छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज का 350वां राज्याभिषेक वर्ष हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण देश में मनाया जा रहा है। काशी के पंडित गागाभट्ट क्यों छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करवाना चाहते थे और इसके पीछे उनकी मनोभावना क्या थी? इसका सुंदर वर्णन यहां प्रस्तुत किया गया हैं।

गंगा किनारे एक महा पंडित पूजा-पाठ ब्रह्मकर्म में तल्लीन था। अध्ययन, अध्यापन और संस्कृत ग्रंथ लेखन यह उसका छंद था लेकिन अचानक उसके कान खड़े हो गए, उसका ध्यान दक्षिण दिशा की ओर गया। उसके हाथ लिखते-लिखते रुक गए। दुंदुभी, नगाड़े की आवाज सुनाई दे रही थी, जयघोष हो रहा था। एक तेजस्वी पुरुष घोड़े पर सवार दौड़ रहा था। उसके पीछे-पीछे आश्वारोही सेना ‘हर-हर महादेव! हर-हर महादेव’ की गर्जना करते दौड़ रही थी और साथ में भगवे रंग का ध्वज फड़फड़ा रहा था। यह तेजस्वी पुरुष थे ‘शिवाजी महाराज’।

आगरा में औरंगजेब के दरबार में शिवाजी महाराज आए थे और औरंगजेब ने उनको कैद कर रखा था। उस कैद से अपने 9 साल के बेटे और अपने साथ आए हुए 300 लोगों को लेकर महाराज आगरा से महाराष्ट्र में सही सलामत वापस आए। महाराज के इस अद्भुत पराक्रम की गाथा इस पंडित तक पहुंची थी। इनकी पराक्रम, बुद्धिमत्ता, चातुर्य सुनकर यह पंडित खुद महाराज से मिलने काशी से महाराष्ट्र की ओर निकल पड़ा। कौन था यह महापंडित?

ये बहुत बड़े पंडित सकल विद्या के स्वामी श्री काशी क्षेत्र के अग्र पूजा के अधिकारी! भट्टवंश दीपक श्रीमत विश्वेश्वर भट्ट (दिवाकर भट्ट) उपाख्य गागाभट्ट असल में मूलतः महाराष्ट्र के पैठण के रहने वाले थे। इनके परिवार के सभी पुरुष विद्वान थे। गागाभट्ट के दादाजी के दादाजी रामेश्वर भट्ट काशी निवासी थे। ऐसे सकल शास्त्रों के विद्वान शिवाजी महाराज को मिलने काशी से निकल पड़े थे। गागाभट्ट गोदावरी किनारे नासिक पहुंचे और महाराज को खबर मिली। काशी के विद्वान पंडित खुद चलकर इतनी दूर मुझे मिलने के लिए आ रहे है, यह सुनकर महाराज ने बड़े सम्मान से उनको रायगढ़ लाने के लिए अपने उपाध्याय बाळंभट (बालंभट)आर्वीकर और मुंशी को बड़े दलबल के साथ नासिक रवाना किया। उन्होंने भी बड़े ही पूज्य भाव से, सम्मान से राज पुरोहित गागाभट्ट से मुलाकात की और बड़े आदरपूर्वक उनको रायगढ़ लेकर आए। गागाभट्ट रायगढ़ के नजदीक आते ही महाराज खुद अपने मंत्रीगण के साथ उनका स्वागत करने रायगढ़ से नीचे आए। प्रकांड पंडित और प्रचंड पराक्रम का मिलाप हुआ। महाराज सम्मान से गागाभट्ट को गड पर ले आए। उनकी पूजा की, ऐसे श्रेष्ठ ऋषि महर्षी घर आए तो उनका स्वागत उनके पाद्यपूजन से करना, यह भारत की संस्कृति थी, गागाभट्ट संतुष्ट हुए। शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व की जो कल्पना उन्होंने की थीं, उससे कहीं ज्यादा गुण महाराज में विद्यमान थे।

