हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
शायरी का खुदा-मीर तक़ी मीर

शायरी का खुदा-मीर तक़ी मीर

by संगीता जोशी
in अप्रैल -२०१४, सामाजिक
0

क्या आपने मेंहदी हसन की गाई हुई गज़ल सुनी है? शेर कुछ ऐसा है-

देख तो दिल कि जां से उठता है,
यह धुआं सा कहां से उठता है।

शायर कहता है देखो जरा यह धुआं कहां से उठ रहा है। जरूर किसी प्रेमी का दिल दुख से जल रहा होगा। ये धुआं उसके दिल से उठ रहा है या दर्द उसके प्राणों तक चले जाने के कारण उसके प्राणों से उठ रहा है। कहीं वह प्रेमी जीवन-मृत्यु की सीमा पर तो नहीं है?

संस्कृत में लिखा गया है यत्र यत्र धूम:, तत्र तत्र वन्हि:।

मीर तक़ी मीर को भी शायद इसका एहसास होगा। बिना कुछ जले धुआं कैसे उठेगा? इस गज़ल का अगला शेर देखते हैं-

गोर किस दिलजले की है यह फ़लक
शोला इक सुबह यां से उठता है।

भोर का आसमान गुलाबी-नारंगी रंग से भरा होता है। रात का अंधेरा छंटने की गवाही ये रंग देते हैं। ये सूर्योदय का शुभ संकेत होता है। निराशा मिटा कर आशा की किरणें लानेवाली यह सुबह हमेशा ही होती है, परंतु मीर इस बारे में क्या सोचते हैं? ये गुलाबी-नारंगी आसमान भड़की हुई ज्वालाओं के समान दिख रहा है। कौन है यह दुख पीड़ित और निराशाग्रस्त? उसके जलते दिल की ज्वालाएं यह आसमान रोज ही दिखाता है। उसके दुःख की पराकाष्ठा हो चुकी होगी। यह आसमान उसकी कब्र की तरह दिख रहा है।

मीर तक़ी मीर अंत:करण की गहराई को छूने वाली शायरी लिखा करते थे। 2010 में उनकी मृत्यु को 200 साल पूरे हो चुके हैं। परंतु आज भी उनका नाम आदर से लिया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें “खुदा-ए-सुख़न” अर्थात शायरी का खुदा कहा जाता है। जानकार आज भी मानते हैं कि उनका स्थान ग़ालिब से ऊंचा है। स्वयं ग़ालिब भी यह स्वीकार करते थे।

मीर अठारहवीं सदीं के व्यक्ति थे। सन् 1723 उनका जन्म वर्ष है। (इसके बारे में विवाद है, शायद यह 1724 हो)। इसके बाद के शतकों में आये शायर भी उनका सम्मान करते हैं। इसी से साबित होता है कि मीर की शायरी की ‘ऊंचाई’ और ‘गहराई’ कितनी थी। मीर की तारीख उपलब्ध है। वह थी 21 सप्टेंबर 1810। ज़ौक उन्नसवीं सदी के शायर थे। वे लिखते हैं-

न हुआ पर न हुआ ‘मीर’ का अंदाज़ नसीब
‘जौक’ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा…

हम कभी ‘मीर’ के अंदाज की शायरी नहीं लिख पाये। कोशिश की पर हमारे भाग ही फूटे हैं। उसके जैसी ग़ज़ल नहीं लिख पाये।
बीसवीं सदी के शायरों का भी यही कहना है। मौलाना हसरत मोहानी (‘चुपके-चुपके’ गजल लिखनेवाले शायर) को इस सदी के शायरों का नायक माना जाता है। वे लिखते हैं-

शेर मेरे भी हैं पुरदर्द वलेकिन, ‘हसरत’
मीर का शेवाए-गुफ़्तार कहां से लाऊ?

