आश्चर्य इस बात का है कि भारत का मुस्लिम समुदाय भी घोषित रूप से मोदी जी को प्रधान मंत्री पद से हटाने के लिए विपक्ष के साथ लामबंद हो गया है जबकि मोदी जी ने अपने 10 वर्ष के शासन के दौरान सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं के अमल में कभी भी मुस्लिम समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया है। शायद यही बात उन्हें हज़म नहीं हो रही क्योंकि पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है।
भारत सनातन धर्मी देश है। सनातन धर्म यानी मानव धर्म जो लोकमंगल की कामना करता है, जो प्रकृति प्रेमी है, जो कण-कण में परमात्मा का वास देखता है। जिसका दर्शन ‘नर से नारायण’ बनने का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारे ऋषि-मुनि इन सबके जीते-जागते उदाहरण हैं। ये सब भारत राष्ट्र के ज्वलंत प्रतीक हैं। भारत पराक्रमी शीलवान वीरों का देश है। भारत का उद्घोष वाक्य है- वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वन्तो विश्वार्यम। भारत की कामना है कि सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, निरोगी हों। भारत राम का देश है, जो पिता के वचन पूर्ति हेतु राजतिलक करने के बजाए वन चले गए। जिन्होंने आततायी रावण का वध कर श्रीलंका का राजमुकुट रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया। भारत कृष्ण का देश है। जिन्होंने अपने-पराए का भेद किए बिना धर्म की स्थापना की। भारत गुरु गोविंद सिंह का देश है। जिन्होंने स्वधर्म की रक्षा हेतु अपना पूरा परिवार बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया।
भारत वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का देश है। जिन्होंने तलवार के एक ही वार से मुग़ल सरदार बहलोल खां को उसके घोड़े सहित दो फाड़ कर दिया था। जिन्होंने परिवार सहित घास की रोटियां खाना स्वीकार किया, मगर मुगलों का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। भारत छत्रपति शिवाजी महाराज का देश है। जिन्होंने औरंगजेब जैसे क्रूर बादशाह का मान-मर्दन कर हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। भारत स्वामी विवेकानंद का देश है। जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में पश्चिमी जगत में सनातन धर्म की श्रेष्ठता स्थापित की। भारत स्वामी दयानन्द का देश है। जिन्होंने भारत को सदा-सदा के लिए गुलाम बनाए रखने की नियत से तैयार की गई मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के समानांतर आर्य वैदिक शिक्षा की संस्थाएं पूरे भारत मे खड़ी कर राष्ट्रवाद की धड़कन बंद नहीं होने दी। ऐसे तेजस्वी राष्ट्रवाद का आधार लेकर 1951 में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर अखिल भारतीय जनसंघ का बीजारोपण हुआ था।
उस समय भारत के राजनीतिक पटल पर नेहरू छाये हुए थे। जिनके दिलों-दिमाग से हर वक्त सनातन भारत के प्रति नफरत टपकती थी। 1946 के नोआखली दंगों के विरोध में बिहार के किसानों के सत्याग्रह पर पुलिस द्वारा गोली चलाने से किसानों के हताहत होने की सूचना मिलने पर नेहरू ने कहा था कि अब मुझे कुछ संतोष मिला है, जो सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से खिन्न थे, जो आयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में प्रकट हुई रामलला की मूर्ति को हटाने के लिए आमादा थे। आपको याद होगा कि आज़ाद भारत के प्रधान मंत्री पद पर नेहरू का चयन करने का कारण बताते हुए स्वयं महात्मा गाँधी ने कहा था कि पूरी कांग्रेस में केवल एक ही अंग्रेज था जिसका नाम था जवाहरलाल नेहरू, जो बाद में सच साबित भी हुआ।
अंग्रेजों की ‘बांटों और राज करो’ की नीति को ही नेहरू जी ने लोकतान्त्रिक भारत में बखूबी आगे बढ़ाया। वोट की राजनीति साधने के लिए नेहरू जी ने दो काम किए। पहला मुस्लिम समाज के एकमुश्त वोट पाने के लिए नेहरू जी ने मुस्लिम समाज में कट्टरपंथी सोच रखने वाले मुसलमानों की पीठ पर हाथ रखा और उनके मनमुताबिक भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने की, मदरसे आदि खोलने की खुली छूट दी तथा दूसरे बहुसंख्यकवाद के नाम पर भारत के सनातन समाज पर तरह-तरह के बंधन लगा दिए। जिन्हे धर्मनिरपेक्षता जैसा आकर्षक नाम देकर अपनी लोकप्रियता के सहारे देश के लोगों के गले उतार दिया। साथ ही नेहरू जी ने भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य के मुख्य मंत्री को प्रधान मंत्री कहने का, राज्य को अपना अलग संविधान बनाने एवं अलग झंडा रखने का अधिकार दे दिया। कोढ़ में खाज यह कि संसद की अनुमति के बिना संविधान में धारा 370 और 35A जोड़कर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देकर शेष भारत से अलग कर दिया।
