हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

राष्ट्र सुरक्षा से ही राष्ट्र विकास

by अमोल पेडणेकर
in जून २०१७, राजनीति
0

राष्ट्रीय एकता व विकास को मारक पाकिस्तान की भारत विरोधी कारगुजारियों, नक्सली कार्रवाइयों, घुसपैठ, जवानों पर होनेवाले हमलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। देश में सभी स्तरों पर शांति आने पर वह जनता के मन तक पहुंचेगी। अन्यथा एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से अपना अस्वस्थ राष्ट्रीय मन तो खुश हो गया; लेकिन राष्ट्र-सुख का अनुभव दीर्घकाल तक अनुभव करता नहीं दिखाई दे रहा है।

जिन व्यक्तियों को राष्ट्रभान है, समाजभान है उन्हें विचलित करने वाली अनेक घटनाएं पिछले कुछ दिनों में लगातार हो रही हैं। कश्मीर में मतदान की व्यवस्था के लिए गए फौजी जवानों पर कश्मीरी युवकों द्वारा किया गया अपमानजनक हमला, जवानों पर लगभग रोज होने वाली पत्थरबाजी, छत्तीसगढ़ के सुकमा में योजनाबद्ध तरीके से नक्सलियों द्वारा पुलिस के २५ जवानों की क्रूर हत्याएं, भारत-पाकिस्तान सीमा पर भारतीय सीमा में घुसकर भारतीय जवानों का सिर कलम करना, केरल में संघ स्वयंसेवकों पर निरंतर होने वाले हमले और उनकी हत्याएं मन को अस्वस्थ करने वाली घटनाएं हैं।

सारा विश्व मानता है कि राष्ट्र को सुदृढ़ता की ओर ले जाने वाला शासन वह होता है जो राजनीतिक शक्ति का उचित उपयोग करें, नीतियों एवं कार्यक्रमों की निर्मिति करें, उनका उचित तरीके से क्रियान्वयन करे- जिसमें समानता, पारदर्शिता, निष्पक्षता, सामाजिक संवेदनशीलता व सहभागिता का दर्शन हो। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बात होती है जनता के बीच सुरक्षा की भावना पैदा होना। ये बातें स्थानीय चिंता के विषय हैं लेकिन इनका समाधान शासन किस तरह करता है इस पर सबकुछ निर्भर है। सुशासन लाने का एक महत्वपूर्ण कारक यह भी है कि जनता के मन में असुरक्षा व भय की भावना खत्म हो तथा उसे विकास की दिशा में पे्ररित किया जाए।

पिछले ३ वर्षों से मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत देश विकास की दिशा में मार्गक्रमण कर रहा है। भारत को विश्व के महान राष्ट्रों की श्रेणी में ले जाने का सपना संपूर्ण भारत देश देख रहा है। इसमें शासन के रूप में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तीव्र गति से मार्गक्रमण हो रहा है। देश को एक महान राष्ट्र बनाने के मार्ग में यदि कोई बाधा है तो ऊपर उल्लेखित घटनाओं से निर्माण होनेवाली असुरक्षितता। राष्ट्र विकास के कार्य में इन सारी घटनाओं से निर्मित होने वाली असुरक्षा की भावना अड़ंगे के रूप में खड़ी है। सीमावर्ती इलाकों और देश के आंतरिक भागों में सुरक्षा चिंता का विषय है, इसमें कोई दो राय नहीं है। पिछले छह दशकों में आंतरिक सुरक्षा का उचित समाधान कांग्रेस द्वारा न खोजे जाने से कभी सामान्य लगनेवाली यह बात आज समस्याओं का पहाड़ बनकर ऐसी उभरी है कि उसका हल खोजना सीमा से बाहर लगता है।

