भक्ति सम्प्रदाय की अलख

भक्ति की ज्ञानमय चेतना मानव के जीवन को प्रकाशमान करती है। इसके साथ-साथ उसके पाप भी जला कर राख करती है। इसी भक्ति की दिव्य ज्योति से सद्गुरु जीवनमुक्त महाराज ने पुर्तगालियों के विरुद्ध धर्मक्रांति का मानो होमकुंड जगाया।

 

एक सद् विप्रा बहुदा वदंति।

परमेश्वर एक ही है, जो विभिन्न नामों से पहचाना जाता है। उसकी पूजा, अर्चना, उपासना करने के तरीके अलग-अलग है। परंतु अपनी भक्ति उस विश्वरूप परमेश्वर तक पहुंचती है, यह सत्य मानकर राष्ट्र के उद्धार के लिए सभी सम्प्रदायों का एकत्रीकरण होना आवश्यक है। महाभारत काल में भीष्मपर्व के अनुसार गोवा गोपराष्ट्र-गोमांत के नाम से प्रसिद्ध था। हरिवंश पुराण के अनुसार रणछोड़ कृष्ण यहां आश्रय के लिए आए थे। महिषासुर मर्दिनी दुर्गा इसी प्रशांत क्षेत्र में शांता दुर्गा बन गई। अघनाशिनी-जुवारी नदी के किनारे बसी हुई इस पुण्य भूमि का उल्लेख सूतसंहिता के छठवें अध्याय में आता है।

गोकर्ण दुत्तरेभागे सप्त योजनेविस्तृतम्।

तत्र गोवापुरी नाम नगरी पाप नाशिनी।

इसी स्थान पर भार्गव परशुराम ने सप्तक कोकण के अधिपति सप्तकोटेश्वर शिव शंकर की प्राणप्रतिष्ठा की थी। इसी शिवालय को पुर्तगालियों ने नष्ट कर दिया था शिवछत्रपति ने उसका जीर्णोद्धार किया।

गुलामी के अंधेरे में भक्ति का ज्ञानदीप

गोवा में मौर्य, चालुक्य, राष्ट्रकूट, शीलाहार, कदंब, देवगिरी के यादव, विजयनगर, आदिलशाह आदि प्रशासक हुए। पुर्तगालियों ने गोमांतकीयों के तीर्थ स्थलों पर आदिलशाह से भी ज्यादा भयंकर हमले किये। गोवा में अपना जहरीला शासन स्थापित करने के लिए उन्होंने ईसाई धर्म का सहारा लिया और जबरन धर्म परिवर्तन करना शुरू कर दिया। कुछ नए-नए बने ईसाई फिर से हिंदू धर्म अपनाने का प्रयास करने लगे। ऐसे लोगों को सजा देने के लिए गोवा में इनक्विजिशन कोर्ट की स्थापना की गई। यह सेंट जेवियर ने किया (संत नहीं सेंट)। इस कोर्ट के अनुसार दोषी व्यक्ति को अधिक से अधिक सजा के रूप में ‘आव्तु-द-फै’ नामक उत्सव में जीवित जलाया जाता था। पुराना गोवा (ओल्ड गोवा) में हातकापोखाम्ब इस अमानुष सजा का साक्षी है। गुलामी के इस भयानक अंधेरे में भी गोवा में अनेक मठों और मंदिरों मे भक्ति के ज्ञान दीप निर्भरता से प्रकाशमान थे। काणकोण का मल्लिकार्जुन, हरवले का महारूद्र शंकर, पेड़णे की भगवती, शिरगांव की लईराई, गांव-गांव की शांतादुर्गा, सातेरी -भूमिका, रवलनाथ आदि देवी देवताओं की पूजा अर्चना अखंडित रूप से होती थी। परंतु बाकी के मंदिर टूटते जा रहे थे।

