इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष

द्विराष्ट्र समाधान के मार्ग में अब रोड़े उत्पन्न हो गए है। सहअस्तित्व एवं सहिष्णुता की धारणा विफल हो गई है। इस्लामिक जगत के अधिकतर देश इजराइल और यहूदी जाति के अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहते है। इजराइल के पास भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने और आत्मरक्षा हेतु लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है।

इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की शुरुआत 07 अक्तूबर 2023 को हमास के द्वारा गाजा से इजराइल के विरुद्ध हमले से शुरू हुई, जिसमें इजराइल का लंबे समय से चला आ रहा सुरक्षा सिद्धांत ध्वस्त हो गया और लगभग 1400 इजराइली मारे गए तथा महिलाओं व बच्चों सहित कई इजराइली सैनिकों और नागरिकों को गाजा पट्टी में बंधक बना लिया गया। हमले की मूल आकांक्षा इजराइल को नुकसान पहुंचाना और यहूदी राज्य को कमजोर करना था, जिसका अंतिम युद्ध उद्देश्य संभवतः इजराइल का विनाश और गाजा में हमास की सत्ता बनाए रखने की है। इसके लिए हमास कूटनीतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य रूप से पूरा प्रयास करने में अपने अस्तित्व को महत्वपूर्ण मानता है। इसलिए हमला ऐसे समय हुआ जब इजराइल के आंतरिक राजनीतिक संकट जिसमें प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इजराइली सुप्रीम कोर्ट की शक्ति को कम करने के प्रस्ताव के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। यह हमला इजराइली शक्ति संतुलन को चुनौती देने से प्रेरित था। परंतु इजराइल ने जवाबी हमले शुरू करते हुए एक दिन बाद हमास पर युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध पिछले कई युद्धों की तुलना में एक अलग स्तर व महत्व का है, जिसे मध्य पूर्व तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि यह यूरोप, पश्चिम एशिया, भारत-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण एशिया को प्रभावित करने वाला है।

हमास के हमले से इजराइल को यह समझ में आ गया है कि वह गाजा में अपने दरवाजे पर एक जिहादी इस्लामी राज्य के साथ सह-अस्तित्व में नहीं रह सकता है। गाजा में अब तक की होने वाली लड़ाई और संघर्ष विराम का युग समाप्त हो चुका है और इसकी जगह एक निरंतर, लंबे सैन्य अभियान ले चुका है, जो इजराइल के सर्वोपरि सुरक्षा हितों और हमास द्वारा बनाए गए बंधकों की सुरक्षित वापसी के प्रति अटूट प्रतिबद्धता से प्रेरित है। इस युद्ध में इजराइल गाजा से हमास के खात्मे तक अपने सैन्य अभियान को जारी रखने को प्रतिबद्ध है, जिससे बचने के लिए हमास गाजा की बहुसंख्य जन समुदाय को मानव ढाल के रूप में प्रयोग कर रहा है। इजराइल की सैन्य कार्रवाई और गाजा पर बमबारी के कारण निर्दोष लोगों की जान भी खतरे में आ रही है।

इजराइल की सीमा पश्चिम में भूमध्य सागर, दक्षिण में मिस्र, पूर्व में जॉर्डन व सीरिया और उत्तर में लेबनान से लगती है। सदियों से अपनी मातृभूमि से निष्कासित यहूदी भारत को छोड़कर संपूर्ण विश्व में भेदभाव का जीवन जीने को मजबूर थे। सन 1896 ई0 में ऑस्ट्रो-हंगेरियन यहूदी पत्रकार, थियोडोर हर्जल ने यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में एक यहूदी मातृभूमि के लिए जायोनीवाद का विचार रखा तथा वर्ष 1917 में ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्व युद्ध में यहूदी समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से ‘फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय घर की स्थापना’ की उम्मीद दी, जिससे संपूर्ण विश्व से यहूदियों का फिलिस्तीन आगमन होने लगा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदी-नरसंहार के बाद यूरोप से भागकर यहूदी फिलिस्तीन आकर बसने लगे। वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को विभाजित करने वाले क्षेत्र में अलग फिलिस्तीनी और यहूदी राज्यों की स्थापना के लिए मतदान किया, परंतु अरबों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

