पाकिस्तानी सरकार और सेना की प्रताड़ना एवं अन्याय से तंग आकर गुलाम जम्मू-कश्मीर के नागरिकों ने अपने आक्रामक आंदोलन से गदर मचा रखा है। दूसरी ओर मोदी सरकार के संकल्प से पाक डरा हुआ है। वहीं एस. जयशंकर और अमित शाह के बयान से भी अखंड भारत का संकल्प पूर्ण होने के संकेत मिलने लगे हैं।
पाकिस्तान सेना के अन्याय, अत्याचार, अनाचार, अनादर, आक्रांत, आक्रोश तथा आचरण से परेशान गुलाम जम्मू-कश्मीर से अब न केवल आजादी की आवाज आ रही है, बल्कि गुलामी की जंजीर टूटने की आवाज भी आरम्भ हो चुकी है। जैसा कि भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने शीघ्र ही गुलाम जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ जारी हिंसक प्रदर्शनों के बीच शीघ्र ही विलय होने का दावा किया है। वास्तव में भारत की गुलाम जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों पर पहली उच्च-स्तरीय प्रतिक्रिया है। विदेश मंत्री ने पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के संदर्भ में भारत की स्थिति साफ करते हुए कहा कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे से छुटकारा दिलाकर उसका भारत में अब विलय कर दिया जाना चाहिए। वास्तव में पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का भू-भाग भारत का अभिन्न हिस्सा था, हमेशा रहा है और भविष्य में भी रहेगा।
विगत सप्ताह पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में गेहूं के आटे, बिजली की ऊंची कीमतों और अधिक कर के विरुद्ध शुरु हुई पूर्ण हड़ताल लगातार जारी रही, जिसके परिणामस्वरूप पूरे क्षेत्र में स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। प्रदर्शनकारियों एवं सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए। घायलों में अधिकतर पुलिस कर्मी हैं। वहां का जनजीवन पूरी तरह से ठप हो गया। जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी) के सदस्य क्षेत्र में जल विद्युत उत्पादन लागत के अनुसार बिजली की कीमतों को तय करने, गेहूं के आटे में सब्सिडी और कुलीन वर्ग के विशेष अधिकारों को समाप्त करने की मांग कर रहे है। यहां की संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद में मार्च निकाला।
पाकिस्तान सरकार ने अपने पाकिस्तानी रेंजरों को इस आंदोलन को कुचलने के लिए तैनात किया हुआ है। हाल ही में हुई गोलीबारी में तीन लोग मारे गए और छह लोग बुरी तरह घायल हो गए। हिंसा में मारे गए लोगों में से दो के शवों को उनके परिवारजन ईदगाह से सटे मैदान में ले गए, जहां कश्मीरियों ने पाकिस्तान सरकार तथा सशस्त्र बलों के जुल्मों के विरोध में जमकर नारेबाजी की। जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी की कोर समिति के सदस्य अहमद अली खान ने कहा कि पाकिस्तान सरकार ने प्रदर्शनकारियोें की मांग मान ली है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग में मारे गए नागरिकों के सम्मान में मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली, बाग, शारदा, दोभेल, हट्ट्यिा बाला, चकौटी तथा लीवा सहित सभी क्षेत्रों में बाजार, व्यापारिक प्रतिष्ठान और संस्थाएं बंद रही। अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोग पाकिस्तान से आजादी के नारे लगा रहे हैं।
एक कटु सच्चाई यह भी है कि एक ओर जहां जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का जश्न मनाया जा रहा है, दूसरी ओर वहां गुलाम जम्मू-कश्मीर के लोग पाकिस्तान से गुलामी की बेड़िया तोड़ने को बेताब दिख रहे हैं। वहां की जनता जमकर व खुलकर पाकिस्तान से आजादी और भारत में विलय के नारे लगा रहे हैं। अब गुलाम जम्मू-कश्मीर में जन आंदोलन की आग गिलगित-बाल्टिस्तान तक फैल गई है। यही कारण है कि गिलगित-बाल्टिस्तान में भी स्थानीय लोगों ने गुलाम जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अपना समर्थन व्यक्त करते हुए पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध