हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
रंज लीडर को बहुत है मगर …….

रंज लीडर को बहुत है मगर …….

by विजय कुमार
in जून २०१६, साहित्य
0

किसी राजनीतिक विश्लेषक ने कहा है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है; पर काफी समय से कांग्रेस के लिए लखनऊ के ही रास्ते बंद हैं। ऐसे में अपने बलबूते पर वह दिल्ली कैसे पहुंचे? जीवन-मरण जैसा यह बड़ा प्रश्न मैडम जी के सामने है। वे कई साल से कोशिश में हैं कि राहुल बाबा थोड़ा संभल जाएं और कुछ समझ जाएं; पर जो समझ जाए, वह पप्पू कैसा?

दिल्ली के चुनाव से कांग्रेस को बहुत उम्मीदें तो नहीं थीं। सोचा था कि चार-छह सीट भी आ गईं, तो चाय-पानी का जुगाड़ हो जाएगा; पर वहां मिला ‘निल बटे सन्नाटा’। राहुल बाबा ने फिर भी यह कहते हुए पटाखे फोड़े कि हमारी दोनों आंख फूटीं तो क्या हुआ, मोदी की भी तो एक आंख चली गई।
बिहार में भी नीतीश और लालू ने मिल कर मोदी को भारी झटका दिया। जैसे शेर अपने शिकार में से मोटा हिस्सा खाकर बाकी दूसरों के लिए छोड़ देता है ऐसी ही कुछ जूठन वहां कांग्रेस को भी मिल गई। राहुल बाबा के लिए खुश होने का यह दूसरा मौका था।
मैडम जी ने सिर पीट लिया। क्या होगा इस पप्पू का? उम्र चढ़ती जा रही है, पर बुद्धि अभी घुटनों से आगे नहीं बढ़ी। दुखी होकर वे कुछ दिन के लिए इलाज के नाम पर न जाने कहां चली गईं। सोचा इस बहाने असली मार्गदर्शकों से सलाह भी हो जाएगी।

लेकिन बिहार के चुनाव में लालू और नीतीश से भी अधिक वाहवाही प्रशांत किशोर यानि पी.के. की हुई। लोकसभा चुनाव में वे मोदी के साथ थे; पर फिर कुछ खटास हो गई। यह देख कर नीतीश कुमार ने उनकी सेवाएं खरीद लीं। और इसका परिणाम भी अच्छा ही रहा।

लोगों ने मैडम जी को कहा कि २०१७ में उ.प्र. में विधान सभा के चुनाव हैं। यदि वहां लाज बचानी है, तो पी.के. से बात करेंं। बिहार के बाद वे खाली भी हैं। मैडम जी को बात जंच गई। यद्यपि उसके रेट अब बहुत हाई-फाई हो चुके थे; लेकिन पैसे की कमी तो कांग्रेस को कभी रही ही नहीं। यहां नहीं, तो बाहर से मंगा लेंगे। कई किश्तों में पी.के. से मोलभाव हुआ। अंतत: उसने आधा पैसा एडवांस लेकर ‘हां’ कह दी।

उसकी हां सुनकर उ.प्र. के कांग्रेसियों को ऐसा लगा, जैसे ३५ वर्षीय कन्या के लिए किसी लड़के ने हां कह दी हो। बस, अब इंतजार की घड़ियां समाप्त हुईं। एक साल की ही तो बात है। फिर उ.प्र में हमारी ही सरकार होगी। वे अभी से खुशी मनाने लगे। कुछ लोगों ने तो अपने मुंह के नाप के रसगुल्लों का आर्डर भी दे दिया।

खैर साहब, पी.के. बाबू लखनऊ पहुंचे। उन्होंने सोचा था कि हवाई अड्डे पर कांग्रेसी उमड़ पड़ेंगे; पर वहां तो मैदान साफ था। कुछ देर बाद छड़ी टेकते हुए कांग्रेस कार्यालय के स्वागताध्यक्ष जी प्रकट हुए। वे पी.के. बाबू को ऑटो में बैठा कर कार्यालय ले गए।

दो-तीन दिन पी.के. बाबू वहीं रहे। कई लोगों से मिले। इससे उन्हें ध्यान में आ गया कि यहां की परिस्थिति दिल्ली या बिहार से अलग है। केजरीवाल और नीतीश कुमार के कारण वहां पार्टी में उत्साह था; पर यहां तो पार्टी के नाम पर उजाड़ कार्यालय और पुराना फर्नीचर ही है। नेता के नाम पर वे टूटे चमचे हैं, जो महीने में एक बार दिल्ली जाकर ‘गांधी द्वार’ पर सिर झुका आते हैं। जैसे सरकारी अस्पताल में पड़े मरीज के रिश्तेदार चाहते हैं कि उसे दवा अस्पताल वाले दें; पर अस्पताल वाले चाहते हैं कि दवा मरीज के रिश्तेदार ले आएं। यही हाल उ.प्र. में कांग्रेस का था।

यह देखकर पी.के. ने कह दिया कि जब तक उ.प्र. के सभी बड़े नेता विधान सभा के लिए खड़े नहीं होंगे, तब तक पार्टी खड़ी नहीं हो सकती। यह सुन कर बड़े नेताओं को सांप सूंघ गया। लोकसभा में तो इस बार मां-बेटे के अलावा कोई पहुंचा ही नहीं। इसका मतलब है हमें अपनी इज्जत फिर से दांव पर लगानी पड़ेगी? लोकसभा में हार के गम से तो जैसे-तैसे उबरे हैं। अब विधानसभा में भी यही हाल हुआ, तो..?

