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मंदिर का शिल्प, सौंदर्य व तकनीक

मंदिर का शिल्प, सौंदर्य व तकनीक

by अशोक कुमार सिन्हा
in ट्रेंडींग, राम मंदिर विशेषांक जनवरी २०२४, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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राम मंदिर में आस्था के साथ-साथ शिल्प सौन्दर्य एवं तकनीक का बेजोड़ संगम देखने को मिलेगा। मंदिर के मुख्य द्वार का निर्माण मकराना संगमरमर से हुआ है, वहीं प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में सरयू तट की ओर होगा। मंदिर में 5 द्वार, 24 दरवाजे हैं। कुल 4 द्वार पार करने पर गर्भगृह में बालरूप भगवान राम के दर्शन होंगे।

अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर विगत 500 वर्षों के सतत संघर्ष का एक सुखद परिणाम है। इसके पूर्व वाल्मीकि रामायण के अनुसार बालकाण्ड में उल्लेख है कि अयोध्या 12 योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी। इतिहासक्रम में अन्तिम बार सौ वर्ष ईसा पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने रामजन्मस्थान पर स्मृतिस्वरूप भव्य मंदिर का निर्माण किया था जिसका जीर्णोद्वार पुश्यमित्र शुंग तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कराया था।

पूर्व में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा मंदिर का जो मानचित्र बनाया गया था वह 2.77 एकड़ जमीन के अनुसार छोटा बनाया गया था। सर्वोच्य न्यायालय के निर्णय के बाद बड़ा और भव्य मंदिर निर्माण हो, इस आकांक्षा और आवश्यकता के अनुरूप नक्शा बड़ा किया गया। मंदिर का आकार बड़ा कर 350 फुट लम्बा एवं 245 फुट चौड़ा किया गया और 5 भव्य गुम्बद वाले मंदिर का मानचित्र भी तैयार किया गया। इसके बाद आई. टी. दिल्ली, सूरत, चेन्नई, कानपुर और केन्द्रीय भवन अनुसंधान, संस्थान की सहायता से उनके परामर्श के आधार पर भूमि की जांच कराई गई और लक्ष्य रखा गया कि जो भवन निर्माण हो उसकी न्यूनतम आयु 1000 वर्ष हो। जन्म स्थान से 100 मीटर की दूरी पर पवित्र सरयू तट है। जन्स्थान के नीचे बलुई मिट्टी है। विशेषज्ञों द्वारा अनुसंधान के बाद 8 एकड़ स्थान की 15 मीटर गहरी मिट्टी पूरी तरह निकाल कर पत्थर जैसी नींव बना कर मंदिर का आधार बनाने की योजना पर कार्य प्रारम्भ हुआ। राख, रसायन, पत्थर, बालू और 10 एम. एम. पत्थर के कण मिला कर नींव का स्थान भरा गया। नींव में कर्नाटक से पत्थर मंगा कर भराई हुई। ग्रेनाइट स्टोन का प्रयोग हुआ। दिन रात कार्य हुआ। लारसन एण्ड टूबरे जैसी निर्माण संस्था सहित कई अन्य विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा कार्य कराया गया।

नींव भरने के बाद ऊपर मंदिर सर्वोत्तम पत्थरों से बनाया गया जिसमें कहीं भी स्टील का प्रयोग नहीं हुआ। केवल मंदिर का क्षेत्रफल 2.8 एकड़ रखा गया है। मंदिर को नागर शैली में बनाया जा रहा है। नींव की डिजाइन हेतु दिल्ली आई0 टी0 के पूर्व निदेशक डॉ. बी. यस राजू की अध्यक्षता में 8 वरिष्ठ अभियंताओं और निर्माण विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई। जिसने पूर्व प्रयोग हेतु 12 पिलर बना कर, पहले जमीन की मजबूती का परीक्षण किया तत्पश्चात नींव भराई की गई।

1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार जो 150 पीढ़ियों से मंदिरों के डिजाइन बना रहे हैं, से वास्तु डिजाइन बनवाई गई थी। पुन: इसी परिवार से मुख्य वास्तुकार चुना गया। नए मुख्य वास्तुकार चन्द्रकांत सोमपुरा व उनके 2 बेटे निखिल व आशीष से ही नागर शैली में 360 फुट लम्बा, 235, फुट चौड़ा तथा 161 फुट ऊंचा मंदिर का नक्शा बनवाया गया। मंदिर में प्रार्थना कक्ष, रामकथा कुंज, वैदिक पाठशाला, संत निवास, यति निवास, संग्रहालय, कैफेटेरिया, 5 गुम्बद, एक टावर का प्रावधान किया गया है। मंदिर केवल पूजाघर ही नहीं एक विद्यालय भी होता है। मंदिर बनाने में जो खुदाई हुई जिसमें कुबेर टीले की खुदाई से कुबेर जी की अधूरी प्रतिमा मिली थी, शेर आकृति का 2 भारी खण्ड, गणेश मूर्ति, तलवार और अनेकों मंदिर में प्रयोग होने वाले अवशेष मिले हैं। बाल हनुमान की प्रतिमा भी मिली है। सभी को संरक्षित किया जा रहा हैं जो संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।

मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में सरयू तट की ओर होगा। दुनिया का यह दूसरा सबसे बड़ा राममंदिर होगा। मंदिर में पत्थरों के जोड़ में ताबें की धातु के क्लिप का प्रयोग किया जाएगा। मुख्य संरचना कर्नाटक के ग्रेनाइट व अन्य कीमती मजबूत पत्थरों के ऊंचे बने चबूतरे से प्रारम्भ होगा। भूतल पर राजस्थान के वंशी पहाड़पुर से लाए गए। गुलाबी रंग के पत्थरों से जिसका निर्माण होगा। प्रवेश व निकास द्वार अलग-अलग होंगे। मुख्य प्रवेश द्वार से नृत्य मण्डप, रंग मण्डप, गुरु मण्डप तथा गर्भगृह जो अष्टकोणीय आकार का होगा, का निर्माण किया गया है। मंदिर जितना विशाल उतना ही मजबूत बना है। जिसका निर्माण 2 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था।  इसका प्रथम तल तैयार हो गया है। शेष ऊपर का तल वर्ष 2025 तक पूर्ण कर लिया जाएगा। वहीं इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे भी होगा।

मंदिर में 12 फुट चौड़ा ढ़का हुआ संगमरमर का परिक्रमा पथ बनाया गया है जिसमें से यात्री सुगमतापूर्वक रामलला की मूर्ति की परिक्रमा पूरी कर सकेंगे। परिक्रमा पथ 778 मीटर लम्बा है। 1 पूरे मंदिर में सभी खिड़की दरवाजे नागपुरी उच्चकोटि के सागवान लकड़ी से सुसज्जित होंगे। मुख्य द्वार का निर्माण मकराना संगमरमर से हुआ है। कुल 106 स्तम्भ मंदिर में बने हैं जिन पर कारीगरों द्वारा सुन्दर कलाकृतियां बड़ी बारीकी से की गई हैं। मंदिर में 5 द्वार, 24 दरवाजे हैं। कुल 4 द्वार पार करने पर अष्टकोणीय सुन्दर व भव्य गर्भगृह में बालरूप भगवान राम के दर्शन होंगे। गर्भगृह में गाभिनाल पर 51 इंच के रामलला विराजमान हैं। प्रवेश द्वार पर पहुंचने के लिए 16 फुट चौड़ी ,16 फुट उंची सीढ़ी पार करनी होगी। पूरे मंदिर मे 966 कालम तथा प्रत्येक में 16 मूर्तियां होंगी। उड़ीसा के प्रसिद्ध कारीगर इन मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। 5 गुम्बद, 350 खम्भी मंदिर की शोभा बढ़ाऐेंंगे। 5 वर्ष के बाल रूप में 51 इच ऊंचे मूर्ति पर मध्यान्ह 12 बजे प्राकृतिक रूप से सूर्य का प्रकाश पड़ेगा। गणेश, शिव, सूर्य, दुर्गा की भव्य सुदर्शन मूर्तियां मंदिर के चारों कोनों पर विराजमान रहेंगी। मुख्य द्वार पर हनुमान विराजमान होंगे।

बाल मूर्ति नेपाल के मुस्तांग जिले में बह रही काली गण्डकी नदी के तट से 26 टन व 14 टन की शालिग्राम शिलाएं ला कर निर्मित की गई हैं। बाल मूर्ति का स्वरूप वाल्मीकि रामायण में वर्णित 5 वर्ष के बाल स्वरूप रामलला से लिया गया है। उत्कृष्ट कारीगरों द्वारा कुल 5 बाल मूर्तियां तैयार की गई जिसमें से एक का चयन कर मुख्य गर्भ गृह में स्थापित किया गया है। उपर के तल पर पूर्ण राम दरबार की मूर्ति विराजमान होंगी । अन्नपूर्णा रसोई मंदिर के पीछे बनेगी। परकोटे से बाहर रामजीवन से जुड़े ऋषियों यथा वशिष्ट अगस्त, वाल्मिकि, अहिल्या, शबरी की मूर्तियां विराजमान होंगी। कुबेर टीले पर जटायुराज की प्रतिमा बनेगी।

मंदिर का घण्टा 2100 किलो वजन का होगा जो 6 फुट ऊंचा व 5 फुट चौड़ा होगा। 10 और छोटे घन्टे 500,250 व 100 किलो वजन के बनेंगे। सभी घंटा अष्टधातु के होंगे जो जलेसर जिला एटा (उत्तरप्रदेश) की फर्म बना रही है। एटा का जलेसर सम्पूर्ण भारत में घुंघरू व घन्टे बनाने के लिये प्रसिद्ध है।

मंदिरों की मूर्तियों के चित्र, अलंकरण, लालित्य अभंग, द्विभंग व त्रिभंग मुद्रा में होंगे। मंदिर के पास अंगद टीला व नल टीला का निर्माण किया जाएगा। मंदिर निर्माण में पूर्व में सम्पन्न हुए राम मंदिर आंदोलन के समय राममंदिर कार्यशाला में बने पत्थर के स्तम्भों का नवीनीकरण करते हुए प्रयोग किया जा रहा है तथा जो पूजित रामशिलाएं व ईट 5 लाख गांवों से एकत्र की गई थी, सभी का उपयोग किया गया हैं।

 

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