महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों की भांति पनवेल में भी बिजली की समस्या मुंह बाये खड़ी है। इसके अलावा शहर पानी की समस्या से भी दो-चार हो रहा है तथा मुंबई की भांति झुग्गी-झोपड़ियां भी काफी संख्या में बढ़ गई हैं। इन समस्याओं का निराकरण किए बिना पनवेल का समग्र विकास होना मुश्किल है।
मुंबई में जगह की कमी पड़ने के कारण उसके आसपास के क्षेत्रों जैसे कि पालघर, मीरा-भाइंदर तथा नवी मुंबई का व्यापक विस्तार हो रहा है। इसी क्रम में पनवेल का भी बहुमुखी विकास हो रहा है। प्रकृति की गोद में बसे पनवेल में जमीन की उपलब्धता की वजह भी यहां के विकास की प्रमुख कारकों में है। पनवेल एक ऐतिहासिक शहर है। महाराष्ट्र के इतिहास में इसका अलग महत्व है। यह कोंकण तथा मुंबई के प्रवेश द्वार के रूप में पहचाना जाता है। पनवेल पुराने जमाने से व्यापारी बाजार के रूप में पहचाना जाता है। यहां का बंदरगाह अरब और अफ्रीका से आने वाले व्यापारियों के बीच काफी महत्व रखता था। संत तुकाराम महाराज भी व्यवसाय के लिए पनवेल में आते थे। वसई की संधि के समय चिमाजी आप्पा पनवेल के बापट वाडा मेें रुके थे। समय के साथ पनवेल गांव से शहर और अब महानगर बन गया है।
समय के साथ शहर का विकास तो हुआ परंतु जमीन की बहुतायत उपलब्धता और शहर के विकास के शुरुआती दौर में कतिपय इलाकों में झुग्गी-झोपड़ियां बन जाने के कारण शहर की रूपरेखा उतनी बेहतरीन नहीं बन पायी है, जितनी होनी चाहिए थी। पुराने पनवेल को स्टेशन से जोड़ने वाला रोड भी झुग्गियों से घिरा हुआ और अत्यंत संकरा है। महानगरपालिका क्षेत्र में श्रमिक वर्ग, गृहकार्य करने वाले, बेरोजगार, चतुर्थ सेवा कार्य करने वाले मजदूर वर्ग झोपड़पट्टी मेें रहते हैं। पनवेल का शहरीकरण जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे झोपड़पट्टियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इन झोपड़पट्टियों में बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति नहीं की जाती। झोपड़पट्टी के विकास के लिए महानगरपालिका बुनियादी सुविधाएं नहीं देती, जैसे बिजली, नल, पानी, सड़कें, सीवर, नाली आदि। नगरपालिका की महानगरपालिका बन गई, परंतु झोपड़पट्टी की समस्या जैसी थी वैसी ही है। जो उपाय किए जाने चाहिए थे वह नहीं किए गए और जानबूझकर झोपड़पट्टियां रखी गई। पनवेल झोपड़पट्टी मुक्त करने के लिए झोपड़पट्टी पुनर्वसन योजना बनाई गई परंतु वह केवल कागज पर ही रह गई।
इसके अलावा हर नागरिक तक समुचित रूप से पानी की सप्लाई न हो पाना भी महानगरपालिका क्षेत्र की प्रमुख समस्या है। शहर में नागरिकों को पनवेल महानगरपालिका के स्वामित्व वाले बांध और महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण की ओर से पानी की आपूर्ति की जाती है। इतना होते हुए भी नागरिकों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता। उन्हें एक दिन छोड़कर पानी मिलता है। बढ़ती हुई जनसंख्या और बढ़ते हुए निर्माण कार्यों के कारण भी महानगरपालिका के लिए पानी का समुचित नियोजन करना सम्भव नहीं हो सका है।
