समुद्री सुरक्षा की चुनौती

लाल सागर में हाउती विद्रोहियों द्वारा किए जा रहे हमले को भारत ने गंभीरता से लिया है और समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से विध्वंसक जलपोतों, विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन तथा तटरक्षक जलयान आदि को तैनात कर दिया है ताकि समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

हिंद महासागर की अंतरराष्ट्रीय नौवहन मार्ग और सोर्स लाइन ऑफ कोड (एस.एल.ओ.सी.) भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके सभी व्यापार मात्रा का 95 प्रतिशत भाग है। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 70 प्रतिशत से अधिक मूल्य का और लगभग 95 प्रतिशत मात्रा का परिवहन समुद्र द्वारा किया जाता है। भारत की 7000 किमी. से अधिक लम्बी तटीय रेखा है, जो इसे समुद्री डकैती, आतंकवाद, तस्करी, अवैध मछली पकड़ने और पर्यावरणीय पतन जैसे विभिन्न चुनौतियों के प्रति संवेदनशील बनाती है। भारत को अपनी तटीय और अपतटीय सम्पत्तियों और बंदरगाहों की सुरक्षा के प्रति सजग व सतर्क रहने की विशेष आवश्यकता है। चूंकि अमेरिका की चेतावनी के बावजूद हाउती विद्रोहियों ने 4 जनवरी को सशस्त्र मानव रहित समुद्री ड्रोन से लाल सागर में अमेरीकी जलपोत पर हमला किया।

हाल में ही इजराइल-हमास युद्ध और हाउती विद्रोहियों ने लाल सागर और बाब अल मंडेब से गुजरने वाले जलयानों पर लगातार हमला करके पश्चिमी हिन्द महासागर के सम्पूर्ण क्षेत्र को वृहद सुरक्षा संकट में डाल दिया है। ज्ञात हो कि लाल सागर के उत्तरी किनारे पर स्वेज नहर है तथा दक्षिणी किनारे पर सकरा बाब अल-मंडेब जलडमरू है, जो अदन की खाड़ी में जाता है। वास्तव में यह एक बड़ा व्यस्त जलमार्ग है, चूंकि एशिया व यूरोप तथा इससे आगे मालवाहक जलयान स्वेज नहर से होकर निकलते हैं। एशिया व यूरोप के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा अधिकांश रूप से इस संवेदनशील समुद्री इलाके से होता है। विशेष रूप से इस समुद्री मार्ग से बड़े पैमाने पर ऊर्जा की आपूर्ति भी शामिल है। लगभग सम्पूर्ण यूरोप इस क्षेत्र से ही जा रही ऊर्जा आपूर्ति पर बहुत हद तक निर्भर है। स्वेज नहर वैश्विक व्यापार प्रवाह का लगभग 12 प्रतिशत और वैश्विक कंटेनर परिवहन का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है।

लाल सागर में हाउती हमले ने इस क्षेत्र में भारत की पहुंच के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। यद्यपि वर्तमान उथल-पुथल से खाड़ी अरब देशों के साथ भारत के सम्बंधों में बदलाव की संभावना नहीं है, किन्तु निश्चित रूप से इस क्षेत्र में भारत की भौतिक पहुंच प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अवश्य प्रभावित होगी। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते राजनयिक निवेश को भारत-इजराइल, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (आई.टू.यू.टू.), तथा हाल ही में लांच किए गए भारत मध्य पूर्व यूरोप गलियारा (आई.एम.ई.सी.) जैसी बहुपक्षीय पहलों में सहभागिता का समर्थन प्राप्त है। वास्तव में यह (मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा) व्यापार सम्बंधों में वृद्धि हेतु अंतरक्षेत्रीय कनेक्टिविटी ही इन हमलों के पीछे मुख्य करणों में से एक रही है।