मेरे शेर और ग़ज़लें भी आर्त और दिल को छू लेनेवाली दर्दीली होती हैं। परंतु ‘मीर’ की भाषा, उनकी भाषाशैली मैं कहां से लाऊं? ‘मीर’, ‘मीर’ ही रहेगा।

मीर का प्रभाव इतने बड़े पैमाने पर और आज के शायरों तक भी कैसे रहा होगा? इसका एक कारण यह कहा जाता है कि उन्होंने अपनी शायरी और ग़ज़लों में अपना दु:ख, अपनी संवेदना, अपनी भावनाएं आदि को अभिव्यक्त किया है। इसके पूर्व यह प्रथा नहीं थी। दूसरा कारण है मीर की सहज, सरल भाषा। उस समय की भाषा आज से बहुत अलग थी। सौंदर्यात्मक दृष्टिकोण, स्वदेशी अभिव्यक्ति के साथ, पर्शियन कल्पना सृजन, मुहावरों और भाषा विशेषता का उपयोग करके मीर ने नई ‘रेख़्ता’(ठशज्ञहींर) नामक भाषा का सृजन किया। कुछ समय बाद इसे ही उर्दू कहा जाने लगा। समय के साथ ‘रेख़्ता’ में बहुत परिवर्तन हुआ। कई नये अरबी, फारसी, हिंदी शब्दों के मिश्रण से उर्दू तैयार हुई।

ग़ालिब कहते हैं-

रेख़्ता के तुम्ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।
मीर की शायरी दुःख और करुणा से ओत-प्रोत है।
शाम से कुछ बुझा सा रहता है
दिल हुआ है चिराग़ मुफ़लिस का

शाम को दीया लगाने के कुछ देर बाद ही वह बुझ जाता है, गरीब के पास ज्यादा तेल जो नहीं होता। मेरा मन भी अब बुझा सा; उदास रहने लगा है।

उम्र के ग्यारहवें साल में पिता का देहांत हो गया। सौतेले भाई ने घर से निकाल दिया। इसके बाद मीर दिल्ली आ गये। कुछ साल तो ठीक-ठाक गुजरे। आसरा भी मिला। परंतु दिल्ली पर चढ़ाई होती रहती थी। अस्थिरता थी। मीर, खान आरजू के घर रहा करते थे। वे उनके बेटी से प्रेम करते थे। परंतु प्रेम असफल रहा। सामाजिक परिस्थिति, मानसिक तनाव, और निराधार जीवन के कारण मीर की जिंदगी बदहाल हो गई। उनकी शायरी में भी वही रंग उतरा।

उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आखिर काम तमाम किया…

प्यार की इस बीमारी पर कोई दवा असर नहीं कर सकी। दिल की इस बीमारी ने मुझे चैन से रहने नहीं दिया।

मेहर की तुझ से तवक्क़ो थी, सितमगर निकला
मोम समझे थे तेरे दिल को सो पत्थर निकला…

तुमसे मुझे कृपा और मेहरबानी की उम्मीद थी, परंतु तुम अत्याचारी निकलीं। मुझे लगा था कि तुम्हारा दिल मोम की तरह मुलायम होगा। परंतु वो तो पत्थर का निकला।

क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल
सारे आलम में मैं दिखा लाया…

मेरे दिल के रूप में मेरे पास जो संपत्ति है उसकी दुनिया में कोई कीमत नहीं है। किसी को भी हृदय, भावना, प्रेम आदि की कद्र नहीं है। मैंने बहुत जगह यह दिल दिखा दिया मेरे हाथ केवल निराशा ही लगी।

अब तो जाते हैं बुतकदे से ‘मीर’
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया…

‘मीर’ अब इस ‘मंदिर’ से बाहर निकल रहा है। देखते हैं अगर भगवान ने चाहा तो फिर मिलेंगे। प्रेम करना किसी मूर्ति की पूजा करने के समान ही है। प्रेमिका ही मूर्ति है। मैं मंदिर से निकल जाता हूं अर्थात मैं अब प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। ईश्वर की कृपा से अगर प्रेम मिला तो फिर से मिलेंगे।

मीर ने कुछ नाजुक शेर भी लिखे हैं।
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये
पंखुडी इक गुलाब की सी है…

उसके होठ कितने नाजुक हैं मैं क्या कहूं? इतने कि जैसे गुलाब की कोई पंखुडी हो। अगला शेर देखिये-

नहीं सूरत-पज़ीर ऩक्श उसका
यूं ही तसदीह खैंचे है बहज़ाद…

यह बहजाद (एक प्राचीन चित्रकार) बेकार ही मेहनत कर रहा है। वह (प्रेमिका) इतनी सुंदर है कि उसकी रेखाएं, आकार वह बना ही नहीं सकता।

