मध्य भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भाजपा अन्य दलों की अपेक्षा बहुत ही मजबूत स्थिति में है। इस बार भाजपा क्लीन स्वीप करने के लिए अपना पूरा जोर लगा रही है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को कांगे्रस के साथ-साथ नक्सली समर्थक तथा वनवासी क्षेत्रों में मिशनरीज के साथ दो-दो हाथ करना पड़ सकता है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता शीर्ष पर है। उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में अपनी पिछली जीत के आकड़े को पीछे छोड़ सकती है। भाजपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्य की अधिकतम सीट जीतने का कीर्तिमान भी बना सकती है।
अठारहवीं लोकसभा के लिए इस बार के चुनाव साधारण नहीं है। अपेक्षाकृत अधिक तीखा और आक्रामक संघर्ष होने वाला है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी और उसके एनडीए गठबंधन के सहयोगी दल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ विकास के मुद्दे को आगे करके मैदान में हैं तो विपक्ष में कांग्रेस और इंडी गठबंधन के उनके सहयोगी जातिवाद, महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे उठाकर देश में आई सांस्कृतिक चेतना की बयार में सेंध लगाने के प्रयास में हैं।
तीनों प्रांतों में लोकसभा की कुल 54 सीटें हैं। वर्ष 2019 में भाजपा ने इनमें से 48 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। यदि झारखंड में एनडीए गठबंधन की सहयोगी आजसू की एक सीट भी जोड़ लें तो यह आकड़ा 49 होता है। तब भाजपा ने मध्य प्रदेश की 29 में से 28, छत्तीसगढ में 11 में से 9 और झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें जीती थीं, जबकि इन तीनों प्रांतों में कांग्रेस के पास मध्य प्रदेश में एक, छत्तीसगढ़ में दो और झारखंड में एक सीट मिलाकर कुल चार सीटें ही थीं। अब भाजपा 2024 के इन तीनों प्रांतों की सभी 54 सीट जीतने का लक्ष्य लेकर मैदान में हैं। भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि झारखंड में दो सीट अपने सहयोगी दल के लिए भी छोड़ी है।
दूसरी ओर मध्य प्रदेश में कांग्रेस 29 में से 28 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और एक सीट समाजवादी पार्टी को देने जा रही है। छत्तीसगढ़ की सभी ग्यारह और झारखंड में पांच सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है। शेष नौ सीट सहयोगी दलों के लिए छोड़ रही है।
इन तीनों राज्यों में भाजपा की रणनीति कांग्रेस और इंडी गठबंधन से अपेक्षाकृत अधिक मजबूत स्थिति में है। अपने उम्मीदवार तय करने मे भाजपा ने विविधता का फार्मूला अपनाया है। जिनमें युवा भी हो और अनुभवी भी। भाजपा ने विधायकों को भी उतारा है और राज्यसभा सदस्यों को भी। प्रभावशाली चेहरों का चयन कुछ ऐसी सीटों पर किया गया है कि वे अपने क्षेत्र के साथ आसपास की सीटों पर भी प्रभाव डाल सकें।
यदि भाजपा कार्यकर्ता ने एकजुट होकर मतदान प्रतिशत बढ़ाया तो हर सीट पर जीत का अंतर एक लाख से अधिक हो सकता है। हालांकि सागर, दमोह और झाबुआ जैसी सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में कुछ असहजता अवश्य है, लेकिन यदि संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करके सक्रिय कर दिया तो कोई समस्या नहीं होगी। मध्य भारत क्षेत्र में भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, जैसी सीट पर भाजपा का जनाधार मजबूत है लेकिन यहां जातिगत स्पर्धा मध्य प्रदेश के अन्य भागों की तुलना में अधिक है। कांग्रेस इसी पर जोर दे रही है। राहुल गांधी ने अपनी न्याय यात्रा के दौरान इस क्षेत्र में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर जातिवाद की चर्चा अधिक की। भाजपा की रणनीति सामाजिक समरसता की है। चार महीने पहले सम्पन्न विधान सभा चुनाव में इस क्षेत्र की कुछ सीटों पर भाजपा को जातिगत समीकरण और उम्मीदवार के चेहरे के कारण कुछ नुकसान उठाना पड़ा था। मुरैना और ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस को भले विधानसभा सीटें कम मिलीं हों पर वोट प्रतिशत से उत्साहित हैं, इसलिए कांग्रेस मुरैना ग्वालियर भिंड और गुना इन चारों सीटों पर अधिक ताकत लगा रही है।
भाजपा ने मुरैना और ग्वालियर में जीत की जिम्मेदारी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपी है तो गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतारा है। विदिशा से पूर्व मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान को मैदान में उतारा है। उनकी उपस्थिति विदिशा क्षेत्र में प्रभावशाली है ही साथ ही सागर और नर्मदापुरम् सीट पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। इन क्षेत्रों का वातावरण एकतरफा जैसा है। भाजपा ने यदि मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर ध्यान दिया तो यहां कोई समस्या नहीं होगी।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 58 प्रतिशत वोट लेकर कीर्तिमान बनाया था और जीती गई 28 में से 26 सीटें एक लाख से अधिक अंतर से जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने एकमात्र छिंदवाड़ा सीट केवल चौतीस हजार के अंतर से जीती थी।
छत्तीसगढ़ की कुल ग्यारह में से भाजपा के पास नौ सीटें हैं। कांग्रेस के पास बस्तर और कांकेर दो सीटें हैं। इस बार भाजपा ने सभी ग्यारह सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाया है। इसके लिए भाजपा ने अपने चार सांसदों का टिकिट बदल दिया है। प्रत्याशियों के चयन क्षेत्र के प्रभाव और जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा को कांग्रेस के अतिरिक्त नक्सली समर्थक मानसिकता से भी मुकाबला करना है। नक्सली तत्व भय का कुछ ऐसा वातावरण बना रहे हैं जिससे भाजपा कार्यकर्ता विशेषकर बस्तर और कांकेर क्षेत्र में अधिक काम न कर सकें। यह भी माना जाता है कि छत्तीसगढ़ के वनक्षेत्र में सक्रिय मिशनरीज का मन मानस भी भाजपा के अनुकूल नहीं है। फिर भी भाजपा अपनी नौ सीटों को यथावत रखते हुए बस्तर और कांकेर पर ताकत लगा रही है।
झारखण्ड का चुनावी वातावरण मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से थोड़ा अलग है। इसके दो कारण हैं, एक तो यहां भाजपा और कांग्रेस के अतिरिक्त चार प्रभावशाली क्षेत्रीय दल भी हैं। दूसरा लगभग हर पार्टी से कुछ नेता भाजपा में शामिल हुए हैं, इनमें सभी स्तर के राजनेता हैं। इस परिस्थिति के चलते यहां मतदाताओं में तो भाजपा का प्रभाव बढ़ा है पर कार्यकर्ताओं में कुछ असहजता देखी जा रही है।
झारखण्ड में गठबंधन की तस्वीर उभरी है उसमें भाजपा और आजसू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो कांग्रेस के साथ जेएमएम, आरजेडी का गठबंधन है। प्रांत की चौदह सीटों में बारह पर भाजपा चुनाव लड़ रही है और दो सीटें आजसू को दी हैं। वहीं कांग्रेस पांच सीटों पर और शेष सीटें सहयोगी दलों को दे रही है। प्रधान मंत्री की सभाओं का एनडीए के पक्ष में प्रभाव बहुत स्पष्ट दिख रहा है। यदि भाजपा कार्यकर्ताओं ने मतदान का प्रतिशत बढ़ा लिया तो एनडीए 14 में से 13 सीटें जीत सकती है।