आधुनिक फैशन फूहड़ता का फ्यूजन

आप फैशन के नाम पर कटे-फटे और अंग प्रदर्शित करने वाले कपड़े पहन कर सभ्य बन रहे हैं या फिर अपनी फूहड़ता का परिचय दे रहे हैं? आपकी पहचान फूहड़ता है या आपकी पहचान भारतीयता है, या फिर अंधानुकरण करने वाले नकलची की? कहीं आप फैशन और फूहड़ता में घालमेल तो नहीं कर रहे हैं?

मानव सभ्यता को कपास की खेती तथा उनसे निर्मित सूती वस्त्र भी भारत की ही देन है। 5 हजार वर्ष पूर्व हड़प्पा के अवशेषों में चांदी के गमले में कपास, करघना तथा सूत कातनी और बुनती का पाया जाना इस कला की पूरी कहानी दर्शाता है। वैदिक साहित्य में भी सूत कातने तथा अन्य प्रकार के साधनों के प्रयोग के उल्लेख मिलते हैं। कपास का नाम भी भारत से ही विश्व की अन्य भाषाओं में प्रचलित हुआ जैसे कि संस्कृत में कर्पस, हिन्दी में कपास, हिब्रू में कापस, यूनानी व लेटिन भाषा में कार्पोसस आदि। इसलिए यह कहना कि हर तरह के परिधानों का आविष्कार भारत में ही हुआ और भारतीय परिधानों का विकसित रूप ही है आज के आधुनिक परिधान तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारतीय वस्त्रों के कलात्मक पक्ष और गुणवत्ता के कारण उन्हें अमूल्य उपहार माना जाता था। साड़ी से लेकर सुवर्णयुक्त रेशमी वस्त्र, रंग-बिरंगे परिधान, ठंड से पूर्णत: सुरक्षित सुंदर कश्मीरी शॉल, भारत के प्राचीन कलात्मक उद्योग का प्रत्यक्ष प्रमाण थे, जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व विकसित हो चुके थे। कई प्रकार के गुजराती छापों तथा रंगीन वस्त्रों का मिस्त्र में फ़ोस्तात के मकबरे में पाया जाना भारतीय वस्त्रों के निर्यात का प्रमाण है।

परिधान का आविष्कार तो भारत में ही हुआ, लेकिन ग्रीक, रोमन, हूण, फारस, मंगोल, मुग़ल आदि के काल में भारतीय परिधानों की वेशभूषा में परिवर्तन होते रहे। हालांकि, परिवर्तन के चलते कई नए वस्त्र प्रचलन में आए और पहले की अपेक्षा भारतीयों ने इसमें खुद को ज्यादा आरामदायक महसूस भी किया। लेकिन अंग्रेजों के काल में भारतीयों की वेशभूषा बिलकुल ही बदल गई। पैंट, शर्ट, कोट और जींस को हमने स्वीकार किया, पर याद रहे, भाषा, भूषा, भोजन से ही हमारी पहचान है। मुग़ल और अंग्रेजों ने पहले हमारी भाषा बदली, फिर हमारी भूषा बदली, और अब हम मुग़ल, पाश्चात्य संगत, संगीत के दीवाने हैं, पिज्जा-बर्गर खाकर व कोला-बियर पीकर हम खुद को आधुनिक समझते हैं, बाजार से भारतीय व्यंजन, पेय पदार्थ एवं देसी तड़का करीबन गायब हो गया है।

प्राकृतिक जीवन के सिद्धांत को देखा जाए तो पोशाक के संबंध में हमारे भारतीय मनीषियों को इसकी गहरी समझ थी। वे इसके मनोविज्ञान को जानते थे। वे प्रकृति के नियम को जानते थे कि शारारिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए वायु ,सूर्य व प्रकाश का हमारी देह से जितना संपर्क होता रहे, उतना ही अच्छा है। आजकल तो तंग वस्त्र पहनने का प्रचलन है। जब स्त्री अधिक तंग वस्त्र पहनती है तो इनके रोम छिद्रों से ऑक्सीजन ग्रहण नहीं की जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप त्वचा में मेलोनीन का स्तर गिरने लगता है। यही नहीं, पुरुषों व स्त्रियों में कई रोगों का कारण ही ये तंग वस्त्र बन सकते हैं। जांघ व बाजु पर अधिक तंग वस्त्र तनाव, अवसाद, अनिद्रा, मोटापा, अल्सर आदि को बुलावा देते हैं। नाभि पर तंग कपड़ों से अफरा, गैस, कोलायटिस, कब्ज, बवासीर आदि हो सकते हैं, छाती पर तंग वस्त्र हृदय रोग, श्वास फूलना आदि का कारण बन सकते हैं। त्वचा पर अत्यधिक रोम छिद्र होते हैं जिनसे त्वचा आक्सीजन लेती है। इसलिए इसके अनुरूप ही हमें मौसम अनुसार परिधानों का चुनाव करना चाहिए। खैर …!

भारत में प्रत्येक मौसम के अनुसार एवं अनेक कार्यों के दौरान अलग-अलग परिधानों को पहनने का प्रावधान है। फैशन में नवाचार पहली जरूरत  होती है। यही वजह है कि डिजाइनर रोजाना अपने सृजन में कुछ आकर्षकता अवश्य जोड़ते हैं। खास तौर पर अब मॉर्डन के साथ ट्रेडिशनल आर्ट के कॉम्बिनेशन को काफी पसंद  किया जाता है।

वर्तमान समय में सोशल मीडिया से आई जागरूकता और देश, धर्म एवं राष्ट्रवाद के उभार से प्रेरित होकर अधिकतर लोग आधुनिकता तथा भारतीय  पारम्परिक पद्धति के मिश्रित फैशन को स्वीकार कर रहे हैं। इसके चलते तीज-त्योहारों, समारोहों, शादी, पूजा-पाठ आदि अनेक प्रकार के कार्यक्रमों के दौरान आधुनिक व् भारतीय पारम्परिक मिश्रित फैशन का चलन बढ़ता ही जा रहा है…

स्वामी विवेकानंद पहली बार शिकागो यात्रा पर गए। बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने भगवा धोती कुर्ता और सिर पर भगवा पगड़ी बांध रखी थी तो एक सूट-बूट पहने अमेरिकी ने उन्हें देख कर पूछा- आपने ये कैसे परिधान पहने हैं? ये कैसा पहनावा है? मेरे कपड़े देखो कितने शानदार हैं? यह कहते हुए वह अपने टेलर की भी तारीफ करने लगा। इस पर स्वामी विवेकानंद मौन रहे और कुछ देर बाद बोले- मेरी पहचान मेरे कपड़े या उसके टेलर से नहीं बल्कि मेरी पहचान मेरे देश की संस्कृति-सभ्यता से है।

सभ्यता या फूहड़ता

इस उत्तर पर आप भी जरा एक बार ठहरकर सोचिए कि आप स्टाइल के नाम पर कटे-फटे और अंग प्रदर्शित करने वाले कपड़े पहन कर सभ्य बन रहे हैं या फिर अपनी फूहड़ता का परिचय दे रहे हैं? आपकी पहचान फूहड़ता है या आपकी पहचान भारतीयता है, या फिर अंधानुकरण करने वाले नकलची की? आधुनिकता सोच में होनी चाहिए, नग्नता में नहीं!

संस्कृति व परिधान का तालमेल बहुत पुराना है। किसी भी संस्कृति को जानना हो तो वहां के दैनिक जीवन के तौर-तरीके और वेशभूषा को देखकर वहां की सभ्यता और संस्कारों का पता काफी हद तक लगाया जा सकता है। मुख्य रूप से भारतीय परंपरा और संस्कृति इस मामले में सर्वोत्तम रही है, फिर चाहे कोई भी काल क्यों न हो? लेकिन आज के परिवेश में संस्कृति की धज्जियां उड़ाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती। विशेष रूप से विदेशी वेशभूषा का नितांत बिगड़ा स्वरूप जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में भारत को अपने रंग में रंगता जा रहा है, उससे होने वाली भारत की संस्कृति की हानि को देखकर मन दुखी हो जाता है।

फैशन या फूहड़ता

ईश्वरत्व, अध्यात्म एवं मोक्ष की ओर ले जाने वाली देव भूमि पर आज अंग्रेजियत के एक अदद शब्द फैशन ने किस तरह अपने फन फैलाए नाग की तरह कुंडली मार ली है कि उसके सामने फूहड़ता शब्द कहना ही उचित है। पाश्चात्य कपड़े पूरी तरह नकारने योग्य है कहना रूढ़िवादिता होगी क्योंकि आज के युग में तेजी से दौड़ते हुए टेक्नोलॉजी के कई कार्य व्यापार हैं, जिनमें  पश्चिमी पहनावे की भी आवश्यकता हैं। मगर रोज की जीवन शैली में अपने पारंपारिक वेशभूषा का त्याग करके फैशन के नाम पर अंधी दौड़ में फुहड़ वस्त्रों को पहनना कहा तक उचित है?

क्या आप टीवी में विज्ञापन, मॉडल, फिल्मी कलाकारों के पहनावे को देखकर पश्चिमी कपड़े खरीद लेते हैं? अगर हां, तो आप अनजाने ही अपनी संस्कृति को सस्ते दामों पर बेच रहे हैं। आज हमारे यहां के युवाओं को फैशन ट्रेंड के नाम पर किस तरह बरगलाया जा रहा है? उसके लिए टीवी विज्ञापन के विदेशी कपड़ों को बेचते मॉडल, फिल्मी कलाकार आदि सब आते हैं। जिससे सबसे ज्यादा हमारी युवा पीढ़ी प्रभावित होती है।

छोटे और कटे-फटे कपड़े कभी भी भारतीय सभ्यता का हिस्सा नहीं थे लेकिन आज परिधान के नए व युवा फैशन के नाम पर भारतीय बाजार, छोटे तंग और कटे-फटे कपड़ों की शैली से भरे पड़े हैं। युवा पीढ़ी उसे बड़े शान से पहनती है तथा उसमें अपने आपको शिक्षित होने के गर्व से भी जोड़ती है। दूसरी ओर, हम अपने ही परिधान को त्याग कर उसे ओल्ड फैशन होने का खिताब दे देते हैं, वही हमारे देश में आनेवाले कितने ही विदेशी यात्री इसे इसलिए अपनाते हैं क्योंकि ये परिधान आरामदेह और भारतीयता के द्योतक हैं। उन विदेशियों को हमारे परिधान यहां की संस्कृति का भान करवाते हैं। वही क्या जगह-जगह से कटे-फटे छोटे कपड़े हमें किसी तरह के संस्कार से जोड़ते हैं? या फिर केवल निरकुंश स्वच्छंदता की ओर धकेल रहे हैं? वह भी इस हद तक कि वहां से वापस आने की सोचना भी हमें अपनी आजादी में दखल लगने लगता है।

सांस्कृतिक अंतर को समझना जरूरी

भारतीय संस्कृति वह है जो भारत में मानी जाती है, जिसमें विभिन्न धर्म जाति के लोग हैं। विदेशी संस्कृति में विशेष रूप से यहूदी, क्रिश्चन और मुस्लिम आते हैं। जहां हमारे परिवारों में संयुक्त परिवार की मान्यता रही है, वहीं विदेशी संस्कृति में एकल परिवार का प्रचलन है। जिसमें बच्चों को 18 वर्ष का होते ही मां-बाप और परिवार को छोड़कर अकेले अपनी इच्छा द्वारा रहना होता है! वह कुछ भी पहन सकता है, कही भी आ जा सकता है। उस पर किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं होती, यही से शुरू होती है उन्मुक्तता और फिर उसकी पराकाष्ठा, फिर वह चाहे जीवन शैली हो, पहनावा हो या फिर कार्य व्यवहार।        आजादी से पहले अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करने के लिए जिस तरह से भारतीय ढ़ंग से सोचने वालों के अंदर कुंठा का भाव पैदा किया, ठीक उसी प्रकार आजकल बाजारों में युवाओं के लिए ट्रेंडी कह कर जो परिधान परोसे जा रहे हैं यदि वे उसको न चुनकर कुछ अपनी संस्कृति या सभ्यता के अनुरूप चुनाव करें तो उसे पिछड़ा हुआ महसूस होता है। आप सोचिए कि विवेकानंद जी ने क्या कहा था? इसलिए भारतीय परिधान पहन कर आप अंग्रेजियत मानसिकता वालों को कुंठा दीजिए, न कि कटे-फटे पश्चिमी परिधान पहन कर हर किसी के उपहास का पात्र बनिए!

बाजार का शिकार न होइए

भारतीय परंपरा के परिधान जैसे साड़ी, सूट सलवार, कमीज दुपट्टा, इनमें भी बहुत नए ट्रेंड और फैशन हैं, मगर विदेशी कटे-फटे और छोटे कपड़ों में ऐसा क्या है कि लोगों को उसी की चाहत है? भारतीय बाजार, विदेशी ब्रांड्स के लिए एक मुनाफे का बाजार है; क्योंकि यहां सस्ते दामों में काफी कुछ बिक जाता है और उपभोक्ता का मनो-दोहन बाजार की प्राथमिकता है।

यहां की युवा आबादी भी बहुत अधिक है और अंग्रेजियत फैशन के परिधान को अपनाने के लिए उनके मन का दोहन नए-नए शॉपिंग साइट्स, ट्रेंड्स और विज्ञापन द्वारा किया जाता है और भारतीय युवा फटी-कटी जीन्स, टॉप, क्रॉप स्कर्ट या शॉर्ट्स को आम जीवन में पहनकर खुद को विदेशियों के बराबर समझने लगते हैं। आपने कितने ही ऐसे युवाओं को करते देखा होगा जो इन परिधानों कों पहनते है। अजीब तरह के अधनंगे और छोटे कपड़े पहने होते हैं, जिसमें उन कपड़ों का कटा होना उनकी दृष्टिकोण में स्टाइल सूचक है! रही सही कसर उनके अजीबो- गरीब हेयर स्टाइल पूरे कर देते हैं और पूछने पर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढिंढोरा पीटने लगते हैं। क्या अभिव्यक्ति का मतलब अपनी गरिमा को गिराना है? अभिव्यक्ति का मतलब सार्वजनिक स्थलों पर अभद्रता व नग्नता का प्रदर्शन है? अभिव्यक्ति का मतलब पशुवत आचरण करना है? सोच कर देखिए?

फैशन के नाम पर कटे फ़टे वस्त्र पहनकर अंग प्रदर्शित कर अश्लीलता फैलानेवाले, नाम मात्र के लिए छोटे एवं तंग वस्त्र पहनकर नग्नता का प्रदर्शन करनेवाले गुमराह हुए युवा पीढ़ी को सही मार्ग पर लाने हेतु तथा देव भूमि भारत की महान विरासत, संस्कृति, सभ्यता को बचाए रखने के लिए वीर रस के कवि ने एक बेहद सुन्दर कविता लिखी थी जो आज भी प्रासंगिक है। कविता की पंक्तियां इस प्रकार हैैं-

जगे नहीं तो खो जाएगी भारत की पहचान,

गौ, गंगा, गायत्री, गीता, वेदों का वरदान,

बचा लो अपना हिन्दुस्थान …

बचा लो अपना हिन्दुस्थान …

राम, कृष्ण, गौतम के वंशज वाली ये पहचान

बचा लो अपना हिन्दुस्थान …

बचा लो अपना हिन्दुस्थान …

सागरों के पार वाली संस्कृति मन बसी

तन तो स्वदेशी, मन पश्चिम का दास है,

गांव और शहरों की दूरिया हुई जो कम  

पनघट भी यतीम, अंगना उदास है,

भारत को भूल रहे भावी युवा कर्णधार

भारती की ओर सारता ये संत्रास है

मूल्य संस्कृति वाले नग्नता की भेट चढ़े

वेलेंटाइन डे प्रसन्न, दुखी मधुमास है

तो पश्चिम की आंधी में खो न जाये निज पहचान

बचा लो अपना हिन्दुस्थान ….

बचा लो अपना हिन्दुस्थान …

 

 

This Post Has 4 Comments

  1. Anonymous

    देखिए इस आर्टिकल की कुछ बातें तो बिल्कुल सही है लेकिन अब दौर बदल रहा है तरीके बदलते जा रहे है मानसिकता बदलते जा रही है l
    हां ये बात बिलकुल सही है की कटे फटे कपड़े सचमुच बड़े ही भद्दे दिखते हैं l
    संस्कृति और धर्म की जहां तक बात है तो आप देखें कितने विदेशी हमारे धर्म को अपनाते जा रहे हों चाहे वो अमेरिका हो या ब्रिटेन l
    ऐसे ये आर्टिकल बहुत ही अच्छा लिखा गया है l लेकिन इसमें बाजार को लेकर या खरीदने वाले लोगों को लेकर जो लिखा गया है उससे मेरा विचार थोड़ा अलग है l
    धन्यवाद

  2. Anonymous

    Ham bhi us biased desh mein rhte h jnha chote kapde phnna phuhdta aur purane wakt ki aurto ka apna brest cover nhi krna civilization bn jata h. Aur ye kahkr bat ko dhank diya jata h sidhi si bat h sach sunne ki auakt nhi h ynha pr

  3. Anonymous

    भाई अब हम ये सोच रहे है की हम सदबुद्धि वालों को अपना भारतीये परिधान पहनकर बाहर निकलना चाहिये।इतना ही अपना निजी जिंदगी में भी अपने कपडे को लाकर बिदेशो की ओर भागता युवाओ को राह दिखाया जाय

  4. नबीन जैन

    भारत के कुछ नाबधन्य परिबार की महिला और पुरुष फेसबुक पर अश्लील मुद्रा मैं अकेले और परिवार के मित्र के संग ऐसी अश्लील मुद्रा अपने बच्चों के संग फोटोज डालेंगे जैसा अंग्रेज भारत छोड़ने के बाद इनको बिरासत मैं अश्लील आचरण का पाठ पढ़ा गए है।आखिर समझ नही आता भड़काऊ मुद्रा मैं फेसबुक मैं डालने के लिये फेसबुक बाला कुछ पैसा अदा करता है।ऐसे परिवार इंदौर मद्य्य प्रदेश से ज्यादा आते है।कुछ नाबधन्य परिबार असलील को अपनी बिरासत समझते है।

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