अयोध्या और अबुधाबी का शांति संदेश- मधुभाई कुलकर्णी

भारत के अयोध्या और अरब के अबुधाबी में सर्वधर्म समभाव एवं सहिष्णुता के प्रतीक बने हिंदू मंदिर पूरी दुनिया को ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दे रहे हैं। यदि मजहबी टकराव, कट्टरता, आतंकवाद, हिंसा और युध्द से बचना है तो सनातन संस्कृति में निहित सहअस्तित्व के  विचारों को आत्मसात करना ही होगा।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनना और अबुधाबी में श्री स्वामीनारायण मंदिर का निर्माण होना, इसके पीछे अवश्य कोई ईश्वरीय शक्ति होगा। अरब और हिंदुस्थान के बहुत पुराने सम्बंध रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि गणित का अंकज्ञान अरबस्थान से पश्चिमी देशों में गया। गणित के अंकों को अरबस्थान में जो हिंद से आए उसके लिए हिंद्सा शब्द प्रयोग होता था।

वर्तमान में अरब, अमीरात और भारत के सम्बंध घनिष्ठ होते जा रहे हैं। दोनों ने मिलकर परमत आदर का संदेश (एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति) विश्व को देना है, यह संकेत इस नव निर्माण में अनुस्युत हो सकता है। अबुधाबी मंदिर में दीवारोें पर कुरान शरीफ व बाइबिल को भी उकेरा गया है, जो वसुधैव कुटुंबकम का परिचायक है।

कट्टरता का संदेश देनेवाले बाबरी ढांचा गिर गया और अमन और शांति का संदेश देनेवाली भारतीय मस्जिद अयोध्या में यानी भारत के सांस्कृतिक राजधानी में खड़ी हो, इस घटना के पीछे भी ऊपरवाले की ही इच्छा होगी। अयोध्या में अब जो नई मस्जिद बनेगी, वह सही अर्थों में भारतीय होगी। बाबर के साथ उसका  कोई रिश्ता न होगा। वह अयोध्या की मस्जिद होगी। शांति और अमन का संदेश देनेवाली होगी। उसकी पहचान भी मस्जिद-ए-अमन होगी।

भारतखंड के सभी देश और अरब, अमीरात के सारे देश मिलकर शांति, अमन, सहिष्णुता, भाईचारे और मानवता का संदेश लेकर खड़े हो जाए तो दुनिया को युद्ध, संघर्ष, खूनखराबा से बचाया जा सकता है। भारत के मुसलमान समाज को भारत की संतान होने का गौरव स्वाभाविक होना चाहिए क्योंकि वे म्लेंच्छ नहीं हैं, तुर्क मुघल म्लेंच्छ थे, आक्रमणकारी थे। यहां के समाज के पूजा स्थान तोड़कर भारत की सर्वसमावेशी परंपरा बदलने का उन्होंने प्रयत्न किया। मंदिर, बुद्धविहार, जैन देरासर तोड़कर जबरन बनाई मस्जिद कट्टरता का संदेश हमेशा देती रहेंगी। अमन की खुशबू उस में से आएगी ही नहीं। आक्रांताओं द्वारा निर्माण किए गए मस्जिदों को भारतीय मस्जिद कहे क्या? अमन और शांति की साधना के लिए अपने श्रध्दास्थान चाहिए।

मुसलमान समाज आक्रांताओं द्वारा निर्मित मस्जिदों में नमाज अदा करने का आग्रह करते आया है। वह नमाज सर्व शक्तिमान अल्लाताला को मंजूर होती है क्या? शायद उनके पिछड़े, गरीब, आधुनिक शिक्षा से वंचित रहने का यह भी एक कारण हो सकता है। गुलामी की प्रतीक इन मस्जिद का नमाज के लिए उपयोग में न लाने में ही मुसलमान सहित सर्व समाज का कल्याण होगा।

मुसलमान खुद को बाहर से आई हुई कोई कौम न माने। मुसलमान भारतीय समाज का ही एक अंग है, जैसे जैन समाज, बौद्ध समाज, सिख समाज, वैष्णव, शैव, शाक्त, सरना समाज आदि सभी मिलकर विशाल भारतीय समाज हैं। ‘कौम’ शब्द में अलगाव का गंध आता है। मुसलमान कौम और हिंदू कौम ऐसे दो अलग कौम मानकर सभी समस्याएं हल करने का प्रयत्न हुआ। देश का विभाजन देखना पड़ा। कौम की मानसिकता से ही बाबरी action committee निर्माण हुई। बाबरी ढांचा हटाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आज जो हल निकला है वह पहले भी निकल सकता था। भारत की संस्कृति हम सबकी विरासत है और इसका संरक्षण व संवर्धन करना हम सबका दायित्व हैं। गौरव और  स्वाभिमान के विषय सबके समान होने चाहिए। भारत का विजय सबका विजय होता है।

अनेक मतावलम्बियों की विविधताओं से भरा भारत का समाज है। जैन, बौद्ध, सिख, मुस्लिम, क्रिश्चन, वैष्णव, शैव, शाक्त, सरना इत्यादि सब मिलकर भारत का कोई लक्ष्य हो सकता है क्या? भारत का मन ऐसा कुछ है क्या? मत, मजहब, जाति कोई भी हो, भारत का मन एक है? भारतीय समाज अनेक मनों का समूह है, जमघट है। अनेक भाषा-भाषी समाज है। मन अनेक कि एक? लोकसभा भारत मन को दुनिया के सामने प्रकट करने का स्थान माने क्या? अभी-अभी G20 बैठकों के समय वसुधैव कुटुंबकम यह भारत की सनातन अभिलाषा प्रकट करनेवाला वाक्य अपने ओर से प्रचारित हुआ।

