हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

हम मंदिर वहीं बनाएंगे…

by अमोल पेडणेकर
in अध्यात्म, मई २०१७, साक्षात्कार
0

रामजन्मभूमि विवाद, उसके समाधान से लेकर हिंदुओं में उत्पन्न नवजागरण, नोटबंदी, उत्तर प्रदेश में भारी जीत और केरल में स्वयंसेवकों पर हो रहे हमलों जैसे अनेक विषयों और देश की वर्तमान स्थिति पर प्रस्तुत है प्रखर हिंदुत्ववादी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी से हुई लम्बी बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-

रामजन्मभूमि मुद्दे पर तुरंत सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने का क्या कारण था?

देखिए, ऐसा नहीं है कि सिर्फ रामजन्मभूमि मुद्दे पर ही हमने ऐसी पहल की है। राम सेतु मुद्दे पर भी संघ और विहिप के विशेष आग्रह पर मैंने सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल किया था और राम सेतु का तोड़ना रुकवाया था। सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि नितिन गडकरी ने भी ऐलान कर दिया है कि हम लोग राम सेतु को पूर्ववत ही रहने देंगे। हमने प्रधान मंत्री जी से भी अनुरोध किया है कि रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषितकरें और उसकी इस तरह मरम्मत करवाएं कि लोग राम सेतु से होकर अशोक वाटिका तक पैदल जा सकें। इस मुद्दे पर जब हमारी विजय हुई तो अशोक सिंघल जी काफी भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा था कि राम मंदिर मुद्दे पर भी हम इसी तरह का स्टैंण्ड लेंगे। उस समय अशोक सिंघल जी स्वस्थ और काफी सक्रिय थे। इसलिए मेरे लिए इस मुद्दे पर कोई विशेष काम नहीं था। लेकिन स्वर्गवास के कुछ ही दिन पहले उन्होंने एक प्रेस कांन्फ्रेन्स बुलाई और मुझे उसमें उपस्थित रहने को कहा। उस प्रेस कांन्फ्रेन्स में उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से यह घोषणा की कि रामजन्मभूमि का मेरा अधूरा कार्य अब सुब्रह्मण्यम स्वामी करेंगे।

बाद में उस केस की फाईल पढ़ने पर पता चला कि सभी लोगों ने अपनी दायर याचिकाओं में उसे अपनी प्रापर्टी के तौर पर दिखाया है। मुसलमानों का कहना है कि यद्यपि यह हिंदू प्रापर्टी है लेकिन पिछले साढ़े पांच सौ साल से हमारे कब्जे में है इसलिए एडवर्स लॉ के अनुसार इस पर हमारा हक बनता है। निर्मोही अखाड़ा और रामजन्मभूमि न्यास भी यही दावा करते हैं कि यह उनकी प्रापर्टी है। हमारे संविधान में संपत्ति का अधिकार एक सामान्य अधिकार माना जाता है। परन्तु रामजन्मभूमि आस्था का प्रश्न है और संविधान में यह मूलभूत अधिकार की श्रेणी में आता है। हमने यह महसूस किया कि अभी तक किसी पक्ष ने भी ‘मूलभूत अधिकारों’ के तहत याचिका नहीं डाली थी। इसलिए हमने इस दिशा में शुरुआत की। सुप्रीम कोर्ट ने तो पूजा की अनुमति १९९४ में ही दे दी थी; लेकिन दर्शनार्थियों की मूलभूत समस्याओं की तरफ वहां की किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। न तो साफ पानी की व्यवस्था है और न ही बाथरूम या शौच की समुचित व्यवस्था। यहां तक कि चप्पल रखने की भी व्यवस्था नहीं की गई। हमने यह मुद्दा रखा कि इन सारी चीजों पर राज्य सरकार का रवैया ठीक नहीं है। दूसरे पक्ष यानि कि मुसलमानों ने यह कहा कि जब तक मुख्य मुद्दा नहीं हल हो जाता तब तक इस पर कोई निर्णय नहीं होना चाहिए। अखिर में मैं इसी बात को लेकर कोर्ट में गया कि या तो हमें वे सारी सुविधाएं दीजिए अन्यथा जल्द से जल्द मामले का निपटारा कीजिए। दोनों पक्षों का कहना है कि मैं इस केस में कोई पक्षकार नहीं हूं। मैं उन्हें कहना चाहता हूं कि आप वहां की संपत्ति के लिए लड़िए, मैं तो उससे एक पायदान ऊपर आस्था की बात कर रहा हूं।
भारत के संविधान में जितना महत्व ‘आजादी’ का है, उतना ही महत्व ‘विश्वास’ का भी है। मैंने इसी आधार पर याचिका दायर की थी।

न्यायालय का कहना है कि दोनों पक्ष आपस में बैठ कर बातचीत करें। इस मुद्दे में दोनों पक्ष बैठ कर क्या बात करें?