जैसे मानों इतना काफी न हो तो हिंदू समाज के संगठन में लगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारत के मुस्लिम समुदाय के शत्रु नंबर 1 के रूप में स्थापित करने में पूरी शक्ति लगा दी। इसके लिए पहला बहाना बनाया महात्मा गाँधी की हत्या को। फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा शासन-प्रशासन का एजेंडा बन गया। जिसका भरपूर लाभ उठाया मुस्लिम समाज के कट्टरवादी तत्वों ने। आज़ाद भारत में हिन्दू दोयम दर्जे का नागरिक बन गया और वोट के बल पर मुसलमान सत्ता की सीढ़ी बन गया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत विरोधी ताकतें देश के अंदर और बाहर सक्रिय हो गयी। जन-जीवन असुरक्षित हो गया। चीन की शह पर पाकिस्तान द्वारा कूटरचित आतंकवाद दिन-ब-दिन बेकाबू होता चला गया। जम्मू-कश्मीर में जनसंहार हुआ और अपने ही देश में कश्मीर के हिन्दू अपना घर व कारोबार आदि छोड़कर शरणार्थी बनने को मजबूर हो गए। नेहरू जी की धर्मनिरपेक्षता साम्प्रदायिकता की शिकार बन गयी।
आज नेहरू जी के वारिस राहुल गाँधी के नेतृत्व में नेहरू जी की धर्मनिरपेक्षता की नीति का भयावह रूप देश की जनता के सामने है। सत्ता की लालसा में राहुल गाँधी मुसलमान समाज का हीरो बनने के चक्कर में आये दिन हिन्दु देवी-देवताओं का, हिन्दू मान बिंदुओं का अपमान करते रहते हैं। संसद में हिंदु को हिंसक बताते हैं। सत्ता पाने की शीघ्रता में राहुल गाँधी जाति जनगणना का छोंका लगाकर सांप्रदायिक राजनीति के देश-तोड़क वीभत्स रूप को सामने लाने की हरसंभव जुगत भिड़ा रहे हैं।
दुःख की बात यह है कि काँग्रेस की भारत विरोधी राजनीति का शिकार भारत का मुसलमान भी हो गया है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है जमीयत-ए-उलेमा के अध्यक्ष और मुस्लिम स्कॉलर्स के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मोहम्मद असद मदनी का हाल ही में दिया गया वो सार्वजानिक बयान जिसमे वो फरमाते हैं कि हमारा मज़हब अलग है, हमारा पहनावा अलग है, हमारे खान-पान के तौर-तरीके अलग हैं जिसे एतराज हो वो भारत से बाहर जा सकता है। याद कीजिये 1946 का जिन्ना का वो बयान जो देश बंटवारे का आधार बना था कि मुसलमान भारत में हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकता।
तो इस समस्या का समाधान क्या है? राष्ट्र प्रथम का नज़रिया रखकर विचार करेंगे तो इस समस्या का समाधान दूर की कौड़ी नहीं है। भारत का मुसलमान देश के बाहर से नहीं आया है। वह भारत में ही जन्मा है जैसे कि हिन्दू। इसलिए भारत के हिन्दू और मुसलमान आपस में सहोदर भाई हैं। एक माँ (भारत माता) के जाए (जन्म लेने वाले)। ये शब्द मेरे नहीं हैं। ये शब्द हैं हमारे आदर्श अखिल भारतीय जनसंघ के मंत्रदृष्टा एवं तंत्रदृष्टा पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के। जो मूलतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS के जीवनव्रती प्रचारक थे, परन्तु स्वतंत्रता मिलने के बाद इस सत्य को जनता के सामने रखा ही नहीं गया। इसके उलट लोकतान्त्रिक भारत में राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए मुसलमान को एक राजनीतिक इकाई मानकर व्यवहार किया गया। उसी का दुष्परिणाम है कि आज जब भारत स्वतंत्रता के अमृत काल से गुजर रहा है, अपने पैरों पर खड़ा हो रहा है, दुनिया भारत की ओर आशा भरी नज़र से देख रही है, स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने अर्थात 2047 तक विकसित भारत बनाने के संकल्प के साथ भारत आगे बढ़ रहा है, ऐसे शुभ समय भारत में ही कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जो भारत के मुसलमान को हथियार बनाकर भारत के उज्जवल भविष्य के रास्ते में अवरोध खड़ा करने का जी-जान से प्रयत्न कर रहे हैं।
वे राजनेता नहीं जानते कि काल के विरुद्ध किये जाने वाले समस्त प्रयत्न स्वयं उनका ही काल बन जाते हैं। कालचक्र के अनुसार 21वीं सदी भारत की सदी है, ऐसा स्वामी विवेकानंद ने बताया था और योगीराज महर्षि अरविन्द ने भी बताया था। जो आज स्पष्ट दिख रहा है। वर्ल्ड बैंक हो, आईएमएफ हो, विश्व की विख्यात रेटिंग एजेंसी हो या अन्य कोई प्रासंगिक संस्था सब एक स्वर से इसी बात की पुष्टि कर रहे हैं, मगर दुःख की बात है कि विपक्ष को यह सब नहीं दिखता।