हमारे दो वाणिज्यिक पोत ‘एम.वी.केम प्लूटो’ और ‘एम.वी.आई. बाबा’ पर हुए हमलों का भारतीय नौसेना ने गंभीरता से संज्ञान लिया है। भारतीय नौ सेना ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि वह इन हमलों हेतु उत्तरदायी लोगों का समुद्र की गहराई से भी पता करके उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करेंगे। इस आकस्मिक हाउती हमले से निपटने के लिए भारतीय नौ सेना ने अपने 5 विध्वंसक जलपोत तैनात कर दिए हैं। इसके साथ ही पी-8 आई विमान, डोनियर्स, सी गार्डियन, हेलीकाप्टर तथा तटरक्षक जलयान आदि सभी को समुद्री डकैती और ड्रोन हमलों के खतरों का मुकाबला करने के लिए संयुक्त रूप से तैनात किया जा चुका है। इसके साथ ही भारतीय नौ सेना ने समुद्री क्षेत्र में अपनी गश्त भी बढ़ा दी है। अब भारतीय नौसेना अरब सागर के लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर लम्बे समुद्री क्षेत्र पर अपनी चौकस निगाहें निरंतर रखेगी। इसके अंतर्गत हाउती आतंकवादियों के अधिकार वाला अदन की खाड़ी का क्षेत्र भी शामिल है।

भारतीय नौसेना की लाल सागर के क्षेत्र में अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं यूरोप के अन्य देशों की नौसेना की तैनाती में उपस्थिति एक सामयिक, कूटनीतिक एवं रणनीतिक पहल सराहनीय है। भारत की यह पहल बेहद जरूरी थी, क्योंकि भारत का लगभग 90 प्रतिशत व्यापार और तेल व गैस ऊर्जा आपूर्ति इसी सामुद्रिक मार्ग से होती है। हाउती विद्रोहियों के हमलों के बाद लाल सागर में वैश्विक व्यापार माल ढुलाई की लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि विश्व की बड़ी कंटेनर शिपिंग कम्पनियां हाउती विद्रोहियों के हमले के डर से अपने मालवाहक जलयान लाल सागर के बजाए अलग लम्बे रूट से अब सुरक्षित आवा-जाही कर रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप उनके लगभग 6000 किलोमीटर से अधिक अतिरिक्त लम्बी दूरी तय करनी पड़ रही है।

यह अब निर्विवाद रूप से सत्य है कि सजग रहते लाल सागर में हाउती विद्रोहियों पर नकेल नहीं लगाई गई तो वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर इसका प्रत्यक्ष प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और भारत सहित यूरोपीय देशों के लिए एक बड़ा व नया सामयिक आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा। फलस्वरूप भविष्य में उपभोक्ताओं को आयातित उत्पादों के लिए अधिक मूल्य अदा करना पड़ेगा। इससे आयात एवं निर्यात में समय की व्यापक बढ़ोत्तरी हो जाएगी। अभी तक उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर 40 प्रतिशत लाल सागर से गुजरने वाले जलयानों की संख्या में कमी आई है और लगभग 62 प्रतिशत मालवाहक जलपोत हाउती विद्रोहियों के डर के कारण लम्बा रास्ता तय कर रहे हैं। यह भी ध्यान देना होगा कि लगभग 40 प्रतिशत एशिया-यूरोप व्यापार दैनिक रूप से लाल सागर क्षेत्र से ही होता है। इसके साथ ही लगभग 10 लाख बैरल से अधिक कच्चा तेल प्रतिदिन स्वेज नहर क्षेत्र से होकर गुजरता है।

उल्लेखनीय है कि हाउती आतंकवादियों द्वारा अब तक लगभग 100 से अधिक ड्रोन और प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) हमले किए जा चुके हैं। हाउती विद्रोहियों ने 19 नवम्बर 2023 से अब तक 23 बार वाणिज्यिक मालवाहक पोतों पर हमला किया है। जिसमें लगभग 10 जलयानों को नुकसान पहुंचा है, इसमें भारत के झण्डे से युक्त दो जलयान भी शामिल हैं। हमास-इजराइल संघर्ष जब तक जारी रहेगा, तब तक हाउती विद्रोही अपना लाल सागर के जलयानों पर हमला जारी रखने का दावा करते हैं तथा कहना है कि इस क्षेत्र के समुद्री यातायात को ठप कर देंगे।

                                                                                                                                                                                       डॉ . सुरेन्द्र कुमार मिश्र 

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