हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
तस्माद् योगी भवार्जुन

तस्माद् योगी भवार्जुन

by प्रमिला मेंढे
in जून २०१५, सामाजिक
0

कुरुक्षेत्र की युद्धभ्ाूमि। धीरगंभीर आवाज में संदेश दिया गया ‘तस्माद् योगी भवार्जुन’। ५ हजार से भी अधिक वर्ष पूर्व का वह काल। अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ करने का निश्चय हुआ है। कौरव (अधर्म)- पांडव (धर्म) की सेनाएं आमने सामने खड़ी हैं, इशारे की प्रतीक्षा में। दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा है एक रथ, सारथी है गोपवंशी योगेश्वर कृष्ण, रथी है महापराक्रमी, राजवंशी वीर, बुद्धिमान अर्जुन। अधर्म को नियंत्रित कर धर्म की विजय हो इस जीवित हेतु से अवतरित योगेश्वर कृष्ण एवं सबकुछ अनुकूल होते हुए भी मन से संभ्रमित होने के कारण शस्त्र बाजू में रखकर, ‘मैं कैसे लडूं अपनों से?’ एक धनुर्धर अर्जुन कह रहा है कायर जैसा। बातचीत के दौरान एक योगेश्वर एक विजयशील योद्धा को संदेश दे रहे हैं -‘तस्माद् योगी भवार्जुन’।

 योग एक जीवनशैली

श्रीकृष्ण के मन में योगी शब्द का अलग अर्थ था- स्थिर, समत्व भाव से, निहित कर्म कुशलता से करनेवाला। आज हम जैसे सोचते हैं ….वैसा योगी अर्थात् सर्वसंग परित्यागी कोई काषाय वस्त्रधारी संन्यासी नहीं। वे चाहते थे योगी बनो अर्थात् संपूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाली सत्यं शिवं सुंदरम् शक्ति से जुड़ो। वह शक्ति मैं ही हूं ऐसा अनुभव करो। फिर मन में स्फुरण होगा कि अधर्म से लड़ना ही है, धर्म को प्रतिष्ठापित करना ही है। धर्म की प्रतिष्ठा रखने हेतु अधर्म के प्रतीक बनकर जो भी कोई खड़े हों, चाहे अपने सगे-संबंधी भी हो उनसे संघर्ष करो, पराजित करो, निष्प्रभ करो, इसमें कुछ भी संदेह, तनाव मत रखो। मन को संभ्रमित मत करो, कर्तव्य से भागो मत। अधर्म करने वालों से, वह कोई भी हो, मेरा कोई रिश्ता नहीं है। ये तो अपने ही भाई हैं, लोग क्या कहेंगे? राज्य की लालच में अपने भाइयों को भी मारा आदि आदि। अर्जुन ने कई प्रश्न उठाए, श्रीकृष्ण ने समाधान किया। अंत में अर्जुन सिद्ध हुआ। प्रस्थापित हुआ एक  सिद्धान्त-

 यत्र योगेश्वर: कृष्ण: यत्र पार्थोधनुर्धर:।

 तत्र श्रीर्विजयो भ्ाूति: ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

यह तेजस्वी, स्वात्मबोधी, विजिगीषु जीवन दर्शन प्रथम भारत ने ही विश्व को दिया। वह हमारा स्वधर्म बना। धर्म अर्थात् पूजा पद्धति नहीं, अनुभ्ाूति है। जब हम भारतीय या इस सिद्धांत को मानने वाले भारत के बाहर के भी लोग, इस मार्ग पर सामर्थ्य एवं संयम के साथ चलें, तब हम सफल बनेंगे। तभी तो अर्नाल्ड टायनबी या डेविड फ्रॉले जैसे आत्मसाक्षात्कारी विद्वान भी कहते हैं यह एक अनोखी, सफल मानसिकता है, जीवनशैली है; न कि पूजा पद्धति। संपूर्ण मानवी समाज के लिए यह सुख, समाधान, शांति, कर्तव्य पूर्ति का आनंद दे सकती है। जीवन मलिन बनाने वाले ईर्ष्या, द्वेष, मत्सर, स्पर्धा से दूर रखती है। हम भारतीय तो इसको मानते हैं परंतु उसको वैश्विक अधिकृत स्वीकृति नहीं थी। परंतु वह सुदिन आया। अनेक महानुभावों, चिंतकों, योगवृत्ति के अभ्यासकों, अनुयायियों के प्रयत्नों के कारण।