विरोधी राष्ट्र को हानि पहुंचाने के लिए शत्रु देश इस तरह के नाराज गुटों की हर तरह से मदद करता है। शत्रु देश अपने विरोधी राष्ट्र पर छिपकर वार करता है, असंतुष्ट गुटों को प्रोत्साहन देकर हमले करवाता है। विरोधी राष्ट्र को हानि पहुंचाने के लिए न्यूनतम खर्च पर ये छिपे हमले इस तरह करवाए जाते हैं तकि बाद में वह राष्ट्र ऐसी घटनाओं से अपना पल्ला झाड़ सके और सीधे सादे बनकर घटना की निंदा भी करें- फिर चाहे फिर भारत की सीमा में होने वाले आतंकवादी हमले हो, मुंबई में हुआ आतंकवादी हमला हो या फिर जवानों के सिर काटने की घटना हो। इन सभी घटनाओं में पाकिस्तान की भूमिका होती ही है; लेकिन घटना होते ही वह अपना पल्ला झाड़ लेता है। पाकिस्तान सदा से भारत के प्रति शत्रुता की भावना पाले हुए है। लेकिन फौजी कार्रवाई या अन्य बात से पाकिस्तान अपनी राजनीतिक मंशा पूरी नहीं कर सका। इसलिए पाकिस्तान ने एक तरह से गुरिल्ला युद्ध को अपना साधन बनाया है। भारत ने आतंकवाद, विद्रोह, नक्सलवादी घटनाओं में लाखों निवासियों एवं सुरक्षा रक्षकों की जानें गंवाई हैं। प्रचंड आर्थिक हानि भारत झेल रहा है। आतंकवादी घटनाएं, नक्सलियों के हमले, घुसपैठ, सीमा पर होने वाले हमले इन सब में आई तेजी देखें तो भारत की ओर से किए जा रहे सुरक्षा उपाय कम पड़ते लगते हैं। निरंतर होने वाली आक्रामक घटनाओं पर एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ठीक है; लेकिन वह कोई उपाय साबित नहीं होता। यही क्यों, इस तरह के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का पाकिस्तान जैसे भारतद्वेषी राष्ट्र पर कोई असर पड़ा हो ऐसा भी दिखाई नहीं देता। भारत को पाकिस्तान जैसे निखट्टू राष्ट्र को ऐसा बड़ा सबक सिखाना चाहिए कि वह फिर से किसी दुस्साहस की जुर्रत न कर सके। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए ९/११ के हमले के ४८ घंटों के भीतर ही पूरी व्यवस्था में सुधार करने का अमेरिका ने नीतिगत निर्णय किया। उसके परिणाम अमेरिका में अब तक अनुभव किए जा रहे हैं।

भारत में आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न राज्यों में अशांति, कश्मीर की समस्या, नक्सली हमले, घुसपैठ से उत्पन्न होने वाली समस्याएं ये केवल देश की आंतरिक समस्याएं ही नहीं रह गई हैं। बाहरी राष्ट्र अपनी रणनीति एवं हित साधने के लिए छद्म मार्ग से कार्यरत हैं। भारत के भीतर आतंकवाद, विद्रोह, नक्सली हमले, घुसपैठ, युवाओं को गुमराह करने आदि बातों को अंजाम देने में ये राष्ट्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। पाकिस्तान कश्मीर में जिहादी भावनाओं को बल देकर एक युद्ध मशीन के रूप में कश्मीर का भारत के खिलाफ उपयोग कर रहा है। इससे भारत को प्रचंड मात्रा में हानि झेलनी पड़ रही है। भारत में तेजी से बढ़नेवाली मुस्लिम जनसंख्या देश को गंभीर सुरक्षा एवं वैचारिक संकट की ओर ले जा रही है। भारत में एक ओर बढ़नेवाली मुस्लिम आबादी भविष्य में बहुत घातक साबित होनेवाली है। इस बारे में वैचारिक, राजनीतिक एवं सामाजिक स्तर पर संघर्ष खड़ा करना आवश्यक है।

जम्मू-कश्मीर के साथ देश के अन्य भागों में मुस्लिम युवकों में जहरीली जिहादी भावना बढ़ाकर उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काया जा रहा है। उन्हें भारत के आंतरिक हिस्सों में आतंकवादी हमलों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। मदरसों एवं मुस्लिम संस्थाओं के जरिए भारत के विरोध में द्वेष की भावना पैदा करने का काम होता है, विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में यह प्रयोग होता है। यह एक विनाशक प्रवृत्ति है। इस संकट का सामना करने के लिए नीति तय करना और उस नीति पर बहुत सक्षमता से अमल करना आवश्यक है। मुंबई पर हुए २६/११ के आतंकवादी हमले से साफ होता है कि पाकिस्तान भारत के विरोध में नए-नए तरीकों से हमले करवाने के लिए लगातार प्रयत्नशील है। पिछले तीस वर्षों से भारत इस तरह की घटनाओं को झेल रहा है। लेकिन इन घटनाओं के विरोध में भारत ने सक्रिय होकर अब तक ऐसा कोई जबर्दस्त जवाब पाकिस्तान को नहीं दिया है ताकि वह फिर से ऐसा करने का साहस न कर सके और आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने से बाज आए। पाकिस्तान से सतत दी जा रही परमाणु बम की धमकियों को एक सीमा से बाहर भारत को नहीं सहना चाहिए; क्योंकि तुलनात्मक रूप से पाकिस्तान भारत से कई गुना दुर्बल राष्ट्र है। यदि पाकिस्तान की आतंकवादी कार्रवाइयां हद से ज्यादा बढ़ती हैं तो भारत पाकिस्तान के लिए कई गुना खतरनाक साबित हो सकता है। भारत को परमाणु बम का प्रथम प्रयोग न करने की ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ पर पुनः गौर करना चाहिए।