दोनों पक्ष पहले ही बातचीत कर चुके हैं। चन्द्रशेखर की सरकार में जब मैं वित्तमंत्री था, उस समय बैठक हुई थी। यह तय किया गया था कि उस जगह पहले मंदिर था और उसकी जगह पर मस्जिद बनाई गई अत: मुसलमान उस पर का कब्जा छोड़ दें। उस पर शहाबुद्दीन का हस्ताक्षर भी था, श्वेत पत्र में इसका उल्लेख भी है। बाद में फररुशी बनाम भारत सरकार के मामले की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने नरसिंह राव सरकार से पूछा कि इसका क्या हल है? उस समय नरसिंह राव ने कहा था कि यदि यह साबित हो जाता है कि इस स्थान पर मस्जिद से पहले एक मंदिर था तो हम यह स्थान मंदिर निर्माण के लिए दे देंगे लेकिन यदि इस जगह पर पूर्व में मंदिर नहीं था तो फिर आप फैसला करें। इसी बात को आधार बना कर मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी जिसके कारण न्यायालय ने मेरी याचिका को मुख्य मामले से जोड़ दिया। यह जो मुस्लिम कहते हैं कि मैं पार्टी नहीं हूं झूठ बोलते हैं। यह सही है कि मैं सम्पत्ति के लिए नहीं कह रहा हूं। मैं उसका हिस्सेदार नहीं हूं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि मेरी याचिका और उनकी याचिकाओं की सुनवाई एकसाथ की जाए।

मस्जिद नमाज पढ़ने की एक सुविधाजनक जगह है। कोई यह नहीं कह सकता कि वहां पर अल्लाह रहता है। अल्लाह तो हर जगह है। वह मस्जिद में हैं, कहना मूर्तिपूजा के बराबर है। इसीलिए खाड़ी देशों (सऊदी अरब, ईरान वगैरह)में सार्वजनिक कामों के लिए मस्जिद का स्थान परिवर्तन करना आम बात है। अर्थात मस्जिद कहीं भी बन सकती है और हटाई जा सकती है।

परंतु हमारे मंदिरों में पहले प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। उसके बाद उस मूर्ति में ईश्वर का वास हो जाता है। अर्थात एक बार मंदिर बन गया तो हमेशा के लिए हो गया। उसे हटाया नहीं जा सकता । मैं इस बात को कई बार न्यायालय में सार्थक तरीके से सिद्ध भी कर चुका हूं। रामलला का मुद्दा भी आस्था का विषय है। जब पूरा देश यह कहता है कि रामलला वहीं पैदा हुए थे। गुरुनानक और तुलसीदास का भी कहना था, तो दूसरे लोग कौन होते हैं उसमें अड़ंगा डालने वाले। इसलिए वहां मंदिर ही बनेगा, मस्जिद नहीं। कानून व्यवस्था की दृष्टि से भी रामलला परिसर के अंदर मस्जिद नहीं बन सकती। यदि बनती है तो बवाल होने का अंदेशा है। उन्हें सरयू के पार मस्जिद बनानी चाहिए। हम हिंदू उदारवादी हैं। हम यह तो नहीं कहते कि मस्जिद नहीं बने। मस्जिद बने पर मंदिर की जगह नहीं।

लोग कहते हैं मुस्लिम समाज से बात करो। पर मुस्लिम समाज तो नेतृत्वविहीन है। वहां किससे बात की जाए?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो बात कही जाती है उसमें पक्षों की बात की जाती है। इनमें से एक है जमात-ए-इस्लामी, दूसरा है मुस्लिम वक्फ बोर्ड। इन संस्थाओं के लोगों से व्यक्तिगत तौर पर बातचीत होती है तो वे कहते हैं कि हम बातचीत नहीं कर सकते क्योंकि हमारे लोग कहेंगे कि ‘स्वामी ने तुम्हें खरीद लिया।’ उनमें पूरी तरह से अविश्वास का माहौल है। वहीं आम मुस्लिमों से बात होती है तो उनका कहना है कि यह एक सराहनीय कदम है। इसमें हिंदुओं को मंदिर भी मिल रहा है और मुसलमानों को मस्जिद भी। हमें तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम एअरपोर्ट पर नमाज पढ़ें, हवाई जहाज में पढ़ें, सड़क पर पढ़ें या किसी मस्जिद में। हमारे लिए यही मायने रखता है कि अयोध्या में हमें नमाज पढ़ने के लिए एक मस्जिद मिल जाएगी।

अभी पूरी अयोध्या में २७ मस्जिदें हैं। उनमें से एक को छोड़ कर बाकी में गाय भैंस बांधी जाती हैं। पर जब यह मस्जिद बनेगी तो दुनियाभर के मुसलमान आएंगे नमाज पढ़ने के लिए। इसलिए मैं कहता हूं कि रामलला परिसर में तो मस्जिद बनने का प्रश्न ही नहीं है। उन्हें भी यह पता है कि न्यायालयों में वे अवश्य हारेंगे। इसीलिए वे फैसले को टालते रहना चाहते हैं।

अब रामजन्मभूमि की बात जोरशोर से हो रही है। हिंदुओं के अन्य धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक प्रतीकों के संदर्भ में भी आंदोलन होने चाहिए। आपके इस विषय पर विचार क्या हैं?

