राजस्थान में बदलेगा राज या रिवाज

राजस्थान की जनता हर दूसरे टर्म में सत्ता परिवर्तित करती है। यह वहां का रिवाज है। इस साल के अंत में वहां चुनाव होने वाले हैं। एक ओर कांग्रेस गहलोत-पायलट के भंवर में है तो भाजपा वसुंधरा पर दांव खेले या नहीं इस पशोपेश में, परंतु जनता को तो उसे चुनना है जो उसके भविष्य को अधिक प्रकाशमान कर सके। देखना ये है कि वहां की जनता इस चुनाव में किसे चुनती है।

देश की 136 संसदीय सीटों पर 11 जुलाई से 24 जुलाई तक एक न्यूज चैनल (इंडिया टीवी-मैटराइज) सर्वे के मुताबिक, अगर आज राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव होते हैं, तो कांग्रेस सरकार का जाना लगभग तय है। सर्वे के मुताबिक, राजस्थान के 27% मतदाता कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को दोबारा सरकार में लाने के पक्ष में नहीं हैं। वहीं 57% ने कहा कि वे 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मौका देंगे। 16% मतदाताओं का अभी यह तय करना बाकी है कि वे किस पक्ष के साथ जाएंगे। अगर आज राजस्थान में विधानसभा चुनाव होते हैं, तो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर 27% लोगों की पसंद होंगे। वसुंधरा राजे के नाम पर 22%, गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम पर 19%, सचिन पायलट के नाम पर 11% और अन्य के नाम पर 21% लोगों ने मत अभिव्यक्त किया है। भारतीय जनता पार्टी 52% वोट हासिल कर सकती है। कांग्रेस के खाते में सिर्फ 31% वोट आएंगे, जबकि 17% वोट अन्य के खाते में जाएंगे। भारतीय जनता पार्टी को 148 सीटों पर जीत मिलेगी। वहीं, अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस केवल 42 सीटें ही जीत पाएगी। 10 सीटें अन्य पार्टियों के खाते में जा सकती हैं।

2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो आज की तस्वीर काफी अलग है। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां 200 में से 99 सीटें जीती थीं, वहीं आज चुनाव होने पर वह केवल 42 सीटें ही जीत पाएगी। 73 सीटें जीतने वाली भाजपा आज होने वाले चुनाव की स्थिति में दोगुने से भी ज्यादा 148 सीटों पर कब्जा कर सकती है। यहां सबसे बड़ा मुद्दा सरकार का काम है। यहां 31% वोट सरकारी काम पर, 26% मोदी फैक्टर पर, 14% विधायक के काम पर और 12% साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर डाले जा सकते हैं।

उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड का राजस्थान के विधानसभा चुनाव पर असर को लेकर 69% लोगों ने ‘हां’ में जवाब दिया है, वहीं 23% लोगों का मानना था कि राजस्थान चुनाव में इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। 8% लोग कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं। इस सर्वे में मार्जिन ऑफ एरर माइनस/प्लस टू रखा गया है यानी कि नतीजों में 2 प्रतिशत इधर-उधर का अंतर हो सकता है। इतने बड़े पैमाने पर किया गया यह सर्वे काफी हद तक जमीनी हकीकत के बारे में बता सकता है।

राजस्थान में 2023 के चुनाव संदर्भ में कुछ समय पहले सतीश पूनिया ने कहा था कि हमारे पास मुख्यमंत्री पद के लिए एक दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार हैं। ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेताओं के सामने चुनौती है कि 2023 के चुनाव में किसे मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में मैदान में उतारा जाए। लेकिन प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गुट एक बार फिर राजे को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने की मांग कर रहा है, जिसके लिए वसुंधरा राजे समेत विभिन्न खेमे भी धरातल पर सक्रिय हैं। चार राज्यों में जीत के बाद आखिरकार राजस्थान में पार्टी के एक खेमे में इतना उत्साह और दूसरे खेमे में बेचैनी का कारण समझने के लिए 8 मार्च 2022 के घटनाक्रम को समझना होगा।

पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से दो दिन पहले यानी आठ मार्च को अपने जन्मदिन पर वसुंधरा राजे सिंधिया ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया, वो बीजेपी नेतृत्व के लिए चिंता का सबब बन गया। राजे के शक्ति प्रदर्शन में न केवल हजारों की भीड़ पहुंची, बल्कि पार्टी के 58 विधायकों ने भी उस जुलूस में भाग लिया। इस शक्ति प्रदर्शन के बाद राजस्थान भाजपा के प्रभारी अरुण सिंह को कहना पड़ा कि भाजपा में व्यक्तिवाद काम नहीं करता। राजे के इस शक्ति प्रदर्शन का मतलब पार्टी को यह संदेश देना था कि वह राजस्थान में भाजपा की सबसे लोकप्रिय नेता हैं। विशेषज्ञ इसे राजे के पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति भी मान रहे हैं ताकि उन्हें राजस्थान में पार्टी की कमान सौंपी जा सके। वहीं वसुंधरा राजे के नेतृत्व में 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद ही भाजपा नेतृत्व ने इस रणनीति पर काम करना शुरू किया कि राजस्थान में 2023 का चुनाव सामूहिक नेतृत्व और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दम पर लड़ा जाएगा। लेकिन ये वसुंधरा राजे समर्थकों को मंजूर नहीं है।

विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी लहर के सहारे ही भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव जीत सकती है। राजस्थान में गहलोत सरकार के खिलाफ भाजपा नेता सत्ता विरोधी लहर नहीं बना पाए हैं। फिलहाल राजस्थान में चुनावी सियासी हवाएं तेज होने लगी हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के अंत में होने है। भाजपा ‘मिशन-2023’ को फतेह करने के लिए लगातार गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ी कर रही है। राज्य में गहलोत सरकार विरोधी माहौल बना रही है। नीट पेपर लीक मामला हो, करौली हिंसा हो, या कानून व्यवस्था। भाजपा गहलोत सरकार पर लगातार हमलावर है। हालांकि राजस्थान में सत्ता हर बार बदलती रही है। इसका कारण जनता का असंतोष माना जाता है। 2023 के चुनाव में यह थ्योरी एक बार फिर साबित होती है या नहीं, यह वक्त बताएगा।

                                                                                                                                                                                       देवेन्द्रराज सुथार 

Leave a Reply