नक्सली विचारधारा भारत के लिए अत्यंत खतरनाक और चुनौतीभरी है। १५ वर्ष पूर्व तक देश के ९ राज्यों के ५३ जिलों में नक्सली प्रभावी थे, आज २२ राज्यों के २०३ जिलों में नक्सली कार्रवाइयां बढ़ गई हैं। नक्सली आंदोलन का अब फौजीकरण हो चुका है। इस तरह अतिदुर्गम इलाकों में भी नक्सली विचारधारा लोगों तक पहुंच चुकी है। जिनका पिछले अनेक वर्षों से आर्थिक व सामाजिक शोषण हुआ है, वह उपेक्षित वर्ग सहजता से नक्सली विचारधारा के जाल में फंसता है। माओवादी उस उपेक्षित वर्ग को बेहतर न्यायपूर्ण व्यवस्था, शोषणमुक्त जीवन, रोजगार व सुरक्षा देने का आश्वासन देते हैं। लेकिन वास्तव में ये माओवादी विचारक इस वंचित समाज को देश के विकास के प्रवाह से दूर रखने का काम कर रहे हैं। इसलिए माओवादी आंदोलन एक समस्या बन चुकी है। हजारों भोलेभाले आदिवासी और गरीब लोग वामपंथियों के दुष्ट प्रचार के झांसे में आ जाते हैं। वैचारिक बुनियाद का अभाव होने से यह माओवादी आंदोलन संगठित राष्ट्रविरोधी आपराधिक घटनाओं का अड्डा बन गया है। अत्यंत गरीब व निर्धन क्षेत्र के युवाओं को माओवादियों से होनेवाली आर्थिक सहायता उन्हें उस ओर आकर्षित करती है। माओवादी प्रति वर्ष लगभग २००० करोड़ रु. भारत के दुश्मन राष्ट्र से जुटाते हैं, जिससे नक्सली कार्रवाइयों को बल मिलता है। इससे नए कैडेट खड़े किए जाते हैं। हथियार खरीदे जाते हैं। अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए माओवादी इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा वे लूटपाट, भ्रष्ट अधिकारियों से हफ्ता वसूली, सुरक्षा गारंटी राशि, अमीर जमीनदारों, ठेकदारों से भी रकम जमा करते हैं। यह एक विडम्बना है। नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन इन योजनाओं पर काम करने वाले ठेकेदार हफ्ता देकर नक्सली विचारधारा की सुरक्षा की एक तरह से गारंटी ही देते हैं। इससे नक्सली आंदोलन फलफूल रहा है।

हाल में पूर्वोत्तर में विकास की बयार बहने का माहौल बना है। वहां के शांतिपूर्ण माहौल के लिए यह जरूरी है। पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश तथा पूर्वोत्तर के विद्रोही गुटों के साथ नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किया गया शांति समझौता एक अच्छी बात है। यह सुरक्षा की दृष्टि से अच्छा कदम है। लेकिन ५२१५ किमी की सीमावाले इस क्षेत्र में बाह्य समस्याओं का हस्तक्षेप है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चीन के साथ भारत के रिश्तें अच्छे नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्य की लगभग १५६१ किमी सीमा चीन से लगी है। चीन की बढ़ती आक्रामकता, विस्तारवाद और सीमा क्षेत्र में होनेवाली फौजी गतिविधियां, अरुणाचल के कुछ हिस्से पर अधिकार जताना और पूर्वोत्तर की माओवादी ‘उल्फा’ के आतंकवादियों के पास चीनी हथियार मिलना इस पृष्ठभूमि में पूर्वोत्तर के राज्यों में चीन का खतरा अधिक बढ़ गया है। सरकार को विद्रोही गुटों से शांति वार्ता की नीति पर चलते समय उनके दृष्टिकोण, उद्देश्यों के प्रति स्पष्टता रखना जरूरी है। अब तक हुए शांति समझौतों को शांति का माघ्यम माना जाए। लेकिन यदि अपने लक्ष्य को पाने की ये गुट गलती करते हैं तो भारत अपनी ही रणनीति के जाल में फंस जाएगा। विद्रोही गुट अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं। सीमा पार चीन व बांग्लादेश जैसे राष्ट्रों के साथ सम्बंध स्थापित कर रहे हैं। नए-नए आधुनिक हथियार खरीदी कर रहे हैं। ऐसे समय में सरकार एक-दो समझौतों पर खुश होकर उसका प्रचार कर उसका लाभ न उठाए। यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में इसके विपरीत परिणाम भारत को भोगने होंगे।