देशभर में लगभग ४०,००० मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनाई गई थीं। अशोक सिंघल जी से बात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि सभी की राय है कि इनमें से तीन प्रमुख हैं अयोध्या, काशी और मथुरा। यदि वे इन तीनों पर राजी होते हैं तो हम बाकी को छोड़ देंगे। मुस्लिम नेताओं ने मुझ से कहा कि आप जब इस पर आगे बढ़ेंगे तो फिर बाकी जगहों के लिए भी ऐसी ही कानूनों की बात करेंगे, तो मैंने कहा कि में मेरे पास एक ‘कृष्ण प्रस्ताव’ है। आप वे तीन छोड़ दीजिए। बाकी अपने पास रखिए। इस देश के मुसलमानों के भी पूर्वज हिंदू ही थे। इन्हें कम से कम इसका ख्याल करना ही चाहिए।

राम मंदिर आंदोलन को लेकर आडवाणी, उमा भारती आदि पर केस दायर किया गया है। आपका इस बारे में क्या कहना है?

इस केस की जो भी सुनवाई होगी, अदालत का जो फैसला होगा उसका हम सम्मान करेंगे। परन्तु यह बात पूरी तरह से गलत है कि इन लोगों ने कोई षडयंत्र किया है। राम मंदिर आंदोलन जनभावना का प्रतीक है। भगवान राम में लोगों की आस्था है। अधिकतर हिन्दू यही चाहते हैं कि अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर का ही निर्माण होना चाहिए।

पिछले ७० वर्षों में इस देश में हिंदुत्व अस्पृश्य हो गया था लेकिन कुछ समय से सार्वजनिक जीवन में भी हिंदू अस्मिता की बात की जाने लगी है। इस पर आपके क्या विचार हैं?

पिछले ३५ वर्षों का इतिहास देखते हैं तो राजीव गांधी ने उस समय ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे सीरियल दिखाने की हिम्मत दिखाई। इससे हिंदू समाज में एक राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना जगी। उसके तुरंत बाद ‘इस्लामिक आतंकवाद’ आ गया। लोगों के दिमाग में यह बात आई कि इसका जवाब कैसे दिया जाए। संघ के लोगों और हम लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि यदि हम सब हिंदू एक हो जाएं तो हम इन सबका हिम्मत से सामना कर सकते हैं। फिर १९९६ में हिंदुत्ववादी सत्ता में आए। १९९९ में गठबंधन की सरकार आई। वही अब २०१४ में हम पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए हैं। मतों का प्रतिशत २० से बढ़ कर ३२ हो गया है। उत्तर प्रदेश में हमने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं खड़ा किया लेकिन १२० मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में से ८५ सीटें हमारी झोली में आईं। मुस्लिम महिलाओं को लगा कि भाजपा वाले ही तीन तलाक का कानून रद्द करवा सकते हैं। आम मुसलमानों को भी लगने लगा है कि भाजपा हमारे विरोधी नहीं हैं। इस्लामी आतंकवाद भी एक कारण है। क्योंकि उसके कारण निर्दोष मुसलमानों को भी दोषी समझा जाता है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रचंड जनादेश का गूढ़ार्थ क्या है

पहला कारण जो कि किसी ने भी अभी तक नहीं कहा मैं कहता हूं, कि महिलाओं को जो चूल्हे से मुक्ति मिली और गैस सिलिण्डर मिला यह सबसे बड़ा कारण है। दूसरा कारण है डिमोनेटाइजेशन। इसकी वजह से आम लोगों को भले ही तकलीफ हुई पर उन्हें लगा कि इसका असर बड़े लोगों पर भी पड़ा। लोगों को पसंद आया कि बड़े लोग भी लाइन में लग गए। तीसरा कारण है आतंकवाद जिसके कारण गाजीपुर, आजमगढ़, मेरठ और मुजफ्फरनगर आदि क्षेत्रों में जो मुस्लिम आक्रामकता बढ़ गई थी उसके कारण भी हिंदू एकजुट हुए। साथ ही मोदी जी के नेतृत्व में लोगों का विश्वास भी एक प्रमुख कारण था।

इस देश में नेहरू से लेकर अब तक भारतीय राजनीति में यह धारणा बनी हुई थी कि मुसलमानों के बिना सत्ता संभव नहीं है। पर २०१४ में नरेंद्र मोदी ने जो ‘पैराडाइम शिफ्ट’ किया है उस पर आपके क्या विचार हैं?

देश में ८०% हिंदू वोट हैं। २५% में सरकार बन जाती है। ३२% में पूर्ण बहुमत मिल जाता है। ४०% में दो तिहाई बहुमत की सरकार बन जाती है। इस बार हमें ४३% वोटों के साथ उत्तर प्रदेश में तीन चौथाई बहुमत मिल गया। इधर बीच में हमें मोदी के रूप में एक नेतृत्व मिला है, उसके लिए हम बहुत कृतज्ञ हैं। संघ द्वारा लगातार चलाया जा रहा हिंदुत्ववादी अभियान भी एक बड़ा कारण था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी आतंकवाद की बढ़ोत्तरी की वजह से भी परिवर्तन आया।

सेक्युलरिज्म विचारधारा का भविष्य क्या है?