इसके बाद मई 1948 में इज़राइल को एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा के बाद 1948 में ही अरब-इजराइल युद्ध छिड़ गया और पांच अरब राज्यों इराक, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन और मिस्र ने इजराइल पर हमला कर दिया। 1949 में युद्धविराम की घोषणा व समझौते के तहत वेस्ट बैंक जॉर्डन और गाजा पट्टी मिस्र का हिस्सा बन गई। युद्ध जीतने के बाद इजराइल ने अब संयुक्त राष्ट्र की योजना से अधिक क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया है। पूर्वी यरुशलम जॉर्डन के नियंत्रण में था। वर्ष 1956 में मिस्र के गमाल अब्देल नासिर ने स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण करने से स्वेज संकट उत्पन्न हो गया। इस पर इजराइल ने सिनाई प्रायद्वीप पर हमला किया और ब्रिटिश और फ्रांसीसी समर्थन से नहर को वापस ले लिया। वर्ष 1967 में छह दिवसीय युद्ध हुआ जिसमें इज़राइल ने गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, गोलान हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप पर नियंत्रण हासिल कर पूर्वी येरुशलम पर भी अपना अधिकार कर लिया। वर्ष 1980 में इजराइली संसद नेसेट ने येरूशलम कानून पारित किया जिसमें घोषणा की गई कि ‘येरूशलम, पूर्ण और एकजुट, इजराइल की राजधानी है’। इसके बाद वर्ष 1973 में सीरिया व मिस्र तथा वर्ष 1982 में लेबनान से युद्धों के बीच इज़राइल पूर्वी येरुशलम के उन क्षेत्रों में यहूदी बस्तियां बना लीं, जिन्हें फिलिस्तीनी क्षेत्र माना जाता था। वर्ष 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पूरे येरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी गई।

दशकों तक इजराइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच हिंसक लड़ाई के बाद स्थायी शांति बहाल के लिए द्विराष्ट्र समाधान का भारत, अमेरिका सहित कई वैश्विक नेताओं ने समर्थन किया है। इसमें जॉर्डन नदी और भूमध्य सागर के बीच की भूमि को विभाजित करके दो स्वतंत्र, संप्रभु इजराइली और फिलिस्तीनी राज्यों को अगल-बगल में स्थापित करना है। परंतु अभी तक किसी समझौते पर पहुंचना संभव नहीं होने का कारण इजराइल और फिलिस्तीनी दोनों सरकारों का द्वि- राष्ट्र समाधान के खिलाफ होना है। सात अक्टूबर को हमास के हमले से कुछ महीने पहले किए गए जनमत सर्वेक्षणों से इस विचार को बल मिलता है। सितंबर 2023 में प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण में केवल 35 प्रतिशत इजराइलियों का मानना था कि इजराइल और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के लिए शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं, जबकि वर्ष 2013 में यह 50 प्रतिशत था। गैलप सर्वेक्षण में पाया गया कि वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम में रहने वाले केवल 24 प्रतिशत फिलिस्तीनियों ने द्वि-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया, जो 2012 के 59 प्रतिशत से बहुत कम है। वर्तमान में वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में यहूदी बस्तियां बढ़ गई हैं, ऐसे में आम सहमति यही है कि द्वि-राष्ट्र समाधान समाप्त हो गया है। अब दो-राज्य समाधान को पुनर्जीवित करना संभव नहीं दिख रहा है, जबकि युद्ध के तत्काल बाद दोनों समाजों के बीच गहरे आघात लंबे समय तक मौजूद रह जाएंगे।

                                                                                                                                                                            डॉ . नवीन कुमार मिश्र 

 

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