सशक्त भारत की दिशा तय करने वाला चुनाव

2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए का उत्साह और कांग्रेस सहित इंडी गठबंधन की घोर निराशा यह बताने के लिए काफी है कि सम्भावित चुनावी परिणाम क्या होंगे। राष्ट्रवाद और विकास के विजयी रथ पर सवार होकर इस बार भाजपा, राजीव गांधी के 400 पार का रिकॉर्ड तोड़ने के इरादे से कृष्ण नीति का उपयोग कर रही है।

भारत में लोकतंत्र का सर्वोच्च उत्सव लोकसभा चुनाव है। जैसे ही लोकसभा चुनावों का समय नजदीक आता है, परस्पर आरोप-प्रत्यारोप के रंग हवा में घुलने लगते हैं। देश की जनता के मुद्दों को सरकार के सामने रखने के लिए लोगों को न्याय दिलाने के लिए विपक्षी दलों ने कौन से प्रयास किए हैं, ये बातें जनता के सामने बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती हैं। एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा किया जाता हैं। अब तक हुए लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने यही  महसूस किया हैं। लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसा माहौल कहीं महसूस नहीं हो रहा है। विपक्ष की रणनीति, षडयंत्र और चुनाव लड़ने के लिए जो आवश्यक बातें विरोधी पक्ष में मौजूद होनी चाहिए वह बातें कहीं भी महसूस नहीं हो रही है। ऐसा लगता है कि विपक्षी दल ऐसा नीरस व्यवहार कर रहा है मानों नरेंद्र मोदी सरकार के सामने विरोधियों ने हथियार डाल दिए हो। क्या 2024 के लोकसभा चुनाव का जश्न नीरस विपक्षी दलों की मौजूदगी में मनाया जाएगा? चुनावों के शुरुआती दौर में हमें कुछ ऐसा ही माहौल महसूस हो रहा है।

विरोधी पक्षों के पास मोदी के खिलाफ कोई सशक्त मुद्दा नहीं है। इस कारण उनके चुनाव पूर्व हो रहे भाषणों में जो मुद्दे सामने आ रहे हैं, वह विरोधी पक्ष के नेताओं के बुद्धि और इच्छा शक्ति पर प्रश्न चिन्ह खड़े करने वाले हैं। उद्धव शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में कहा कि यदि भाजपा और एनडीए को 400 के पार सीटें मिलती हैं तो भाजपा संविधान में गलत तरह से परिवर्तन करेगी। राहुल गांधी जोश में होश खोकर कहते हैं ‘धर्म की शक्ति खत्म करेंगे’। जैसे कि विरोधी पार्टियों ने मान ही लिया है कि इस चुनाव में भाजपा को 400 के पार सीट मिलने वाली ही हैं। जिससे प्रतीत होता है कि विरोधी पक्ष हारे हुए मन से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। विरोधी पार्टियों के नेताओं का मतदाताओं के सामने बार-बार इस प्रकार प्रस्तुत होना, यानी कांग्रेस और विपक्ष के पास मोदी सरकार विरोधी मुद्दा ही नहीं है। इस कारण बौखलाए हुए विपक्षी नेता बाल बुद्धि का प्रदर्शन कर रहे हैं।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का जो समय था इसके पीछे मौजूद राजनीतिक समझ को लेकर प्रश्न उठ  रहे थे। जब सारी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के लिए अपनी रणनीति तय कर रही थी, तब भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी के जुटे रहने का मतलब क्या है? आरक्षण के सक्रिय समर्थक दल के रूप में कांग्रेस पार्टी की पहचान कभी नहीं रही। दूसरे के मुद्दे को पकड़कर लंबी छलांग लगाने की यह कोशिश राजनीतिक चोरी है।

कमजोर चुनावी भाषण और कमजोर चुनावी नीति के कारण ज्यादातर राजनीतिक पर्यवेक्षकों को राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं की करतूतों पर बार -बार हंसने का मौका मिल गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जाने के पहले से ही भारतीय जनता पार्टी बहुत ज्यादा मजबूत नजर आ रही है। जबकि भाजपा ने अपने दम पर 370 सीट और सहयोगियों के साथ मिलकर 400 के पार जाने का दावा किया है। भाजपा की विशेषता यह है कि पिछले छह महीने में विपक्षी नेताओं को एक दिन भी चैन की सांस नहीं लेने दी है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले चुनाव में विपक्ष अपने साझा राजनीतिक अभियान से कुछ जमीनी मुद्दे उठा सके तो ऐन मौके पर चुनाव में ठीक-ठाक जान आ सकती है।