वसुधैव कुटुंबकम यह मानस बनाने में सब समाज का योगदान है। मुसलमान तथा ईसाई समाज के योगदान के बारे में विचार होना चाहिए।

भारतीय समाज विविधताओं से शोभायमान समाज है। इतनी विविधता अन्य कोई देश में देखने को नहीं मिलेगी। पूजा पद्धतियां तो इतनी है कि उसकी गिनती करना भी कठिन है। एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति यह सनातन सत्य वचन यहां के समाज मन का स्पंदन है। भारतीय समाज मन कट्टरता से नफरत करता है। इसी के कारण मुसलमानों के सब फिरके या क्रिश्चन समाज के सब चर्च यहां देखेने को मिलते हैं।

‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ यह इस देश की आत्मा है। इसको पुष्ट करने का प्रयत्न सभी कोे करना चाहिए। इस्लाम, क्रिश्चन का भारतीय दर्शन क्या हो, इस पर विमर्श होना चाहिए। पवित्र कुरान, बाइबिल, वेद, उपनिषद, रामायण, भगवत गीता आदि ग्रंथ अत्यंत प्राचीन है। उसमें उपयोग किए शब्द प्रयोग बदलने का अधिकार हम लोगों को नहीं है लेकिन वर्तमान 21वीं सदी के अनुसार उन शब्दों का भावार्थ क्या हो, इस का विचार हम कर सकते हैं। जैसे वानप्रस्थाश्रम यानी वर्तमान में क्या करना। जिहाद, कुफ्र का वर्तमान में अर्थ क्या हो। non believer किसको कहें।

आक्रांताओं ने सर्वसमावेशी परंपरा बदलकर जबरन कट्टरता का संदेश देनेवाले स्थान खड़े किए हैं। वह इतिहास के पन्नों में सीमित रहें, वर्तमान में उनका उपयोग करना हम छोड़ दे।

हम भारत की संतान हैं, ऐसा गौरव के साथ हम जब कहते हैं तब भारत क्या है यह भी हमको दुनिया को बताना पड़ेगा।

जमीन, जंगल, नदियां, पेड़, पहाड़, पशु, स्त्री-पुरुष (समाज), उद्योग, खेती, ये बाते सब देशों में होती ही हैं। GDP भी नापा जाता है। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। मिटती नहीं हमारी यह क्या बात है? नेताजी सुभाषचंद्र बोलते थे भारत के संस्कृति में ऐसा कुछ है जो विश्व मानवता के लिए बहुत आवश्यक है और उसे ग्रहण किए बिना विश्व सभ्यता वास्तविक उन्नति नहीं पा सकती।

स्वामी विवेकानंद देश व देशों की विशेषता बताते समय कहते हैं कि Each Nation has a destiny to fulfil, a message to deliver and a mission to accomplish.

महर्षि योगी अरविंद कहते हैं India alone can lead the world to peace and New world order.

आज दुनिया को संघर्ष युद्ध, हिंसा से मुक्त होने के लिए ‘एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति’ इस विचार की बहुत आवश्यकता है। New World Orderयही है। भारत का Mission to accomplish  यही है। भारतीय संस्कृति का यही व्यवच्छेदक लक्षण है। इसी वैज्ञानिक सत्य पर आधारित भारतीय जीवनशैली (सभ्यता) का विकास हुआ है। क्या महंमद इकबाल को कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी यह कहते समय इसी सत्य की ओर अंगुली निर्देश करना था क्या? ग्रीक, हूण, शक, कुशाण, तुर्क, मुघल और अंग्रेज सब मिट गए यहां से कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

सौदी अरब के सब देश और भारतखंड के सभी देश ‘एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति’ इस सनातन सत्य की दुनिया में प्रस्थापना करने के लिए एक साथ खड़े हो जाए। इस काम के लिए भारत वर्ष की अयोध्या, राजाराम की अयोध्या मार्गदर्शक केंद्र हो सकती है। बंधुत्व, आत्मीयता, मानवता और न्यायनीति का संदेश देनेवाले श्रीराजाराम का मंदिर बन ही गया है। अमन और शांति का पैगाम देने वाली मस्जिद खड़ी हो। सिख, जैन, बौद्ध, वीरशैव समाज के श्रद्धा स्थान निर्माण हो। विज्ञान तकनीक के युग में हम वर्तमान तथा भावी पीढ़ी को क्या मार्गदर्शन करें, इसके ऊपर सब मिलकर विमर्श करते रहें।

स्वामी विवेकानंद वर्तमान कालखंड के दृष्टा पुरुष थे। भारत की आध्यात्मिक धारा के प्रतिनिधि थे। शिकागो सर्वधर्म परिषद में अपने अत्यंत छोटे भाषण से दुनिया जीत ली थी। भारत के सहिष्णुता का परिचय दुनिया को देकर उन्होंने उद्घोषणा की थी कि मत, पंथ, महजब कोई भी हो परंतु सभी की पताका पर स्वीकार, सहकार, स्नेह, संवाद, समन्वय और शांति ही शब्द देखने को मिलेंगे। कट्टरता का अंत होगा। कालचक्र घूमता ही रहता है। ऊपर की ओर से नीचे और नीचे की ओर से ऊपर यह क्रम चलता रहता है। भारतखंड – भारत वर्ष का विश्व में महत्व बढ़ेगा।  हिमालय का महत्त्व बढ़ेगा। हिमालय शांति का संदेश देनेवाला शिखर शिरोमणी सिद्ध होगा।

  मधुभाई कुलकर्णी

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