प्रधान मंत्री मोदी जी को सत्ता से हटाने के लिए वह कुछ भी कर गुजरने को उतावला हो रहा है। आश्चर्य इस बात का है कि भारत का मुस्लिम समुदाय भी घोषित रूप से मोदी जी को प्रधान मंत्री पद से हटाने के लिए विपक्ष के साथ लामबंद हो गया है जबकि मोदी जी ने अपने 10 वर्ष के शासन के दौरान सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं के अमल में कभी भी मुस्लिम समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया है। शायद यही बात उन्हें हज़म नहीं हो रही क्योंकि पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है।
यही वो नजरिया है जो भारत के मुसलमान को देश के अन्य नागरिकों के साथ समरस नहीं होने देता। इसी नज़रिये से जन्मा है अल्पसंख्यकवाद का वायरस। जिसने देश के सामाजिक जीवन को प्रदूषित कर दिया है। अलगाववाद, आतंकवाद, लव जिहाद, लैंड जिहाद और अब थूक जिहाद आदि इसके फलित हैं। वन्दे मातरम, भारत माता की जय का विरोध और संसद में जय फिलिस्तीन का उद्घोष के मायने क्या हैं? भारत तेरे टुकड़े होंगे, अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं के नारे क्या देश के प्रति वफादारी के सबूत पेश करते हैं? अगर इस्लाम भाई-चारे का संदेश देता है तो भारत में राम जन्मभूमि मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि मंदिर तथा बाबा विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का विरोध क्यों? शोभायात्रा पर आपत्ति क्यों? देश को दिन में 5 बार लाउडस्पीकर पर अजान सुनाने वालों को घंटे, घड़ियाल और आरती की आवाज़ से परेशानी क्यों? ऐसी हरकतें भारत में 75 से लगातार चली आ रही हैं, आखिर क्यों? क्या इस्लाम इन सब हरकतों की इज़ाज़त देता है?
देश बंटवारे के बाद जो मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये इसका अर्थ तो यही होना चाहिए कि वे सब भारत में हिंदुओं के साथ मिल-जुलकर रहना चाहते हैं, लेकिन अनुभव तो सर्वथा इसके विपरीत है। स्वयं सरदार पटेल ने मुसलमानों की इस मंशा पर सवाल उठाए थे, मगर उसको अनसुना कर दिया गया। परिणामस्वरूप देश की राजनीति पर धीरे-धीरे मुस्लिम कट्टरवादी तत्व हावी होते चले गए। स्वतंत्र भारत के पहले 4 केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुस्लिम समुदाय से बनाये गए। इतिहास में अकबर को महान और हिंदवी साम्राज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज को पहाड़ी बना दिया। मजबूत पाकिस्तान में भारत का भविष्य देखा जाने लगा। भारत आतंकवाद का शिकार बना। देश की आंतरिक सुरक्षा तार-तार हो गयी। जगह-जगह बम विस्फोट होने लगे। यह सब इसलिए हो सका क्योंकि विपक्ष ने अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों से गठजोड़ कर लिया।
इस परिदृश्य में बदलाव शुरू हुआ मई 2014 से जब भारत में देश की जनता ने भारत की संस्कृति में रचे-बसे भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत की पहली पूर्ण बहुमत वाली राष्ट्रवादी सरकार बनायीं। मोदी जी की सरकार शुरू से ही ‘राष्ट्र प्रथम’ के आधारभूत सिद्धांत पर चल रही है। जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र, तेरा, मेरा आदि सब बाद में। राष्ट्र की एकता, अखंडता से कोई समझौता नहीं। सबको बराबर का हक़, विशेषाधिकार किसी को नहीं। भारतीय जनता पार्टी का अटल विश्वास है कि जब तक किसी राष्ट्र की संस्कृति जिन्दा है तब तक उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। मोदी सरकार इसी रास्ते पर चलकर भारत को अजेय बना रही है। भाजपा का यह भी स्पष्ट मानना है कि आर्थिक समृद्धि के बिना सांस्कृतिक उत्थान टिकाऊ नहीं रह सकता और आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक है देश में शांति एवं सौहार्द का वातावरण। इसके लिए जरूरी है कानून का शासन और जहाँ कानून का शासन होता है वहाँ कोई भी आपराधिक गठजोड़ पनप नहीं सकता। यही वो रास्ता है जो भारत में मौजूद राष्ट्रवादी मुस्लिमों को बल प्रदान करता है। भारतीय जनता पार्टी के आज के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और विश्व जगत में सनातन भारत की उज्जवल छवि चमकाने वाले भारत के प्रधान मंत्री मोदीजी के नेतृत्व में भारत सरकार दिन-रात परिश्रम पूर्वक इसी दिशा में 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के साथ काम कर रही है।