 २१ जूून – अंतरराष्ट्रीय योेग दिन

भारत में एक नए युग का प्रारंभ हुआ। भारत की समर्थता की अनुभ्ाूति अनेक देश प्रमुखों को हुई। भारत के प्रधान मंत्री ने सघन अनुवर्ती प्रयासों के रूप में २७ सितम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्रसभा के ६९वें अधिवेशन में प्रस्ताव रखा कि २१ जून अंतरराष्ट्रीय योग दिन के रूप में मान्य किया जाए। विश्वभर के अनेक व्यक्ति, संस्था, संगठन योग का श्रद्धापूर्वक स्वीकार कर रहे हैं। व्यक्तिगत, सामूहिक, संस्थागत जीवन में उसका प्रत्यक्ष अनुभव ले रहें हैं। उस प्रस्ताव को नेपाल ने तुरंत, और बाद में १७५ देशों ने उसका अनुमोदन किया और ११ दिसम्बर को आम सहमति से, बिना मतदान से यह प्रस्ताव पारित हुआ। हम सभी के लिए यह गौरव तथा गर्व की बात है। मा. प्रधान मंत्रीजी ने कहा कि यह केवल शारीरिक व्यायाम मात्र नहीं है, सृष्टि के साथ समग्रता का भाव जगाने वाली यह सरल, सफल प्रक्रिया है। सृष्टि के साथ एकात्मता के भाव के कारण हमारी जीवनशैली में परिवर्तन आएगा। वैश्विक स्वास्थ्य, सुखशांति, आनंद की अनुभ्ाूति होगी। मैं इस समग्र समर्थ विश्वरचना का एक अविभाज्य घटक दुर्बल, असहाय, तनावयुक्त हो नहीं सकता। विशाल वैश्विक समग्रता का एक घटक यह भावना ही हमें आश्वस्त करेगी।

 मैं कहां अकेला हूं, साथ है यह कारवां।

दिनांक २१ जून का दिन इसीलिए निश्चित किया गया कि यह दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता है। विश्व के अनेक देशों में इसका महत्व है। यह दिन दक्षिणायन का प्रारंभ दिन है। उष्ण उत्तरायण के पश्चात् की प्रथम पौर्णिमा आती है गुरुपौर्णिमा। योग के प्रथम गुरु शिवजी ने योग शिक्षा का संपे्रषण इसी दिन प्रारंभ किया था, ऐसा प्रसिद्ध योग गीतकार मा.श्री जग्गी वासुदेव जी ने कहा है। उनके मतानुसार योग साधना के लिए दक्षिणायन अधिक आधारभ्ाूत है, अनुकूल है ऐसी मान्यता है।

अनुकूल संवेेदनं सुखम्

योग की शास्त्र के रूप में रचना है श्रीमद् भगवद गीता। इसके हर अध्याय के अंत में ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे सांख्ययोगो, कर्मयोगो, ज्ञानविज्ञानयोगो,विभ्ाूतियोगो, भक्तियोगो नाम ऐसे अलग-अलग परंतु योगान्त नाम दिए हैं।

