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‘राम’ और ‘राष्ट्र’ के आराधक योगी आदित्यनाथ

by प्रणय विक्रम सिंह
in गौरवान्वित उत्तर प्रदेश विशेषांक - सितम्बर २०१७, राजनीति, व्यक्तित्व
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योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने साफ संदेश दिया है कि कम से कम उच्च पदों पर ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें सांसारिक लोभ डिगा न सके। सांसारिक लोभों के सम्मुख अविचल, अडिग रहने का मूलाधार संन्यास जनित तप से जन्मी सहकार, सहजीवन, सहअस्तित्व को स्वीकार करने वाली वैचारिक दृष्टि है। तब ‘राम’ और ‘राष्ट्र’ की आराधना होती है।

मार्च २०१७, हिंदुस्तान की सियासी तारीख का वह चमत्कारी दिन है जब एक योगी को लोगों ने राजयोगी बनते हुए देखा। जी हां, यह वही तारीख है जब मुल्क के सब से बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ एक योगी ने लेकर सात दशकों से बने सियासत के तानेबाने को तोड़ दिया। भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के साथ ही भविष्य की राजनीतिक रूपरेखा की बुनावट को स्पष्ट कर दिया। उ.प्र. के अथाह जनसमुद्र के वैचारिक गर्भगृह से निकले राजनीतिक विचारों की गूंज यह है कि, ‘नरेंद्र मोदी हिंदुत्व का चेहरा हैं तो योगी स्वयं हिंदुत्व हैं।’

किंतु एक बड़ी जमात ऐसे लोगों की भी है जो गेरूवा वस्त्रधारी मुख्यमंत्री को देख कर अनेकानेक शंकाओं में डूब जाते हैं। और योगी तथा भाजपा के राजनीतिक विरोधी इसी बात का लाभ उठाते हुए अनेक भ्रम जाल फैलाने की कोशिश करते हैं। वह कहते हैं कि एक संन्यासी का सियासत में क्या काम? योगी की वैचारिक स्पष्टता और राजनीतिक अनुभव पर सवाल उठा कर उन्हें अतिवादी और अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने की कूट रचना की जा रही है। किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले योगी आदित्यनाथ के उदय, उनकी आध्यात्मिक और सियासी यात्रा और जन्म से लेकर वर्तमान तक आकार लेते वैचारिक दर्शन के विभिन्न आयामों को देखने और समझने की जरूरत है। यहां यह समझने की आवश्यकता है कि वैचारिक स्पष्टता के लिए वैचारिक परिपक्वता प्राथमिक शर्त है। वैचारिक परिपक्वता, अपने दर्शन और सिद्धांतों को व्यवहारिक धरातल की कसौटी पर कस कर, स्वयं सफलतापूर्वक उनको जी कर आती है।

उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वैचारिक स्पष्टता उनके शब्द और कृति से परिलक्षित होती है। योगी के आचरण और आवरण में समरूपता का प्राकट्य इस बात का द्योतक है कि जो वह सोचते हैं वही करते हैं। अब मुख्तसर सवाल है कि योगी सोचते क्या हैं? क्या योगी वाकई मुस्लिम विरोधी हैं? क्या योगी सरकार की कल्याणकारी नीतियों में अ-हिंदू लोगों को सहभागिता से वंचित रखा जाएगा? उत्तर है कदापि नहीं। दंतहीन विपक्ष और रीढ़हीन कथित सेकुलर मीडिया की दुरभिसंधि ने यह बारम्बार स्थापित करने की कोशिश की है कि योगी मुस्लिम विरोधी हैं।

एक राष्ट्रीय समाचार चैनल के कार्यक्रम में एंकर, योगी को लगभग कटघरे में खड़ा करते हुए पूछता है कि आपने लगभग बीस साल पहले अपने संसदीय क्षेत्र के तीन प्रमुख बाजारों के नाम मजहब की बुनियाद पर जबरन बदलवा दिए थे। योगी ललकारते हुए कहते हैं कि, ‘यह सही है। मैंने अली नगर बाजार को आर्य बाजार, मियां बाजार को माया बाजार, उर्दू बाजार को हिंदी बाजार में परिवर्तित किया क्योंकि पूर्व में यही नाम थे।’ नाम परिवर्तन मजहबी आतंक के गाल पर तमाचा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मस्तक पर चंदन तिलक के समान था। योगी कहते हैं कि मेरा स्पष्ट मत है कि जो-जो राष्ट्र के लिए उचित है, वह-वह करूंगा, इसे कोई रोक नहीं सकेगा। वह कहते हैं कि राम और राष्ट्र परस्पर पूरक हैं, अलग नहीं। राम, राष्ट्र के ही प्रतीक हैं। राम सबके हैं, निर्धन के बल राम हैं। जो निर्धन और अशक्त हेतु सेवारत है वह राम और राष्ट्र का सेवक है। यह है योगी आदित्यनाथ की वैचारिक स्पष्टता।