सेक्युलरिज्म का मतलब है कि हर धर्म बराबर है। हर धर्म से भगवान प्राप्त किया जा सकता है। आप अपने तरीके से पूजा करें, हम अपनी तरह से। परन्तु नेहरू का सेक्युलरिज्म था हिंदुओं को किसी भी प्रकार से नीचा दिखाना। कांग्रेस पार्टी की विचारधारा थी कि हिंदुओं को जाति में बांटो, प्रांतों में बांटो, भाषाओं में बांटो। पर मुसलमानों और ईसाइयों को संगठित, एकजुट करो। मुस्लिम और ईसाई मिला कर १८% हुए। हिंदुओं में से भी १०% या १२% वोट मिल गए तो आराम से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई जा सकती है। पर अब भाजपा निःसंकोच हिंदुओं के एकीकरण की बात करती है। वाजपेयी जी के समय तक भाजपा को थोड़ा संकोच रहता था। इसीलिए उस समय मैं भाजपा में नहीं आया। माधवराव मुल्ये जी बोले, दत्तोपंत ठेंगडी जी बोले, नानाजी देशमुख बोले तो मैंने कहा कि मैं जनसंघ में इसीलिए आया क्योंकि मुझे आपका हिंदुत्व पसंद था और कांग्रेस का सेक्युलरिज्म पसंद नहीं था।

हमें सबसे ज्यादा धन्यवाद अशोक सिंघल जी को देना चाहिए कि उन्होंने ‘राम मंदिर’ का मुद्दा उठा कर लोगों की अस्मिता जगाने का कार्य किया। नहीं तो लोग अपने घरों में चोरी से पंडित को बुला कर धार्मिक क्रिया-कलाप करते थे पर अब लोग खुले तौर पर हिंदुत्व की ओर झुके हैं।

अब हमें वर्ण और जाति से ऊपर उठना पड़ेगा। वर्ण तो वर्गीकरण है। यदि आप प्रोफेसर हैं तो आप चाहे किसी भी जाति में पैदा हुए हो, ब्राह्मण हैं। आंबेडकर को मैं ब्राह्मण मानता हूं, जवाहरलाल नेहरू को नहीं मानता। जबकि उनके नाम के आगे पंडित लगा हुआ है। हमारे इतिहास में भी ऐसे कई प्रसंग हैं। विश्वामित्र क्षत्रिय के घर पैदा हुए पर महर्षि बने। वेद व्यास की मां मछुआरिन थी। उन्होंने महाभारत लिखी। कालिदास वनवासी थे। पेड़ की शाखाएं काटते थे। महाकवि बने। वाल्मीकि दलित परिवार से आए। शुरूआत में वे डकैतियां डालते थे। हमारे यहां ‘वर्ण’ सत्ता का विकेन्द्रीकरण था। जिनके पास ज्ञान था उनके पास धन नहीं था। जिनके पास शस्त्र था, वे राज्य करते थे। पर जब नीति की बात आती थी तो वे ब्राह्मण के पास जाकर उसके पांव छूकर ज्ञान ग्रहण करते थे। पर पश्चिम में ठीक उलटा है। जिसके पास धन ज्यादा है वह ज्यादा बड़ा है। हमारे यहां दलितके बच्चे दलित नहीं होते थे। ये जिस पेशे में जाते थे उसी के कहलाने लगते थे। जातियां तो केवल शादी, विवाह के लिए बनी थीं। क्योंकि भाई बहन में शादी होगी तो नस्ल ही समाप्त हो जाएंगी। इसीलिए हिंदू चेतना का जागृत होना अति आवश्यक है।
देशभर में लगभग ४०,००० मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनाई गई थीं। अशोक सिंघल जी से बात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि सभी की राय है कि इनमें से तीन प्रमुख हैं अयोध्या, काशी और मथुरा। यदि वे इन तीनों पर राजी होते हैं तो हम बाकी को छोड़ देंगे।

उत्तर प्रदेश में एक संन्यासी गद्दी पर बैठा है। इसका क्या अर्थ है?

