वरिष्ठ प्रचारक श्री रामभाऊ बोंडाले का स्वर्गवास

उम्र 98 वर्ष, कल सुबह 10.15 बजे, महल संघ कार्यालय में दुखद निधन, संघ की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।

संघ समर्पित जीवन

श्री रामभाऊ विश्वनाथ बोंडाले, कोंकण के हापुस के लिए प्रसिद्ध “देवगढ़” रामभाऊ की जन्मस्थली, 22 अप्रैल 1925 को जन्मे, उनकी प्राथमिक शिक्षा वहीं हुई। रामभाऊ ने अपनी माध्यमिक शिक्षा अमलनेर में अपने बड़े भाई के यहां रहकर प्राप्त की। हाई स्कूल शिक्षा अहमदनगर, मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए विदर्भ के वर्धा में रहे।1947 में बी. कॉम पूरा किया और संघ प्रचारक के रूप में जीवन शुरू किया।

अपने स्कूली जीवन के दौरान अमलनेर में वे रा. स्व. संघ से जुड़े। 1939 में प्रथम वर्ष पुणे में, द्वितीय वर्ष विदर्भ में, तृतीय वर्ष 1948 में उन्होंने पूर्ण किया। संघ प्रतिबंध के बाद चंद्रपुर जिला प्रचारक के रूप में उन्हें दायित्व मिला। पुणे के प्रथम वर्ष में पू. डॉ. हेडगेवार की बौद्धिक कक्षाओं को सुनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ। रामभाऊ एक वरिष्ठ व्यक्तित्व रहे हैं जिन्हें संघ के छह सरसंघचालकों को सुनने, देखने, बोलने और उनके साथ संघकार्य करने का अवसर मिला है। एक मजेदार किस्सा है, संघ मुख्यालय से रेशम उद्यान तक कार्यक्रम के लिए कार में यात्रा करते समय वह गुरुजी की गोद में बैठे हुए थे।1948 से 1982 तक उनका मुख्यालय चंद्रपुर में था। जब वे जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक थे तो वे डॉ. भागवत के साथ ही रहते थे। वर्तमान पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी ने रामभाऊ को बचपन से ही देखा है। उनसे जुड़ी यादों का भण्डार मोहनजी के पास भरा पड़ा हैं।

मोहनजी के पिता श्री मधुकर राव, विभाग संघचालक और रामभाऊ विभाग प्रचारक, राम लक्ष्मण जोड़ी की संघ कार्य की निर्बाध यात्रा, संचार, सम्पर्क, समन्वय और संघ कार्य के विस्तार को विदर्भ के कई पुराने कार्यकर्ताओं ने अनुभव किया है।मोहनजी की माता श्रीमती मालतीताई भागवत और रामभाऊ बोंडाले के बीच भाई-बहन जैसा अटूट रिश्ता था। रक्षाबंधन और भाऊबीज हमेशा चंद्रपुर में भागवत जी के यहां मनाया जाता था। बाद में रामभाऊ का केंद्र अकोला होने पर “राखी” और भाऊबीज पर नये कपड़े अकोला भेजते थे, इतना स्नेहसम्बंध उनमें था।रामभाऊ के बारे में बात करते हुए मालतीताई कहती थी कि ‘कभी भूख लगी है, चाय चाहिए या कुछ और चाहिए’, मैंने कभी भी रामभाऊ को यह मांगते या पूछते नहीं देखा। इतने स्वयं अनुशासित अपने व्रत के प्रति प्रतिबद्ध संघ समर्पित उनके जीवन का अनुभव हमने किया है।

