जौहरी का हीरा

कहते हैं, हीरे की परख जौहरी ही कर सकता हैं। मनोहर पर्रिकर ने डॉ. प्रमोद सावंत को परख तो लिया ही था, परंतु अपनी मेहनत, लगन और कर्तव्यपरायणता से वे दिन – प्रतिदिन अधिक चमकते जा रह हैं। उनकी राजनैतिक यात्रा उनके गुरू को दी जा रही गुरुदक्षिणा के समान ही है।

डॉ. प्रमोद सावंत की राजनीतिक यात्रा

गोवा के सुविख्यात मुख्यमंत्री रहे मनोहर पर्रीकर के आग्रह पर वर्ष 2008 में डॉ. प्रमोद सावंत अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए। बाल स्वयंसेवक होने के कारण उनमें समाज एवं राष्ट्र के प्रति सेवाभाव पहले से ही था। वर्ष 2012 में कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा कर वे पहली बार विधायक बने। वर्ष 2012 से 2017 इन पांच वर्षों के उनके विधायी कार्यों को देखते हुए उन्हें विधानसभा का सभापति बनाया गया। युवानेता के कार्यों से मनोहर पर्रीकर सहित सभी भाजपा के वरिष्ठ नेता खुश थे, उन्हें उनमें भविष्य का नेता दिखाई देने लगा था। इसलिए मनोहर पर्रीकर ने पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को सूचित कर दिया था कि यदि मैं न रहूं तो मेरे बाद गोवा का भविष्य डॉ. प्रमोद सावंत के हाथों में दिया जाए। अत:मनोहर पर्रीकर जी के स्वर्गवास के बाद तत्काल राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के लिए डॉ. प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उन्होंने तुरंत शासन-प्रशासन स्तर पर साहसिक निर्णय लेकर सभी को चौंका दिया था और कुछ ही समय बाद कांग्रेस के 11 विधायकों को भाजपा में शामिल कर अपनी कौटिल्य राजनीति का भी परिचय दे दिया। इस ‘ऑपरेशन कमल’ को इतने गुप्त रूप से अंजाम दिया गया था कि इस बात की किसी को कानोकान खबर तक नहीं लगी। तब विरोधियों को यह समझ में आया कि जिन्हें वे हलके में ले रहे थे वह तो उनकी सोच से कहीं आगे है।

2022 विधानसभा में मिली अभूतपूर्व सफलता

मुख्यमंत्री के तौर पर मात्र 3 वर्ष का अनुभव लेने के उपरांत 2022 के विधानसभा चुनाव का समय आया।आत्मविश्वास से लबरेज डॉ. प्रमोद सावंत ने अपने बल पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया और 25 सीट जीतने का लक्ष्य रखा। अपने लक्ष्य तक तो नहीं पहुंच पाए परंतु 17 सीट जीतकर भाजपा को राज्य की सबसे पार्टी बनाने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ। डॉ. प्रमोद सावंत और गोवा भाजपा के अध्यक्ष सदानंद तानावडे, दोनों राम-लक्ष्मण की जोड़ी ने मिलकर सभी विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया। संगठनात्मक कार्य और रणनीति बनाने में दोनों ही बहुत कुशल माने जाते हैं। विचार, संगठन और सक्षम नेतृत्व से सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है इसका उत्तम उदाहरण डॉ. प्रमोद सावंत के नेतृत्व में लड़ा गया 2022 विधानसभा का चुनाव है।

भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी शासन-प्रशासन नीति-व्यवस्था

किसी भी सरकार के लिए सबसे पहली प्राथमिकता होती है कि शासन-प्रशासन नीति एवं व्यवस्था इतनी लोकान्भिमुख रहे, जिससे सभी सामान्य नागरिक सरकारी योजनाओं व सेवाओं का लाभ आसानी से उठा सके। लेकिन सरकारी बाबुओं के रुबाब और लेटलतीफी से सभी परिचित हैं, यही स्थिति पहले गोवा में भी थी। इसलिए शासन-प्रशासन की व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त व पारदर्शी बनाने हेतु ऑनलाइन सेवा शुरू की गई। जो लोग ऑनलाइन सेवाओं का लाभ नहीं ले पाते, उनके लिए विशेष तौर पर उनके गांव परिसर में ‘सरकार आपके द्वार’ (सरकार तुमच्या दारी) अभियान भी शुरू किया गया है। जिसे जनता द्वारा उत्स्फूर्त प्रतिसाद मिल रहा है और इससे लोगों का विश्वास भी सरकार पर मजबूत हुआ है। इसके अलावा जनता की समस्या एवं शिकायतों के निपटारे के लिए मुख्यमंत्री द्वारा ‘जनता दरबार’ तथा ‘पब्लिक गवर्नेंस पोर्टल’ लाभदायक सिद्ध हो रही है।

आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ता ‘स्वयंपूर्ण गोवा’