इसका अर्थ है कि जो योग्य है, उसे मौका मिलना चाहिए। संन्यासी का यह मतलब नहीं है कि वह सबकुछ छोड़ दें। चाणक्य संन्यासी थे। आदि शंकराचार्य संन्यासी थे। संन्यासी का मतलब यह है कि उसे स्वयं के लिए कोई लोभ न हो। महात्मा गांधी भी एक तरह से संन्यासी थे। संन्यासी की वेश-भूषा आदि को लेकर पश्चिम के लोग बहुत आश्चर्यचकित होते हैं। पीएच.डी. करने के लिए जब मैं अमेेरिका गया तो मेरे सहपाठी मुझ से पूछते थे कि आप लोग महात्मा गांधी के पीछे कैसे चलते थे? यह व्यक्ति तो ठीक से कपड़ा भी नहीं पहनता था। आधा नंगा रहता था। मैं पूछता था कि आपके देश में क्या व्यक्ति को पूरी तरह से सूट -बुट में होना चाहिए? तभी आप लोग उसके पीछे चलेंगे। वे बोलते थे हां। व्यक्ति वेल ड्रेस्ड हो। चमकता हुआ जूता । नहीं तो हम सम्मान नहीं देंगे। हमारे देश में ऐसा कोई भी नियम नहीं है कि संन्यासी को सत्ता में नहीं आना चाहिए। बस उसके पास क्षमता होनी चाहिए। ज्ञान होना चाहिए। योगी को बहुत समय से जानता हूं। हम लोगों ने कई आम सभाएं एकसाथ की हैं। वे सब चीजें जानते और समझते हैं। उनका अपना कोई परिवार, कुटुंब नहीं है। कोई अभिलाषा नहीं है। लीपापोती वाले लोग अब नहीं चलेंगे।

युवा वर्ग विकास पर जोर देता है। ऐसे में विकास और हिंदुत्व का गठजोड़ किस तरह संभव होगा?

यह समन्वय ही असली हिंदुत्व है। हमने कभी नहीं कहा कि आर्थिक विकास नहीं होना चाहिए। हमने कभी नहीं कहा कि आर्थिक लाभ के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए। परन्तु एक सीमा होती है। आपको ऐसी भूख नहीं होनी चाहिए कि आप अपनी नैतिकता का ही त्याग कर दें। किसी को बेवकूफबना कर या धोखा देकर धन प्राप्त करने की कोशिश मत कीजिए। राष्ट्र के धरोहर की, संपत्तियों की रक्षा हो, यह समन्वय हिंदुत्व में है। बुद्धिज्म में नहीं है। इसलिए चीन ने कहा है कि हमें हार्मोनियस सोसायटी बनानी है। वहां की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने नए नियमों में कहा है कि हम बुद्ध और कम्युनिस्ट दोनों की आइडियोलाजी को स्थान दें। हमारे यहां भी कितना भी बड़ा नेता हो जाए कुर्ता पायजमा ही पहनता है। हमारे यहां विश्वास है कि हम राष्ट्र के निर्माण के लिए धन कमाएं, अपना वैभव प्रदर्शित करने के लिए नहीं। अब की पीढ़ी पैसे को ही सबकुछ समझती है। यह गलत है। पहले के उच्च संन्यासी एक भगवा कपड़ा पहनते थे और राजा आता था उनके पास उनके पांव धोकर उनसे सलाह मांगता था। वे जो संस्कार थे, हमारे माता पिता की बात मानना, उनकी सेवा करना, भाई बहन के साथ प्रेमपूर्वक रहना, ये हमारी विशेषताएं हैं। इसलिए हिंदुत्व और भौतिकवाद में पूर्ण मेल नहीं है। इनका समन्वय आवश्यक है। सिर्फ जाप करते रहोगे और जीविका के लिए कर्म नहीं करोगे तो भूखे मरोगे। भौतिक विकास और आध्यात्मिकता के समन्वय को ही आधुनिक संदर्भ में दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के रूप में कहा है।

नोटबंदी संदर्भ में आपके विचार क्या है?

इसकी कल्पना सब से पहले मैंने २०१४ में की थी जब नरेंद्र मोदी ने कहा कि आप एक ‘स्ट्रेटजी कमेटी’ बनाइए जिसके आप अध्यक्ष होंगे। श्री श्री रविशंकर के जरिए मेरे पास प्रधान मंत्री का संदेश आया कि मेरा सुझाव क्या है? तब हमने कहा था कि सारा का सारा काला धन ५०० और १००० की नोट की शक्ल में है। इसका डिमोनेटाइजेशन किया जाना चाहिए। परन्तु करने से पहले १०० रुपये के ६ गुना ज्यादा नोट प्रिंट करने चाहिए। इससे कोई अलर्ट नहीं होगा कि क्या होने वाला है। दूसरा, एक दो सौ रुपये का नोट लाना चाहिए। वितरण तथा नोट बदलने की व्यवस्था पब्लिक सेक्टर में ही हो। व्यक्ति को बैंक जाने की आवश्यकता न पड़े। और आखिर मैं मैंने यह कहा कि, आप लोगों से कहें कि जिसके पास जो भी काला धन है, लाकर बैंक में जमा करें। उसमें से सरकार २५%ले लेगी। सामने वाला व्यक्ति भी नए नोटों की शकल में २५% पाएगा। बाकी का ५०% दो प्रतिशत की सालाना दर पर फिक्स डिपॉजिट होना चाहिए। रविशंकर जी ने कहा कि प्रधान मंत्री ने आपका सुझाव मान लिया। पर बाद में वित्त मंत्रालय में सब उलटा पुलटा हो गया। उन्होंने कह दिया कि ५०% सरकार रखेगी। आप २५ % निकाल सकते हैं और बाकी २५ % शून्य व्याज (जीरो इंटरेस्ट) पर फिक्स्ड डिपॉजिट हो। मैंने इसकी अपेक्षा नहीं की थी। लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गई कि बैंक का बाबू तो २५% में बदल रहा है तो हम सरकार को ५०% क्यों दें। कहते हैं कि इसमें निश्चिति हैं। उसमें पकड़े जाओगे तो सजा होगी, हम तो इसमें भी पकड़े जा सकते हैं क्योंकि हमारा नाम सूची में आ जाएगा। इसमें वित्त मंत्रालय ने कोई तैयारी ही नहीं की थी। इस कारण से सारी दिक्कत हुई। लेकिन मोदी ने होशियारी से इसे संभाल लिया।