चुनावी महौल में एक मुद्दा विपक्ष से भुनाया जा रहा है, भाजपा ने इस समय दूसरी पार्टियों से उम्मीदवार क्यों आयात करना शुरू कर दिया है? उन्होंने महाराष्ट्र से अशोक चव्हाण, सांसद पचौरी, बसवराज पाटिल जैसे नेताओं को क्यों लिया? कृपाशंकर सिंह को भाजपा ने उम्मीदवारी क्यों दी? अभी तक इस सूची में कमलनाथ शामिल नहीं हैं। मोदी पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, वह एक साफ सुथरे राजनेता हैं। लेकिन वे बाहरी उम्मीदवारों के बलबुते 400 की संख्या पार करने की कोशिश कर रहे हैं? चुनावी माहौल में एक ऐसा मुद्दा उठ रहा है।

विपक्षी गठबंधन को तोड़े बिना लोकसभा चुनाव में सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती। इस बात को ध्यान में रखकर भाजपा ने बिहार पर ध्यान केंद्रित किया। यदि विपक्ष की नींव से एक-एक ईंट हटा दी जाए तो वांछित परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। नीतीश कुमार को यह डर सताने लगा था कि कहीं उनकी जनता दल की हालत भी शिवसेना जैसी न हो जाए। यदि पार्टी हाथ से निकल गई तो न राज्य बचेगा, न सत्ता। ऐसी हालत में राजनीति में अस्तित्व महत्वपूर्ण है, ये बुनियादी बातें ध्यान में रखकर नीतीश कुमार सीधे एनडीए में शामिल हो गए। उन्होंने पार्टी बचाई, उन्होंने अपना मुख्य मंत्री पद बचाया, नीतीश कुमार का इंडी गठबंधन से बाहर जाना वाकई विपक्ष के लिए बड़ा झटका था। देश के विभिन्न राज्यों में यह सिलसिला सभी विरोधी पार्टियों में जारी रहा। यही नीति अन्य नेताओं पर भी लागू है।

बीजेपी ने आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी 2 साल पहले से ही शुरू कर दी थी। 160 से अधिक पराजित निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रीय मंत्रियों को वहां भेजा गया, रिपोर्ट मांगी गई। नए चेहरों का आकलन किया गया, यदि कोई नया सक्षम उम्मीदवार नहीं है तो यह भी देखा गया कि क्या दूसरे दलों से नेताओं को पार्टी में लाया जा सकता है। भाजपा और सहयोगी पार्टियों को 400 के आंकड़े तक पहुंचाने के लिए गठबंधन की मजबूती पर ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई। इन सारे प्रयासों से अब यह विश्वास हुआ है कि राजीव गांधी का 400 के पार का रिकॉर्ड एनडीए तोड़ सकता है।

इंडी के पतन के लिए जितना भाजपा की कृष्ण नीति जिम्मेदार थी, उतना ही इंडी में घटक दलों का कांग्रेस विरोधी रुख भी जिम्मेदार है। इस कारण विपक्षी गठबंधन विफल हो गई है। शुरू में अखबारों की तस्वीर में विपक्षी गठबंधन इंडी में जिस प्रकार से विपक्ष नेताओं की लंबी कतार दिखाई देती थी, चुनाव आते-आते वह कतार खंडित होने की तस्वीर देश की जनता के सामने विपक्षियों ने ही प्रस्तुत कर दी है।

हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनावों के दौरान हुई क्रॉसवोटिंग से उठी राजनीतिक असंतोष की आग अब तक बुझ नहीं रही है। सिर्फ एक राज्यसभा सीट वाले इस कांग्रेस शासित राज्य में राज्यसभा चुनाव में अफरातफरी मचाई है। बागी गुट ने अभी तक हथियार नहीं डाले हैं। लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि महागठबंधन सरकार ने संतुलित कार्य के जरिए एक तीर से कई निशाने साधे हैं। सड़क, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई मार्गों के निर्माण में पर्याप्त निवेश किया गया। आर्थिक विकास के स्तर को बढ़ावा देते हुए शैक्षणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में संतुलन पर देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छाप दिखाई दे रही है। अस्तित्वहीन प्रतिद्वंद्वी सिर्फ संसद भवन की सीढ़ियों पर बैठकर मीडिया के सामने घोषणाबाजी करते रहे है। संसद भवन की सीढ़ियों के अलावा विपक्ष का अस्तित्व कहीं और नजर नहीं आया। संसद भवन में होने वाली ज्यादातर सत्र के दौरान विपक्षी दलों के बीच बहस बेनतीजा ही रही।