एक बड़ा जुलूस भी निकाला। इसके साथ ही गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी की मांग करते हुए नारेबाजी और प्रदर्शन भी किया। उनका स्पष्ट कहना है कि जोर जबरदस्ती व अत्याचार के साथ हमारे आंदोलन को अब कुचला नहीं जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1947 में पाकिस्तानी सेना द्वारा जम्मू-कश्मीर पर अपना कब्जा जमाने की मंशा से हमला किया गया था। भारतीय सेनाओं द्वारा कश्मीर के अनेक भागों से पाकिस्तान सेना को पूरी तरह से खदेड़ दिया था। वास्तव में जब संघर्ष विराम हुआ और जहां दोनों देशों की सेनाएं थी उसे नियंत्रण रेखा घोषित कर दिया गया। पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू-कश्मीर क्षेत्र गुलाम जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र बन गया और इस की राजधानी मुजफ्फराबाद को बनाया गया। पाकिस्तान के नापाक इरादे उस समय और उजागर हो गए, जब उसने भारतीय क्षेत्र वाले स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने के किए आतंकवाद, अलगाववाद व उग्रवाद का सहारा लेकर भारतीय सुरक्षा को धता बताकर चुनौतियां खड़ी करने का अनवरत प्रयास किया। इस प्रकार रक्त रंजित कश्मीर निरंतर युद्ध के साये में रहा। यद्यपि इस कश्मीर पर पाकिस्तान की लगी नापाक निगाहों के कारण ही हजारों लोग अकाल ही काल के गाल में समा गए। कश्मीरी हिंदुओं को मजबूरन पलायन करना पड़ा, किंतु कश्मीर में पाकिस्तान का मंसूबा पूरा नहीं हुआ।
गिलगित-बाल्टिस्तान ऐसे दो क्षेत्र है जहां दोनों क्षेत्रों में बहुत कम जनसंख्या थी और इसमें ज्यादातर शिया मुस्लिम थे। इनकी सीमाएं अफगानिस्तान और चीन के सिकियांग के साथ सीधी जुड़ी है। यह पूर्व के सोवियत संघ के बेहद करीब था। जम्मू एवं कश्मीर राज्य की भू-राजनीतिक स्थिति ने इसे रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण बना दिया। गुलाम जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के प्रति जहां घोर असंतोष व्याप्त है, जो पाकिस्तान से अलगाववाद की ओर बढ़ने के लिए अग्रसर हो चुका है।
कट्टरपंथ वाला यह क्षेत्र हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद जैसे अनेक आतंकवादी समूहों व संगठनों का एक घातक एवं सक्रिय क्षेत्र रहा है। यदि भारत को इस 40 लाख घनी जनसंख्या वाले क्षेत्र से समर्थन, शह व सहयोग मिलता है तो पाकिस्तान का विभाजित होना निश्चित है। आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की आवाम मूलभूत नागरिक सुविधाओं के लिए तरस रही है। विद्युत उत्पादन का यह प्रमुख क्षेत्र भी बिजली की आपूर्ति के अभाव में अब जीवन यापन कर रहा है। भारत द्वारा जहां जम्मू कश्मीर से अपने अनुच्छेद 35 (ए) और अनुच्छेद 370 के निराकरण के बाद आतंकवाद पर अकुंश लगा, वहीं यहां के लोगों की प्रगति व खुशी का माहौल भी गुलाम जम्मू-कश्मीर के आंदोलन का एक बड़ा कारण कहा जा सकता है। भारत की केंद्र सरकार ने विकसित भारत और विकसित जम्मू-कश्मीर योजना के अंतर्गत 6400 करोड़ रुपए से अधिक की विकास परियोजनाओं के फलस्वरूप आज कृषि, पर्यटन व परिवहन में प्रगति के कारण ही रोजगार, नौकरियां व समृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। वहीं गुलाम-कश्मीर की जनता भारत सरकार व प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का खुलकर यशगान करते हुए पाकिस्तान को कोस ही नहीं रहे है बल्कि अपने भाग्य पर भी पछता रहे हैं।
वास्तव में भारत के गृह मंत्री एवं विदेश मंत्री का यह वक्तव्य कि गुलाम जम्मू-कश्मीर का शीघ्र ही भारत के साथ विलय होगा। नि:संदेह यह पाकिस्तान के किए एक बड़ी चुनौती तथा चेतावनी सिद्ध हो रहा है, क्योंकि यदि गुलाम कश्मीर के बिगड़े हालात में भारत हस्तक्षेप करता है तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। विश्वास है कि इस कश्मीर का भाग्य बदलेगा और इतिहास का नया अध्याय भी आरम्भ होगा।
डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र