दिसम्बर महीना के दो सप्ताह गुजर चुके हैं, ग्रेगोरियन कैलेण्डर का यह वर्ष समाप्ती की ओर है और यूरोपियन देशों के साथ साथ अन्य देशों में भी क्रिसमस की धूमधड़ाका की शुरूआत हो चुकी है. भारत धर्मनिरपेक्ष एवं उत्सवप्रेमी देश है,जहाँ अनेकों धर्म और संस्कृति के लोग आकर यही के होकर रह गए हैं और समय समय पर अपने त्योहारों से पूरे देश में जगमगाहट बिखड़ते रहते हैं. भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत ईसा मसीह के बारह मूल धर्मदूतों में से एक थॉमस के सन ५२ में केरल में आने के बाद हुई. ईसाई धर्म निश्चित तौर पर ६वीं शताब्दी ईस्वी से भारत में स्थापित हो गया था. भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार १.०३% जनसंख्या ईसाई धर्म की है, जो कि लगभग दो करोड़ ७० लाख से ज्यादा है.
भारत मूल रूप से सनातन धर्म मानने वाला देश रहा है लेकिन बाहरी आक्रमणकारीयों के देश में आने के बाद कभी जबरन तो कभी बहला फुसलाकर धर्मांतरण करते हुए दुनिया के अधिकांश धर्म को मानने वाले लोग भारत में आज मिल जाएंगे इन सब का इतिहास यही है कि इनके पूर्वज सनातनी थे और अब ये लोग अन्य पंथ को मानने वाले हैं. सनातन धर्म का पर्याय हिन्दू है पर सिख, बौद्ध, जैन सभी स्वंय को सनातनी मानते है, इतना ही नही हमारे देश के नास्तिक जोकि चावार्क दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी है. सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, अर्थात् जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वह सभी सनातन कही गई है. ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है, और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन है. इस धर्म का मूल सार पूजा, जप तप, दान, सत्य, अहिंसा, दया,क्षमा और यम नियम हैं. आदि अनादि काल से सनातन धर्म के अनुयायियों को अपने धर्म में शामिल करने के लिए षड्यंत्र होते रहते हैं.
वर्तमान समय में जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाला दौर तत्काल हमारे देश में नही है. धर्म परिवर्तन को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है. धर्मांतरण के तहत व्यक्ति किसी अन्य धर्म वाले को अपने धर्म में शामिल करने का प्रयास करता है. अंतकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता है. हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करते हैं. न्यायालय कहती है कि इस तरह की घटनाएं न केवल धर्मांतरण व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने के भी खिलाफ है. बीते दिनों कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी जैसी बॉलीवुड सिनेमा ने सो कॉल्ड गंगा यमुना संस्कृति के पीछे छुपी लव जेहाद के ऐजेंडो से लेकर कश्मीर फाइल्स में एंटी नेशन और एंटी हिन्दुत्व तक के मसले को दुनिया के सामने रखकर हिन्दुओं का किया जाने वाला शोषण का स्याह सच उजागर किया है. जिसके बाद हिन्दू युवा इस्लामिक एजेंडा से खुद को बचाए रहेंगे लेकिन मुस्लिम के साथ साथ ईसाई मिशनरी भी हिन्दू,हिन्दुत्व और सनातन संस्कृति के खिलाफ सबसे तेजी से जो खतरा बनकर उभरा है. ये ‘हिडेन एजेंडा’ के तहत लगातार ईसाई मिशनरी धर्म परिवर्तन कराने में कामयाब होते जा रहे हैं.
ईसाई धर्म का गुप्त व्यवहार है जिसे क्रिप्टो क्रिस्चन कहते है. इसमें ईसाई जिस देश में रहते हैं वहाँ दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानते हैं पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहते हैं.जब ये १% से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर, संस्कृति को अपन कर अपना काम करते हैं और जैसे ही जनसंख्या अधिक होती है वो प्रकट रूप से ईसाई धर्म को मानने लगते हैं. रोम, जापान, बालकन और एशिया माइनर, मध्यपूर्व, सोवियत रूस, चीन, जर्मनी समेत भारत में भी क्रिप्टो क्रिश्चन की बहुतायत है.