कांग्रेस और विपक्षी इतने कमजोर हैं कि भाजपा कुछ भी न करे फिर भी भाजपा को जीतना चाहिए, भाजपा वर्तमान में अत्यंत मजबूत बुनियाद पर खड़ी है। भारतीय जनता पार्टी भारत की सबसे मजबूत पार्टी क्यों है? 1984 में कांग्रेस ने 400 के पार सीटें जीतीं जबकि भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिलीं फिर भी भाजपा पार्टी बरकरार रही। तब से अब तक एक नए अवतार के रूप में भाजपा का उदय होना जारी रहा। जनता पार्टी में विलय करने का निर्णय लेने के बाद भारतीय जनता पार्टी के समर्पित नेताओं ने स्वयं को पार्टी के उज्जवल भविष्य के लिए खुद को निचोड़ लिया। भाजपा के सभी कार्यकर्ताओं ने संकल्प सिद्धि के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर अपने-अपने कर्तव्य को तत्परता से निभाया। भाजपा नेतृत्व एक अच्छी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आता है। ज्यादातर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारधाराओं से जुड़े होते हैं। शक्तिशाली व्यक्तित्व और नेतृत्व पार्टी को एकजुट रखता है। अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन, नरेंद्र मोदी और अन्य गणमान्य नेताओं ने संगठनात्मक रचना के लिए जो योगदान दिया है वह अत्यंत मौलिक है। राजनीतिक जानकार सशक्त नेतृत्व एवं व्यक्तित्व के लिए भाजपा को 10 में से 10 अंक देते हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी इन सभी मोर्चों पर विफल रहे है। उनकी सोच खोखली है। अगर कांग्रेस और विपक्ष पार्टी के लोग अपनी भूमिका के बारे में आश्वस्त नहीं हैं और धन एवं सत्ता तक पहुंचने के लिए किसी भी हीन मार्ग का चुनाव करते हैं, तो पार्टी का सर्वशक्तिमान नेता पार्टी को चुनाव में वोट दिलाने के लिए सक्षम नहीं होगा। केजरीवाल का भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना इस बात का उत्तम उदाहरण है। ऐसे में देश की जनता देशहित को ध्यान में रखकर विकल्प खोजना शुरू कर देती हैं। ऐसा करना वास्तव में देश की लोकतांत्रिक जनता का दायित्व है।

रचनात्मक कार्यों, राजनीति और सामाजिक कार्यों में युवाओं की भागीदारी बढ़ रही है। विगत 10 सालों में भारत में विविध स्तर पर  सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं। वर्तमान स्थिति में विभिन्न स्तर पर हो रहे परिवर्तन का युवाओं को अपनी भविष्य के विकास के लिए  सकारात्मक उपयोग होता दिखाई दे रहा है। गत दस सालों में मोदी सरकार के प्रयासों के कारण गांव और शहर का भेद मिटता जा रहा है। सभी युवाओं का आत्मविश्वास बढ़ रहा हैं।

