छह बहनें

अगर गांव के बुजुर्ग लोग सिरूक के नीचे डूबने तक बाहर बैठते तो खेती-बारी करने के लिए जंगल काटने का समय आ गया है ऐसा कह कर वे खेती करने के लिए जंगल काटना शुरू करते थे। १० मई के करीब संध्या के समय चांद डूबता है तो मिजो लोग ‘‘धान का बीज’’ खेत में बोते थे। मिजो जाति के बुजुर्ग लोग सिरूक को समय मापन का साधन मानते थे।

पुराने जमाने की बात है। किसी एक जवान लड़के को ‘‘सिचंगनेई’’ नाम बहुत अच्छा लगा। वह बार-बार कहता था जब मेरी शादी होगी और बच्चे होंगे तो उनके नाम के आगे ‘‘सि’’ यानि ‘‘तारा’’ अवश्य लगाऊंगा। एक दिन उस जवान युवक की शादी हो गई। उसकी पहली संतान एक लड़की पैदा हुई। जैसा कि पहले उसने कहा था उसी तरह उसने अपनी पहली बेटी का नाम ‘‘सिमोई’’ रखा। दूसरी भी बेटी ही थी। उसने उसका नाम ‘‘सिखुमी’’ रखा। इस तरह उसे छह बेटियां पैदा हुई। उसने तीसरी बेटी का नाम ‘‘सिन्हूनी’’ रखा। इस तरह फिर और तीन बेटियों के नाम उसने ‘‘सिलियानी’’, ‘‘सितांगी’’ और ‘‘सिकूंगी’’ रखे।

सभी छह बहनें बड़ी होकर बहुत गुणवान और सुंदर युवतियां बन गईं। सभी लोग उनकी प्रशंसा करते थे। वे सभी सुंदर थीं, होशियार थीं, परिश्रमी थीं, बलवान तथा लम्बे कद की थीं उन सबके नाम के आगे ‘‘सी’’ लगने के कारण गांव के लोग उन्हें ‘‘सिरुकी बहनें’’ कहा करते थे।

एक रात उनके घर में छह नवयुवक मेहमान उन बहनों से मिलने आए। ये नवयुवक मेहमान बहुत सुंदर थे और देखने में बहुत ही सीधे-सादे लगते थे। वे अपने चेहरे छह उन बहनों को दिखाना नहीं चाहते थे इसलिए अंधेरे की तरफ मुंह करके ही उनसे बातचीत करते थे। अपने घर आए मेहमानों के चेहरे न देख पाना व आमने-सामने बातचीत न करना उन छह बहनों को अटपटा लगा। अतः एक बहन झाडू खोजने के बहाने उठकर मेहमानों के सामने अचानक दीप जलाने लगी। वे सभी छह भाई इतने कम समय में ऐसी स्थिति के लिए तैयार नहीं हो पाए। अतः वे लोग अपने-अपने पंखों से मुंह छिपाने लगे और तुरंत ही खिड़की के रास्ते से एक साथ बाहर उड़ गए।

सिरूकी बहनें (छह बहनें) बहुत ही आश्चर्यचकित हुई। उन्हें डर भी लगने लगा था। किंतु साथ ही साथ वे उनसे फिर मिलने की लिए भी उत्सुक थीं। उन्होंने अपने पिताजी को सारी बातें बताईं। लेकिन पिताजी इतने आश्चर्यचकित नहीं हुए क्योंकि उन्होंने सपने में ऐसी बातें देखी थीं। सपने में जो-जो देखा था, उसे उसने अपनी बेटियों को बताना उचित नहीं समझा।

