15 वर्षों में शेख हसीना ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बेहतर कर दिया। गरीबी को वर्ष 2010 की तुलना में 2022 तक कम करने में सफल हुई, परंतु कोविड-19 व रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था पिछड़ने, तेल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के साथ निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने से सरकारी नौकरियों को युवाओं ने आर्थिक स्थिरता जैसी उम्मीद के रूप में देखा। जब उच्च न्यायालय ने कोटा प्रणाली को बहाल करने का आदेश दिया तो पहले से ही निराश छात्र नाराज हो गए और लम्बे समय से प्रतीक्षारत जमात-ए-इस्लामी को बांग्लादेश में मजहबी तांडव का एक मौका दे दिया।
बांग्लादेश की मुक्ति के बाद सरकारी नौकरियों के लिए शुरू किया गया एक अलोकप्रिय कोटा प्रणाली को शेख हसीना ने विरोध के बाद वर्ष 2018 में समाप्त कर दिया था, परंतु जून 2024 में बांग्लादेश उच्च न्यायालय द्वारा पुनः पुरानी व्यवस्था को बहाल करने के बाद विश्वविद्यालय परिसरों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। आरक्षण को लेकर शुरू हुए विरोध प्रदर्शन के कारण फिर से कोटा व्यवस्था को समाप्त कर छात्रों की मुख्य मांग को तो पूरा कर दिया, परंतु इस प्रदर्शन ने राजनीतिक रूप ले लिया। इसके पीछे इस्लामिक कट्टरपंथ व आईएसआई की मिलीभगत से भ्रमित हुए युवाओं ने हिंसा व अराजकता का माहौल खड़ा कर दिया और मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं हुई। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं, उनकी सम्पत्तियों को लूटा गया तथा मंदिरों को तोड़ा गया है। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद प्रदर्शनकारी उनके आवास में घुसकर लूटपाट की और उनके अंतर्वस्त्रों को हवा में लहराकर स्त्री गरिमा का अपमान किया। यदि सेना प्रमुख वाकर उज जमान समय रहते भारत रवाना नहीं करते तो अनुमान लगाया जा सकता है कि शेख हसीना का क्या हश्र होता?
15 वर्षों में शेख हसीना ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बेहतर कर दिया। गरीबी को वर्ष 2010 की तुलना में 2022 तक कम करने में सफल हुई, परंतु कोविड-19 व रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था पिछड़ने, तेल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के साथ निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने से सरकारी नौकरियों को युवाओं ने आर्थिक स्थिरता जैसी उम्मीद के रूप में देखा। जब उच्च न्यायालय ने कोटा प्रणाली को बहाल करने का आदेश दिया तो पहले से ही निराश छात्र नाराज हो गए और लम्बे समय से प्रतीक्षारत जमात-ए-इस्लामी को बांग्लादेश में मजहबी तांडव का एक मौका दे दिया। प्रदर्शन के दौरान शेख हसीना ने रजाकार शब्द का उपयोग किया (बांग्लादेश में रजाकार एक अपमानजनक शब्द है। यह उनके लिए प्रयोग होता है, जिसने 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था) प्रदर्शनकारी छात्र, जिसका उद्देश्य आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करना था, बहुत चतुराई से जमात-ए-इस्लामी व छात्रों ने हिंसा में बदल दिया। वे जिनका उद्देश्य शेख हसीना को पद से हटाना था, वो हिंदुओं का नरसंहार करने लगे। बांग्लादेश की जनसंख्या 17 करोड़ है, जिसमें 1.3 करोड़ हिंदू रहते हैं। इनके घरों को जलाया जा रहा है, मंदिरों को तोड़ा गया है। इसके पीछे आईएसआई, जमात-ए-इस्लामी व उसकी छात्र शाखा छात्र शिबिर की संलिप्तता है, जो अवामी लीग को भारत द्वारा समर्थित मानते हैं और क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने व इसे हटाने के षडयंत्र में लम्बे समय से प्रयासरत थे।
जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की एक कट्टरपंथी पार्टी है, जिसे शेख हसीना ने प्रतिबंधित किया था। जमात-ए-इस्लामी की जड़े अविभाजित भारत से जुड़ी हैं। जब वर्ष 1941 में ब्रिटिश शासन के समय सैयद अबुल अला मौदूदी ने मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रेरित होकर पार्टी की स्थापना की थी। भारत के विभाजन के बाद यह जमात-ए- इस्लामी हिंद व जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान में बंट जाने के बाद भी अपने मूल वैचारिक अस्तित्व में ही मौजूद रही है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अबुल अला मौदूदी के विचारों को दशकों तक पढ़ाया गया, जिसमें हिंदू समाज और संस्कृति पर लगातार हो रहे हमले ऐसे पाठ्यक्रम का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। अबुल अला मौदूदी की शिक्षाएं गैरमुस्लिम विरोधी है तथा हर जगह गैरमुसलमानों के नरसंहार का समर्थन करती है। अबुल अला मौदूदी विश्व के इस्लामीकरण का कट्टर समर्थक रहा है, साथ ही आतंकवादी संगठन भी इसके विचारों को अपना आदर्श मानते हैं। इन पर आपत्तियों व प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए खुले पत्र के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे वर्ष 2022 में सिलेबस से हटा लिया।