भक्ति सम्प्रदाय का धर्म जागरण

यह ध्यान देना आवश्यक है कि गुलामी और धर्म परिवर्तन के इन तूफानी हमलों से नष्ट हुए गोमांतकीयों के जीवन को बचाकर, उनमें सत्व और स्वत्व को जागृत करने का कार्य तत्कालीन सम्प्रदायों ने तथा उनके प्रमुखों ने किया। उस समय पांडुरंग महाराज के मार्गदर्शन में सिद्धारूढ़ सम्प्रदाय दुर्भाट तथा सावर्डे, पेंडणे प्रदेश में भक्ति साधना कर रहे थे। समर्थ का रामदासी सम्प्रदाय, बालकृष्ण रामदासी के नेतृत्व में फोंडा, डिचोली, शिवली गांवों में राम स्मरण में रम गया था। म्हापसा में महारूद्र हनुमान मंदिर बनाने की प्रेरणा मारुति स्वामी रामदासी ने दी थी। सदानंदाचार्य के शिष्य सुषेणाचार्य तथा कमलेश्वर स्वामी ने गोवा में पद्मनाभ सम्प्रदाय का विस्तार किया। इस समय को कोदाल में चिदंबर सम्प्रदाय का, साखली केरी में शंकरनाथ सम्प्रदाय का, बौद्ध व जैनों का भी कार्य चल रहा था। झारबाग में अक्कलकोट स्वामी का कैवल्याश्रम सम्प्रदाय, भये मे श्री आदिनाथ मंदिर में कार्यरत नाथसम्प्रदाय, विद्याधिराज तीर्थवडेर स्वामी सम्प्रदाय, ऐसे अनेक सम्प्रदायों के प्रमुख मठाधीश गोमांतकियों का धर्म संकीर्तन कर रहे थे।

भक्ति ज्योति ने जगाई क्रांति की मशाल

तेजोमय दीप स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है और समय आने पर जलाता भी है। यह अग्निदीप के गुणधर्म है। भक्ति भी ऐसी ही है। भक्ति की ज्ञानमय चेतना मानव के जीवन को प्रकाशमान करती है। इसके साथ-साथ उसके पाप भी जला कर राख करती है। इसी भक्ति की दिव्य ज्योति से सद्गुरु जीवनमुक्त महाराज ने पुर्तगालियों के विरुद्ध धर्मक्रांति का मानो होमकुंड जगाया। केवल भजन, पूजन और कीर्तन से भगवान प्राप्त नहीं होते। यदि ऐसा होता तो सोमनाथ का मंदिर लूटा नहीं जाता। अयोध्या का श्री राम मंदिर ध्वस्त नहीं होता। उन्होंने यह सब जानकर ही भक्ति को शक्ति साधना का साथ दिया। ईश्वर भक्ति के साथ-साथ देशभक्ति भी महत्वपूर्ण मानी। स्वयं मोक्ष मुक्ति प्राप्त करने के पहले गोमांत मातृभूमि मुक्त करने का आदेश उन्होंने अपने शिष्य सम्प्रदाय को दिया था। राजधानी पणजी के उस पार का मालणे -पिलणे का सद्गुरु मठ उस समय क्रांति कार्यों का ऊर्जा केंद्र बना हुआ था। व्यसन मुक्ति तथा अंधश्रद्धा निर्मूलन के कार्यों के कारण वे दूसरों से अलग दिखते हैं।

स्वतंत्रता के बाद के युग में भक्ति सम्प्रदाय

भारत की आजादी के बाद पंडित नेहरू की गलत नीतियों के कारण गोमांतकीयों को 14 वर्ष तक गुलामी के अंधेरे में डूबने के लिए मजबूर होना पड़ा। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल, भारतीय सेना, गोमांतकीय तथा राज्य के बाहर के स्वतंत्रता सेनानी इत्यादि के अथक परिश्रम के कारण 19 दिसंबर 1961 को गोवा मुक्त हुआ और भारत का अविभाज्य घटक बना। असंख्य वीरों के बलिदान से प्राप्त हुआ यह स्वराज अब सुराज बने, इसलिए गोमांतकीय जनता पुनः नए उत्साह से काम में जुट गई। भक्ति सम्प्रदाय भी आगे बढ़े। इसमें सबसे बड़ा योगदान दिया पूजनीय ब्रह्मानंद के नेतृत्व में विस्तार पाने वाले पद्मनाभ सम्प्रदाय ने। वेद अध्यापन, सामूहिक उपनयन, विवाह संस्कार, व्यसन मुक्ति, संगीत, कीर्तन कक्षाएं, संस्कार कक्षाएं, रक्तदान शिविर जैसे विभिन्न उपक्रमों द्वारा समाज कार्य चलाया। पद्मनाभ सम्प्रदाय में तारानंद स्वामी, पुष्पराज स्वामी, शिवेश्वर स्वामी इनका स्वतंत्र शिष्य सम्प्रदाय है, जो अपने-अपने तरीके से जनहित का कार्य करता है।

दूसरा महत्वपूर्ण सम्प्रदाय जिसने नर को नारायण मानकर उसकी सेवा की वह है, पद्माकर सम्प्रदाय इसकी शाखाएं फोंडा गोवा के साथ-साथ गोवा के बाहर भी फैली हुई हैं।