शर्मो-हया कहां तक, है ‘मीर’ कोई दम
के अब तो मिला करो तुम टुक बेहिजाब होकर…

इतनी सुंदर प्रेमिका के सामने होने के बावजूद भी मीर उसे देख नहीं सकते क्योंकि वह अपने चहरे से बुरखा ही अलग नहीं कर रही है। इसलिये वे कहते हैं कि इस तरह कितनी देर तक शरमाती रहोगी। मैंने बहुत राह देखी है अब तो चेहरे से परदा हटा दो। अब तो मेरी सांसें भी कम ही बची हैं।

प्रेम के अनेक शेर-मीर के ‘दीवान’ (संग्रह) में मिलते हैं। तत्वज्ञान उनके शेरों का मुख्य विषय था। उनके तात्विक शेरों से उनकी शायरी की ऊंचाइयां और गहराइयां दिखाई पड़ती हैं।

यह सरा सोने की जगह नहीं बेदार रहो
हमने कर दी है ख़बर तुमको ख़बरदार रहो…

यह धर्मशाला सोने की जगह नहीं है। जागते रहो। हमने आपको बता दिया है, अब सावधान रहने का काम तुम्हारा है। (चोर आकर लूट लेंगे)

इन शद्बार्थों की अपेक्षा शायर को भावार्थ अभिप्रेत है। यह धर्मशाला अर्थात यह संसार। सोने का मतलब है खुदा को भूलकर भौतिक संसार में रम जाना। षडरिपु और मोह-माया आकर आपको कभी भी लूट सकती हैं। अर्थात ज्ञान और सत्य से दूर रख सकती हैं। अत: सावधान रहो। मोह-माया में फंसकर खुदा को मत भूलो। ज्ञान के मार्ग पर गुरु सावधान करता है। परंतु अमल करने का काम शिष्य का है।

हस्ती अपनी हुबाब की सी है
यह नुमाइश सराब की सी है…

यह जीवन पानी के बुलबुले जैसा है। कब यह बुलबुला फूट जायेगा कहा नहीं जा सकता। उसी तरह जीवन अस्थिर है। और, मृगतृष्णा की तरह फंसाने वाला भी है। मीर का एक और शेर देखते हैं-

है अनासिर की यह सूरत बाज़ियां
शोबदें क्या-क्या हैं इन चारों के बीच…

अनासिर अर्थात अग्नि, हवा, पानी और मिट्टी। मनुष्य का शरीर इन्हीं चार मूलतत्वों से तो बना है। अत: मीर कहते हैं कि इस सुंदर शरीर का अस्तित्व इन चार तत्वों के कारण ही है। इसकी ओर इतना आकर्षित होने की क्या जरूरत है?
एक अन्य शेर में मीर कहते हैं-

बारे दुनिया में रहो ग़मज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ करके चलो यां, कि कुछ याद रहो…

इस दुनिया में रहते हुए आप सुखी रहें या दुखी रहें परंतु जाते समय ऐसा कुछ करके जायें जिससे आपकी याद हमेशा आये।
मीर ने ऐसा ही काम किया है। जिसके कारण आज दो सौ-ढ़ाई सौ सालों के बाद भी उनकी शायरी लोग भूल नहीं पाते। उन्होंने अपना ही उपर्युक्त शेर खरा कर दिखाया।

ग़ालिब से लेकर आज तक के शायर ‘मीर’ को मानते हैं। मीर अपने ही बारे में बडी विनम्रता से कहते हैं कि-

मुझको शायर न कहो ‘मीर’ कि साहब मैंने
दर्दो- ग़म जमा किये कितने, तो दीवान किया…

नहीं-नहीं, मुझे शायर-बियर न कहो, मैंने केवल जीवन के दुःख जमा किये और उनका संग्रह ही ‘दीवान’ बन गया बस्।
————-

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinemeer taqi meerpoetshayarsher o shayariurdu shayar

संगीता जोशी

Next Post
द्वितीय शीत युद्ध का शिकारउक्रेन

द्वितीय शीत युद्ध का शिकारउक्रेन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0