इस बार के चुनाव में यदि भाजपा दक्षिण भारत में उम्मीद से अधिक सीटें जीत जाए तो आश्चर्य मत कीजिएगा क्योंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनता का विश्वास भाजपा पर बढ़ा है। प्रांत, भाषा और अलगाववाद की राजनीति करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों ने राष्ट्र-धर्म और हिंदुत्व का विरोध कर अपने पतन का मार्ग खुद चुना है।
दस वर्ष पूर्व, उत्तरी भारत और शहरी पार्टी का खिताब पूर्व में भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी को दिया जाता था, परंतु एक दशक पूर्व जिस तरह से पिछड़ों, अगड़ों, दलित और महा दलितों के बीच में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जनहित की योजनाओं को लेकर पहुंची, उससे दशकों से चली आ रही धारणा देश की अन्य पार्टियों और मीडिया को भी बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा। आज जब भारतीय जनता पार्टी के जनाधार की बात की जाती है तो यह चर्चा अवश्य की जाती है कि भाजपा समाज के सभी समुदायों के साथ ही समग्र भारत में अपनी जड़ें जमाने के लिए रणनीतिक रूप से धरातल पर काम कर रही है।
भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ ही दक्षिणी राज्यों की राजनीति में उसका कोई विकल्प ही नहीं बन रहा था, परंतु अपवाद स्वरूप तमिलनाडु में 1967 से कांग्रेस को धरातल हीन करने में क्षेत्रीय पार्टियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्षेत्रीयता और भाषाई अस्तित्व की बात के सामने कांग्रेस की एकाधिकारी राजनीति को उखाड़ कर फेंक दिया। उसके बाद तो आंध्र प्रदेश और कर्नाटक तथा केरल की राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे ही सत्ता तक पहुंचने के लिए विवश होना पड़ा। तमिलनाडु में, द्रमुक और केरल में क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन जिसे संयुक्त प्रजातांत्रिक मोर्चा का नाम दिया गया है, में शामिल होकर मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के नेतृत्व वाली वाम प्रजातांत्रिक मोर्चा के विरुद्ध चुनाव लड़ती है। भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक जनाधार दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में लगभग नहीं के बराबर है। प्रधान मंत्री की लोकप्रियता तो है, लोग उन्हें सुनने भी आते हैं परंतु भाजपा के लिए पूरी तरह से मत के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाते हैं।
केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सांस्कृतिक गतिविधियां जनमानस में गहराई तक पहुंची हुई है परंतु ये भाजपा के लिए राजनीतिक सत्ता तक पहुंचाने का रास्ता नहीं बन पाई है। भाजपा अपने बलबूते पर इन राज्यों में राजनीतिक विकल्प बनने में सफल नहीं हो पाई है। लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी असम्भव नहीं है। भाजपा के बढ़ते जनाधार के कारण ही भारत के उत्तरी राज्यों और पूर्वी राज्यों में पिछले एक दशक से भाजपा को सत्तासीन होने का अवसर मिला है। अब भाजपा ने पिछले एक दशक से प्रधान मंत्री के नेतृत्व में तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में अपनी राजनीतिक जड़ों को मजबूत करना आरम्भ कर दिया है। इन तीनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने भाजपा के विरुद्ध उत्तरी और हिंदी भाषी पार्टी के विषबेल को पल्लवित किया था, उसकी कटाई और छंटाई का काम पिछले एक दशक से प्रधान मंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने आरम्भ कर दिया है। भाजपा ने 34 वर्षीय कर्नाटक कैडर के आईपीएस अन्नामलाई को तमिलनाडु राज्य का पार्टी प्रमुख बनाया, उसी समय से अन्नामलाई ने सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक के नेताओं के भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की राजनीति के विरुद्ध जनता को जागरुक करने के लिए 200 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में पद यात्रा की। आगामी लोकसभा चुनावों में दक्षिण भारत की 130 लोकसभा की सीटें हैं, उनमें 84 से अधिक सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का मुख्य फोकस है।
आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), भाजपा और जनसेना के बीच गठबंधन हो गया है, जिसमें 25 सीटों में से भाजपा 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसी तरह तेलगांना में भाजपा अकेले ही 17 में से लगभग आधे से अधिक सीटों पर लड़ेगी। कर्नाटक में 28 सीटों में से भाजपा 24 पर और जनता दल सेकुलर 4 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। 2019 के चुनाव में भाजपा को 25 सीटों पर विजय हासिल हुई थी, जबकि 1 पर भाजपा समर्थित निर्दलीय और 1 कांग्रेस और 1 जनता दल सेकुलर के खाते में आई थी।