रामभाऊ बीमार थे, वे अस्थमा से पीड़ित थे, बहुत बेचैन थे। रात-रात भर कभी-कभी नींद नहीं आती थी, लेकिन रात्रि जागने के कारण प्रभात शाखा नहीं छूटती थी। 1994 में रामभाऊ को नागपुर में संघ वस्तु गोदाम की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने सारा लक्ष्य प्रकाशन विभाग पर केंद्रित किया। नागपुर मुख्यालय में स्थायी निवास होने के कारण नियमित भोजन, गर्म पानी पीने, जनार्दन स्वामी योगाभ्यासी मंडल, रामनगर में नियमित योग, प्राणायाम से अस्थमा विकारों पर सफलतापूर्वक काबू पाया। 98 साल की उम्र में भी उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया था। उनका सुबह 5.30 बजे से रात 9.30 बजे तक का शेड्यूल निश्चित था।सुबह 5.30 बजे एकात्मता स्तोत्र, सबके साथ सुबह की चाय, प्रभात शाखा, पूजा के लिए फूल तोड़ना, स्नान, पूजा, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी अखबार पढ़ना, संघ कार्यालय में आने वालों की हालचाल लेना, दुपहर भोजन विश्रांति, 3.30 बजे चाय के बाद, साप्ताहिक विवेक, पाञ्चजन्य, ओर्गनाइज़र, किताब पढ़ना, शाम को परिसर में घूमना, सबके साथ खाना, शतपावली और रात 9.30 बजे सोना। यह उनकी दैनिक दिनचर्या थी।

2006 में पू. श्रीगुरुजी के जन्म शताब्दी वर्ष के दौरान श्री रंगाहरिजी समग्र गुरुजी खंड के प्रकाशन प्रमुख थे। उनके सहयोगी के रूप में रामभाऊ की बड़ी भूमिका थी। अनेक संदर्भों, स्मृतियों, कतरनों, दस्तावेज़ों, तस्वीरों का मिलान रामभाऊ ने बड़ी लगन और मेहनत से किया।

रामभाऊ बोंडाले, एक समर्पित कर्मठ प्रचारक थे। उन्होंने विदर्भ में एक प्रचारक के रूप में अपना जीवन शुरू किया था लेकिन 28 वर्षों तक कभी भी मुंबई में अपने भाई के घर नहीं गए। सुरेश राव केतकर अ.भा.प्रचार के प्रमुख थे, उनसे मिलकर रामभाऊ के पिता और भाई ने आग्रह किया कि मेरे बेटे का विवाह है, उसके बारसा में राम आया था, अब उसके विवाह के उपलक्ष्य में वह आए।इतने सालों से वह घर नहीं आया है। रामभाऊ का जीवन केवल संघ था।”अविरत कार्य करते रहना और संघ को जीना”रामभाऊ एक महान गायक रहें, उन्होंने कई गानों के बोल दिए हैं। उन्होंने हजारों से ज्यादा गीत गायकों की सूची बनाई है। मुझे अपने बचपन की यादें हमेशा याद रहेंगी। परम पूज्य श्री गुरुजी की यात्रा अमरावती की थी। वहां विभागीय शिविर था। “मन माझे विसावले रे, संघ मंदिरी स्थिरावले” यह गीत गाने का अवसर मुझे राम भाऊ ने दिया, तब मैं मैट्रिक में था। मैंने उस कैंप में गाना गाया और तभी से मुझे संघ में एक गायक के रूप में पहचान मिली। इसका सारा श्रेय रामभाऊ को जाता है।रामभाऊ संघनिष्ठ, व्रतस्थ, संन्यास जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। विदर्भ के सभी जिलों में व्यापक संपर्क, वर्षों तक निरंतर यात्रा, लगभग पचास वर्षों तक संघ शिक्षा वर्ग में उपस्थिति, घर-घर संपर्क रखने वाले ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व से बचपन में ही पारस रूपी स्पर्श हुआ और ‘आम्ही बि घडलो’ अर्थात मुझे में आमूलचूल परिवर्तन हुआ।संघ का शताब्दी वर्ष और रामभाऊ का शताब्दी वर्ष 2025 में एक साथ मनाने का हमने सोचा था लेकिन इसके पूर्व ही वे हमें छोड़कर राम के धाम चले गए। लेकिन हमें विश्वास है कि रामभाऊ प्रेरणास्रोत बन कर हमें निरंतर संघकार्य करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सर्वशक्तिमान प्रभु से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति और सद्गति प्रदान करें। रामभाऊ के चरणों में नमन करते हुए अपनी ओर से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

– चंद्रकांत घरोटे, नागपुर

पश्चिम क्षेत्र प्रमुख, संस्कार भारती

 

 

 

Leave a Reply