लोग प्रश्न उठाते हैं कि हिंदुओं में बौद्धिक क्षमता वाले लोगों की कमी है। आप भी एक बौद्धिक व्यक्ति हैं, आपको क्या लगता है? क्या यह सही है?

नहीं। ऐसा नहीं है। यह जो शिक्षा प्रणाली है इसने यह विभिन्नता पैदा कर दी है। हिंदुत्व को घर पर सिखाना आवश्यक है। परंतु आज बच्चों को इतनी पढ़ाई करनी होती है, इतनी परीक्षाएं होती हैं कि इन सब चीजों के लिए समय ही नहीं निकल पाता। अंग्रेजी की पढ़ाई और अंग्रेजी सोच से वे बाहर ही नहीं निकल पाते। मैकाले का दिमाग यही था कि यहां का आदमी इंडियन होगा कलर में, पर इसका सारा दिमाग इंग्लिश होगा। अरविन्दो के पिता ने उनको इंग्लैण्ड भेज दिया और सरकार को सौंप दिया कि इसे यह पता नहीं होना चाहिए कि यह इंडियन है। इसे बंगाली मत सिखाओ। संस्कृत का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। पर उनके अंदर से आवाज आई और वे महर्षि बन गए। हमारी शिक्षा प्रणाली में हिंदुत्व सिखाना चाहिए। मैं मुसलमानों को यही कहता हूं कि डी.एन.ए. के अनुसार हमारे और तुम्हारे पूर्वज एक थे। यह अलग बात है कि तुम्हारे पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। तुम पहले हिंदू थे यह मानने में क्या बुराई है? क्या तुम अपने आपको गोरी और गजनी की औलाद मानते हो? यदि आप अपने आपको उनकी औलाद मानते हो तो आपको इस देश में नहीं रहना चाहिए, पाकिस्तान चले जाना चाहिए। एक प्रकार से अंग्रेजों ने शिक्षा प्रणाली के माध्यम से हमारा साहस और आत्मविश्वास तोड़ दिया है, उसे वापस लाना चाहिए। हमें गर्व से कहना चाहिए कि हम हिंदू हैं। लोग कहने में संकोच करते हैं। मुझे कई लोग कहते हैं कि मैं तो बहुत अच्छा हिंदू हूं पर घर में ही पूजा-पाठ करके आता हूं बाहर तो मैं सेक्युलर हूं। ये सेक्युलर क्या होता है? हिंदू से ज्यादा सेक्युलर कौन हो सकता है? हमने यहूदियों और पारसियों को शरण दी, जिन्हें दुनिया में किसी ने नहीं दी। उन्हें यह सब सिखाना चाहिए। मुझे तो मेरी मां ने कट्टर हिंदू बना दिया। वह तो आर.एस.एस. को भी हिंदुत्व के मामले में फीका समझती थी।

२०२२ में देश की स्वतंत्रता को ७५ साल पूरे हो रहे हैं। उस समय विश्व में अपने देश की स्थिति क्या होगी?

दस साल में भारत-चीन को पीछे छोड़ देगा। चीन की वित्तीय प्रणाली खराब है। उन्होंने जिस प्रकार से नोट छापे हैं, जिस प्रकार से बेईमानी की है उनके लिए खतरनाक है। इसी तरह जापान की बात हो रही थी। जापान तो अमेरिका को ओवरटेक करने की तैयारी में था। एकाएक वहां की आर्थिक प्रणाली टूटी, धडाम से। वैसी ही दशा चीन की भी होगी। हमारी सीधी टक्कर अमेरिका से होगी। क्यों? क्योंकि अमेरिका की सारी प्रणाली इनोवेशन अर्थात् नवीनतम् प्रणाली से काम करने पर आधारित है। प्रगति के नए-नए तरीकों का इस्तेमाल करने को इनोवेशन कहते हैं। जैसे पहले पैदल आते-जाते थे। फिर बैलगाड़ी आई, मोटार गाड़ी आई। उसके बाद हवाई जहाज आया। अब तो रॉकेट में भी जा सकेंगे, ऐसी व्यवस्था होने वाली है। पहले हम हाथ से चिट्ठी लिखते थे। अब तो ईमेल से तुरंत पहुंच जाती है। इसे भी इनोवेशन कहते हैं। ये चीजें अमेरिका करता आया है, इसलिए आगे है। लेकिन बुद्धि के मामले में हम भी किसी से कम नहीं है।