योग प्रारंभ से ही हमारे जीवन का आधार बनता गया। अहं ब्रह्मासि, तत्वमसि,सर्वं खल्विदं ब्रह्म, ये तीन सूत्र, भारत के जीवन दर्शन के सूत्र रूप में मान्य होते गए। बाद में पतंजलि मुनिश्री ने इसकी सूत्रबद्ध रचना की। मनुष्य के जीवन में सुखदु:ख की अनुभ्ाूति मन की स्थिति पर आधारित होने के कारण ‘अनुकूल संवेदनं सुखम्, प्रतिकूलसंवेदनं दु:खम्’ यह विचारसूत्र प्रस्तुत हुआ। निरंतर सुख, आनंद की प्राप्ति मानवी जीवन का सूत्र बन गया। सुख दुख मन की अवस्था पर निर्भर है तो उस मन को, चित्त को स्थिर करना है। ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।’ चित्त के आवेगों को रोकना तो कठिन है परंतु प्रयत्नसाध्य है। ‘अभ्यासवैराग्याभ्याम् ईश्वरप्रणिधानाद् वा।’ यह निरोध है ‘आत्मविशुद्धये।’ हर व्यक्ति की आत्मा विवेक, वैराग्य, श्रद्धा, शुद्धता से परिपूर्ण होगी तो सभी सुखी, सभी निरोगी, सभी आनंदभाव से परिपूर्ण होंगेे। इसीलिए ‘सर्वेभवन्तु सुखिन:’ यह जीवन चिंतन और व्यवहार है न कि अहमेव सुखी स्याम्। ‘चित्तैकाग्य्र से चित्तशुद्धि’ होती है। उसके लिए ईशवर का अधिष्ठान आवश्यक है। वर्तमान परिस्थिति में तो मानवत्व जगाना ही भीमकार्य है। उपभोग बहुलता, क्रूरता, हिंसा, आतंक, चोरी, ठगी, डकैती, भ्रष्टाचार, असहनशीलता, स्वार्थप्रवणता, अनैतिकता, जानलेवा स्पर्धा का इतना भयावह रूप सामने आ रहा है कि योग साधना की परम आवश्यकता प्रतीत हो रही है। आयु, रिश्ता, स्थान, समय, स्थल, दर्जा किसी का भी विचार विवेक नहीं रहा। ‘योगचित्तवृत्तिनिरोध:’ विवेक/अभ्यास, वैराग्य से वह प्राप्त होता है।  स्वयं योगी बनना और अन्यों को वैसा बनाना यही व्रत लेना अनिवार्य है। अष्टांगयोग के कारण वह मानसिकता बनने में सहायता होगी।

ईश्वरीय तत्व से जुड़ने का नाम है योेग

महत्वपूर्ण बात है कि योग यह मानसिक स्थिति है। केवल व्यायाम का प्रकार नहीं यह समझने की भी आवश्यकता है। चरित्रसम्पन्न, तेजस्वी, वास्तविक रूप से मनुष्य बनना एवं पूर्ण मानवजाति कोऐसा बनाना हमारा कर्तव्य है। इस कार्य में ईश्वर का भी अधिष्ठान चाहिए। इसके लिए आधुनिक शास्त्र, विज्ञान से नाता तोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। अपितु उनका स्वरूप बदलने की नीति अपनाना है। इसके कारण ही हमारा जीवन हेतु सफल बनेगा। उपरोक्त विचारों को माननेवाले महानुभावों की अक्षुण्ण परंपरा को आगे बढाना यही विशेष दायित्व हमें प्राप्त हुआ है।

‘सत्यपथे चाल रे, धर्मपथे चाल रे, देशर आव्हान’ हम पूर्ण हिंमत के साथ यशस्वी रूप से स्वीकारेंगे। उसके लिए योग्य ज्ञान प्राप्त करेंगे। श्रद्धा से उसे व्यवहार में लाएंगे। यही मार्ग है ईश्वरीय तत्व से जुड़ने का। उससे जुड़ते-जुुड़ते हम ही ईश्वर बन जाएंगे। एक बिंदु का कोई महत्व नहीं, परंतु बिंदु से बिंदु जुड़ता है, योग होता है तो अपने बिंदुरूप अस्तित्व की चिंता न करते हुए वह सागर बनता है; वैसे ही एकेक सद्गुण जोड़ते हुए हम भी गुणवान बनेंगे। ईश्वरीय गुणों से परिपूर्ण होंगे।

इसी हेतु सहायक है योग साधना, आधार होगा योगासन। योग की सीढ़ी में आसन का क्रमांक तीसरा है।

योगश्चित्तवृृत्तिनिरोध:

ईश्वरीय तत्व से जुड़ने से पूर्व मन की सम अवस्था प्राप्त करना है तो मन की वृत्तियों को संयमित करना होगा। योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: मन को रोकना असंभव लगता है यह तो कठिन है परंतु असाध्य भी नहीं। अभ्यास तथा वैराग्य से यह साध्य होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है-

Tags: 23july2021arjunbhagvat geeta भगवद गीताbharatgurupurnimagurushishyakrishnakurukshetra

प्रमिला मेंढे

Next Post

विवेक चित्रपट और संगीत खंड प्रकाशन के अवसरपर महानायक अमिताभ बच्चन का भाषण

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0