दलाई लामा तिब्बत छोड़कर भारत आ गए – 31 मार्च 1959

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1950 के दशक में चीन और तिब्बत के बीच कड़वाहट शूरु हो गयी थी जब गर्मियों ने तिब्बत में उत्सव मनाया जा रहा था तब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया और प्रसाशन अपने हाथो में ले लिया।दलाई लामा उस समय मात्र 15 वर्ष के थे इसलिए रीजेंट ही…

मोदी की कूटनीति दलाई लामा को बधाई, चीन को संदेश!

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दलाई लामा खुद को भारत माता का बेटा कहते हैं। तिब्बत के लोग भी चाहते हैं कि भारत को अब तिब्बत के प्रति अपने कूटनीतिक नजरिए में बदलाव की जरूरत है, जिसमें दोनों ही देशों का कल्याण छिपा है। उम्मीदें इसलिए भी हैं क्योंकि मोदी राज में भारत की विदेश नीति नई दिशा के साथ नए दौर में है। हाल के दिनों में भारत ने इजराइल से लेकर ताइवान तक कई नए दोस्त बनाए हैं। जिन देशों एवं शासन से राजनयिक संबंधों को लेकर कभी भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में संशय और संकोच था, मोदी सरकार के अनेक तथ्यों पर सकारात्मक पहल के कारण वह बदल चुका है।

तिब्बती अस्मिता के प्रतीक दलाई लामा

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चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू हैं। तिब्बतियों के लिए वे समूचे तिब्बत के प्रतीक हैं। वे तिब्बत की भूमि के सौंदर्य, उसकी नदियों, झीलों की पवित्रता, उसके आकाश की पुनीतता, उसके पर्वतों की दृढ़ता और उसके लोगों की ताकत के प्रतीक हैं।

ब्रह्मपुत्र को निगलता ड्रैगन

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यह विश्व का सब से विशाल बांध होगा। 16 मार्च 2009 को फरियोजना का उद्घाटन हुआ। 2 अफ्रैल 2009 से काम शुरू हुआ। इसमें 26 टर्बाइन लगे होंगे। 85 मेगावाट के छह यूनिट होंगे और कुल स्थाफित क्षमता होगी 510 मेगावाट। प्रति घंटा 2.5 बिलियन किलोवाट बिजली का उत्फादन होगा। इस फर कुल खर्च होगा करीब 7.9 बिलियन युवान यानी 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर। इस राशि को रुफयों में फरिवर्तित कर आफ अंदाजा लगा सकते हैं कि यह फरियोजना कितनी विशाल है।

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