जिस दिन हमारी शिक्षा-प्रणाली सुधरी और हमारी युवा पीढ़ी इनोवेशन के प्रति सजग होगी और सोचने लगेगी तो हम भी आगे बढ़ जाएंगे। अब आपके प्रश्न के उत्तर में कहना चाहूंगा कि २०२२ तक हम निःसंकोच हिंदू राष्ट्र माने जाने के लिए तैयार होंगे। हिंदू राष्ट्र एक राजनीतिक कल्पना नहीं है। हमारा गणराज्य संविधान पर आधारित है। परन्तु जो हमारी अस्मिता है, वह हिंदुत्व है। जब मैं हिंदू राष्ट्र की बात करता हूं तो मैं ये नहीं कहता कि आप दुर्गा की पूजा करो, या शिव की पूजा करो। बल्कि जो संस्कार हैं वे हिंदू होने चाहिए और रिश्तों के नियम हमारे होने चाहिए। मुसलमानों को देख कर मुसलमान नहीं लगना चाहिए। सभी लोग एक ही पूर्वज से हैं। यह कल्पना है, हिंदू राष्ट्र की। यह २०२२ तक स्थापित हो जाएगी। मैं देख रहा हूं कि पिछले चार-पांच सालों में हम जिस तेजी से आगे बढ़ रहे हैं हो जाएगा। अगले १५ सालों में हमारी सीधी टक्कर अमेरिका से ही होगी। चीन तो पीछे छूट जाएगा।
इंट्रो
मैंने कहा था कि भाजपा में सोशलिज्म नहीं चलेगा और मेरा वाजपेयी से झगड़ा हो गया था। पर आखिर में मेरी बात मानी गई। आज मैं कहता हूं कि चीन के साथ हमारे रिश्ते अच्छे होने चाहिए तो लोग बिगड़ जाते हैं। रिश्ते अच्छे हों पर जवाहरलाल नेहरू की तरह समर्पण नहीं कर देना चाहिए।

२०१४ में फिसलन शुरू हुई और २०१७ के आते-आते कांग्रेस समाप्ति की कगार पर है। आपके विचार से इसके पीछे क्या कारण है?

किसी भी पार्टी में जो विकेन्द्रीकरण होना चाहिए, वह कांग्रेस में नहीं है। कांग्रेस एक पारिवारिक पार्टी है। ‘गांधीवादी समाजवाद’ के पागलपन वाले दौर छोड़ दें तो भाजपा पूरी विकेन्द्रीकृत है। भाजपा में संघ है, उसके संगठनों के सदस्य हैं। भाजपा वाजपेयी के परिवार की पार्टी नहीं है। नरेन्द्र मोदी के परिवार की पार्टी नहीं है। मूल रूप से जो सत्ता का विकेन्द्रीकरण है यही है इसकी शक्ति। भाजपा जैसी पार्टी दो सीट तक गिर सकती है पर फिर ऊपर उठ कर एक चुनाव में १२० सीट तक भी जा सकती है। एक कुटुंब का धु्रवीकरण हो जाने से कभी भी पार्टी नहीं बन सकती है। यह इतना विशाल देश है। इसके लिए तो विकेन्द्रीकरण आवश्यक है।

लोग सुब्रह्मण्यम स्वामी जी को सुनने के लिए लालायित रहते हैं। जो कोई और नहीं कह पाता आप कहते हैं। राजनैतिक व्यक्तित्व होते हुए भी यह सच्चाई आपकी वाणी में कैसे आई?

फौजी अनुशासन की जो कल्पना है, फौज में जो अनुशासन है वह विचारों में कभी नहीं हो सकता। विचारों में यह होना चाहिए कि कुछ भी बोलो, कभी भी बोलो पर जब निर्णय होगा तो फिर उस पर बंधन हमारा है। दूसरे देशों में, अमेरिका में, डेमोक्रेटिक पार्टी, गाली-गलौज़ दोनों तरफ चलेगी। एक बार प्रेसिडेंट का कैंडिडेट वगैरह तय हो जाए तो फिर सब एकजुट हो जाते हैं। वह है लोकतंत्र, पार्टी का फैसला मतलब आपसी सहमति से। यह नहीं कि अध्यक्ष ने कह दिया तो हो गया। वोटिंग की जरूरत हो तो वह भी होनी चाहिए। एक समय में कांग्रेस पार्टी में भी, जब महात्मा गांधी थे तो यह सिस्टम था पर धीरे-धीरे सब समाप्त हो गया। एक परिवार पूरी तरह से हावी हो गया।

