नशे की अजगरी बांहों में महिलाएं

फैशन के नाम पर सिगरेट, शराब, ड्रग्स का नशा करना और इसके साथ ही तस्करी एवं अन्य अपराधिक गतिविधियों में महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होना चिंता की बात है। संवेदनशील भारतीय महिलाएं संवेदनहीन व दिशाहीन होकर विकृति की ओर बढ़ती जा रही है।

पिछले दिनों मेरी एक सहेली से बात हो रही थी, बात-बात में पब और पार्टी कल्चर पर बात निकली, जिस पर उसने कहा, आजकल तो ये सब नॉर्मल हो गया है, गलत भी क्या है उसमें सिर्फ लड़के ही मजे क्यों करें? इस पर हमारी बहस हो गई। क्या लड़कों की बराबरी करना ही फेमिनिजम है, यदि लड़के कुछ गलत कर रहे हो और लडकियां भी फेमिनिज्म के चक्कर में उसका अंधानुकरण करें, तो क्या यह यही है? आज की तारीख में नशा करना, शराब और सिगरेट का सेवन करना बड़े शहरों में लड़कियों के लिए आम बात हो गई है, पर प्रश्न यह उठता है, क्या यह सही है?

हमारे यहां कहा जाता है, ‘पुत्रो कुपुत्रो जायते, माता कुमाता कदापि न भवति’ अर्थात पुत्र, कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कभी भी कुमाता नहीं हो सकती, लेकिन आज के समय में ये बात झूठी साबित होती दिखाई देती है। हाल ही में सूचना सेठ का केस सामने आया, जिसमें उन्होंने नफरत की आग में अपने पुत्र की ही हत्या कर दी। ऐसे मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, और कई मामलों में इसका एक कारण नशा भी रहा है। आप यदि आज भी गोवा जाएं, तो आपको सभी प्रसिद्ध बीच पर महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही, शराब और सिगरेट का सेवन करती नजर आएंगीं केवल महिलाओं का ही नहीं, किसी का भी शराब आदि नशे का सेवन करना गलत ही है, लेकिन जब बात महिलाओं की आती है, तो इसका एक और अत्यंत महत्वपूर्ण कारण भी है। हम बराबरी के चक्कर में अकसर भूल जाते हैं कि महिलाओं का शरीर पुरुषों से अलग है। उन्हें प्रकृति ने निर्मिती का उपहार दिया है, जिसे नशा कर के वे खोती चली जा रही हैं। शराब के सेवन का सीधा असर महिलाओं के गर्भाशय और हार्मोन्स पर होता है। अधिक शराब और सिगरेट के सेवन से अनियमित मासिक धर्म, गर्भाशय का नाजुक होना, बच्चे को गर्भाशय में रखना इत्यादि में समस्या आती है। कॉलेज के दिनों में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाने की होड़ में हम अपना स्वास्थ्य भूल जाते हैं। संस्कारों की बात करें तो आप कहेंगे क्या संस्कार देना केवल माता का काम है? उत्तर है नहीं, ये माता-पिता दोनों का काम है, लेकिन आप ही सोचिए, अपने आप को उस बच्चे की जगह रख कर देखिए, जो अपने माता-पिता दोनों को नशे में धुत्त देख रहा है। जो ये देख रहा है कि पार्टियों में उसकी मां और पिता दोनों किसी तरल पदार्थ के कारण बहक रहे हैं, उनका ध्यान उस बच्चे पर नहीं है, उसके हाथ में मोबाइल या कोई खिलौना पकड़ा कर वो उस नशे के उन्माद को महसूस करने में व्यस्त हैं। क्या ऐसे बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य सही और भविष्य सुरक्षित होगा? उसके मन पर क्या असर होगा, जब वो अपनी माता को, किसी तरल पदार्थ के असर से बहकता देखे? मैं स्वयं एक माता हूं, और मैं मेरी बेटी के लिए संस्कारक्षम भविष्य देखती हूं। जहां उसे सही गलत की पहचान हो, क्या करने से शरीर पर क्या असर होता है, रिश्तों पर क्या असर होता है, घर परिवार पर क्या असर होता है, इसकी पहचान हो। कल को वो ‘सिर्फ लड़के ही क्यों मजे करें’ के नाम पर वह सब नहीं करें जो उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो। बच्चे अनुकरण से सीखते हैं, यदि वह अपने पिता या मुझे ऐसा कुछ करता देखे जो सही नहीं है, तो उसे वही काम करने दे रोकने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। वह अनुकरण में मुझे यदि संस्कारों का पालन करते देखे, तो वह अपने आप सीखेगी और यही बात केवल मुझे नहीं हर माता को ध्यान में रखना आवश्यक है।

आज के समय में बच्चों के पास बहुत सारे साधन हैं, जिससे वे इस दुनिया के हर कोने तक पहुंच सकते हैं। चीजों का ज्ञान उन्हें आसानी से हो सकता है, लेकिन क्या सही है, क्या गलत है समझने की उनकी उम्र नहीं होती, ऐसे में यदि माता ही कुमाता हो जाए, तो आने वाली कई पीढ़ियों को इसका परिणाम भुगतना होगा। अगर मैं भारत की बात करुं तो लगभग 30% महिलाएं नशे का सेवन करती हैं और यह प्रतिशत दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

ऐसे में आज हम महिलाओं को ही आगे बढ़कर इस विषय पर बात करने की आवश्यकता है। जब मैं पुणे में पढ़ने के लिए आई थी, तो हमारे कॉलेज की पीछे वाली गली में सब मुझे जाने से मना करते थे, क्योंकि उसे बदनाम गली कहा जाता था, जहां पर महिलाएं धड़ल्ले से सिगरेट का सेवन करती नजर आती थी। मेरे लिए यह बहुत बड़ा कल्चरल शॉक था, क्योंकि इससे पहले मैंने महिलाओं को कभी भी इसका सेवन करते नहीं देखा था लेकिन आज यह हर जगह, खास कर बडे शहरों में और पर्यटन स्थलों पर देखने को मिलता है।

जहां शराब, सिगरेट आदि का सेवन होता है, ऐसा कहा जाता है कि वहां कुलक्ष्मी होती है। वहां बहुत नकारात्मकता होती है, आप वातावरण में वह नकारात्मकता महसूस कर सकते हैं।

यदि हमारे लिए यह आम बात हो जाएगी तो आने वाली अनेक पीढ़ियां इस नशे की गिरफ्त में होगी। इसीलिए जरा रुकिए थोड़ा आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचिए। कूल बनने के चक्कर में हम ‘फूल’ तो नहीं बन रहे। इस बात का विचार कीजिए, अपने आप को कुमाता बनने से रोकिए। हमारा देश जीजा माता का देश है, इसे मदिरा में डूबी महिलाओं का देश बनने से रोकने के लिए आवाज तो उठानी ही पड़ेगी।

प्रश्न उठे हैं,तो जवाब ढूंढ़ने का प्रयत्न तो हम कर ही सकते हैं।

 

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