वर्ष 1971 में मुक्ति संग्राम में जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष लिया था, जिस कारण बांग्लादेश के बनने के बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। वर्ष 1975 में मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद नई सरकार ने इस पर से प्रतिबंध हटा लिया और यह जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के रूप में सामने आया तथा 1991-1996 व 2001-2006 तक खालिद जिया के साथ सरकार में भी रहकर बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी बन गया। आईएसआई का बेहद करीबी जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, बांग्लादेश से लेकर भारत तक एक ही गर्भनाल से जुड़े हैं। इस्लामिक कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का उद्देश्य सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम फैलाना तथा बांग्लादेश को शरिया कानून से चलने वाला इस्लामिक राष्ट्र के रूप में बदलना है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी गुटों के पुनरुत्थान के बीच शेख हसीना का देश छोड़ना भारत-बांग्लादेश सम्बंधों में अभूतपूर्व सौहार्द और सद्भावना के एक युग के अंत का प्रतीक है। आईएसआई का कथित तौर पर लक्ष्य बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को सत्ता में लाना है, जो अपने भारत विरोधी रुख और चीन समर्थक झुकाव के लिए जानी जाती है। सबसे पहले जेल से रिहा होने वालों में शेख हसीना की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया भी हैं, जो भारत विरोधी हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने 8 अगस्त को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ लिया है। अब इनका भी भारत विरोधी असली चेहरा सामने आ गया है, जब अपने बयान में कहा कि ‘हम भारत को कभी माफ नहीं कर सकते, भारत ने बांग्लादेश में हुए आंदोलन को आंतरिक मामला बताया। भारत ने इस आंदोलन के दौरान हमें समर्थन नहीं दिया, बांग्लादेश जल रहा था और भारत चुपचाप देख रहा था’। इस विचार के साथ मोहम्मद यूनुस का राजनीतिक और कट्टरपंथी ताकतों से मुकाबला, हिंदुओं का संरक्षण व भारत से मजबूत सम्बंध बनाने में सक्षम होना संदिग्ध है। मुस्लिम स्कॉलर अबु नज़्म फर्नांडो बिन अल इस्कंदर ने बांग्लादेश से हिंदुओं को समाप्त करने की खुलेआम धमकी दी है कि बांग्लादेश के हिंदुओं के पास केवल दो विकल्प हैं हिंदू या तो इस्लाम अपना ले या मौत को गले लगा ले। अब भारत-बांग्लादेश सम्बंधों का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि सरकार किसके इशारे पर चलेगी। भारत के क्षेत्रीय हित संकट में पड़ सकते हैं। भारत पर अपने पूर्व और पूर्वोत्तर सीमा पर निगरानी बढ़ाने का दबाव कई गुना बढ़ गया है। भारत को गंगा जल संधि पर कूटनीतिक विवाद, तीस्ता जल बंटवारे और उसके बेसिन के विकास, जो उत्तर बंगाल में 23 किमी लम्बे संकरे ‘चिकेन नेक’ के पास है, सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का कारण बन सकती है।
आज बांग्लादेश ऐतिहासिक चौराहे पर खड़ा है, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखती है। पिछले दशक में भारत व बांग्लादेश के द्विपक्षीय सम्बंधों में स्वर्णिम अध्याय के पन्ने जुड़े हैं। शेख हसीना के लम्बे कार्यकाल से बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता आई और क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान मिला। बांग्लादेश से सक्रिय विद्रोही समूहों के विरुद्ध शेख हसीना की धर्मनिरपेक्ष सरकार की ‘शून्य सहनशीलता’ नीति ने भारत को अपने अस्थिर पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रबंधन करने में सहायक सिद्ध हुआ। उनका सक्रिय नेतृत्व भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
बांग्लादेश अन्य दक्षिण एशियाई देशों नेपाल, श्रीलंका और मालदीव की श्रेणी में शामिल हो गया है, जहां सत्ता परिवर्तन को भारत-समर्थक या चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है। भारत और बांग्लादेश साझा सीमाओं, संस्कृति और जैविक पारस्परिक निर्भरता के साथ प्राकृतिक भागीदार हैं, जो राजनीतिक शक्ति के खेल से परे हैं। इसलिए सचेत रहते हुए कठिन रास्ते पर ही सही बांग्लादेश से सम्बंध जारी रखना भारत के हित में होगा।
– डॉ. नवीन कुमार मिश्र