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खेल ‘खेल’ न रहा 

खेल ‘खेल’ न रहा 

by हिंदी विवेक
in खेल, ट्रेंडींग, दीपावली विशेषांक-नवम्बर २०२३, देश-विदेश, विशेष, सामाजिक
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कुछ साल पहले तक भारत में प्रोफेशनल खेलों के नाम पर केवल क्रिकेट ही था जहां ‘नेम और फेम’ दोनों मिलता था परंतु ये सिर्फ महानगरों के लोगों तक ही सीमित था। आज जब अन्य खेलों के लीग मैच इतनी बड़ी संख्या में हो रहे हैं तो एक परिवर्तन यह भी दिखाई देता है कि देश के छोटे-छोटे खिलाड़ियों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा है।

एक समय था जब खेलों में लोगों की नजर सबसे पहले पड़ती थी क्रिकेट पर और लोग शुरू हो जाते थे कि देखो क्रिकेट में कितना बेहिसाब पैसा है तो खिलाड़ी क्यों न क्रिकेट में ही अपना कैरियर बनाएं। फिर जिसे देखो अपने बच्चे को क्रिकेट कोचिंग कैम्प भेजने लगा। अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार वो अपने बच्चों को क्रिकेट खिलाड़ियों के कैम्पों में भेजने लगे। इसका बहुत अधिक सकारात्मक परिणाम तो सामने नहीं आता था लेकिन माता-पिता सहित खिलाड़ी की महत्वकांक्षाएं जरूर आसमान छूने लगती थीं।

विडंबना देखिए कि क्रिकेट के क्षेत्र में छोटे शहरों से खिलाड़ी उभर नहीं पाते थे। भारतीय टीम में दिल्ली, मुंबई, बंगाल और पंजाब के खिलाड़ियों का बोलबाला रहता था। यह दौर टेस्ट मैचों का था। फिर भी सुखद बात यह थी कि अन्य खेलों को भी देश के हर कोने में पसंद किया जाता था और उनमें भी प्रतिभाशाली खिलाड़ी उभरकर सामने आते थे। भले ही उन खेलों में बहुत अधिक धन की वर्षा नहीं होती थी। लेकिन खेल कोटे से उन्हें सरकारी नौकरी अवश्य मिल जाती थी। यह भी वजह थी कि नौकरी का आकर्षण भी खेल भावना को जगाए रखता था। बड़े शौक से खिलाड़ी विभिन्न प्रकार के इनडोर और आउटडोर खेलों को अपना पसंदीदा खेल बनाते थे। सरकारी व्यय पर खिलाड़ियों को देश-विदेश में आयोजित एशियाई और वैश्विक स्तर की प्रतियोगिताओं में शिरकत करने के लिए भेजा जाता था। खिलाड़ी केवल पदक जीतकर वापस आते थे और उसी में खिलाड़ी और देशवासी दोनों खुश हो जाते थे।

देश-विदेश जाना तो अभी भी जारी है। किंतु आज स्थिति थोड़ी बदल गयी है। आज हर खेल में खिलाडियों की नीलामी होती है। उन्हें मुंहमांगी कीमतों पर खरीदने की होड़ मच जाती है। हर खेल के पेशेवर लीग मैच आयोजित होने लगे हैं। कबड्डी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, लॉन टेनिस आदि के लीग टूर्नामेंट की लोकप्रियता दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ रही है। छोटे-छोटे गांवों-शहरों और कस्बों के लड़के-लड़कियां अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में सफल हो रहे हैं। स्वाभाविक रूप से वे सभी नाम और अच्छे दाम दोनों कमा रहे हैं। हर खेल लीग में भाग लेनेवाली टीमों के नाम भी आईपीएल की टीमों की तरह रखे जा रहे हैं। इंडियन सॉकर लीग का ही उदाहरण लें तो उसमें भाग लेनेवाली टीमें देशी-विदेशी खिलाड़ियों से भरी रहती हैं और क्रिकेट की तर्ज पर ही टीमों के नाम होते हैं। सबसे खास बात यह कि इन लीग मैचों में सभी वर्ग के खिलाड़ी होते हैं। जिनमें खेल भावना के साथ प्रतिस्पर्धा की भी जबर्दस्त भावना होती है। इस भावना का सार यह है कि प्रत्येक खिलाड़ी यह चाहता है कि अवसर सभी को मिले लेकिन जीत सिर्फ मेरी या मेरी टीम की ही होनी चाहिए। यह दृष्टिकोण भारत के खेल भविष्य को शानदार बनानेवाला है। जब तक खिलाड़ी एक दूसरे से प्रतियोगिता की भावना नहीं रखेंगे तो जीत जैसे शब्द कैसे और कहां से पैदा होगी। यद्यपि भारत में प्रोफेशनल स्पोर्ट्स लीग ने संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में 135 साल बाद यानी काफी देर से प्रवेश किया लेकिन अब हमारा युवा वर्ग इस प्रकार के लीगों में  दिलचस्पी ले रहा है। अपनी प्रतिभा को निखारने में और अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में जी-जान लगा रहा है।