भारत की भौगोलिक स्थिति एवं उसकी विस्तृत सीमाओं के कारण पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में लोग घुसपैठ करते हैं। लगभग सभी पड़ोसी देशों में समान स्थिति यह है कि जाति, धर्म, भाषा की दृष्टि से भारतीय लोगों से इन पड़ोसी देशों के लोगों की साम्यता होती है। इसलिए घुसपैठिए यहां आसानी से घुलमिल जाते हैंै और पता भी सहजता से नहीं लगता। भ्रष्टाचार, भारतीय राजनीति में सत्ता-स्पर्धा, न्यायिक व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था में सुराख से इन घुसपैठियों का घुसना आसान होता है। देश में आंतरिक असुरक्षा का माहौल बनता है। बांग्लादेश से पूर्वोत्तर के राज्यों में होनेवाली घुसपैठ भीषण रूप धारण कर चुकी है। असम, प.बंगाल के कई सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या का संतुलन ही बदल गया है। इससे वहां के मूल निवासी नागरिकों पर अपनी जमीनें बेचकर उस क्षेत्र से पलायन करने की नौबत आ गई है। आज बांग्लादेश से होने वाली अवैध घुसपैठियों की संख्या ५० लाख से अधिक हो चुकी है। ये घुसपैठिए सीमावर्ती क्षेत्र अथवा राज्य असम, प.बंगाल, मेघालय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य राज्यों में दूर-दूर तक पहुंच चुके हैं। बड़ी मात्रा में आए इन घुसपैठियों से जनसंख्या परिवर्तन, सामाजिक संघर्ष और सुविधाओं पर बहुत विपरीत परिणाम हुआ है। ये घुसपैठिए अपने साथ भारत-विरोधी विचार और धार्मिक कट्टरवाद के खतरे भी लेकर आते हैं। पाकिस्तान भी देश के विभिन्न भागों में भारत-विरोधी लक्ष्य सामने रखकर अत्यंत छद्म तरीके से पाकिस्तानी नागरिक घुसा रहा है। पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर लोग नियमित वीजा लेकर आते हैं और बाद में यहां गायब हो जाते हैं।

भारत की स्वतंत्रता को २०२२ में ७५ पूरे हो रहे हैं। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव २०२२ में मनाया जानेवाला है। तब ‘समर्थ भारत’ हमारा सपना है और उस दिशा में हमारा मार्गक्रमण होना चाहिए। भाजपा को उत्तर प्रदेश में प्राप्त जनादेश के बाद दिल्ली के भाजपा कार्यालय में विजयोत्सवी भाषण करते हुए मा. नरेंद्र मोदी ने यह सपना भारत के समक्ष रखा है। भारत समर्थ बनने का सपना बच्चों से बूढ़ों तक सबको अच्छा लगता है। लेकिन कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया पूरी कर लौटनेवाले फौजियों पर लातों से प्रहार करनेवाले कश्मीरी युवा, सुनियोजित ढंग से २६ जवानों का हत्याकाण्ड करनेवाले नक्सली, फौजियों पर पत्थरबाजी करनेवाले कश्मीरी युवक, भारत की सीमा में घुसकर भारतीय जवानों का सिर काटकर ले जाने वाले पाकिस्तानी जैसी अनेक घटनाएं भारत का कौनसा चित्र उपस्थित करती हैं? असामाजिक तत्वों, आतंकवादियों पर पुलिस व फौज का खौफ होना सुशासन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसके आधार पर ही राष्ट्र विकास का कार्य सम्पन्न होता है। जिन कम्युनिस्टों एवं माओवादियों का तत्वज्ञान ‘क्रांति बंदूक की नली से आती है’ इस विचारधारा पर आधारित है या जिन्हें विश्व के सभी मुसलमान एक लगते हैं और भारत का इस्लामीकरण करना चाहते हैं उनके समक्ष भारतीय गुप्तचर व्यवस्था क्यों विफल हो रही है? क्यों नक्सलियों के हमले, सीमा पर होनेवाले हमले, पत्थरबाजी करनेवाले कश्मीरी युवा जैसे वही-वही दृश्य बार-बार उपस्थित होतेे हैं? कांग्रेस ने अपने लम्बे शासन के दौरान क्या किया? नेहरु ने कश्मीर के बारे में क्या गड़बड़ियां कर रखी हैं? यह सच्चाई दुनिया के सामने है। अतः पिछले छह दशकों से धीरे-धीरे वृद्धिगत परंतु अब भारी पड़ रहा पाकिस्तान का सिरदर्द, नक्सलवाद, कश्मीर समस्या आदि का नरेंद्र मोदी सरकार किस तरह समाधान खोजती है इस पर सारे देश की नजरें लगी हैं।

