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श्रीराम मंदिर तक का सफर

श्रीराम मंदिर तक का सफर

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, ट्रेंडींग, राम मंदिर विशेषांक जनवरी २०२४, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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अयोध्या के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलता है कि भगवान राम के पूर्वज, वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने अयोध्या की स्थापना की। वहीं 100 वर्ष ईसा पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के पत्थर के 84 खंबों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। गुप्त महाकाव्य कवि कालिदास ने रघुवंश में कई बार अयोध्या का उल्लेख किया है।

अयोध्या के श्रीराम मंदिर का इतिहास सहस्त्रों वर्ष पुराना है। महर्षि वाल्मीकि रामायण में, अयोध्या के सौंदर्य और महत्व की तुलना इंद्रलोक से करते हैं। वाल्मीकि की रामायण में भी समृद्ध अनाज और रत्नों से भरी अयोध्या की अतुलनीयता और अयोध्या में गगन चुंबी इमारतों का वर्णन है।

भगवान राम के पूर्वज, वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने अयोध्या की स्थापना की, जहां से सूर्यवंशी राजाओं ने महाभारत काल तक शहर पर शासन किया। यहीं पर भगवान श्रीराम का जन्म दशरथ के महल में हुआ था।

उल्लेख मिलता है कि लगभग 100 वर्ष ईसा पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन शिकार खेलते हुए अयोध्या आए थे। थके-हारे उन्होंने अयोध्या में सरयूनदी के तट पर एक आम के पेड़ के नीचे अपनी सेना के साथ आराम करने का फैसला किया। उस समय वहां घना जंगल था। आबादी भी नहीं थी। महाराजा विक्रमादित्य ने इस भूमि में कुछ चमत्कार देखे। फिर उन्होंने खोजना शुरू किया और आसपास के योगियों और संतों की कृपा से उन्हें पता चला कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश पर सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ-साथ कुएं, तालाब, महल आदि बनवाए। कहा जाता है कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के पत्थर के 84 खंबों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था।

बाद में विक्रमादित्य के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देखभाल की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। अयोध्या से पुष्यमित्र का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें उसे भगवान श्रीराम का सेनापति बताया गया है और उसके द्वारा किए गए दो अश्वमेध यज्ञों का वर्णन है। वहां मिले कई शिलालेखों के अनुसार, अयोध्या तीसरे गुप्त वंश के दौरान और उसके बाद लंबे समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्त महाकाव्य कवि कालिदास ने रघुवंश में कई बार अयोध्या का उल्लेख किया है।

इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व में अयोध्या एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र थी। इसके बाद भारत पर आक्रमण बढ़ता गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा और अयोध्या को लूटा और पुजारियों की हत्या और मूर्तियों को तोड़ने की प्रक्रिया जारी रखी। लेकिन वे 14वीं शताब्दी तक अयोध्या में राम मंदिर को नहीं गिरा सके।

विभिन्न आक्रमणों के बाद भी श्रीराम जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक तमाम परेशानियों से बचा रहा। कहा जाता है कि सिकंदर लोदी के शासनकाल में यहां मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में मुगलों ने राम जन्मभूमि और अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए। अंत में 1527-28 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और इसके स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया।

बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या प्रवास के दौरान बाबर ने मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया। अयोध्या में बनी एक मस्जिद में लिखे दो संदेशों में भी इसका संकेत मिलता है।

स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द ‘अ’ कार ब्रह्मा, ‘य’ कार विष्णु और ‘कार’ शिव का एक रूप है।

सरयू नदी के तट पर स्थित इस नगर की स्थापना रामायण के अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने की थी। माथुरो इतिहास के अनुसार, वैवस्वत मनु का राज्य लगभग 6673 ईसा पूर्व था। ऋषि कश्यप का जन्म ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से हुआ था। कश्यप तीव्यासवन और विवासन के पुत्र वैवस्वत मनु।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब मनु ने ब्रह्मा से अपने लिए एक शहर बनाने के लिए कहा, तो वे इसे विष्णु के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें उपयुक्त स्थान के रूप में साकेतधाम का सुझाव दिया। विष्णु ने ब्रह्मा और मनु के साथ भगवान मूर्तिकार विश्वकर्मा को इस शहर को आबाद करने के लिए भेजा। इसके अलावा, महर्षि वशिष्ठ को भी राम अवतार के लिए उपयुक्त स्थान खोजने के लिए उनके साथ भेजा गया था। ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी भूमि को वसिष्ठ ने सरयू नदी के तट पर चुना था, जहां विश्वकर्मा ने शहर का निर्माण किया था। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।

उत्तर भारत के सभी भागों जैसे कौशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकुवंश के शासकों ने अपना शासन स्थापित किया। अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास की उत्पत्ति का सम्बंध ब्रह्मा के पुत्र मनु से है। जिस प्रकार प्रतिष्ठानपुर की स्थापना और यहां के चंद्रवंशी शासक मनु के पुत्र मनु से जुड़े हैं, जो शिव के श्राप से इल बने थे, उसी प्रकार अयोध्या और उसके सूर्यवंश की शुरुआत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से हुई।

भगवान श्रीराम के बाद, लव ने श्रावस्ती को बसाया जिसका अगले 800 वर्षों तक स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया गया। कहा जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश ने एक बार फिर राजधानी अयोध्या का निर्माण किया। इसके बाद यह सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक अस्तित्व में रहा। रामचंद्र से महाभारत तक और बहुत बाद में हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकु के संदर्भ मिलते हैं।

बेंटले और परजितर जैसे विद्वानों द्वारा ‘ग्रह मंजरी’ जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर, उनकी स्थापना की तिथि लगभग 2200 ईसा पूर्व होने का अनुमान लगाया गया। इस वंश में राजा रामचन्द्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक थे।

यह स्थान भगवान राम की जन्मभूमि है। शोध बताते हैं कि भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व चैत्रमास की नवमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि1528 में बाबर के सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थित मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में इस स्थल को मुक्त कराने और वहां एक नया मंदिर बनाने के लिए एक लंबा आंदोलन चलाया गया। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया गया और वहां श्रीराम का अस्थाई मंदिर बना दिया गया। और आज प्रभु श्रीरामकी कृपा से मंदिर बन गया है।

                                                                                                                                                                               अन्नपूर्णा बाजपेई ‘आर्या ‘

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