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कृष्णदेव राय और विजयनगर साम्राज्य

कृष्णदेव राय और विजयनगर साम्राज्य

by वेणुगोपालन
in अगस्त-२०२३, ट्रेंडींग, विशेष, व्यक्तित्व, सामाजिक, साहित्य
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हम्पी के खंडहरों को देखकर ही गौरवशाली विजयनगर साम्राज्य की भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस्लामी आक्रमणकारी आंधी को रोक कर इस शक्तिशाली साम्राज्य को एक दुर्ग की भांति सुरक्षित रखने में महाप्रतापी राजा कृष्णदेव राय का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कर्नाटक के प्रसिद्ध स्थलों और साम्राज्यों के सन्दर्भ में जब भी चर्चा होगी तो उसमें प्रमुख रूप से विजयनगर साम्राज्य का उल्लेख करना अनिवार्य ही होता है। विजयनगर साम्राज्य का विस्तार वर्तमान के कर्नाटक के उत्तरी और आन्ध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के दक्खिनी क्षेत्र तक माना जाता है। विजय नगर साम्राज्य के शासकों की संख्या काफी है, उसमें भी देवराय के शासनकाल को तीन देवराय में देखा जा सकता है। इन तीनों देवरायों में कृष्णदेव राय (आर. 1509-1529 सी.ई.) के शासन के सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यपद्धतियों को आज भी यदि व्यावहारिक रूप से सरकारें उनका पालन करें तो राज्य के नागरिकों में सामाजिक समरसता और देश की सार्वभौमिकता सहित राष्ट्रीयता की भावना प्रगाढ़ होती जाएगी।

कृष्णदेव राय ने अपने राज्य के कोष को केवल सामरिक शक्ति बढ़ाने, मंदिरों के निर्माण और धार्मिक समारोहों पर ही नहीं व्यय किए जाते थे, विद्वानों और उनके परिवार के भरण पोषण तथा शैक्षिक गतिविधियों के विस्तार के लिए भी करते थे।

कृष्णदेव राय का शासनकाल विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में प्रमुख माना जाता है। सम्राट कृष्णदेव राय को कन्नड़ में कन्नड राज्य रमारमण और तेलुगू में मुरूरायरगंडा (तीन राज्यों का राजा) उन्हें आंध्र भोज की उपाधि भी दी गई थी। विजयनगर साम्राज्य के विस्तार में कृष्णदेव राय ने अपनी विशाल सेना का उपयोग कुशल सामरिक रणनीतिक रूप से किया। कृष्णदेव राय एक प्रतिभाशाली सेनापति और राजनयिक होने के साथ-साथ वास्तुकार और नगर योजनाकार भी साबित हुए। उन्होंने हिंदू देवताओं की पूजा के लिए एक पवित्र स्थल के साथ-साथ अपने विशाल साम्राज्य के प्रशासनिक केंद्र के रूप में विजयनगरम के शानदार शहर का निर्माण किया। हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। हम्पी उत्तरी कर्नाटक में स्थित एक शहर है। हम्पी हिंदू और जैन धर्मों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।

कृष्णदेव राय का बचपन सैनिकों के बीच ही बीता था, उनकी माता नागला देवी तुलुवा थीं जो नरसा नायक की पत्नी थीं। उनके पिता नायक सालुवा नरसिम्हा देव राय की सेना में कमांडर थे, सेना के कमाण्डर के यहां के वातावरण ने कृष्णदेव राय के मन मस्तिष्क में अपनी मातृभूमि और राज्य की सुरक्षा के प्रति भावना को गहराई तक उतार दिया था, यही कारण था कि जब साम्राज्य को विघटित करने की कोशिश हुई तो उन्होंने उसे संरक्षित करने के लिए उस पर नियंत्रण कर लिया।

राज्याभिषेक के बाद से ही कृष्णदेव राय को युद्ध करना पड़ रहा था, वे नरसिम्हा देव राय के शासन के बाद से लगातार युद्ध कर रहे थे। कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक भगवान कृष्ण के जन्मदिन पर हुआ था और पहला शिलालेख 26 जुलाई, 1509 ई. का है। कृष्णदेव राय के प्रधान मंत्री तिम्मारुसु थे, वे चतुर रणनीतिकार थे, कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक के साथ ही उन्होंने विजयनगर साम्राज्य के प्रशासन में सलाह देकर सहायता करते थे। कृष्णदेवराय तिम्मारुसु को पितातुल्य मानते थे।

