मेरा एकात्म विश्ववंद्य भारत

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मेरे प्रवास में एक बार पहाड़ों पर स्थित एक पुराने मंदिर में दर्शन करने के लिए जाना तय हुआ। हम जा रहे थे तो देखा एक बालिका एक मोटे से बालक को गोद में लेकर पहाड़ चढ़ रही थी। उसके लिए वह कठिन हो रहा था। रास्ते में एक साधु खड़े थे। उन्होंने उससे पूछा- तुम क्यों इतना बोझ उठा रही हो? उसने उत्तर दिया

तमसो मा ज्योतिर्गमय…

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आइये, हम सब छोटे-बड़े, धनिक और गरीब सब इस दीपोत्सव में सम्मिलित हों। फिर किसी भी प्रकार के अंधकार को स्थान ही कहां रहेगा? हे भारत मां, हम सब को यही आशीष दो, कि ऐसे सात्त्विक सर्वकल्याणाकारी प्रकाश के पुंज हम बनें और दीपोत्सव सार्थ करें। हमें असत् से सत् की ओर, अंधकार से तेज-प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर, अशाश्वत से शाश्वत की ओर ले जाइये। हमारी भारतीय संस्कृति सकारात्मक है इसलिए शाश्वत, तेजयुक्त सत्य की ओर जाने की आकांक्षा, प्रार्थना, प्रेरणा हमारे जीवन की विशेषता है। प्रकाश अर्थात् खुलापन और तमस

विश्वगुरु हो भारतअपना

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भारत ईश्वर की प्रिय भारतभूमि है । इसलिए भारत का जीवितकार्य संभ्रमित विश्व का मार्गदर्शक अर्थात् गुरुहै। जहां स्वार्थ, स्पर्धा एवं लोभ का निर्माण होता है, अति भौतिकता प्रभावी होती है तो वहां ईश्वर प्रकट नहीं होता है। वर्तमान विश्व का परिदृश्य ऐसा है कि

राष्ट्र सेविका समिति भविष्यकालीन परिद़ृश्य

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नए पुरानों में समन्वय निर्माण करते हुए, समिति कार्य में औपचारिकता या संस्थागत या उद्योग-गत भाव निर्माण होने से बचते हुए समिति कार्य विस्तार करने का हम सब का संकल्प है- सत्य संकल्प का दाता तो भगवान है- हमारा भगवान सब कुछ भारत माता ही है- वह आशीष देगी। देती रहेगी।

माता अर्थात् राष्ट्रनिर्माता

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 अन्य देशों में एकात्म भावना के संस्कार नहीं होने के कारण क्या हो सकता है यह रूस के उदाहरण से हम देख सकते हैं। प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण एवं आधुनिकता की अलग कल्पना के कारण स्त्री घर से इतनी बाहर आई कि घर परिवार के बंधन टूटते गए।

तस्माद् योगी भवार्जुन

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कुरुक्षेत्र की युद्धभ्ाूमि। धीरगंभीर आवाज में संदेश दिया गया ‘तस्माद् योगी भवार्जुन’। ५ हजार से भी अधिक वर्ष पूर्व का वह काल। अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ करने का निश्चय हुआ है। कौरव (अधर्म)- पांडव (धर्म) की सेनाएं आमने सामने खड़ी हैं, इशारे की प्रतीक्षा में। दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा है एक रथ, सारथी है गोपवंशी योगेश्वर कृष्ण, रथी है महापराक्रमी, राजवंशी वीर, बुद्धिमान अर्जुन।

आदिशक्ति मैं इस जगत की

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वि श्व में भारत ही ऐसा देश है जहां स्त्री को ‘मंगलानारायणी मां सप्तशक्तिधारिणी या जगत की आदिशक्ति’ के रूप में देखा गया है। विश्वमान्य ग्रंथ श्री भगवद्गीता के विभूतियोग नामक दसवें अध्याय के चौतीसवें श्लोक की व्दितीय पंक्ति में भगवान कहते हैं

महिला एवं बाल सुरक्षाः वास्तविकता, उपाय तथा कानून

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महिला घर में, समाज में, कार्यस्थल में, धार्मिक, शैक्षिक, राजनीतिक संस्थानों में असुरक्षित है। स्थान, समय, रिश्ता, जाति, स्तर, इसका विवेक मानो आज लुप्त हुआ है। और गंभीर बात यह है कि अबोध बालक भी घरों में, शिक्षा संस्थानों में, समाज में असुरक्षित हैं। यह लज्जाजनक व चिंता की बात है। इसके खिलाफ कानून बनाने की आवश्यकता तो है ही, स्वयं पहल भी करनी होगी।

जीवन में संगीत संस्कार

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सं स्कृत में प्रसिद्ध कहावत है, ‘संगीताद् भवति संस्कार :। ’ केवल मानवी जीवन में ही नहीं अपितु पशु -पक्षी, वनस्पति सहित संपूर्ण सृष्टि जीवन में संगीत का महत्व है। संगीत में रुचि न होनेवाले व्यक्ति को ’साक्षात् पशु : पुच्छविषाणहीन : ‘ ऐसा कहा जाता है।

हमारी मातृसंकल्पना

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उदात्त, महन्मंगल मातृसंकल्पना का धनी एकमेव देश विश्व में है- वह है अपना भारत। स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ने स्वतंत्रता देवी का वर्णन करते हुए लिखा था - जो जो उदात्त, उन्नत, मंगल, महन्मधुर हैं वह सब उसके सहचारी हैं। उसी तरह कह सकते हैं कि जो उदात्त, उन्नत, महन्मंगल, मधुर, स्नेहमय है, वे सब मातृत्वभाव के सहचारी हैं।

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