मैंने कहा था कि भाजपा में सोशलिज्म नहीं चलेगा और मेरा वाजपेयी से झगड़ा हो गया था। पर आखिर में मेरी बात मानी गई। आज मैं कहता हूं कि चीन के साथ हमारे रिश्ते अच्छे होने चाहिए तो लोग बिगड़ जाते हैं। रिश्ते अच्छे हों पर जवाहरलाल नेहरू की तरह समर्पण नहीं कर देना चाहिए। चीन को अपने पक्ष में करने का लक्ष्य है, पाकिस्तान को खत्म करने के लिए। लोग कहते हैं कि क्या पाकिस्तान को खत्म करने के लिए चीन सहमत हो सकती है? बिल्कुल हो सकता है। लोग कहते थे कि चीन कम्युनिस्ट हैं, वे कभी भी कैलाश मानसरोवर का रास्ता नहीं खोलेंगे पर मैंने खुलवा दिया। दूसरी बार जब मैं जून में गया तो चीनी सरकार ने मेरी व्यवस्था की। चीन की संस्कृति और हमारी संस्कृति एक जैसी है। दलाई लामा को हम धार्मिक गुरू मानते हैं। मैं भी उन्हें धार्मिक गुरू मानता हूं। बड़े ज्ञानी व्यक्ति हैं, भगवान बराबर है। पर आपने संधि पर दस्तखत किया है। पहले जवाहरलाल नेहरू ने किया। बाद में २००३ में वाजपेयी ने किया कि तिब्बत चीन का हिस्सा है। अब जो व्यक्ति कहता है कि तिब्बत को चीन से अलग करो उन्हें कैसे हमारे मंत्री सम्मान देते हैं? ये कैसे हो सकता है? तो फिर संधि को ही रद्द कर दो। परिणाम होंगे पर रद्द तो कर दो। जब मैं ऐसा कहता हूं तो लोग चिढ़ जाते हैं कि स्वामी चीन का पक्ष ले रहे हैं। मैं कहां चीन की पक्ष ले रहा हूं। मैं तो अपने देश के हित की बात कर रहा हूं। अगर हमारे बीच लड़ाई होती है तो हमें फिर से अमेरिका पर निर्भर होना पड़ेगा। अमेरिका यदि चीन के साथ चला जाएगा तो हमारा नुकसान होगा। उस समय भी हम अमेरिका की तरफ नहीं गए। रूस की तरफ चले गए और पाकिस्तान अमेरिका की ओर चला गया। रूस हमारे लिए कुछ नहीं कर सका पर अमेरिका ने पाकिस्तान की भरपूर मदद की। जो आपको सही लगता है, उन बातों में हिम्मत करना चाहिए। जनता को बताना चाहिए। उस पर बहस होनी चाहिए और किसी की नीयत पर शक नहीं होना चाहिए।

लोग कहने में संकोच करते हैं। मुझे कई लोग कहते हैं कि मैं तो बहुत अच्छा हिंदू हूं पर घर में ही पूजा-पाठ करके आता हूं बाहर तो मैं सेक्युलर हूं। ये सेक्युलर क्या होता है? हिंदू से ज्यादा सेक्युलर कौन हो सकता है? हमने यहूदियों और पारसियों को शरण दी, जिन्हें दुनिया में किसी ने नहीं दी। उन्हें यह सब सिखाना चाहिए। मुझे तो मेरी मां ने कट्टर हिंदू बना दिया। वह तो आर.एस.एस. को भी हिंदुत्व के मामले में फीका समझती थी।

केरल में कम्युनिज्म के माध्यम से आर.एस.एस. के खिलाफ जो हिंसा हो रही है, उस पर आपके क्या विचार हैं?

हमारे संविधान में उनुच्छेद ३५६ हैै तो उसे खत्म करने की बात हो रही है। केन्द्र की सरकार किसी भी प्रांत सरकार को खारिज कर सकती है, यदि वह संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर रही है। और भी अनुच्छेद हैं। एक अनुच्छेद है ३५६, उसमें लिखा है कि केन्द्र सरकार आदेश दे सकती है कि आपको यह करना है। अनुच्छेद २४७ है, उसमें लिखा है कि संसद को अधिकार है कि केरल में उनका जो सीनियर मोस्ट डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट है, उसके ऊपर भी केन्द्र से आप अधिकारी ला सकते हैं। अभी तक राज्य सरकार के पास यह अधिकार है। पर कानून बनाना पड़ेगा। इस प्रकार हमें वहां केन्द्रीय फोर्स, जैसे सीआरपीएफ भेजने चाहिए। हम सत्तारूढ़ पार्टी हैं और वहां पर रोज संघ के कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही हैं। यह तो हमें बर्दाश्त नहीं है। कुछ हमारे लोग भी हैं जो कि शिष्टाचार की बात करते हैं। कहते हैं कि इस पर हल्ला होगा। हल्ला होगा तो होने दो। यदि संविधान के अनुसार है तो करना चाहिए। मुझे बहुत दुख होता है कि हमने केरल के स्वयंसेवकों को अकेला छोड़ दिया है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu faithhindu traditionreligiontradition

अमोल पेडणेकर

Next Post

मोदी की लुक ईस्ट विदेश नीति व बौद्ध दर्शन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0