उन छह नवयुवकों ने दूसरे ढंग से फिर आने की सोची। उनमें से केवल दो भाई उसी गांव में साधारण मेहमानों के रूप में घूमने आए। रात को जोलबूक (पुराने जमाने में मिजो गांव के सभी जवानों के रहने का स्थान या आश्रम जहां गांव के वरिष्ठ, नौजवानों को हर तरह की शिक्षा प्रदा करते थे और मनोरंजन भी करते थे। गांव में अचानक कोई भी घटना जैसे-दुश्मनों का आक्रमण जंगली जानवर या पालतू जानवर के काटने आदि से गांव की रक्षा करने के लिए यहीं से एक साथ कदम उठाते थे। इस आश्रम को ‘जोलबूक’ कहते हैं) में रुकने के लिए आए।  गांव के जवानों ने ‘‘इंबुआन’’ (रेसलिंग/कुश्ती) खेलने के लिए उन्हें चुनौती दी। उन दोनों भाइयों ने एक-एक करके सभी के साथ कुश्ती लड़ी। गांव के सभी जवान हार गए।

गांव के जवानों को अभी तक मालूम नहीं था कि अपने और आस-पास के गांव वालों में इतना बलवान भी कोई हैं। वे आश्चर्यपूर्वक सोचने लगे कि ये दोनों कौन हैं और कहां के हैं। ‘‘लेंगलेनहुन’’ (पुराने समय में मिजो समाज में सभी जवान, गांव की लडकियों के घर शाम को भोजन करने के बाद जाकर दस-ग्यारह बजे तक आपस में गप-शप करते थे) का समय आ गया तो दोनों भाई भी लड़कियों के घर चलने लगे। वे गांव के साधारण जवान के रूप में आए। वहां छह लड़कियों ने (बहनें) पिछली रात के अपने मेहमानों के बारे में खूब बातचीत की। सभी लोग बहुत आश्चर्य करने लगे।

उसी समय घर के नीचे एक पालतू सूअर को शेर ने काटा। सूअर को बचाने के लिए सभी लोग बाहर जाने लगे। दोनों भाई शेर को पकड़ने के लिए सबसे आगे गए। थोड़ी देर के बाद दोनों भाई शेर और सूअर दोनों को लेकर वापस आए। इतने बड़े-बड़े जानवरों को हाथों में पकड़ कर घर लाने के कारण सभी लोग आश्चर्य करने लगे। सभी जवान उनसे ईर्ष्या करने लगे किन्तु दोनों का सामना करने के लिए कोई भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं रखता था। गांव के जवान दोनों भाइयों को मार डालने के लिए कोई तरीका ढूंढने लगे।

दोनों भाइयों ने उस गांव में कई दिनों तक रुकने का विचार किया। उसी दौरान दोनों भाइयों को मार डालने के लिए गांव के जवानों ने एक उपाय निकाला। गांव के लोगों ने एक साथ मिलकर अपने गांव में दोनों भाइयों को फंसाने के लिए अचानक गांव के चारों ओर घेरा लगा दिया। घेरे के द्वार की रक्षा भी दिन-रात करने लगे। दोनों भाई इस बार अपने पंख लेकर नहीं आए थे इसलिए उड़कर गांव से बाहर नहीं जा सके। अतः उन्हें आवश्यकता से अधिक समय उस गांव में बिताना पड़ा। गांव के जवानों ने उन दोनों भाइयों को गहरी नींद में सोते समय मार डालने का प्रयास किया। चूंकि दोनों भाइयों को मालूम हो चुका था कि गांव वालों ने नके खिलाफ क्या करने का विचार किया है इसलिए दोनों बारी-बारी से सोते थे। इस कारण गांव वालों को उन दोनों मेहमानों को मार डालने का मौका नहीं मिल पाया।

