संयुक्त राष्ट्र संघ का लड़खड़ाता ढांचा

तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य, संघर्ष और चुनौती के बीच संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी विश्वसनीयता, प्रासंगिकता एवं प्रतिष्ठा खोता जा रहा है। यदि अब भी इसमें वर्तमान समय के अनुकूल सुधार व परिवर्तन नहीं किए गए तो यह केवल सर्कस का शेर बन कर रह जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाएं रखने, राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश हैं, जिसमें विश्व के लगभग सभी मान्यता प्राप्त संप्रभु राष्ट्र सहभागी हैं।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र को सम्बोधित करते हुए वर्तमान दौर में संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व की महाशक्तियों को आईना दिखाने का काम किया है क्योंकि बदलते वैश्विक समीकरणों में सयुंक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता पर चर्चा होने की आवश्यकता है। साथ ही प्रधान मंत्री ने बतौर जी 20 की अध्यक्षता संभाल रहे देश के प्रमुख के रूप में भी संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्थान में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और कहा कि इसका वर्तमान स्वरुप 21वीं सदी के विश्व के हिसाब से अब सही नहीं रह गया है। ग्लोबल साउथ यानी अल्प विकसित देशों की आवाज को इसमें उतनी जगह नहीं मिल रही है जितने उनकी आवश्यकता है। वास्तव में यह सोचने की जरूरत है कि क्यों सयुक्त राष्ट्र संघ आज वैश्विक संघर्षों को रोकने में सफल नहीं हो पा रहा है?

दरअसल यह चिंता इसलिए भी आवश्यक है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को सारे प्रयासों के बावजूद नहीं रोका जा सका है और इस युद्ध की वजह से पूरी विश्व की अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा है। सबसे बड़ी बात है कि जिस संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक संकट के दौरान उचित हस्तक्षेप के लिए अस्तित्व में लाया गया था, वह महाशक्तियों के समक्ष शक्तिहीन दिखाई दे रहा है।

गौरतलब है कि सबसे बड़ी वैश्विक संस्था होने के बावजूद आज तक संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद की उचित परिभाषा तक स्पष्ट नहीं हो पाई है।

वैश्विक प्रभाव और निर्णयों के लिहाज से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सबसे ताकतवर अंग है और उसमें भी जो स्थायी सदस्य हैं अपने वीटो शक्ति से किसी भी प्रस्ताव को रोकने का सामर्थ्य रखते हैं। विडंबना ये है कि सुरक्षा परिषद के ढांचा के अंतर्गत वीटो पावर वाला कोई एक भी देश अगर किसी प्रस्ताव पर अपना वीटो लगा देता है तो उस पर आगे बढ़ना सुरक्षा परिषद के लिए संभव नहीं होता है।

विश्व  का  प्रतिनिधित्व करने में समर्थ नहीं  है संयुक्त राष्ट्र

पिछली सदी में बनी ये संस्थान 21वीं सदी की व्यवस्था और वास्तविकता का अब प्रतिनिधित्व करने में समर्थ नहीं रह गया है। वास्तव में अगर यही रवैया रहा तो संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सिर्फ बातचीत का एक मंच बनकर रह जाएंगे।

– नरेंद्र मोदी, प्रधान मंत्री

भारत चाहता है कि सुरक्षा परिषद में अब स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए। भारत खुद के लिए स्थायी सदस्यता की मांग लंबे वक्त से कर रहा है। इतना ही नहीं सुरक्षा परिषद को ज्यादा प्रासंगिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को तर्कसंगत बनाने के लिए भारत अपनी दावेदारी के साथ ही ब्राजील, जर्मनी और जापान के लिए स्थायी दावेदारी का समर्थन करते आ रहा है।

एक प्रभावी और समकालीन संस्थान बनें सुरक्षा परिषद

भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए एक ‘वस्तुनिष्ठ और उदार’ दृष्टिकोण रखता है। साथ ही भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सुरक्षा परिषद में सुधार सभी सदस्य देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाए चूंकि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए प्रासंगिक और सार्थक भूमिका निभाना चाहता है। ऐसे में भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सुरक्षा परिषद एक प्रभावी और समकालीन संस्थान बनें, जो वैश्विक शांति और सुरक्षा को बढ़ावा दे सकें।

– डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री

वर्तमान परिदृश्य में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर नजर डालें तो अमेरिका और चीन पहले और दूसरे पायदान पर हैं। इसके बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान, चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत हैं जबकि ब्रिटेन इस मोर्चे पर छठे और फ्रांस सातवें पायदान पर हैं, रूस तो 11 वें पायदान पर हैं। अर्थव्यवस्था के दृष्टि से भी विश्व की तीसरी, चौथी और पांचवी अर्थव्यवस्था सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से बाहर हैं, जबकि छठी, सातवीं और 11 वीं अर्थव्यवस्था के पास स्थायी सदस्यता हैं।

भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है। 26 जून 1945 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किए थे। साथ ही भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत विश्व की सबसे तेजी से उभरती आर्थिक और सैन्य महाशक्ति है इसलिए हम यह कह सकते है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद असंतुलित है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विषयों पर हम आप विचार नहीं रख सकते।

                                                                                                                                                                                               अजय धवले

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