शायरी का खुदा-मीर तक़ी मीर

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शायर कहता है देखो जरा यह धुआं कहां से उठ रहा है। जरूर किसी प्रेमी का दिल दुख से जल रहा होगा। ये धुआं उसके दिल से उठ रहा है या दर्द उसके प्राणों तक चले जाने के कारण उसके प्राणों से उठ रहा है। कहीं वह प्रेमी जीवन-मृत्यु की सीमा पर तो नहीं है?

शब्दों के जादूगर-साहिर लुधियानवी

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इस तरह के गद्य रूप के गीतों को सुनकर याद आती है पुराने मधुर संगीत की और उन्हें लिखने वाले गीतकारों की। हमारी जैसी पूरी एक पीढ़ी का सांस्कृतिक पोषण इन शायरों की शायरी ने ही किया है। भले ही फिल्मों के लिए लिखा गया हो, परंतु उसमें काव्य भरपूर हुआ करता था।

मिहरे-नीम रोज़ मिर्ज़ा ग़ालिब

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शायरी पसंद करनेवाला शायद ही कोई हो जिसे ग़ालिब का यह शेर पता न हो। हृदय में जागृत हुए प्रेम के दुख से व्याकुल कवि के ये उद्गार मन को ‘स्पर्श’ कर जाते है। प्रेम कवि के मन को इतनी पीड़ा देता है कि वह किसी भी तरह कम नहीं होती।

‘अपना तो मिले कोई’ : दिल से निकली और दिल को छूतीं गजलें

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देवमणि पांडेय के ताजा गजल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ की गजलो से गुजरते हुए मेरी काव्य चेतना के बैक ग्राउंड में महाकवि डॉ. मुहम्मद इकबाल का यह शेर निरंतर विद्यमान रहा..

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