अपने दोनों भाइयों को बहुत देर तक ऊपर वापस नहीं आते देख आसमान के चारों भाइयों को बहुत चिंता हुई। फिर उन चारों भाइयों ने उन दोनों भाइयों को वापस लाने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। वे अपने-अपने पंख लगाकर नीचे की ओर धीरे-धीरे उड़ने लगे। फिर बिना किसी की नजर में आए गांव के अंदर घुसने लगे और सिरूकी बहनों के घर के नीचे छिप गए। उसी रात पिताजी ने सिरूकी बहनों से धीमी आवाज में बातें कीं। उन्होंने फिर पूछा – ‘‘मेरी प्यारी लड़कियों! अगर मैं तुम लोगों के लिए वर ढूंढता हूं तो क्या तुम उनसे शादी करने के लिए तैयार होगी?’’ लड़कियों ने उत्तर दिया – ‘‘हमें पसंद करने वाले मिलेंगे तो करेंगे।’’ चारों भाइयों ने उनकी सभी बातें सुन लीं।  उन लड़कियों के दिल में अपने प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न करने के लिए वे उनके घर बार-बार जाकर उनसे हर रात मिलने लगे।

गांव वालों ने उन दोनों भाइयों को पकड़ने के लिए गांव के चारों ओर घेरा लगा दिया था और अभी तक उनका पीछा कर रहे थे। अतः गांव के जवानों को धोखा देने के लिए चारों भाइयों ने एक उपाय निकाला कि जब वे चारों भाई सिरूकी बहनों के घर जाएं तभी गांव के जवानों को रोकने के लिए भी कुछ उपाय निकालें। एक भाई ने अचानक जोर से सीटी बजाई फिर घेरे के द्वार की ओर एक बड़ा-सा पत्थर फेंका। गांव के जवानों ने सोचा कि दोनों जवान मेहमान गांव के बाहर भाग गए और सभी एक साथ उन दोनों के पीछे भागे। उसी वक्त आसमान के सभी भाई आराम से लड़कियों के घर जाकर मजे से गप-शप करने लगे। उस रात से सभी बहनें उन आसमान के लड़कों से प्रेम करने लगीं।

आसमान के लड़कों की सिरूकी बहनों के घर आने की बात घर के ऊपर रहने वाली एक बुढ़िया को मालूम हुई। अगले दिन उस बुढ़िया ने गांव के जवानों को एक-एक करके फुसफुसा कर बताया। तभी पृथ्वी और आसमान के बीच की लड़ाई शुरू करने की घोषणा की गई। लड़ाई की बात सुनकर आसमान के छह भाई ऊपर उड़ गए। गांव वालों ने सिरूकी बहनों को गांव की दुश्मन कहकर उनको दोषी ठहराया। उन लड़कियों को पिंजरे में रखकर दरवाजा बंद कर दिया।

एक रात गांव के जवानों को आसमान के जवानों के बारे में बताने वाली उस बुढ़िया के सपने में किसी एक आदमी ने यह बात कही कि  ‘‘तुम्हारे गांववालों ने मेहमान जवानों के प्रति इतनी ईर्ष्या की और उनकी हत्या करने का भी प्रयास किया। तुमने भी अपने गांव के जवानों को हमारा रहस्य बताया इसलिए हम लोग भी तुम्हारे गांव पर हमला करने जा रहे हैं। बुढ़िया होते हुए भी हम तुम्हारे घर को जरूर जलाएंगे। तुम भी आग से जल कर मर जाओगी।’’ बुढ़िया घबरा गई और बहुत डरने लगी।

अगले दिन गांव पर हमला करने के लिए आसमान की जवान-सेना गौरैया पक्षी का रूप धारण कर झटके से आई। गांव पर जोरदार हमला किया। गांव के जवानों ने पक्षियों को नीचे मार गिराया। कई पक्षी मर गए। तत्पश्चात् आसमान के जवानों ने बाज़ बनकर पहले से अधिक संख्या में आकर गांव पर हमला किया। गांव के जवानों ने तीर मार कर कई बाज़ों को मार गिराया। पहले दिन विजय प्राप्त कर गांव के लोगों ने खूब धूम मचाई और सिरूकी बहनों का खूब मजाक उड़ाया और उनको धमकाकर बुरी-बुरी बातें कहने लगे।

