होली और बदलते संदर्भ

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परिवर्तन संसार का शास्वत नियम है। परिवर्तन के साथ संदर्भ भी बदल जाते हैं। होली के भी संदर्भ बदलते हैं। मगर ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ होली की ये जो मूल भावना है इसे हमें बचाना है, इसे जन-जन तक, मन-मन तक पहुंचाना है।

रसिक छैल नन्द कौ री नैनन में होरी खेलै

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ब्रज में बड़ी ही रस भरी तथा रंग भरी होली खेली जाती है। इसका बड़ी ही तन्मयता से अपने आराध्य को रिझाने में ब्रज के भक्त कवियों ने वर्णन किया है। अष्टछाप के सभी कवियों ने भी अपने आराध्य श्यामसुन्दर से अन्तरंग होली खेली है।

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