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ढोंगी बाबा और भगदड़

ढोंगी बाबा और भगदड़

by आशीष अंशू
in अगस्त २०२४, ट्रेंडींग, विशेष, समाचार.., सामाजिक
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धूल लेने के लिए दा़ैड में शामिल लोगों को भी लगा होगा कि सूरजपाल के पैरों के नीचे की ना सही, लेकिन जिस रास्ते से गाड़ी गुजरी वहां की धूल भी मिल जाए तो जीवन सफल हो जाएगा। ऐसे में लाखों लोगों की भीड़ वह धूल लेने के लिए दौड़ पड़ी, जिससे भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में करीब 121 लोग धूल में मिल गए और कई लोग कुचलकर घायल हो गए।

2 जुलाई की दोपहर हाथरस (उत्तर प्रदेश) के एक गांव में 121 लोगों की मृत्यु सूरजपाल नामक एक ढोंगी बाबा के पैरों की धूल लेने के लिए भागदौड़ में हो गई। यह दुर्घटना उस वक्त हुई जब वह अपना काफिला लेकर सभा स्थल से निकल रहे थे।

धूल लेने के लिए दा़ैड में शामिल लोगों को भी लगा होगा कि सूरजपाल के पैरों के नीचे की ना सही, लेकिन जिस रास्ते से गाड़ी गुजरी वहां की धूल भी मिल जाए तो जीवन सफल हो जाएगा। ऐसे में लाखों लोगों की भीड़ वह धूल लेने के लिए दौड़ पड़ी, जिससे भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में करीब 121 लोग धूल में मिल गए और कई लोग कुचलकर घायल हो गए। मृतकों की सूची को देखकर कोई भी शोक करेगा, क्योंकि सूची में शामिल 121 लोगों में से 112 तो महिलाएं ही हैं और शेष 9 में से 7 बच्चे तथा 2 पुरुष हैं। भगदड़ में सबसे अधिक महिलाओं की मौत हुई, क्योंकि वे सूरजपाल की भक्त थीं।

कभी थाने का कांस्टेबल रहा सूरजपाल मोटिवेशनल स्पीकर बनने के पहले यौन शोषण के आरोप में जेल रहकर भी आया है। जेल से लौटने के बाद वह ना अपने घर लौट सकता था और ना ही अपने थाने में, सबको उसकी कहानी पता थी। ऐसे में उसने एक नई जिंदगी शुरु की, अपना नाम नारायण हरि साकार रख लिया। उसने श्रोताओं से अपना नाम ‘भोले बाबा’ प्रचलित कराया, जबकि सनातन परम्परा से उसका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

Hathras Stampede

ईश्वर में आस्था रखने वालों को खुद से जोड़ने के लिए उसने अपने बारे में मुर्दो में जान डालने वाली बात फैलाई और खुद अपना ही उपचार अस्पताल में कराता रहा।

‘भोले बाबा’ से जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि बाबा मुर्दो में जान फूंक देते हैं, यह बात उन पर विश्वास करने वालों ने फैलानी शुरु कर दी। तेजी से उनके शिष्यों की संख्या भी बढ़ने लगी। उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी। वह अपनी भतीजी को साथ रखता था, उसे ही बेटी की तरह मानता था। भतीजी को छोटी उम्र में ही कैंसर हो गया। कैंसर उसका अंतिम स्टेज पर पहुंच गया। उसका उपचार बहुत कराया गया, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। सूरज पाल उस दिन घर पर नहीं था। बच्ची के अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी घर वालों ने कर ली, लेकिन सूरज पाल के सहयोगियों ने जिद पकड़ ली कि अंतिम संस्कार नहीं होगा। सूरज पाल चमत्कारी पुरुष है, वह जिंदा करेगा इस मरी हुई बच्ची को। यह बात आस-पास के गांव तक पहुंची तो बड़ी संख्या में तमाशबीन पहुंच गए। कुछ इसमें कह रहे थे कि सूरजपाल बच्ची को जिंदा कर देगा। कुछ उसे ढोंगी बता रहे थे। सूरज पाल आया, उसने हाथ लगाया और उसके सहयोगियों ने शोर मचा दिया कि बच्ची जिंदा हो गई। हर तरफ खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन यह खुशी अधिक समय तक टिकी नहीं रही। जल्दी ही यह सच सबको पता चल गया कि बच्ची जिंदा नहीं है। फिर भी भीड़ दो हिस्सों में बंटी रही, एक भीड़ मृत बच्ची का अंतिम संस्कार कराना चाहती थी और एक भीड़ अब भी सूरज पाल का चमत्कार आजमाना चाहती थी।

इस मामले में स्थानीय पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। उसने अपनी निगरानी में डॉक्टरी जांच कराई और पाया कि बच्ची मृत है। फिर पुलिस ने अपनी ही निगरानी में बच्ची का अंतिम संस्कार कराया। इस मामले में फिर ‘भोले बाबा’ गिरफ्तार हुआ। इस गिरफ्तारी के बाद वह जेल गया। उसका कोई चमत्कार काम नहीं आया। उसका चमत्कार सिर्फ गरीब, वंचित, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति के लोगों पर ही असर दिखाता था, जो उसके झांसे में आसानी से आ जाते थे। यह कुछ-कुछ ऐसा ही था जैसे पोप फ्रांसिस वेटिकन में व्हीलचेयर पर चल रहे हैं और पंजाब के गांव में चंगाई सभा लगाकर कोई पादरी हालेलुया, हालेलुया, हालेलुया बोल कर टूटी टांगे जोड़ रहा है।