विश्व जनसंख्या के अनुसार ईसाई २.३८ बिलियन यानी करीब २३८ करोड़ हैं. जो कि सबसे अधिक जनसंख्या है. भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान शिक्षा के लिए ईसाई पहल किए थे जिसके बाद भारत के तमाम पुराने शहरों में स्कूल खोला गया, जिसमें शहर के संभ्रांत घर के बच्चे पढ़ते थे आगे चलकर ये कॉलेज और अस्पताल भी शुरू किए. आदिवासी बहुल इलाकों में जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं का प्रलोभन देकर ये उनको ईसाईयत के चंगुल में फंसाते हुए धर्मांतरण करा रहे हैं. आजाद भारत में ये अल्पसंख्यक बन गए लेकिन आज इनकी हकीकत यह है कि ये बहुसंख्यक के लिए खतरनाक है. देश के हर उस गांव, जिला तक इनकी पहुंच है जहाँ सरकारी तंत्र भी नही पहुंच पाया है. बिहार जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य के हरेक जिले में ये अपना स्वास्थ केंद्र और स्कूल शुरू करते हैं और उस क्षेत्र के लोगों को लाभांवित करने के दौरान ईसाई धर्म से जोड़ने का मुहिम शुरू कर देते हैं. बिहार में हाल में ही हुए जाति जनगणना में ०.२% मात्र ईसाई हैं लेकिन ये वो आंकड़ें है जो प्रत्यक्ष है अप्रत्यक्ष रूप से इनकी जनसंख्या बहुसंख्यक कहे जाने वाले हिन्दुओं से बहुत ज्यादा है. बिहार में अनुसूचित जाति और जनजाति लोगों को सबसे ज्यादा ईसाईयत से जोड़ा गया है जो जातिगत आरक्षण का मिलने वाला लाभ के लिए दुनिया के सामने हिन्दू बने रहते है लेकिन ये सभी क्रिप्टो क्रिश्चन है.
बिहार ही नही देश के तमाम राज्यों में ये फैल गए हैं, मद्रास हाईकोर्ट में भारत माता पर अभद्र टिप्पणी करने वाले फादर पुन्नैया से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस जीआर स्वामिनाथन ने भी क्रेप्टो क्रिश्चन का जिक्र करते हुए बताया था कि कन्याकुमारी की जनसांख्यिकी में हिंदू बहुल दिखते है जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि वहाँ हिन्दू इक्के दुके ही मिलेंगे सिर्फ आरक्षण का लाभ लेने के लिए हिन्दू बने रहते हैं. धर्मांतरण की यह तस्वीर बिहार या कन्याकुमारी तक नही बल्कि देश के बड़े शहरों से सुदूर इलाकों तक पहुंच गया. ईसाई मिशनरी सेवा ही धर्म है के नाम पर मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ के नाम पर पहले किसी इलाके में घूसते है फिर हिन्दूधर्म पर टारगेट करके भोले भाले मासूम लोगों को बहलाकर ईसाई बनाते है, फिर मिशन के तरफ से चर्च बनाया जाता है जहाँ जबरन इन्हें हर एतवार को प्रार्थना सभा में बुलाया जाता है, अनुपस्थित होने पर मिशन से निकाले जाने और लाभ से वंचित करने की धमकी दी जाती है. देश के तमाम प्रबुद्ध लोगों को सोचना चाहिए कि सौ सालों से मिशनरी सेवा के नाम पर स्कूल,हॉस्पीटल और चर्च का ही निर्माण क्यों करते हैं? वे पुल, सड़क जैसे सुविधाओं के लिए कभी पहल क्यों नही किए? इसका जवाब स्पष्ट है, बाकि जगह इंवेष्ट करके वे हमेशा जनसमूह तक बने नही रह सकते हैं जबकि स्कूल और हॉस्पीटल के द्वारा जनसमूह से जुड़कर प्रोपगंडा फैलाने में कामयाब रहते हैं. इतना ही नही इनके स्कूलों में भी पश्चमि सभ्यता को बच्चों पर थोपा जाता है, वहाँ रामनवमी, जन्माष्टमी, नवरात्रि जैसे किसी भी त्योहार का उत्सव नही मनाया जाता ना ही कभी झांकि निकाली जाती है और न पूजा पाठ होता है लेकिन अंग्रेजी प्रार्थना अवर फादर इन हैवेन जैसे प्रार्थना रोज स्कूल अस्मेबली में कराते है, गुड फ्राईडे से लेकर क्रिसमस तक पर विशेष आयोजन और छुट्टी दी जाती है. पांच सात साल पहले तक पटना के मिशनरी स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस तक नही मनाया जाता था, कोर्ट की फटकार के बाद अब झंडोतोलन होने लगा लेकिन कभी कोई देशहित से सम्बंधित राष्ट्रवादी कार्यक्रम भी आयोजित नही होता है.लगातार हमारे संस्कृति को आडम्बर बताने वाले ईसाई मिशनरी को यह पता होनी चाहिए कि देश के तमाम रजिस्टर्ड मंदिरों में एकत्र किए गए दान के पैसों से अनगिनत सेवा के काम हो रहे हैं, अनाथालय, वृद्धाश्रम, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल संचालित होते है लेकिन उनके कई एक एकड़ में फैले भूभाग में बने चर्च से होने वाले आमदनी का हिसाब कहाँ है? उन पैसों से कौन सा पुण्य का कार्य होता है? इसका जवाब में ही धर्मांतरण और विदेशी कनेक्शन का सत्य उजागर हो जाएगा.
धर्म बेहद ही संवेदनशील और निजी मामला है जिसमें छेड़छाड़ करने वाले पर सख्त सजा होनी चाहिए, जरूरी है ऐसे कानूनों को लागू करने के लिए जो सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हो और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचती हो, ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भागयपूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है.
– अनुपमा कुमारी