पी.के. बाबू के जाने के बाद ऐसे ‘यूज बल्ब’ अलग से बैठे। उन्हें लगा कि कल का यह लड़का, जिसने खुद कोई चुनाव नहीं लड़ा, हम सबके कपड़े उतरवाने पर तुला है। इसका कोई इलाज करना पड़ेगा। लम्बे विचार-विमर्श के बाद वे सब पी.के. से मिले और कहा कि यदि कांग्रेस किसी राष्ट्रीय नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करे, तो हम भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं।
यह बात पी.के. को भी जंच गई; पर कांग्रेस में राष्ट्रीय, अराष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय के नाम पर बस तीन ही लोग हैं। मैडम, राहुल बाबा और प्रियंका। मैडम प्रधान मंत्री पद के लिए अपना नाम बढ़ा कर एक बार ठोकर खा चुकी थीं। प्रियंका ने कहा कि अभी मेरा समय नहीं आया है। अब बचे राहुल; उन पर मैडम, दीदी और जीजाश्री तीनों को ही भरोसा नहीं था। पता नहीं कब वे घूमने-फिरने बाहर चले जाएं; लेकिन कोई निर्णय तो लेना ही था।

अत: पी.के. ने राहुल बाबा से मिलने का निश्चय किया। जैसे-तैसे आठ दिन बाद वे मिल सके। मुख्यमंत्री पद की बात सुनते ही बाबा भड़क गए। उन्होंने साफ कह दिया कि वे खानदानी प्रधान मंत्री हैं। कभी बैठे, तो वे उस कुर्सी पर ही बैठेंगे। मुख्यमंत्री को प्राय: प्रधान मंत्री से मिलने जाना पड़ता है। राज्य में आने पर उनका स्वागत भी करना होता है। क्या वे छोटी जाति के एक गरीब चाय बेचने वाले की अगवानी करेंगे..? नहीं, कभी नहीं।

लेकिन पी.के. ने हिम्मत नहीं हारी। अब उन्होंने मैडम को समझाया कि यदि राहुल बाबा २०१७ में मुख्यमंत्री बन गए, तो उनकी धाक जम जाएगी। वरना २०१९ की ‘दिल्ली दौड़’ में नीतीश और केजरीवाल उनसे आगे निकल जाएंगे। फिर राहुल बाबा जीवन भर ‘इंतजार’ को ही ओढ़ते और बिछाते रहेंगे, बस..।

मैडम जी को पसीना आ गया। राहुल को दूल्हा देखने की इच्छा तो पूरी नहीं हुई, क्या प्रधान मंत्री बनने का सपना भी अधूरा ही रहेगा; क्या उन्हें अब विपक्ष में ही एड़ियां रगड़नी होंगी; क्या वे राजमाता नहीं बन सकेंगी?

अगले ही दिन उन्होंने राहुल को बुला कर आदेश जारी कर दिया। चाहे जो हो, पर इस बार तुम्हें मैदान संभालना ही होगा। राहुल बाबा बहुत रोये; पर मैडम नहीं पिघलीं। उन्होंने साफ कह दिया कि जैसा पी.के. कहते हैं, वैसा करो। वरना मैं प्रियंका को उत्तराधिकारी बना दूंगी। फिर कांग्रेस पार्टी ही नहीं, मेरी सारी सम्पत्ति भी उसी की होगी। इसके बाद तुम जानो और तुम्हारा जाने काम।

इस धमकी के आगे राहुल बाबा झुक गए। राजनीति तो उनकी मजबूरी ठहरी; पर देश-विदेश में फैली अथाह सम्पत्ति का मोह वे नहीं छोड़ सकते थे। अत: उन्होंने पी.के. को बुला भेजा।

पी.के. ने सारी योजना बना ही रखी थी। बाबा शताब्दी गाड़ी से दिल्ली से चलेंगे। यह गाड़ी दिन में बारह बजे लखनऊ पहुंचती है। रेलवे स्टेशन से कांग्रेस कार्यालय तक भव्य शोभायात्रा निकलेगी। शाम को एक विशाल जनसभा में मैडम जी अपने इस ‘कोहिनूर हीरे’ को उ.प्र. की गरीब जनता की सेवा के लिए समर्पित करेंगी। रात को टी.वी. चैनलों पर और अगले दिन अखबारों में बस राहुल बाबा ही छाए होंगे। शुरुआत अच्छी हो गई, तो बाकी काम आसान हो जाएगा। उन्होंने बाबा से इसके लिए शीघ्र समय निकालने को कहा।

बाबा ने पूछा – शोभायात्रा में तो तीन-चार घंटे लग जाएंगे।

– हां, इतना समय तो लगेगा ही।
– पर जून-जुलाई में तो बहुत गरमी पड़ती है। मैं इतनी गरमी नहीं सह सकता।
– तो फिर अगस्त में रख लें?
– नहीं, अगस्त-सितम्बर में वर्षा का खतरा रहता है। शोभायात्रा के बीच में ही वर्षा हो गई तो..?
– लेकिन अक्तूबर में तो बहुत देर हो जाएगी। चुनाव का कोई भरोसा नहीं। जनवरी या फरवरी, कभी भी हो सकते हैं।
– अक्तूबर-नवम्बर में तो मैं भारत में हूं ही नहीं। ऐसा करो, तुम यह कार्यक्रम दिसम्बर में रख लो।

पी.के. ने अपना सिर पकड़ लिया। कांग्रेस की दुर्दशा का कारण वे समझ गए। उन्हें अकबर इलाहबादी का शेर याद आया।
कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है, मगर आराम के साथ॥

मो. ९७१८१११७४७

Tags: bibliophilebookbook loverbookwormboolshindi vivekhindi vivek magazinepoemspoetpoetrystorieswriter

विजय कुमार

Next Post
छुटकू आए तो मां मुस्कुराए

छुटकू आए तो मां मुस्कुराए

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0