सूरज पाल यानी ‘भोले बाबा’ के मोटिवेशनल स्पीच सुनने वाली कई महिलाएं उनके कहे पर इतना विश्वास करने लगी हैं कि वे भगदड़ में 100 से अधिक मौतों में भी सूरज पाल की कोई भूमिका नहीं मानती। उनका कहना है कि उन महिलाओं की मृत्यु लिखी थी। ईश्वर ने बुलाया, वे चली गईं। जिसका जब नम्बर आएगा, उसे जाना ही पड़ेगा। कुछ को तो यह भी लगता है कि सूरज पाल के पैरों की धूल इकट्ठा करने में जान गई है तो अब उन्हें सीधा मोक्ष ही प्राप्त होगा। यह तो हुई उन पर विश्वास करने वाले आस्तिकों की बात।

Hathras News: हाथरस में भगदड़ के दौरान दम घुटने से हुई ज्यादा लोगों की मौत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आईं कई बातें | Moneycontrol Hindi

दूसरी ओर सूरज पाल की बात कर लेते हैं। उसे जानकारी हो गई थी कि कार्यक्रम में भगदड़ मची है। वहां लोग कुचले जा रहे हैं और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है। वह अपने काफिले को लेकर निकल गया। उसके काफिले में 15 गाड़ियां थीं। इन 15 गाड़ियों के आगे 20 से अधिक मोटरसाइकिल सड़क पर थी, जिस पर उनके ब्लैक कमांडो और निजी अंगरक्षक मौजूद थे। विचार कीजिए यदि सूरज पाल के कमांडो और सुरक्षाकर्मी उसे निकालने की जगह भीड़ नियंत्रण में लगते और उसके काफिले की गाड़ियो का घायलों को अस्पताल पहुंचाने में प्रयोग होता तो कितनी जानें बच सकती थी? वह अब तक पीड़ित परिवारों से मिलने तक नहीं गया है।

सूरज पाल जब निकलता है तो उसके मोटरसाइकिल सवार कमांडो अंधाधुंध मोटरसाइकिल लेकर निकलते हैं रास्ता खाली कराने के लिए जैसे प्रधान मंत्री की सुरक्षा में लगे एसपीजी हो। यह मोटरसाइकिल सवार भीड़ को तितर-बितर करते हुए आगे बढ़ते हैं।

सूरज पाल ने पहले यह झूठ बताया कि वह मौके पर मौजूद नहीं था। उसे दुर्घटना की जानकारी देरी से मिली, लेकिन घटनास्थल से थोड़ी दूर पर राजमार्ग 51 की सीसीटीवी फूटेज से उनके बयान का कच्चा चिठ्ठा खुल गया। भगदड़ वाले समय में सूरज पाल की गाड़ी राजमार्ग पर भागती हुई दिखाई दी। एक बात और, सूरज पाल के काफिले में एक से अधिक सफेद एम्बेस्डर कार होती हैं। जिससे कोई यह पता ना लगा पाए कि सूरज किस गाड़ी में बैठा है? जब मैदान में भगदड़ मची हुई थी तो सूरज पाल का काफिला राजमार्ग पर एटा की ओर भागता हुआ सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ? जिसे अपने समर्थकों के बीच होना चाहिए, कोई चमत्कार वह कर सकता है तो इस भगदड़ को रोक कर महिलाओं और बच्चों को मरने से बचाकर खुद को प्रमाणित करता? यदि वह ढोंगी है, फिर भी मानवता के नाते ही वहां रुक जाता तो कई जान बच सकती थी, उसने यह भी नहीं किया। यही मरती हुई जनता थी, जिसने उस मोटिवेशनल स्पीकर को भगवान बना दिया। वह उन्हें ही मरता छोड़कर भाग खड़ा हुआ।

जब सूरजपाल भाग रहा था, उस दौरान उसकी अपने एक सहयोगी से फोन पर 2 मिनट 13 सेकेंड की बातचीत होती है। घटना स्थल पर मौजूद सहयोगी उसे सारी रिपोर्ट देता है, उसके बावजूद सूरजपाल लौटकर नहीं आता। उसके बाद वह अपने तीन सहयोगियों को फोन मिलाता है। सहयोगियों में उसकी पत्नी भी शामिल थी। वह सारी स्थिति का जायजा लेता है। उसके बाद वह अपने मैनपुरी वाले आश्रम जाता है। अपने फोन से दो जुलाई, साढ़े चार बजे सूरज बातचीत करता है और उसके बाद से उसका फोन स्वीच ऑफ हो जाता है, जो अब तक बंद ही पड़ा हुआ है।

अब तक की मीडिया रिपोर्ट में पुलिस प्रशासन की भूमिका पर प्रश्न उठ रहे हैं। कुछ लोग सरकार की जांच रिपोर्ट पर भी प्रश्न उठा रहे हैं, जिसमें एक तरह से सूरज पाल को क्लिन चिट मिल गई है, लेकिन सूरज पाल के झूठ और मक्कारी पर बहुत कम बात हुई। उसकी सम्पत्ति पर कम बात हुई, जिसकी जांच होनी चाहिए। इतनी सम्पत्ति उसने अर्जित कहां से की है?

अब भी उत्तर प्रदेश के लोगों को लगता है कि बाबा योगी आदित्यनाथ के राज में देर है, अंधेर नहीं। आने वाले समय में 100 से अधिक लोगों की मौत के लिए कथित तौर पर जिम्मेवार सूरजपाल के किए का भी ‘न्याय’ होगा।

 

 

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