विद्यमान युग में ईश्वर, देश, धर्म और संस्कृति का संवर्धन करने के लिए प्रयत्नशील सम्प्रदायों में सद्गुरु जीवनमुक्त महाराज का दत्त सम्प्रदाय कृतिशील है। मुकुंदराज महाराज के मार्गदर्शन में गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों में सम्प्रदाय द्वारा किए गए सामाजिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और धार्मिक कार्य उल्लेखनीय हैं। गोहत्या प्रतिबंध, श्री राम मंदिर आंदोलन, विश्व हिंदू परिषद पर से प्रतिबंध हटाने के लिए हुआ आंदोलन, दिल्ली राम मंदिर आंदोलन, गोवा की धर्म सभा इनमें यह सम्प्रदाय सक्रिय था। तपोभूमि पीठाधीश के साथ विविध आंदोलनों का नेतृत्व भी गुरुवर्य मुकुंदराज महाराज ने किया था। गोवा मुक्ति के पूर्व समय से कार्यरत सिद्धारूढ़ सम्प्रदाय बाद में भी तेजी से फैल रहा है। पर्वरी में बनाया गया मठ इसका प्रतीक है।

सिद्धारूढ़ स्वामी की परम शिष्या कलावती माता का हरि मंदिर इसी समय में अनेक गांवों में बनाया गया है। संसार की दैनिक चिंता से गृहणियों को मुक्त कर हरि चिंतन में आनंद प्रदान करने में यह सफल हुए हैं।

गोवा में अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामी के कुशल मार्गदर्शन में उनका सम्प्रदाय सर्व सामान्य लोगों तक पहुंचा है। गृहस्थी के साथ-साथ परमार्थ प्राप्त करने का उनका प्रयास सराहनीय है। गोवा के रामदासी सम्प्रदाय के उत्तराधिकारी श्री रघुनाथ बाबा गोडबोले (सांगली) है। कुचेली तीनमाड -शिवोली के समर्थ मंदिर में रामदास समर्थ का कार्य देवेंद्र चौडणकर अपने निष्काम नेतृत्व से आगे बढ़ा रहे हैं।

निराकार परमेश्वर को मानने वाले भक्ति सम्प्रदाय

निरंकार सम्प्रदाय तथा निराकार परमेश्वर को भजने वाले और दशम गुरु गोविंदसिंह का आदेश मानकर गुरु ग्रंथ साहब को देवत्व बहाल करने वाले सिख सम्प्रदाय के अनुयाई भी गोमांत में बहुत है। बेरे-बेती का गुरुद्वारा उनका भक्तिमय तीर्थ है। अन्य कर्मकांड करने की अपेक्षा परमेश्वर का जप यानी नाम स्मरण करने को अधिक प्रधानता देने वाले भी अनेक सम्प्रदाय हैं, जिसमें हरे राम हरे कृष्ण का जप करने वाला इस्कॉन, तुम ही हो तुम्हारे जीवन के शिल्पकार के रूप में विश्वास व्यक्त करने वाले सद्गुरु वामन पै के अनुयायी, गोंदवलेकर महाराज का सम्प्रदाय,अक्कलकोट स्वामी का सम्प्रदाय आदि गोमांत के कोने-कोने में परमात्मा परमेश्वर का जाप करते हुए सफल जीवन बिता रहे हैं। इसी तरह कुल देवता के नाम स्मरण या जप को अग्रक्रम देने वाले सनातन साधक भी नाममहात्म्य, शास्त्र महिती तथा जानकारी लोगों तक पहुंचाते हैं। नाणिज का नरेंद्राचार्य सम्प्रदाय ईश्वर भक्ति को महत्व देता है। पुराने गोवा के पास का शिव मंदिर उनका शक्ति स्थल है। मसूरकर स्वामी के नेतृत्व में चलाया जाने वाला शुद्धिकरण आंदोलन एक सम्प्रदाय के रूप में कार्यरत है। इनके माध्यम से अनेक धर्म परिवर्तित ईसाई, फिर से हिंदू हुए हैं और हो रहे हैं।

गैर सांप्रदायिक भक्त

अभी तक जिन सम्प्रदायों को देखा गया है,उनमें से कुछ अपवाद छोड़कर बहुतांश सम्प्रदाय गुरु-शिष्य परंपरा के हैं। गोवा में ऐसे असंख्य भाविक है, जो गुरु के भक्त तो हैं परंतु सांप्रदायिक नहीं है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या है, शिर्डी के साईं बाबा के भक्तों की। साईबाबा के असंख्य मंदिर गोवा में है। उनके भक्त हैं। अक्कलकोट स्वामी के मठ भी गोवा में बनाये जा रहे हैं। कायसु के अच्युतानंद स्वामी, घोल मार्ना के गोपीनाथ बाबा, बोरी-शिरोडा के राघवेंद्र स्वामी, हरमल के गोपालनाथ महाराज आदि ऐसे अनेक सिद्ध पुरुषों के भक्त इस पुण्य भूमि गोमांतक में है।

 

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