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जागरुक होकर करें मतदान

जागरुक होकर करें मतदान

by हिंदी विवेक
in अप्रैल -२०२४, ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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देश में स्वस्थ राजनीति के लिए मतदाताओं का जागरुक होना बहुत आवश्यक है। देश का वर्तमान व भविष्य संवारने में राजनीति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए वंशवादी, परिवारवादी एवं एकाधिकार वाली पार्टियों के बजाए राष्ट्रहित के लिए समर्पित प्रबल राष्ट्रवाद की समर्थक पार्टियों का चयन करना चाहिए।

किसी भी देश में एक बेहतर राजनीतिक संस्कृति के विकास के लिए और राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को मजबूती देने के लिए मतदाता जागरुकता एक पूर्व निर्धारित शर्त है। राजनीतिक प्रणाली के प्रति यदि बड़ी जनसंख्या में अरुचि बनी हुई हो और मतदान के संदर्भ में राजनीतिक उदासीनता बनी हुई हो तो एक गतिशील सरकार का गठन किया जाना मुश्किल होता है।

भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रत्येक भारतीय नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया हैं। मतदाताओं का यह दायित्व हो जाता है कि सबसे पहले तो वे देश में शत-प्रतिशत मतदान के स्तर को प्राप्त कराने में सहयोग करें और इसके साथ ही ऐसे राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को मत दें जो देश में जनकल्याण की दिशा में काम कर रहे हैं। देश के लिए अच्छा काम कौन कर रहा है, बेहतर पॉलिसी मेकिंग, अच्छे आर्थिक निर्णय लेकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती की राह पर ले जाने वाले दलों को मतदाताओं का अधिक समर्थन मिलना आवश्यक है।

राजनीति को जातीय, क्षेत्रीय मुद्दों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित के चश्मे से देखना आवश्यक है और पिछले एक दशक में भारतीय मतदाताओं ने जो परिपक्व राजनीतिक समझ का परिचय दिया है उससे मतदान का स्तर लगातार बढ़ा है। भारत के सीईसी राजीव कुमार के अनुसार 96.8 करोड़ लोग 12 लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर आगामी चुनावों में वोट डालने के पात्र हैं। इसमें महिला मतदाता की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। प्रति हजार पुरुषों पर महिला वोटर की संख्या 2024 में 948 है जो की 2019 में केवल 928 ही थी। इस बार का लोकसभा चुनाव 7 चरणों में सम्पन्न होगा और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भारत में राजनीतिक और मतदान साक्षरता का स्तर बढ़ने के चलते व्यापक स्तर पर मतदान होगा।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मतदान केवल वोट करने के लिए चुनावी बटन को प्रेस करने की प्रक्रिया का ही नाम नहीं है। मतदान एक ऐसी प्रक्रिया है जो देश में जन आकांक्षा को मूर्तमान बनाने का माध्यम है। शासन को सुशासन तक पहुंचाने वाला उपकरण है। प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र को मजबूत करने का आधार है। देश की सत्ता में जन साझेदारी का आयाम है। भारत जैसे देश में शत प्रतिशत मतदान की आवश्यकता है क्योंकि मतदान का स्तर जितना बढ़ेगा, राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरुक लोगों के द्वारा उतनी ही अच्छी सरकार का चयन किया जाएगा। वोट देकर हम अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं और देश को चलाने के लिए अच्छे प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं। वोट से हम अच्छे सांसद, विधायक, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य चुन सकते हैं। सभी चुनाव महत्वपूर्ण है, ऐसे में अपने मताधिकार का उपयोग करना आवश्यक है।

भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस की प्रासंगिकता:

भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है। इसे अधिक युवा मतदाताओं को राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था। यह विशेष दिन पहली बार 25 जनवरी 2011 को भारत के चुनाव आयोग के स्थापना दिवस को चिह्नित करने के लिए मनाया गया था, जो देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रीय मतदाता दिवस मतदान के महत्व की याद दिलाता है और इसका उद्देश्य नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया में शिक्षित और संलग्न करना है। भारत के कई राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मतदाताओं को जागरुक करने का प्रयास किया जा रहा है। विद्यालय, महाविद्यालय, मीडिया, समाचार पत्र, सोशल मीडिया, रेडियो, मेट्रो और अन्य ऐसे ही स्थानों पर मतदाता जागरुकता सम्बंधी विज्ञापन के स्तर पर कार्यवाही की जा रही है। भारत में कुछ जगहों में वैवाहिक कार्डों में मतदान की अपील करते देखा गया है।

आने वाले समय में चुनावों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी प्रभावित करेगा, जिस पर चुनाव आयोग को निगरानी रखना आवश्यक होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर तमिलनाडु के चुनावों में पूर्व मुख्य मंत्री जयललिता की आवाज का इस्तेमाल कर मतदाताओं से मत पाने के भावुक अपील कराने की बात सामने आई है। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत डीप फेक का प्रयोग कर ऐसे चुनावी मुखौटों को भी तैयार किया जा सकता है जिससे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को प्रभावित किया जा सके। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के चुनाव में डीप फेक टेक्नोलॉजी का प्रयोग राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को बदनाम करने के लिए किया जा चुका है। इसकी सम्भावनाओं की अनदेखी भारत में नहीं की जा सकती। ऐसे में भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों का यह दायित्व है कि इस मुद्दे को संवेदनशीलता के साथ लिया जाए, ठीक वैसे ही जैसे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट, चुनावी प्रचार प्रसार में आवश्यकता से अधिक धन व्यय करना, मतदाताओं को रिझाने के लिए भ्रष्ट उपायों को रोकने के संदर्भ में किया जाता है। वस्तुतः भारत में चुनाव एक पर्व है जिसमें जन सम्प्रभुता का दीपप्रज्ज्वलित होता है। भारत में अहिंसक तरीके से इतनी बड़ी जनसंख्या के बीच चुनावों का शांतिपूर्ण तरीके से आयोजन दुनिया की किसी भी बड़ी उपलब्धि से आगे की स्थिति है। भारतीय मतदाताओं का यह दायित्व है कि वे इस लोकतांत्रिक यात्रा को उसके गंतव्य तक पहुंचने में अपना योगदान करते रहें। चुनावी नारों, वादों की सीमितता को समझते रहें और सबसे अधिक आवश्यक कि योग्य, कर्मठ और कुछ बेहतर काम करने वाले उम्मीदवारों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से ज्यादा महत्व दें।

                                                                                                                                                                                            विवेक ओझा 

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