनल सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए थे। इसकी पृष्ठभूमि 1971 तक जाती है, जब बांग्लादेश का जन्म हुआ नहीं था। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और पाकिस्तानी सैनिक शासक याह्या खान ने भारत के पंजाब को तोड़कर नया देश बनाने की योजना तैयार की।

पंजाब के सिख नेता जगजीत सिंह चौहान को ब्रिटेन भेजा गया, जिसने पुराने सिख होम रूल आंदोलन को खालिस्तान नाम से पुनर्जीवित किया। याह्या खान ने चौहान को पाकिस्तान बुलाया। वे भुट्टो से मिले। अक्टूबर 1971 में वे अमेरिका गए। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में स्वतंत्र सिख राज्य की घोषणा करते हुए एक विज्ञापन दिया। अमेरिकी पत्रकारों और संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों से भी उनकी मुलाकात हुई। इन बैठकों की व्यवस्था अमेरिकी रक्षा परिषद के तत्कालीन प्रमुख हेनरी किसिंजर ने की थी। आज की परिस्थितियां हालांकि बदली हुई हैं, पर इतना समझ लीजिए कि आंदोलन की मददगार ताकतें जीवित हैं।

 

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