गुरु पूर्णिमा: दुनिया से परिचय कराने वाले गुरु की महिमा

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गुरु, ब्रम्हा जी की तरह हमारे हृदय में उच्च संस्कार भरते हैं, विष्णु जी की तरह पोषण करते हैं एवं शिवजी की तरह हमारे कुसंस्कारों एवं जीवभाव का संहार करते हैं। मित्रों और संबंधियों द्वारा अथक प्रयास के बाद भी जो ज्ञान हमें प्राप्त नहीं हो सकता, वह सब हमें ब्रम्हदेवता गुरु से सहज ही प्राप्त हो जाता है।

तस्माद् योगी भवार्जुन

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कुरुक्षेत्र की युद्धभ्ाूमि। धीरगंभीर आवाज में संदेश दिया गया ‘तस्माद् योगी भवार्जुन’। ५ हजार से भी अधिक वर्ष पूर्व का वह काल। अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ करने का निश्चय हुआ है। कौरव (अधर्म)- पांडव (धर्म) की सेनाएं आमने सामने खड़ी हैं, इशारे की प्रतीक्षा में। दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा है एक रथ, सारथी है गोपवंशी योगेश्वर कृष्ण, रथी है महापराक्रमी, राजवंशी वीर, बुद्धिमान अर्जुन।

तस्मै श्री गुरवे नमः

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भारतीय जीवन परंपरावादी है। हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर, ज्ञान-विज्ञान और समय की कसौटी पर सौ प्रतिशत कस कर कुछ परंपराओं का निर्माण किया।

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