दुसरे दिन आसमान के जवानों की सेना तूफान और बहुत भारी वर्षा के रूप में आई। गांव के सभी घर तूफान और भारी वर्षा से नष्ट हो गए। लेकिन कुछ दिन बाद गांव वालों ने अपने-अपने घर का निर्माण कर दिया। उसी खुशी में ‘‘खुआंगचोई’’ करके सभी धूम मचाने लगे। (खुआंगचोई-पुराने जमाने में मिजो लोग किसी दुश्मन से जीतने की खुशी में अथवा जंगली जानवरों को निश्चित संख्या में मारने की खुशियां मनाते थे। गांव के सभी लोग आनंद से मैदान में इकट्ठा होकर आपस में खाना-पीना करके नाचते थे। उस अवसर को ‘खुआंगचोई’ कहते हैं।)

खुआंगचोई में सिरूकी बहनों को कुछ भी खिलाने और पिलाने से गांव के जवानों ने इंकार कर दिया। सभी बहनें भूख-प्यास के मारे बहुत थक गईं। कुछ देर बाद आसमान के जवानों की सेना ने गांव पर फिर से हमला शुरू कर दिया। इस बार आग के रूप में हमला किया। सबसे पहले बुढ़िया के घर को जलाया। बुढ़िया भी जलने से मर गई। गांव के सभी घर जल गए। किसी भी तरह से आग को नहीं रोका जा सका। गांव के सब लोगों की जान खतरे में थी। डर के मारे वे गांव के बाहर भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन गांव के चारों तरफ घेरा होेने के कारण कोई भी बाहर नहीं जा सका। फिर गांव के सभी लोग जलकर मर गए।

सिरूकी बहनें जले हुए गांव के ऊपर आसमन की ओर उड़ने लगीं। आस-पास के गांव वाले ईर्ष्या की भावना से उन्हें देखने लगे। लड़कियां उड़ते-उड़ते आसमान के बादलों में घुस गई। फिर लोगों की नजरों से ओझल होकर बहुत ऊपर आसमान में सभी सितारें बन गईं जो ‘‘सिरूक’’ यानी ‘‘छहसितारे’’ कहलाती हैं। कहा जाता है कि शुरू में ये अपने पिता के साथ थी जिन्हें ‘‘सिसरिह’’ यानी ‘‘सात सितारे’’ कहते थे। लेकिन उनमें से एक सितारा अच्छी तरह प्रकाश नहीं देता था। उससे नफरत करके तूफान ने उसे उड़ा कर अदृश्य कर दिया। तभी से अब तक ये सितारें छह ही हैं।

‘‘सिरूक’’ यानि ‘‘छह सितारे’’ जाड़े के सितारे हैं। ये नवम्बर महीने के शुरू में संध्या क्षितिज के समीप निकलते हैं। आसमान के बिलकुल बीच पहुंचने से ‘‘पोनतोउ’’ याने रात को मैदान में खेलने वाले बच्चे भी घर जाने का समय समझते थे। उस समय बच्चे ‘‘सिरूक’’ के संबंध में एक प्रकार का गाना गाया करते थे-

सिरूक वान लइज़ोल अ थ्लेन लेह

इ टिन रुआल अंगदारलेनमोई।

अर्थात-एक साथ घर जाएं प्यारे प्यारे दोस्तों

सिरूक अब पहुंचा आसमान के बीच।

फरवरी महीने के अंत में ‘‘सिरूक’’ के नीचे डूबने के समय तक गांव के बुजुर्ग लोग बाहर बैठ कर गप-शप किया करते थे। कहा जाता है कि अगर गांव के बुजुर्ग लोग सिरूक के नीचे डूबने तक बाहर बैठते तो खेती-बारी करने के लिए जंगल काटने का समय आ गया है ऐसा कह कर वे खेती करने के लिए जंगल काटना शुरू करते थे। १० मई के करीब संध्या के समय चांद डूबता है तो मिजो लोग ‘‘धान का बीज’’ खेत में बोते थे। मिजो जाति के बुजुर्ग लोग सिरूक को समय मापन का साधन मानते थे।

मो ९८३७२००९२४

 

 

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