शून्य से निर्माण किए गए इस राज्य का उद्देश व संकल्प कितना उदात्त था ‘धर्म संस्थापना, स्वराज्य संस्थापना, प्रजापालन, संत सज्जनों का रक्षण, तीर्थक्षेत्र व देश की स्वतंत्रता’। जो कार्य श्रीराम और श्रीकृष्ण ने किया, वहीं कार्य इस पुरुष ने किया है और कर रहा है। तभी एक अचूक महत्वपूर्ण विचार गागाभट्ट के मन में आया। शिवाजी महाराज के चरित्र की कोई मिसाल नहीं। इस राजपुरुष को सिंहासन नही! इस राजा का अभी तक राज्याभिषेक नहीं हुआ है। मुसलमान बादशाह तख्त पर बैठकर राज करते है। शिवाजी राजे भी चार पातशाही के छाती पर पांव रखकर अश्वदल, सेना, नौसेना, किले का निर्माण किया है इसलिए इनका राज्याभिषेक होना जरूरी है। राज्याभिषेक जब तक नहीं होता तब तक दुनिया स्वीकृति, सम्मान नहीं देती। दुनिया की छो़ड़ों खुद की प्रजा की स्वीकृति बहुत जरुरी होती है।

इस महापंडित ने महाराज को आग्रह पूर्वक कहा कि राज्याभिषेक करना जरुरी है। महाराज की सहमति मिलने के उपरांत रायगढ़ पर राज्याभिषेक की तैयारी शुरू हुई। सबसे पहले राजधानी कहां होनी चाहिए? राजधानी के लिए रायगढ़ किल्ला निश्चित किया गया। चारों ओर खड़े चट्टान, जैसे किसी ने तराशे हो। रायगढ़ समुद्र सतह से 820 मीटर यानी 2700 फीट उंचा है। माथे पर विस्तृत सपाट भूमि है। रायगढ़ के चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ है और बीच में रायगढ़ किला है। शत्रु कहीं से भी आसानी से नहीं आ सकते।

राज्याभिषेक के समय अंग्रेजों का वकील हेन्री ऑक्जिंडेन रायगढ़ पर उपस्थित था। उसने रायगढ़ की तुलना जिब्राल्टर्स याने सबसे कठिन चट्टान से की है। उसने अपने डायरी में लिखा है कि ‘रायगढ़ इतना अभेद्य है कि यहां आने-जाने की हिम्मत सिर्फ हवा और मराठे ही कर सकते है।’

रायगढ़ पर महाराज पहले से ही रहते थे। महाराज के निर्माण विभाग प्रमुख हिरोजी इंदुलकर जिन्होंने पहले ही 18 कारखाने व 12 महल बनवाएं थे। किले पर राज्यसभा, भव्य प्रवेश द्वार, विशाल नगाड़खाना, श्री जगदीश्वर का मंदिर, गड पर कुशावरत और गंगासागर ऐसे दो सुंदर तालाब थे।

तिथि अनुसार ज्येष्ठ शुद्ध त्रयोदशी को हर साल रायगढ़ किले पर राज्याभिषेक समारोह मनाया जाता है। विगत 27 वर्षों से ‘श्री शिवराज्याभिषेक दिनोत्सव सेवा समिति दुर्गराज रायगढ़’ मनाती आ रही है। पहले सिर्फ दस लोगों से यह समारोह शुरू हुआ। अब 60 संस्था मिलकर राज्याभिषेक समारोह मनाते है और अब लाखों की संख्या में लोग रायगढ़ किले पर समारोह में शामिल होते है।

समारोह की शुरुआत महाद्वार पर तोरण लगाकर की जाती है। गड देवी-देवता शिरकाई देवी और श्री वाडेश्वर का पूजन किया जाता है। श्री जगदीश्वर पूजन करके राज सदर पर तुलादान समारोह होता है। धार्मिक विधी होता है। आगे सांस्कृतिक कार्यक्रम देर रात तक चलते है।

दुसरे दिन भोर में शिवराय की पालकी निकाल कर नगाड़खाने के सामने ध्वजारोहण करके नगाडे, ढ़ोल-ताशा की बुलंद आवाज में राजसभा में प्रवेश करती है। बाद में मुख्य सिंहासन के चबुतरे पर वेदमंत्र के साथ महाराज का अभिषेक होने के बाद सिंहासन आरोहण होता है। महाराज को सुवर्ण सिक्कों से अभिषेक किया जाता है। बाद में शिवराय की पालकी नगर खाने और होली के मैदान से होकर श्री जगदीश्वर मंदिर जाते है। वहां पर महाआरती करके समारोह संपन्न होता है।

 

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