विदित हो कि जिस प्रतिष्ठित गोरक्षपीठ के योगी आदित्यनाथ महंत हैं, उसके गोरखधाम मंदिर के ट्रस्ट के अंतर्गत २८ स्कूल-कॉलेज हैं। जिसमें गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। मंदिर ट्रस्ट के ३ अस्पताल हैं जिसमें गरीबों का मुफ्त में इलाज होता है। इसके साथ ही आसपास के लोगों के कल्याण के लिए स्कूल-अस्पतालों के सेवा केंद्र भी हैं। इंसेफलाइटिस से बीमार बच्चों को देखने आदित्यनाथ खुद अस्पताल जाया करते हैं। कुछ इसी तरह गोरखधाम मठ के संचालित सभी स्कूलों-कॉलेजों और सेवा केंद्रों पर योगी खुद नजर रखते रहे हैं। योगी के साम्राज्य में गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखनाथ मंदिर में अस्पताल भी चलाया जाता है। गोरक्षनाथ हॉस्पिटल में डॉक्टर की फीस सिर्फ तीस रुपये है और भर्ती होने पर सिर्फ २५० रुपये लगते हैं। गोरक्षनाथ हॉस्पिटल के १२ एंबुलेंस हैं। अस्पताल में ३५० बेड हैं और हर रोज तकरीबन ७००-८०० मरीज यहां आते हैं। योगी की छवि भले कट्टर हिंदू नेता की रही हो लेकिन इस अस्पताल में सभी धर्म, मजहब और जाति के लोगों का इलाज बिना किसी भेदभाव के होता है और गरीबों का मुफ्त में इलाज होता है।

खास बात ये है कि धार्मिक आयोजनों के अलावा गोरखनाथ पीठ की तरफ से गांवों को गोद लेकर उनका विकास करने से लेकर इलाज के लिए कैम्प लगाने समेत कई ऐसे काम हैं जो चर्चा में नहीं रहते लेकिन पिछले अनेक वर्षों से चल रहे हैं और लाखों लोगों को इससे लाभ हो रहा है, वह भी जाति-पंथ-धर्म का अंतर किए बगैर। यही नहीं सूबे का मुख्यमंत्री बनने के बाद जितने भी निर्णय प्रदेश सरकार के द्वारा लिए गए उनमें कहीं भी जाति-पंथ-धर्म का विभेद दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। यह है योगी की वैचारिक स्पष्टता।

भारत में आरंभिक दौर से ही संन्यासी को राजदरबार में सम्मान और श्रद्धा से देखा जाता रहा है। मौर्य वंश के शासन में महात्मा चाणक्य के दखल को कौन भूल सकता है। दरअसल मात्र २६ वर्ष की आयु में भारतीय संसद में जाने वाले योगी अदित्यनाथ ने अपनी सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करते हुए विवाह नहीं किया है। यह उन्हें संसार से विरक्त नहीं करता है बल्कि उन्हें अन्य सांसारिक लोगों की तरह ‘यह मेरा है- यह मेरा है’ करने से बचाता है। और एक ऐसे दौर में जब भारतीय राजनीति में परिवारवाद हावी है तब योगी आदित्यनाथ जैसे व्यक्तित्व ही इसे ध्वस्त कर पाने में सक्षम हो सकते हैं। और भाजपा ने यह प्रयोग किया भी है।

वैसे उ.प्र. के २१वें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक यात्रा किसी फिल्मी किरदार के समान दिखाई पड़ती है। अतिरेक और दिलचस्प घुमावों के तमाम पेचोंखम के बाद जैसे नायक अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है ठीक वैसे ही योगी आदित्यनाथ भी सत्ता संघर्ष के तमाम उतार-चढ़ावों को पार कर देश के सब से बड़े राज्य उ.प्र. के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर आसीन होते हैं। सफलता का आलम यह है कि मंजिल खुद चल कर योगी के पास आई। दरअसल योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक सफर वर्ष १९९८ में महंत अवैद्यनाथ के राजनीतिक संन्यास और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते ही प्रारंभ हो गई थी। अपने पूज्य गुरुदेव महंत अवैद्यनाथ के आदेश एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की मांग पर योगी आदित्यनाथ ने वर्ष १९९८ में लोकसभा चुनाव लड़ा। और जब वह गोरखपुर से १२वीं लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे तो वह भारतीय संसद के सब से कम उम्र के सांसद थे, वे २६ साल की उम्र में पहली बार सांसद बने।