महानगरपालिका क्षेत्र के सिडको क्षेत्र में भी पानी की कमी है। पानी के लिए मोर्चे निकल रहे हैं। महानगरपालिका बनने के कारण नगरपालिका का क्षेत्र तो बढ़ गया है, परंतु उस अनुपात में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पाया है। पानी आम आदमी की बुनियादी आवश्यकता का प्रमुख भाग होता है। इसलिए उसके समुचित बंटवारे के लिए महानगरपालिका और स्थानीय प्रशासन को कुछ सार्थक प्रयास करने चाहिए। जैसे कि देहरंग बांध में काफी गाद (कीचड़) बैठ गया है। फौरी तौर पर यह गाद हटाई जानी चाहिए जिससे उसकी सम्भारण क्षमता बढ़ जाए। इससे पानी की समस्या कम हो जाएगी। महानगरपालिका को अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए तथा स्वयं के स्वामित्व का एक और बांध निर्माण करना चाहिए तथा जल पुनर्चक्रण योजना बनाई जानी चाहिए, ताकि पानी का पुनर्प्रयोग किया जा सके। इसके लिए जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए। नई बनने वाली सोसाइटियों में जल आपूर्ति बढ़ाने के लिए मानसून के दौरान, जमीन के अंदर पानी पहुंचाने की योजना बनानी चाहिए ताकि गर्मी में इस पानी का उपयोग बोरिंग द्वारा किया जा सके। पुरानी सोसाइटियों में भी इस योजना के विस्तार की गुंजाइश देखने का प्रयास करना चाहिए।
पनवेल महानगरपालिका क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या बिजली की कटौती है। वैसे देखा जाए तो पूरे महाराष्ट्र में बिजली की कटौती बहुत बड़ी समस्या बन गई है। पनवेल महानगरपालिका क्षेत्र को एमएसईडीसीएल की ओर से बिजली की आपूर्ति की जाती है। महानगरपालिका के क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हो रही है। जिससे बिजली की आपूर्ति की आवश्यकता भी बढ़ गई है। समय के साथ महानगरपालिका में एमआईडीसी, शहरी भाग, छोटे-छोटे गांवों को भी नए रूप में समावेशित किया गया है। बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण भी बिजली का उपयोग बढ़ गया है, जिससे बिजली की आपूर्ति में कमी हो रही है। शहरीकरण होने के कारण लाइटिंग की सुविधा बढ़ गई है। महानगर पालिका भी जगह-जगह अनावश्यक लाइटिंग करती है।
पनवेल क्षेत्र में घरेलू लाइट का भी बहुत ज्यादा उपयोग होता है। अभिजात वर्ग के आवासों तथा मॉल में एसी और लाइट का बहुत ज्यादा मात्रा में उपयोग किया जाता है जिससे यह समस्या बढ़ रही है। किसी भी क्षेत्र के औद्योगिक एवं नागरिक विकास के लिए बिजली एवं पानी की समुचित आपूर्ति बहुत मायने रखती है। पानी के पुनर्प्रयोग द्वारा जल समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। साथ ही, बिजली चोरी पर नियंत्रण करते हुए लोगों को बिजली की बचत के प्रति जाग्रत किए जाने की आवश्यकता है। यदि महानगरपालिका, राज्य सरकार और केंद्र सरकार संयुक्त रूप से मिलकर झोपड़पट्टी में रहने वालों को मुफ्त घर दें अथवा अल्प 10 प्रतिशत रकम लेकर घर बना दें तो झोपड़पट्टी का पुनर्वसन हो सकेगा।
सिडको क्षेत्र के भागों का पुनर्वसन करने में जो रुकावट आ रही थी, वह समस्या काफी हद तक हल हो रही है। लेकिन नागरिकों को विश्वास में ना लेते हुए महानगरपालिका बहुत ज्यादा टैक्स लागू कर रही है। इसलिए बुनियादी समस्याओं को हल करने पर जोर दिया जाना चाहिए, जिसके अंतर्गत सड़क, पानी, बिजली और सीवर का उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए तथा तलोजा इंडस्ट्रीज के प्रदूषण पर लगाम लगाई जानी चाहिए, जिससे विकास के पथ पर अग्रसर पनवेल महानगरपालिका अपनी चहुंमुखी विकास की यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सके।
शंकर वायदंडे