कृष्णदेव राय की जीवनशैली के सम्बंध में कहते हैैं कि वे विलासता से दूर एक सैनिक की भांति राज्य के सुदृढ़ भविष्य के लिए ही सदा तत्पर रहते थे। उनके और उनके शासन के बारे में शिलालेखों के साथ-साथ विदेशी यात्रियों के लेखों से जानकारी मिलती है। उनके शारीरिक सौष्ठव, उनके प्रसन्नचित स्वभाव के साथ ही वे अपने यहां आने वाले विदेशी आगंतुकों का सम्मान करने वाले तथा कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए क्रूर भी बन जाते थे।

कृष्णदेव राय ने विजयनगर के इतिहास में एक सफल युग का शासन माना जाता है। ऐसा देखा गया है कि उन्हें शासन के प्रारंभिक 10 वर्ष दुश्मनों को परास्त करने में काफी रक्तरंजित युद्ध करना पड़ा। पांच बहमनी सुल्तान छोटे राज्यों में विभाजित होने पर भी वे महाराजा कृष्णदेव राय के साम्राज्य के लिए लगातार खतरा बने रहे।

दो शताब्दियों में विजयनगर साम्राज्य ने पूरे दक्षिणी भारत पर प्रभुत्व जमा लिया और संभवतः भारतीय उपमहाद्वीप में किसी भी अन्य शक्ति से अधिक मजबूत था। विजयनगर साम्राज्य, कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया था। कृष्णदेव राय ने दक्कन के पूर्व में उन प्रदेशों को जीत लिया या अपने अधीन कर लिया जो पहले उड़ीसा के थे। साम्राज्य के कई महान स्मारक उसी समय के हैं। इनमें विजयनगर में हजारा राम मंदिर, कृष्ण मंदिर और उग्र नरसिम्हा मूर्ति शामिल हैं। उनके बाद 1530 में अच्युत राय बने। 1542 में, अच्युत का उत्तराधिकारी सदा शिव राय बने।

हम्पी विजयनगर का दूसरा नाम था। यह नाम स्थानीय देवी पम्पादेवी से लिया गया। हम्पी के खंडहरों की खोज 1800 ई. में एक इंजीनियर और पुरातत्वविद् कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने की थी। दरअसल, कॉलिन मैकेंजी इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी थे। विजयनगर का प्रसिद्ध हजारा मंदिर कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान बनाया गया था।

कालान्तर में विजयनगर दक्षिणी भारत का सबसे महान साम्राज्य बन गया। उत्तर की मुस्लिम सल्तनतों के आक्रमण के खिलाफ एक बाधा के रूप में कार्य करके, इसने 12वीं और 13वीं शताब्दी की अव्यवस्थाओं और असमानताओं के बाद हिंदू जीवनशैली और प्रशासन के पुनर्निर्माण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1564 तक पांच में से कम से कम चार सुल्तानों (बहमनी) ने विजयनगर पर अपना आक्रमण शुरू कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप 1565 में तालीकोटा की लड़ाई में, मुस्लिम सल्तनतों के एक गठबंधन ने विजयनगर साम्राज्य के साथ युद्ध किया। उन्होंने राजा आलिया राम राय को पकड़ लिया और उनका सिर काट दिया, जिसके बाद हम्पी और महानगरीय विजयनगर के बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया गया।

कर्नाटक के विजयनगर जिले में स्थित इस प्राचीन शहर की संस्कृति और विरासत की याद में हर साल हम्पी उत्सव मनाया जाता है। हम्पी उत्सव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा आयोजित, इसे विजय उत्सव भी कहा जाता है।

यह यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल हम्पी स्मारक समूह बनाया गया है। हम्पी का उल्लेख अशोक के पुरालेख, रामायण और हिंदू धर्म के पुराणों जैसे ग्रंथों में पम्पा देवी तीर्थ क्षेत्र के रूप में किया गया है। हम्पी 14वीं शताब्दी में हिंदू विजयनगर साम्राज्य की राजधानी विजयनारा का एक हिस्सा था। विजयनगर को आज कई लोग विशेषकर आंध्र प्रदेश राज्य में संस्कृति और शिक्षा का स्वर्ण युग मानते हैं।

 

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