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मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या और डेमोग्राफिक चेंज

मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या और डेमोग्राफिक चेंज

by रमण रावल
in आर्थिक, जीवन, जून २०२४, ट्रेंडींग, देश-विदेश, विशेष, सामाजिक
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विगत कई दशकों से हिंदुओं की घटती और मुस्लिमों की बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर चर्चा होती रही है। इसके दुष्परिणाम स्वरूप डेमोग्राफिक चेंज की तस्वीर देशभर में सामने आ रही है। यदि शीघ्रातिशीघ्र प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं किया गया, तो देश की सारी व्यवस्थाएं चरमरा जाएंगी।

यह विषय इस अर्थ में विचारणीय है कि समूची दुनिया में कोई एक बात इतनी एकसमान कैसे हो सकती है कि मुस्लिम जनसंख्या तो बढ़ रही है और जिस भी देश में जो बहुसंख्यक वर्ग है, उसकी कम हो रही है। यह अनदेखी करने वाला मुद्दा नहीं है, बल्कि समग्र दुनिया को इस पर साझा चिंतन करना चाहिए।

दरअसल भारत के प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जनसंख्या को लेकर किए गए अध्ययन के निष्कर्ष सामने आए हैं। जिसमें बताया गया है कि सन 1950 से 2015 इन 65 वर्षों के दौरान भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या में 7.82 प्रतिशत की कमी आई, जबकि मुस्लिम जनसंख्या 43.15 प्रतिशत बढ़ी है। यह अंतर बेहद चिंताजनक है।

दुनिया भर के विद्वानों का मानना है कि तय सीमा से अधिक जनसंख्या में बढ़ोत्तरी दुनिया के वर्तमान पारिस्थतिकीय संतुलन को तो डांवाडोल करता ही है, यह भविष्य के अनुमानों और सम्भावनाओं का भी बंटाधार करता है। आखिरकार इस धरती का आकार-प्रकार सुनिश्चित है। यहां की प्राकृतिक सम्पदा सीमित है। मनुष्य की आवश्यकता लायक खाद्यान्न, प्राणवायु, जल की उपलब्धता मर्यादित है। इसे रबर की तरह खींचकर असीमित नहीं किया जा सकता। इस मामले में दो बातों पर गम्भीरता पूर्वक विचार

बेहद सामयिक हो चला है। पहला तो यह कि भारत जैसे देश में जनसंख्या विस्फोट कैसे और क्यों हुआ? दूसरा, अब कैसे इसे नियंत्रित किया जा सकता है?

देश जब धार्मिक आधार पर 1947 में स्वतंत्र हुआ, तब मुस्लिम पाकिस्तान में और हिंदू भारत में रहना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका और आज यह कहा जा सकता है कि ऐसा जान-बूझकर किया गया। पाकिस्तान में तो मुस्लिमों की अधिसंख्य जनसंख्या रही और नाममात्र की हिंदू जनसंख्या को दिखावे के तौर पर अपनी शर्तों पर रखा गया, जिन पर अत्याचार किए जाते रहेें, यह एक अलग ही मसला है। भारत में मुस्लिमों को खास तौर से रोका गया और उन्हें विशेषाधिकार दिए गए, पूरा मान-सम्मान दिया गया। तब के राजनेताओं ने भविष्य की सम्भावनाओं की दृष्टि से अपने वोट बैंक के जमा पक्ष को सुदृढ़ बनाने के लिए ऐसा किया। कहने में कोई संकोच नहीं कि ऐसा तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया। पाकिस्तान से हिंदुओं की लाशें भर-भरकर रेलगाड़ियां से आने का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि तत्कालिक लाभ तो उन्हें शांति का नोबल मिलने का लग रहा था और भविष्य के लाभ के तौर पर वे स्थायी मतदाता के रूप में उन्हें देख रहे थे। दूसरा लाभ तो उन्हें भरपल्ले मिला, लेकिन पहले लाभ से वे वंचित रहे।

