साल 1992 में अजमेर में शहर एक ऐसा कांड सामने आया जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यह कांड अजमेर सेक्स स्कैंडल या अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड के नाम से जाना गया। इस मामले में 100 से अधिक कॉलेज की छात्राओं के साथ गैंगरेप किया गया और उनकी अश्लील तस्वीरें खींचकर ब्लैकमेल किया गया। इस अपराध के मुख्य सूत्रधार थे यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष फारुख चिश्ती और उसके साथी नफीस चिश्ती। इन लोगों ने अपने गिरोह के साथ मिलकर एक सुनियोजित षड्यंत्र रचा, जिसमें वे कॉलेज की युवा छात्राओं को अपना निशाना बनाते थे। इस मामले का खुलासा अजमेर के एक कलर लैब से हुआ, जहां से कुछ अश्लील तस्वीरें लीक हो गईं। जब ये तस्वीरें शहर में फैलने लगीं, तो लोगों के बीच चर्चा शुरू हो गई। इसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया और जांच शुरू की। शुरुआती जांच में कोई भी पीड़िता सामने नहीं आई। इसका कारण था आरोपियों द्वारा दी जा रही धमकियां। कुछ लड़कियां हिम्मत जुटाकर पुलिस के पास गईं भी. लेकिन पुलिस ने केवल बयान दर्ज करके मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके बाद उन लड़कियों को और अधिक धमकियां मिलने लगीं. जिससे वे डर गईं और फिर कभी पुलिस के सामने नहीं गईं।
इस मामले में कुल 18 आरोपी थे. 1. इशरत अली, 2. अनवर चिश्ती, 3. मोइजुल्लाह पुत्तन इलाहबादी, 4. शम्सुद्दीन उर्फ माराडोना (इन चारों को 2003 में सजा हुई थी, ये सभी रिहा हो चुके हैं), 5. परवेज अंसारी, 6. महेश लुधानी. 7. हरीश तोलानी, 8. कैलाश सोनी (इन चारों को लोअर कोर्ट ने 1998 में उम्र कैद की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट ने इन्हें दोषमुक्त कर दिया था), 9. फारुख चिश्ती (लोअर कोर्ट ने 2007 में उम्र कैद की सजा सुनाई थी, 2013 में उसे भुगती हुई सजा पर ही हाईकोर्ट ने रिहा कर दिया था),10. जहूर चिश्ती (कुकर्म का केस चला, उसे 1997 में रिहा कर दिया गया), 11. पुरुषोत्तम उर्फ बबली (1994 में केस चलने के दौरान सुसाइड कर चुका है), 12. अतमास महाराज (अभी फरार है. इसके विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया हुआ है), 13. सोहेल गनी, 14. नफीश चिश्ती, 15. जमीर हुसैन, 16. सतीम चिश्ती, 17. इकबाल भाटी, 18. नसीम उर्फ टारजन इन छह को लेकर 20 अगस्त 2024 को निर्णय आया है।
अजमेर की एक विशेष न्यायालय ने इन्हें दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई और साथ ही 5-5 ताख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। ऐसे गम्भीर अपराध में पीड़ितों को न्याय मिलने में 32 साल का समय लग गया, जो किसी भी न्यायिक प्रणाली के लिए बेहद शर्मनाक है। यह देरी कई कारणों से हुई। शुरुआती जांच में ही पुलिस की लापरवाही और उदासीनता ने इस मामले को धीमे पड़ जाने दिया। पीड़ित लड़कियों को आरोपियों द्वारा दी जा रही धमकियों के कारण वे पुलिस के सामने नहीं आईं और न्याय की मांग नहीं कर सकीं। जब कुछ लड़कियों ने हिम्मत जुटाकर आगे आने का प्रयास किया, तो पुलिस ने केवल बयान दर्ज करके मामले को ठंडे बस्ते में डाप्त दिया।
यह पुलिस की कार्यशैली की सबसे बड़ी कमी थी जो इस मामले में देरी का कारण बनी। साथ ही जब केस न्यायालय में पहुंचा, तो वहां भी कानूनी प्रक्रिया में लम्बी देरी हुई। आरोपियों ने कई तरह के कानूनी चकमे दिए और न्याय को लटकाने का प्रयास किया। कुछ आरोपियों को तो इस कदर लाभ मिला कि वे दोषमुक्त हो गए। दूसरा मुद्दा है सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियां। इस कांड ने समाज में व्यास कई गम्भीर मुद्दों को उजागर किया। पीड़िताओं को मानसिक आघात के साथ-साथ सामाजिक कलंक और परिवारिक सम्बंधों पर गहरा प्रभाव भी पड़ा। कई लड़कियों की पढ़ाई छूट गई और करियर पर असर पड़ा। यहां तक कि कुछ ने आत्महत्या भी कर ली। जिससे पता चलता है कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति कितनी अवैज्ञानिक, नस्लीय और जातिवादी मानसिकता है। आरोपियों में यूथ कांग्रेस के नेता की संलिप्तता ने राजनीतिक भ्रष्टाचार और शक्ति के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला, जो इस बात का उदाहरण है कि राजनीतिक नेतृत्व कैसे अपनी ताकत का गलत प्रयोग करके अपराध करते हैं और कमजोर कानून व्यवस्था का ताभ उठाते हैं।
इस मामले ने महिला सुरक्षा, कानूनी सुधार और नैतिक मूल्यों को बहुत ज्यादा प्रासंगिक बना दिया है। यह घटना हमारे समाज में व्याप्त लिंगभेद, यौन अपराधों और महिला उत्पीड़न जैसी समस्याओं को उभारकर लाती है। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की भी आवश्यकता को रेखांकित करती है। इस स्कैंडल ने हमें कई महत्वपूर्ण सबक दिए हैं। पहला, न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है। देर से भी सही न्याय मिलना बेहतर है, लेकिन इतनी देरी किसी भी मानवीय न्याय प्रणाली के लिए शर्मनाक है। इसके लिए कानूनी और प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है। दूसरा, हमारे समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव, महिला उत्पीड़न और नैतिक मूल्यों के पतन पर गम्भीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
शिक्षा और जागरूकता अभियानों के माध्यम से इन मुद्दों पर लोगों को संवेदनशील बनाना होगा। तीसरा, राजनीतिक नेतृत्व और शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र और उत्तरदायी का होना अनिवार्य है। अब समय आ गया है कि हम इस घटना से सीखें और कानूनी प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था और समाज में लिंगभेद जैसी कुरीतियों पर गम्भीरता से काम करके ऐसे अपराधिक गतिविधियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कठोर कदम उठाएं। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां न्याय त्वरित और निष्पक्ष हो और महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित हो।
-देवेंद्रराज सुथार