गोवा को सभी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और उसका चहुंमुखी विकास करने हेतु ‘स्वयंपूर्ण गोवा’ योजना मील का पत्थर सिद्ध होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है, क्योंकि ‘संकल्प से सिद्धि’ का मन्त्र लेकर मुख्य मंत्री डॉ. प्रमोद सावंत भी चल रहे हैं। पहले गोवा केवल पर्यटन के लिए ही जाना जाता था लेकिन अब उद्योग, व्यवसाय, रोजगार और अवसर के लिए भी जाना जाने लगा है। सभी क्षेत्रों में मुख्य मंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने विकास को नए पंख लगा दिए हैं, इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, यात्रा, पर्यटन, कला, संस्कृति आदि क्षेत्रों में गोवा प्रमुख तौर पर उभर कर सामने आ रहा है। एमएसएमई और उद्योग व्यवसाय को बढ़ावा देने से राज्य की अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आ सकता है इसलिए पर्यावरण के अनुकूल उद्योग-व्यवसाय को गति दी जा रही है। ‘स्वयंपूर्ण गोवा’ योजना को सफल बनाने हेतु केंद्र सरकार ने भी अपनी ओर से 300 करोड़ रूपये दिए है। डबल इंजन सरकार होने का लाभ भी राज्य को मिल रहा है। जी-20 का गोवा में सफल आयोजन करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक देश-विदेश के नेताओं ने मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत की सराहना की थी।

 

डॉ. प्रमोद सावंत लम्बी रेस का घोड़ा है- मनोहर पर्रीकर

मनोहर पर्रीकर ही डॉ. प्रमोद सावंत के राजनीतिक गुरु थे। उन्होंने ही 2008 में उपचुनाव में डॉ. प्रमोद सावंत को प्रत्याशी बनाकर सक्रिय राजनीति में उतारा था। इतना ही नहीं डॉ. प्रमोद सावंत की क्षमता, योग्यता, कुशलता और नेतृत्व गुणों को देखते हुए एक प्रेस क्रान्फ्रेंस के दौरान मनोहर पर्रीकर ने तब कहा था कि ‘डॉ. प्रमोद सावंत लम्बी रेस का घोड़ा हैं।’

फरवरी 2018 से मार्च 2019 के दौरान मनोहर पर्रीकर रोगग्रस्त होने के कारण अस्वस्थ चल रहे थे, बावजूद इसके प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर और जनता की आशा, अपेक्षा एवं प्रेम के वशीभूत होकर गोवा के कल्याण के लिए वे अनवरत कार्यरत रहे थे, लेकिन इसके साथ ही उन्हें राज्य के भविष्य की चिंता भी सता रही थी, इसलिए उनके बाद अगला मुख्य मंत्री कौन होगा? इसका निर्णय उन्होंने पहले ही कर लिया था। 2018 के स्वतंत्रता दिवस, गोवा मुक्ति दिवस और 2019 के गणतंत्र दिवस के शासकीय कार्यक्रमों के ध्वजारोहण के साथ ही जनता को संबोधित करने का मौका डॉ. प्रमोद सावंत को देकर उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त कर दी थी। खुशी की बात यह है कि अपने राजनीतिक गुरु मनोहर पर्रीकर की आखिरी इच्छा को डॉ. प्रमोद सावंत पूर्ण निष्ठा के साथ पूरा कर रहे हैं। मोदी-शाह की जोड़ी की ही तरह पर्रीकर-सावंत की जोड़ी को भी राजनीतिक क्षेत्र में लम्बे समय तक एक आदर्श के रूप में याद किया जाता रहेगा। पहली जोड़ी ‘दोस्ती’ और दूसरी जोड़ी ‘गुरु-शिष्य’ के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगी।

संकटकाल में होती है व्यक्ति की अग्निपरीक्षा

कहते है कि व्यक्ति की असली अग्निपरीक्षा संकट काल के दौरान ही होती है और जो इन चुनौतियों में भी समाधान तथा अवसर तलाश ले वही सच्चा लीडर माना जाता है। जब डॉ. प्रमोद सावंत मुख्यमंत्री बने तब उनके सामने राज्य की राजनीतिक अस्थिरता का संकट खड़ा था। जिसे उन्होंने अपनी राजनीतिक कौशल से सुलझा दिया। एक संकट दूर हुआ नहीं कि फिर कोरोना महामारी का संकट आ खड़ा हुआ। पेशे से एक डॉक्टर होने के नाते संवेदनशीलता और तत्परता के साथ उन्होंने कोरोना योद्धा की तरह मैदान में उतर कर उसका सामना किया और नागरिकों की जानमाल के लिए दिन रात जुटे रहे।

आत्मीय व्यवहार, व्यक्तित्व मिलनसार

स्व. मनोहर पर्रीकर को अपना आदर्श माननेवाले डॉ. प्रमोद सावंत उनके ही पदचिन्हों पर चलते हुए दृष्टिगोचर होते है। उनका सादगीपूर्ण रहन सहन, लोगों से आत्मीय एवं भावनात्मक व्यवहार सहज ही लोगों का दिल जीत लेता है। ‘राष्ट्र प्रथम, पार्टी द्वितीय और स्वयं अंतिम’ इस विचार एवं भावना से प्रेरित हो कर पूरी तल्लीनता से वह परिश्रम की पराकाष्ठा को पार करते जा रहे है इसलिए उन्हें ‘वर्कोहोलिक मुख्यमंत्री’ कहा जाने लगा है।

दरअसल वे स्वयं को एक कार्यकर्ता (सेवक) मानते हैं इसलिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके व्यवहार में अंतर नहीं आया। वे अपने सहयोगियों, कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों आदि से ऐसे ही पेश आते हैं जैसे वे विधायक बनने के पहले थे, इसलिए सभी को उनका स्वभाव पसंद आता है। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति उनके व्यापक जनसंपर्क, लोकप्रियता को दर्शाती है और जमीन से जुड़े जननेता के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित भी करती है।

 

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