अपने स्वार्थ के कारण नेहरू जैसे कांग्रेस नेताओं ने कालांतर में भी अनेक ऐसे निर्णय लिए, जो मुस्लिम तुष्टिकरण की अनोखी मिसाल पूरी दुनिया में मानी जाती है। इसमें उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देकर अनगिनत लाभ पहुंचाते रहे और उनके थोकबंद वोट पाकर सरकार में बने रहें। इसके लिए उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण जैसे आवश्यक मामले की भी अनदेखी की। परिणाम यह हुआ कि गरीब, कमजोर और शरणार्थी होकर भी मुस्लिम जनसंख्या तो अनियंत्रित ढंग से बढ़ती रही और शेष भारतीय समुदाय के लिए परिवार नियोजन की मुहिम ऐसे चलाई गई, जैसे यदि बहुसंख्यक समुदाय इसका पालन नहीं करेगा तो भारत में प्रलय आ जाएगा। 1975 में आपातकाल में चलाए गए जबरिया परिवार नियोजन की त्रासदी अभी तक भारतीय जनमानस में ताजा है। इसमें घरों से हिंदुओं को जबरिया ढंग से निकालकर अस्पताल ले जाकर नसबंदी के लिए ऑपरेशन किए गए। हद तो यह थी कि लक्ष्यपूर्ति के लिए अविवाहितों, बुजुर्गों तक की नसबंदी के अनेक प्रकरण बरसों गूंजते रहे। तब भी धार्मिक आधार पर मुस्लिमों को इस अभियान से दूर रखा गया।

कांग्रेस व अन्य मुस्लिम परस्त दलों का जब इससे भी मन नहीं भरा तो उन्होंने बांग्लादेश और म्यांमार से भगाए गए रोहिंग्याओं को भारत में अवैध रूप से बसाना प्रारम्भ कर दिया। आज स्थिति ये हैं कि पूर्व से उत्तर तक 9 राज्यों के 12 जिले तो पूरी तरह से मुस्लिम बहुल हो गए हैं। बिहार के किशनगंज संसदीय क्षेत्र और पश्चिम बंगाल का मुशिर्दाबाद जिला पूरी तरह मुस्लिम बहुल हो गया। बिहार व उत्तर प्रदेश की अनेक संसदीय व विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हो गईं, जिसे अपने पक्ष में रखने के लिए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, तेलंगाना की भारत विकास समिति ने मुस्लिमों के लिए अलग से ऐसे प्रावधान करने प्रारम्भ कर दिए, जो बहुसंख्यक समाज को उपलब्ध नहीं थे, बल्कि उनके हिस्से से कटौती कर दिए गए। कश्मीर में धारा 370, मुस्लिम पर्सनल लॉ, वक्फ बोर्ड को न्यायालयीन अधिकार ऐसे मामले रहे, जो भारत के विकास को किस तरह से प्रभावित किया, हमने देखा है।

इतने विशेषाधिकार दिए जाने के बावजूद मुस्लिमों में परिवार नियोजन की पहल कभी लागू ही नहीं की, लेकिन दूसरी ओर बहुसंख्यक समुदाय को प्रेरित, प्रभावित करते रहें। परिणाम यह हुआ कि हिंदू जनसंख्या में केवल एक या दो संतानों का चलन हो गया, जिसका परिणाम हिंदू जनसंख्या में चिंतनीय कमी और मुस्लिम जनसंख्या में हिमालयीन बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आया है।

एक अध्ययन में यह सामने आया है कि 123 देशों में वहां के बहुसंख्यक समुदाय की जनसंख्या तो कम हुई, लेकिन 44 देशों में जनसंख्या बढ़ी है। विसंगति देखिए कि मुस्लिम वर्ग में जितने गरीब, कमजोर, अपेक्षाकृत रूप से कम संसाधन व कमाई वाला वर्ग है, उसके बच्चे ज्यादा हैं। वहां 5 से 8 तक बच्चे सामान्य बात है।

इन हालात के परिप्रेक्ष्य में अब समय आ गया है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून को सख्ती से भी लागू करना पड़े तो सरकार को हिचकना नहीं चाहिए। समान नागरिकता कानून इसकी मजबूत कड़ी है, जिसे हम 2024 से 2029 के कार्यकाल में पूरा होते देख सकते हैं। बढ़ती जनसंख्या किसी भी सभ्य समाज के लिए अनुकूल, तर्कसंगत और व्यावहारिक नहीं है। यह प्रकृति में असंतुलन तो पैदा करता ही है, विकास में गतिरोध भी पैदा करता है। समाज में असंतोष को भी बढ़ाता है। नई सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि कैसे वह जनसंख्या नियंत्रण के लिए काम करे। साथ ही अवैध घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए भी उसे तैनात और कृत संकल्पित होना होगा।

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