वर्तमान में भारत में मुख्य रूप से  अनेक  खेलों के स्पोर्ट्स लीग आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें इंडियन प्रीमियर लीग, इंडियन सॉकर लीग, हॉकी इंडिया लीग, प्रो कबड्डी लीग, महिला कबड्डी चैलेंज, प्रीमियर बैडमिंटन लीग व वीमेंस क्रिकेट प्रीमियर लीग आदि प्रमुख हैं। कुल मिलाकर भारत में अब 12 से अधिक राष्ट्रीय पेशेवर खेल लीग मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक विकास के विभिन्न स्तरों पर है। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि आईपीएल भारत में सभी राष्ट्रीय पेशेवर खेल लीगों में सबसे अधिक स्थापित है। व्यापक प्रशंसक आधार के साथ, क्रिकेट भारत में सबसे लोकप्रिय खेल है और उदार प्रायोजन राशि के साथ यह खिलाड़ियों को आकर्षित करता है। आईपीएल दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट लीग है। बदले में यह दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करता है, जिससे लाखों भारतीयों के अलावा विश्व स्तर पर टेलीविजन दर्शकों की संख्या भी बड़े पैमाने पर बढ़ती है। अब लगभग अन्य खेलों के लीग की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। अभी हाल ही में प्रो कबड्डी लीग के लिए करोड़ो में कबड्डी खिलाडियों को खरीदा गया। इसका अर्थ यह है कि पेशेवर खेल भावना का विकास तीव्र गति से हो रहा है। कुछ खेलों में क्रिकेट की भांति बड़े फिल्म अभिनेता और नामचीन व्यवसायी टीमें खरीद रहे हैं। देशी-विदेशी खिलाड़ियों को अवसर के साथ अच्छी खासी राशि मिलती है। कई खिलाड़ी जो केंद्रीय टीम में जगह नहीं बना पाते। उन्हें इस प्रकार के लीग एक अच्छा मंच प्रदान करते हैं। लीग मैचों से उन्हें नेम-फेम दोनों हासिल होते हैं। उन्हें पूरे देश के लोग जानने लगते हैं। सबसे खास बात यह कि खिलाड़ियों को न केवल बहुत अच्छी धन राशि मिलती है बल्कि विदेशी खिलाड़ियों के साथ कंधा से कंधा मिलकर अपनी प्रतिभा साबित करने का भी उल्लेखनीय अवसर भी प्राप्त होता है। दुनिया भर में अन्य देशों के खिलाड़ी केवल अपनी खेल प्रतिभा विकसित करने के प्रयास में जुटे रहते हैं तो उसकी वजह यह होती है कि उन्हें अपनी अथवा अपने परिवार के जीवनयापन की चिंता नहीं होती है। हमारे देश के खिलाड़ियों में भी अगर इस प्रकार की पेशेवर भावना का विकास हो रहा है तो कोई हर्ज नहीं है। आज केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पदक जीतनेवाले खिलाड़ियों पर इनामों की बारिश कर देते हैं तो यह भारत में खेलों के सुनहरे भविष्य का संकेत है।

भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन पर पेशेवर खेल लीग का स्पष्ट प्रभाव नजर आ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले कुछ वर्षों में, वैश्विक पेशेवर खेलों ने कुछ खेलों के मानक को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फुटबॉल, टेनिस, क्रिकेट, बास्केटबॉल, बेसबॉल, एथलेटिक्स और मुक्केबाजी में ट्रैक और फील्ड स्पर्धाएं, इनमें से कुछ हैं। टेलीविजन और ओटीटी के माध्यम से इन खेलों की व्यापक पहुंच देश के हर खेल मैदान से लेकर हर घर के बैठक कक्ष तक है। यही वजह है कि अब किसी भी खेल को प्रायोजकों का अभाव नहीं होता है। फिर भी यह स्थिति शत-प्रतिशत उत्साहजनक नहीं है। यह तो युवा वर्ग की पसंद होती है कि वो किस खेल में अपना कैरियर बनाए।

खिलाड़ियों की खेल भावना और अधिक सकारात्मक और दृढनिश्चयी होगी, यदि खेल संगठन की कमान किसी राजनितिज्ञ के बजाय किसी भूतपूर्व मशहूर खिलाड़ी को सौंपी जाए। कुश्ती के खिलाड़ियों को अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करना पड़ा। इससे पहलवानों का मनोबल तो गिरा ही साथ ही साथ पूरे देश में एक गलत संदेश गया कि कुश्ती के खेल में महिला पहलवान  असुरक्षित हो सकती हैं। देश की छवि ग्लोबल स्तर पर खराब हुई सो अलग!

यह बात बिना किसी विवाद के प्रमाणित होती है कि खेल भावना महत्वपूर्ण तो है लेकिन किसी भी हाल में जीतने की सेहतमंद और सकारात्मक पेशेवर भावना का अपना अलग ही महत्व  है। बशर्ते यह सकारात्मक हो। खेल भावना उच्च स्तर की होगी यदि उसमें जीत के लिए ‘येन-केन-प्रकारेण’ का अनुचित उपयोग न किया जाए।

यह भी आवश्यक है कि युवा खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके अभिभवाकों को भी खेल भावना के महत्व से परिचित कराया जाए। ताकि युवा खिलाड़ियों को अपने कैरियर की दिशा तय करने एवं अपने व्यक्तित्व को निखारने में अभिभावकों का पर्याप्त सहयोग मिल सके। इससे होगा यह कि महत्वाकांक्षा के घोड़े पर सवार युवा मन को प्रगति की गति नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। खेल भावना से भाई चारा भी बढ़े लेकिन जीतने की लालसा कम न हो।

                                                                                                                                                                                                        सैलानी

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