गरीबी में आटा गीला

100 करोड़ के शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की  गिरफ्तारी हो गई। अण्णा हजारे की उंगली पड़कर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के सहारे राजनीति में सक्रिय होने वाले अरविंद केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार के कीचड़ में लिप्त होकर जेल चले गए।  उन्हें 9 बार ईडी ने समन के द्वारा पेशी के लिए बुलाया था, उसके बाद भी वह ईडी के सामने पेश नहीं हुए, केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने शराब घोटाले में 100 करोड़ की रिश्वत की योजना तय की हुई है।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी ईडी के समन को टालने का प्रयास किया था। लेकिन उन्हें भी ईडी ने गिरफ्तारी में लेकर जेल की हवा खाने भेज दिया। ऐसी स्थिति में इडी के सामने प्रस्तुत न होने की सलाह देने वाले सलाहकार केजरीवाल की इर्द-गिर्द हो तो केजरीवाल का कल्याण होना ही था, जो हो गया। ईडी ने हाईकोर्ट के सामने जो फाइलें पेश की उसमें छुपे हुए राज हाईकोर्ट को दिखाए गए। वह देखने के बाद देश की न्याय व्यवस्था से अपेक्षा है कि ईडी ने जो सबूत पेश किए है उसके आधार पर केजरीवाल को उचित दंड दिया जाए। केजरीवाल को गिरफ्तार करने के बाद ‘इंडी’ गठबंधन कमजोर हो गया है। भ्रष्टाचार में लिप्त मुख्य मंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी होने के बाद विपक्ष चुनाव के इस माहौल में जनता के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएगा? केजरीवाल ने ‘गरिबी में आटा गीला’, जैसी ‘इंडी’ गठबंधन की स्थिति कर दी है। केजरीवाल के जेल जाने के बाद दिल्ली, पंजाब, गुजरात और गोवा के चुनाव पर बहुत बड़ा असर होने वाला है।  दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। गुजरात और गोवा में पार्टी के समर्थक बढ़ रहे थे। ऐसी स्थिति में केजरीवाल के खिलाफ यह भ्रष्टाचार की कार्रवाई होना विपक्षियों के लिए बहुत बड़ा चुनावी संकट है।

(आलेख लिखे जाने तक)

 

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि युवाओं का व्यक्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि वे खुद पर विश्वास करते हैं या नहीं। मन में नए विचार लेकर आगे युवा बढ़ता हैं? अच्छे सशक्त युवा के बीज निर्माण का कार्य इसी चर्चा से प्रारम्भ होता है। वर्तमान में देश के युवा उन आदर्शों पर चल रहे हैं जो उन्हें नई दिशा की ओर ले जा रहा हैं। इस कारण देश का युवा वर्ग करियर के साथ अपने सामाजिक दायित्वों को भी पूरा करने में रुचि ले रहा हैं। वर्तमान में समाज में हो रहे सकारात्मक परिवर्तन में ऐसे युवाओं की हिस्सेदारी ज्यादा बढ़ रही है।

विश्वास से संपन्न युवा वर्ग इन 10 सालों में मोदी सरकार के माध्यम हो रहे सकारात्मक प्रयासों से निर्माण हुआ है। ‘विकसित भारत 2047’ इस चुनाव के लिए भाजपा का नारा है। इस चुनाव में युवा बढ़-चढ़कर अपने भविष्य के लिए हिस्सा लेंगे। वहीं सकारात्मक सोच वाले युवा वर्ग विकसित भारत और अपने उज्जवल भविष्य का निर्माण करने का पुरजोर प्रयास करेंगे, यह बात युवकों के मूड से महसूस हो रही है।

विरोधी पक्ष की कछुआ गति से कार्य पद्धति और भाजपा का गतिमान विकास की ओर मार्गक्रमण यह देश की जनता को स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अपने गतिमान कार्य पद्धति के कारण भाजपा ने पहले ही लोकसभा चुनाव परीक्षा को आसानी से हल कर लिया है। भाजपा ने जनता से अपने 10 साल के काम के आधार पर वोट डालने की अपील की है। मोदी सरकार ने भारतीय सनातन संस्कृति एवं विकास दोनों को कायम रखने के लिए जो प्रयास किए हैं वह प्रयास लोगों के मन को भा गए हैं। राजनीति में राष्ट्र विकास की सोच लेकर जो संकल्प करते हैं उसे प्रत्यक्ष रूप में उतारना और लोगों को उस पर विश्वास दिलाना, यही बात आधी लड़ाई जीत लेने जैसा है। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा आधी लड़ाई जीत चुकी है।

अब आधी लड़ाई चुनाव जीतने की होगी। लड़ाई में केवल राष्ट्रवाद एवं विकास ही 2024 के लोकसभा चुनाव का मुद्दा है। मोदी ने देश भर के सभी कार्यकर्ताओं को यह सोचकर काम शुरू करने का आदेश दे दिया कि कमल ही उम्मीदवार है। यह एक गहरा संदेश है।

भारत जैसे लोकतंत्र के लिए निश्चित रूप से चुनाव यह परीक्षा की घड़ी होती है लेकिन सशक्त विपक्ष की अनुपस्थिति में देश की जनता एक निश्चित स्थिति में चुनाव प्रक्रिया को सकारात्मक अंजाम देने जा रही है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए इस सुनहरे मौके का देश की जनता पूरे जोर से उपयोग करेगी।

 

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