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है उसने मतदाताओं को 5 गारंटी देने की घोषणा की थी जिसे लगभग लागू कर दिया गया है। 15 मार्च को कांग्रेस के मुख्य मंत्री सिद्दरामय्या ने गारंटी पूरी करने पर एक वृहद सम्मेलन का आयोजन भी किया। यह आयोजन पार्टी को विजय दिलाने से अधिक अपनी साख बचाने के लिए ही किया गया। इसका आयोजन मैसूर लोकसभा क्षेत्र में किया गया। इस गारंटी सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भाजपा के उम्मीदवार मैसूर के राजा युदुवीर वाडियार के विरुद्ध ही किया गया। इसी लोकसभा क्षेत्र के वरुणा विधानसभा क्षेत्र से सिद्दरामय्या चुने गए हैं। दरअसल पिछले चुनाव में वरुणा क्षेत्र से सिद्दरामय्या का पुत्र चुना गया था। सिद्दरामय्या इस क्षेत्र से अपने पुत्र को मैदान में उतारना चाहते हैं। वैसे राजनीतिक क्षेत्रों में गौड़ा बाहुल्य मैसूर लोकसभा क्षेत्र को पार्टी की नजर में राहुल गांधी के लिए वैकल्पिक क्षेत्र के रूप में भी माना जाता है।
भारत के दक्षिणी राज्यों में भाजपा को किस प्रकार से अधिक सीटें मिले और उन राज्यों में जहां अभी तक भाजपा का खाता भी नहीं खुला है वहां प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को भेजा गया है जो केंद्र सरकार की जनहित से जुड़ी योजनाओं की जानकारियों को हर घर तक पहुंचाएं। तेलंगाना में भाजपा की उपस्थिति तो है परंतु तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में अभी भाजपा का खाता खुलना बाकी है, यद्यपि पिछले दो बार की चुनावों में भाजपा की मत प्रतिशत दहाई के आंकड़ें तक तो पहुंच गई है लेकिन विधानसभा और लोकसभा में सीटों में परिवर्तित नहीं कर पाई है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल भाजपा के सामने यह चुनौती है। कर्नाटक के अतिरिक्त चार अन्य राज्यों में भाजपा अपनी जड़ें जमाने के लिए मजबूती से काम कर रही है।
भारत के दक्षिणी राज्यों में भाजपा अभी कांग्रेस शासित कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटों में से 22 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है, जबकि केरल में पार्टी को 3 सीटें मिल सकती हैं। तमिलनाडु और तेलंगाना में उसे क्रमश: 4 और 5 सीटें मिल सकती हैं तथा आंध्र प्रदेश में गठबंधन होने के बाद भाजपा को लगभग 6 सीटें मिलने का अनुमान है।
आंध्र प्रदेश में भाजपा तेलगूदेशम और जनसेना के गठबंधन के बाद तेलगुदेशम प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि राज्य में वाईएसआर कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया होगा। ज्ञात हो कि यहां राज्य विधान सभा और लोकसभा दोनों के चुनाव एक साथ ही होने हैं। गठबंधन में भाजपा को विधानसभा के 30 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है।
उन्होंने कहा कि हमें आशा है कि हमारा गठबंधन आंध्र प्रदेश के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा और तेदेपा (तेलुगू देशम पार्टी) का रिश्ता बहुत पुराना है। तेदेपा 1996 में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में शामिल हो गई और अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकारों में सफलतापूर्वक साथ काम किया।
175 सीटों वाली आंध्र प्रदेश विधानसभा में टीडीपी 145 सीटों और भाजपा तथा जनसेना बाकी 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की बड़ी जीत और 2023 के विधानसभा चुनावों में हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की जीत ने लोकसभा चुनावों से पहले तथाकथित उत्तर-दक्षिण राजनीतिक विभाजन की चर्चा को जन्म दिया है। यह धारणा भाजपा विरोधियों के हताशा को पैदा करती है। कर्नाटक के उप मुख्य मंत्री डी. के. शिवकुमार के भाई सांसद डी. के. शिवकुमार द्वारा यह कहा जाना कि हम दक्षिणी राज्यों के लोग भारत से अलग एक देश के निर्माण पर विचार करेंगे तथा कर्नाटक कांग्रेस के ही बड़े नेता बी. के. हरिप्रसाद द्वारा उच्च सदन में यह बयान देना कि ‘पाकिस्तान हमारे लिए शत्रु राष्ट्र नहीं है यह तो भाजपा के लिए ही शत्रु राष्ट्र है’, को राज्य की जनता ने काफी विरोध किया परंतु इन्हीं बयानों पर राज्य में भाजपा द्वारा मामले को जनता तक पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिए था लेकिन नहीं किया गया।
अयोध्या धाम में श्री रामलला के मंदिर निर्माण की लहर दक्षिणी राज्यों में भी देखी जा सकती है। तमिलनाडु में जिस तरह से हिंदू त्योहारों को लेकर सरकार की ओर से प्रतिबंध लगाने की कोशिश हो रही है उसका प्रतिरोध वहां के राज्याध्यक्ष अन्नामलाई द्वारा जमीनी स्तर पर किया जा रहा है। सरकार के विरुद्ध कानूनी लड़ाई के अतिरिक्त जनता की अदालत में सरकार द्वारा हिंदुओं के विरोध में किए जा रहे कार्यवाहियों को पहुंचाए जाने का काम किया जा रहा है।
दक्षिण राज्यों की 130 लोकसभा सीटें जहां भाजपा विरोधी खेमें के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं भाजपा को अपनी 370 पार और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के लिए 400 पार को पूरा करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।