सेवाधाम आश्रम को समस्त महाजन का सहयोग
समस्त महाजन केवल मुंबई के लिए ही नहीं अपितु पूरे देश के लिए भी रत्नसमान सेवा संस्था है। ऐसी संस्थाओं के सेवाकार्य से हमारा समाज विपदा और विषमताओं पर विजय प्राप्त करता रहता है।
समस्त महाजन केवल मुंबई के लिए ही नहीं अपितु पूरे देश के लिए भी रत्नसमान सेवा संस्था है। ऐसी संस्थाओं के सेवाकार्य से हमारा समाज विपदा और विषमताओं पर विजय प्राप्त करता रहता है।
इस भूकंप के कारण करीब आठ हजार लोग मौत के मुंह में समा गये। हजारों घायल हुए तथा लाखों परिवार बेघर हो गये। काठमांड़ू वैली की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स, काठमांड़ू के दरबार स्क्वेयर और भक्तापुर दरबार स्न्वेयर समेत नेपाल के कई भागों को इस विनाशकारी भूकंप ने अपनी चपेट में ले लिया। भारत के करीब ८० नागरिकों सहित विश्व के कई अन्य देशों के नागरिक भी इस भूकंप की त्रासदी में काल कवलित हो गये।
कश्मीर के कुछ लोग,अलगाववादी तथा पड़ोसी पाकिस्तान क्या सोचता है? इन सबसे ऊपर उठकर समस्त भारतवर्ष के करोड़ों हाथ सेवा कार्य हेतु उठ गये। विभिन्न प्रांतों की सरकारों ने भी अपने अपने स्तर पर कश्मीर को नगद एवं वस्तुओं के रूप में सहायता भेजी। विभिन्न सेवाभावी संस्थाओं से सीधे वहां पंहुचकर या वहां की स्थानीय संस्थाओं के मिलकर राहत कार्य शरू कर दी। यह अलग बात है कि कुछ अलगाववादी नेताओं ने सरकारी सहायता या अन्य समाजसेवा संस्था की सहायता से भरी नावों को छीनकर उन्हें अपनी सहायता बताने का ढोंग रचा।
जन सेवा कार्य को मूल उद्देश्य मानने वाली समस्त महाजन संस्था ने समय-समय पर राष्ट्र पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के समय महती योगदान दिया है. अगले १२ महीनों तक लगातार प्रत्येक अंक में उनके प्रमुख कार्यों का शाब्दिक विवेचन करने के क्रम के इस प्रथम भाग में संस्था के अध्यक्ष गिरीश भाई शहा ने हिंदी विवेक को महाराष्ट्र में हुए अकाल के समय किए गए कार्यों की चर्चा की. प्रस्तुत है उसका शाब्दिक अंकन..
३१ अगस्त २०११ का दिन जनता सहकारी बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा| १४ वर्षों के अविरत संघर्ष के बाद ३१ मार्च २०११ को समाप्त वित्त वर्ष में संचित हानि रु. १२५ करोड़ समाप्त होकर बैंक ने लाभ प्राप्त किया एवं लाभांश घोषित किया| संचालक मंडल के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत श्री अरविंद केशव खलदकर ने श्री विजय भावे, श्री सदानंद जोशी, श्री सदानंद भागवत, एवं श्री जयंत काकतकर आदि के सहयोग से यह उपलब्धि प्राप्त की|
भगवान श्री दत्तात्रेय का नाम आते ही आंखों के सामने उनका तीन सिर एवं छः हाथों वाला चेहरा आ जाता है। भक्तों पर असीम कृपा एवं करूणामय दृष्टि रखने वाले श्री दत्तात्रेय के विषय में महाराष्ट्र के बाहर एवं मराठी भाषिक लोगों को छोड़ कर सीमित जानकारी है। भगवान श्री दत्तात्रेय पर अगाध श्रध्दा रखने वाले भी यह कम ही जानते हैं कि भगवान श्री दत्तात्रेय की लीलाएं उनके मूल रूप द्वारा न की जाकर अवतार कार्यों के माध्यम से की गई हैं।
‘अपनी जीर्ण देह को नमस्कार कर रानी मां (गाईदिनल्यू) भगवती के साथ आकाशमार्ग से चली गई। तिनवांग (परमेश्वर) के दरवाजे पर उसका स्वागत करने जादोनांग, रामगुनगांग और अन्य कई लोग एवं महात्मा खड़े थे।’’