अपने पड़ोसी देश श्रीलंका ने वहां का आतंकवाद जिस तरह खत्म किया, पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद को उसी तरह खत्म करना होगा। विश्व में जिस पैमाने पर मुस्लिम आतंकवाद सिरदर्द बन गया है, उतना ही मुस्लिम आतंकवाद का विरोध भी हो रहा हे। अफगानिस्तान में इसिस के शिविर पर अमेरिका द्वारा किए गए बम हमले पर दुनिया में किसी ने भी आंसू नहीं बहाये। इससे विश्व जनमत का पता चलता है। अपना छोटा-सा पड़ोसी श्रीलंका यह कर सकता है, इसका उदाहरण हमारे समक्ष है।

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से पाकिस्तान में हुई क्षति की अपेक्षा उसे प्रसिद्धि ही अधिक मिली ऐसा लगता है। इससे पाकिस्तान जैसे द्वेष-प्रेरित राष्ट्र की हेकड़ी कोई खत्म नहीं हुई है, बल्कि भारत-द्वेष का उत्साह और बढ़ गया लगता है। पाकिस्तान के हर हमले के बाद, गांव-गांव में होनेवाले भीषण कृत्यों के बाद ‘इन हमलों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाएगा’ और ‘ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा’ जैसे जुमलों का इस्तेमाल किया जाता है। कांग्रेस ने पिछले कई वर्षों में इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल किया। लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कर सके। पिछले छह दशकों में देश के भीतर अस्वस्थता सभी स्तरों पर बढ़ रही है। आतंकवाद, घुसपैठ, अलगाववादी आंदोलनों को नियंत्रित करने के भरसक प्रयास हुए परंतु सरकार कोई भी हो, किसी भी दल की हो उन्हें विफलता ही हाथ लगी है। ऐसी स्थिति में देश मोदी सरकार की ओर अत्यंत उम्मीद से, आशा से देख रहा है। २०२२ तक राष्ट्र विकास के सभी स्तरों पर छलांग लगाकर भारत को सामर्थ्यपूर्ण बनाने का सपना हम देख रहे हैं। यह सपना देखते समय कानून-सुव्यवस्था, प्रशासन के प्रति विश्वास, सुरक्षा की भावना; ये बातें अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। पुलिस, फौजी जवानों का सम्मान, उनके द्वारा हाथ में लिए गए अभियान राष्ट्र विकास में सभी अर्थों में पोषक होते हैं। इसलिए देश में द्वेष, प्रतिशोध और अविश्वास का माहौल पैदा कर राष्ट्र विकास को नुकसान पहुंचानेवाला वातावरण निर्माण करने वाली देश के भीतर की एवं भारत में इस माहौल को बल देने वाली ताकतों का समय पर इलाज करना एवं उनमें खौफ पैदा करनेवाली व्यवस्था कायम करना बहुत जरूरी है। राष्ट्र का विकास देश में स्वस्थ माहौल पर निर्भर करता है। राष्ट्रीय एकता व विकास को मारक पाकिस्तान की भारत विरोधी कारगुजारियों, नक्सली कार्रवाइयों, घुसपैठ, जवानों पर होनेवाले हमलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उसमें राजनीतिक विज्ञापनबाजी न हो। देश में सभी स्तरों पर शांति आने पर वह जनता के मन तक पहुंचेगी। अन्यथा एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से अपना अस्वस्थ राष्ट्रीय मन तो खुश हो गया; लेकिन दीर्घकाल तक राष्ट्र-सुख का अनुभव करता नहीं दिखाई दे रहा है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

अमोल पेडणेकर

Next Post

प्रधानमंत्री नहीं राष्ट्रसेवक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0