भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात लोकतंत्र का स्वीकार किया है। लोकतंत्र ने सभी को मतदान करने का अधिकार दिया है और इतिहास साक्षी है कि जब-जब मतदाताओं ने जागृत होकर मतदान किया है तब-तब व्यवस्थाएं अपने आप ही ठीक हो गई हैं। अत: मतदान न केवल अधिकार है अपितु कर्तव्य भी है। परंतु इस कर्तव्य का पालन करने का प्रतिशत बहुत कम रहा है। देश की जनसंख्या के अनुपात में मतदान का प्रतिशत जैसे-तैसे प्रथम श्रेणी की उत्तीर्णता के स्तर तक ही पहुंच पाता है। चुनावों में मतदान न करने की, उसे टालने की प्रवृत्ति ही अधिक दिखाई दी है। यहां तक कि पढ़े-लिखे लोगों में भी मतदान करने के प्रति उदासीनता दिखाई देती है। कई बार इसके परिणामस्वरूप सत्ता की बागडोर गलत हाथों में चली जाती है। इस उदासीनता का कारण क्या हो सकता है, यह मिमांसा का विषय ही नहीं है। मतदान यह मानकर करना है कि राष्ट्र के विकास के लिए एक यज्ञ किया जा रहा है और प्रत्येक नागरिक को इसमें अपनी आहूति देनी ही है।
चूंकि भारत विश्व का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश है अत: लोकसभा चुनावों पर पूरे विश्व की दृष्टि रहेगी। सभी यह जानने को उत्साहित होंगे कि कैसे इतने बडे देश में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान की प्रक्रिया पूर्ण होती है। अगर इस बार के लोकसभा चुनावों में सौ प्रतिशत मतदान होता है तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड तो होगा ही मजबूत लोकतंत्र की दिशा में भारत का दमदार कदम भी सिद्ध होगा और भारत विश्व में अपनी साख बढ़ाने में सफल होगा। रा.स्व.संघ की ओर से आधिकारिक रूप में इसका प्रचार किया जा रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनावों में शत-प्रतिशत मतदान हो। हमेशा की तरह इस बार भी संघ राष्ट्र जागरण के एक अंग के रूप में मतदान के लिए जनजागृति फैलाने का कार्य कर रहा है।
मतदान करते समय यह ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक है कि मतदान किसे किया जा रहा है। मतदान की एक एक रात पहले किसी भी प्रकार के लालच में आकर मतदान करना अपने अगले पांच वर्षों का भविष्य गलत हाथ में देने जैसा है। अत: अपने विवेक कोजागृत रखकर मतदान करना ही श्रेयस्कर होगा।
आज भारत में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। उन्हें यह सोचना होगा कि ऐसी कौन-सी पार्टी है जिसके पास अगले 25 वर्षों का विजन है, ऐसी कौन-सी पार्टी है जो उन्हें एक सुरक्षित भविष्य प्रदान कर सकती है। किसके कारण आज विदेशों में भारत की साख बढ़ी है। युवाओं के बाद वह पीढ़ी है जिसने लगभग पिछले 25 वर्षों का कालखंड देखा है, जो अपने संज्ञान से यह सोच सकती है कि किस पार्टी के कालखंड में देश का विकास हुआ और किसने भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अपनी जेबें भरने के अलावा कुछ नहीं किया। कौन सी पार्टी राष्ट्रहित का ध्यान रखकर कार्य कर रही है और कौन सी पार्टियां जन भावनाओं की उपेक्षा कर ही है।
केंद्र की सत्ता को प्राप्त करने के बाद उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए, आवश्यकता पडने पर कडे और कठोर निर्णय लेने के लिए पूर्ण बहुमत वाली सरकार होना आवश्यक होता है। ऐसी सरकार ही पूर्ण एकाग्रता के साथ देश हित के कामों को पूर्ण कर सकती है। इसके विपरीत व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए एक साथ आई पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार का सारा ध्यान जोड-तोड में ही लगा रहता है। किसी एक निर्णय पर असहमति होते ही गठबंधन टूटने और सरकार गिरने का संकट हमेशा बना रहता है। अगर कोई ऐसा गठबंधन सत्ता में आता है तो उसका सारा ध्यान सरकार बचाने की ओर ही लगा रहेगा, ऐसे में वह देशहित के कार्य कैसे करेगा? अत: मतदाताओं का यह भी कर्तव्य है कि वह इस प्रकार मतदान करे कि केंद्र में बहुमत वाली सरकार बने, जिससे वह राष्ट्रहित में उचित कदम उठा सके।
लोकसभा के चुनाव देश की केंद्रीय सत्ता की कमान किसके हाथ में सौंपी जाए, यह निर्धारित करने के लिए किए जाते हैं, अत: मतदान करते समय भी यही व्यापक परिप्रेक्ष्य रखकर मतदान करना होगा। मतदान करते समय न किसी व्यक्ति विशेष से सहानुभूति रखनी है न बैर। अर्जुन की तरह निर्धारित चुनाव चिन्ह को मछली की आंख मानकर मतदान करना है।
धारा 370 हटने के बाद, कोरोना के भयावह वातावरण में या रामलला की प्रतिष्ठापना के बाद जनता की प्रतिक्रियाओं से यह समझा जा सकता है कि जनमानस किस ओर है, परंतु लोकतंत्र में जनभावना की प्रस्तुति का एक मात्र माध्यम है मतदान। अत: सही सरकार चुने जाने के लिए अधिकतम और सही उम्मीदवारों को मतदान होना अत्यंत आवश्यक है। सभी मतदाता जब जागरुक होकर और विवेकपूर्ण मतदान करेंगे तभी लोकतंत्र की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी।