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राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि

राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि

by अमोल पेडणेकर
in देश-विदेश, फरवरी-२०१५, संपादकीय
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भारत को स्वतंत्र हुए छ: दशक पूर्ण हो चुके हैं और हम सातवें दशक की ओर अग्रसर हैं। इस कालावधि में हमारा प्रयत्न रहा है कि हम वैश्विक स्तर पर एक प्रगल्भ राष्ट्र के रूप में अपना स्थान निर्माण करें। परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा के चक्रव्यूह से आज भी हमारी मुक्ति नहीं हुई है। स्वतंत्रता मिलने के बाद के कुछ वर्षों को अपवाद के रूप में अगर छोड़ दिया जाए तो देश की कमान कांग्रेस के ही हाथ में रही है। अत: राष्ट्रीय सुरक्षा की आंतरिक और बाह्य चुनौतियों का सामना करने में मिली असफलता कांग्रेस की नीतियों का ही फल है।
‘राष्ट्र सुरक्षा’ शब्द सुनते ही आंतरिक और बाह्य इन दोनों सुरक्षा क्षेत्रों की ओर हमारा ध्यान जाता है और हमारे सामने यह प्रश्न निर्माण होता है कि क्या इन दोनों क्षेत्रों में हमारा देश सुरक्षित है? आंतरिक सुरक्षा के अभाव में कोई भी देश तन कर खड़ा नहीं हो सकता। देश के विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानों पर होनेवाले आतंकवादी हमले, धार्मिक दंगे, नक्सलवादियों, बोडो द्वारा लगातार किए जा रहे हमले, बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण असम, त्रिपुरा राज्यों के राजनैतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य बदलना, कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा किया जानेवाला नरसंहार, इसिस के कार्यों में सहभागी होनेवाले भारतीय मुसलमान युवक इत्यादि जैसी अनेक समस्याएं आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से प्रश्नचिह्न निर्माण करनेवाली हैं।
चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान इत्यादि देशों ने भारत से प्रत्यक्ष युद्ध न छेडकर भी भारत को परेशान कर रखा है। चीन की ओर से लगातार होनेवाली घुसपैठ के कारण भारत के सीमावर्ती भागों में हमेशा ही तनाव का वातावरण रहता है। पाकिस्तान व बांगलादेश द्वारा फैलाया जा रहा आतंकवाद भारत के विरुद्ध सोची समझी साजिश है। अप्रत्यक्ष युद्ध में आतंकवादी गुट नियमित रूप से हमले कर रहे हैं। सामान्य जनता के मन में अब यह प्रश्न निर्माण हो रहा है कि क्या हम असहाय हो गए हैं? यह स्थिति अत्यंत गंभीर और घातक सिद्ध होगी।
भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की समस्याओं को गंभीरता से देखने पर यह ध्यान में आता है कि केवल सेना की संख्या अधिक होने का अर्थ यह नहीं है कि हम सक्षम हैं। नए युग का मंत्र तो यह है जिसके हाथ में उन्नत तकनीक है वही युद्ध में बाजी मारेगा। हमारे शस्त्रों की बात करें तो सन १९६२ के युद्ध में प्रयुक्त पुराने शस्त्र आज भी सेना और पुलिस के पास मिल जाएंगे। आज अनेक आतंकवादी संगठनों के पास कई गुना अधिक उच्च तकनीक वाले शस्त्र पहुंच चुके हैं। यूक्रेन और रूस के विद्रोहियों ने उन्नत शस्त्रों का उपयोग करके मलेशिया के प्रवासी विमानों को मार गिराया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आतंकवादियों की पहुंच कहां तक है। लोकतांत्रिक देश भारत के पास जो अस्त्र हैं वही अस्त्र अनियंत्रित आतंकवादियों के पास भी हैं। यह वास्तविकता हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है। कुछ महीनों पूर्व जल सेना की कई पनडुब्बियां दुर्घटनाग्रस्त हो गई थीं। इन दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण यह था कि वे बहुत पुरानी होने के कारण खतरनाक हो गई थीं। उपलब्ध सामग्री पर ही काम चलाने का पुराना दृष्टिकोण और समय रहते नई पनडुब्बियां और नौकाएं न बनाने के कारण आज यह परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। जो पनडुब्बियों का हाल है वही युद्धपोतों, वायु सेना के विमानों का भी है। अब भारत को बाह्य आक्रमण और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देना पड़ रहा है। ऐसी परिस्थिति में रक्षा दल की क्षमता बढ़ाना और उसे अत्याधुनिक बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
राजनेताओं की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में राष्ट्रीय सुरक्षा सब से महत्वपूर्ण है। परंतु दुर्भाग्य यह है कि लोकसभा चुनावों में भी राष्ट्रीय सुरक्षा की चर्चा बहुत कम होती है। देश का आर्थिक बजट तय करते समय भी रक्षा क्षेत्र की चर्चा गौण ही होती है। इसी वजह से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय समस्या की अनदेखी की जाती है। इसिस हिंसा का तांडव मचानेवाली संस्था है। यह ठीक है कि इसका ट्विटर अकाउंट चलानेवाले मेंहदी मसरूर नामक भारतीय मुसिलम युवक को बंगलुरु पुलिस ने गिरफ्तार किया है परंतु वह अनेक वर्षों से जिहाद का प्रचार कर रहा था और गुप्तचर विभाग को इसकी खबर भी नहीं हुई। ब्रिटेन के ‘चैनल फोर’ की महिला पत्रकार ने मेंहदी की करतूतों को दुनिया के सामने रखा। उनके द्वारा दी गई जानकारियों के आधार पर बंगलूरु पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया है। यह बात देश की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने वाली है। इस आधार पर रॉ और आयबी की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ गई है। इस तरह के विविध विषयों पर टिप्पणी करते समय राष्ट्र की सुरक्षा को आंतरिक और बाह्य शक्तियों से होनेवाले खतरों को पहचान कर राष्ट्र सुरक्षा की नीति और रणनीति बनाने की नितांत आवश्यकता है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कड़ी मेहनत करने वाले और सभी मायनों में राष्ट्र के विकास का विचार करनेवाले प्रधान मंत्री के रूप में जाने जाते हैं। उनके छ: महीने के कार्यकाल में राष्ट्र के संरक्षण सिद्ध होने की दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं हो रही हैं। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को रक्षा मंत्रालय सौंपा गया है। वे एक सफल मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैंै। उनके जैसा अनुभवी व्यक्ति रक्षा मंत्री बना है अत: अब भारत की रक्षा सिद्धता में प्रगति होगी। उनके द्वारा आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से नीतिगत निर्णय लिए जाने आवश्यक हैं। आज आतंकवाद पूरी दुनिया में फैल चुका है और वैश्विक स्तर पर सभी को इससे नुकसान हुआ है। ऐसी परिस्थिति में भारत दुनिया के सामने एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। अत: भारत को समझदारी से इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। इसके लिए किसी एक मंत्रालय को नहीं वरन देश के नागरिकों को सामुदायिक रूप से जागृत रहकर, इस समस्या का हल ढूंढने का प्रयत्न करना चाहिए। हम सभी के लिए ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ है। साथ ही ‘राष्ट्र रक्षा भी सर्वोपरि’ हो यह ध्यान रखना चाहिए।
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