राजनीति के मैदान में आते ही योगी आदित्यनाथ ने सियासत की दूसरी डगर भी पकड़ ली, उन्होंने ‘हिंदू युवा वाहिनी’ का गठन किया और धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलते हुए उन्होंने कई बार विवादित बयान दिए। योगी विवादों में बने रहे, लेकिन उनकी ताकत लगातार बढ़ती गई। ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ के माध्यम से योगी ने पूरे पूर्वांचल में युवाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है जिसे भुनाने में इस बार भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। हिंदू मतों पर मजबूत पकड़ की वजह से पार्टी उनकी उपेक्षा नहीं कर पाई। जनता के बीच दैनिक उपस्थिति, संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली लगभग १५०० ग्रामसभाओं में प्रतिवर्ष भ्रमण तथा हिंदुत्व और विकास के कार्यक्रमों के कारण गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने आपको वर्ष १९९९, २००४, २००९ और २०१४ के चुनाव में निरंतर बढ़ते हुए मतों के अंतर से विजयी बना कर पांच बार लोकसभा का सदस्य बनाया तथा विभिन्न समितियों में सदस्य के रूप में समय-समय पर नामित किया।

साल १९९८ में सब से युवा सांसद के तौर पर चुन कर संसद पहुंचने वाले योगी आदित्यनाथ की क्षेत्र में लोकप्रियता का आलम ये है कि चुनाव दर चुनाव इनकी जीत का अंतर बढ़ता चला गया। गोरखपुर, बस्ती और आजमगढ़ मंडल की कम से कम ३ दर्जन सीटों पर सीधा प्रभाव रखने वाले योगी कई बार पार्टी लाइन से अलग भी जाते रहे हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने योगी को साधने में कभी चूक नहीं की। उपचुनावों से लेकर इन चुनावों तक योगी भाजपा के स्टार प्रचारक रहे और पूरब के इस संन्यासी ने पश्चिम में भी खूब जलवा बिखेरा और हर सभा में भारी भीड़ खींची। पूर्वांचल में योगी की अपनी शख्सियत है। कई मामलों में पार्टी के आधिकारिक लक्ष्मण रेखा के बाहर भी दखल है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में योगी आदित्यनाथ की हैसियत ऐसी बन गई कि जहां वे खड़े होते, सभा शुरू हो जाती, वे जो बोल देते हैं, उनके समर्थकों के लिए वह कानून हो जाता है। यह योगी की प्रशासनिक क्षमता का ही प्रभाव है कि उनकी शपथ के बाद से ही विभागों की कार्यसंस्कृति में भी बदलाव (कम या ज्यादा प्रतिशत में) चहुंओर दिखना शुरू हो गया है। दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारी समय पर पहुंचने लगे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों को राज्य सरकार पूरा सहयोग दे रही है। आयकर, प्रवर्तन निदेशालय की बढ़ती गतिविधियों से भ्रष्टाचारियों में हड़कम्प है। जहां एक ओर पूर्ववर्ती सरकारें विकास के कार्यों में धन की कमी का रोना रोती रहीं और सरकारी धन का अपव्यय करती रही, वहीं योगी सरकार में फिजूलखर्ची पर लगाम लगाई जा रही है और, ‘लोकोपयोगी योजनाओं में धन की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी,’ ऐसा ऐलान है। एंटी रोमियो स्क्वॉड के कार्यों, शराबियों की धरपकड़ और मंत्रियों द्वारा अपने दफ्तर में झाड़ू देने के दृश्यों ने जहां एक ओर समां बांधा तो वहीं दूसरी ओर किसानों की ऋण माफी के अपने वायदे को पूरा कर योगी सरकार ने हुकूमत के वकार को नयी ऊचाइयां बख्शी।

बेलगाम नौकरशाही को काम करने की कार्य संस्कृति का पहला सबक पढ़ाया तो खादी को जनता की खिदमत और ख्याल करने का मंत्र दिया। जनता के मन में कानून के प्रति विश्वास भाव जगाने के लिए पुलिस के अधिकारियों को व्यस्त बाजारों में प्रति दिन डेढ़ से दो किमी पैदल गश्त का निर्णय कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की गंभीरता को बयान करता है तो अवैध बूचडख़ानों पर परिणामदायक कार्रवाई ने कानून के इकबाल को बुलंद करने का काम किया। छुट्टियां छुट्टी पर चली गईं और मनमानी फीस वाले फंसते नजर आ रहे हैं। लाल बत्ती कल्चर डिब्बे की शोभा बन गई है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री का तीन तलाक पीड़ित महिलाओं को सरकारी मदद देने का ऐलान, मुस्लिम छात्रों को मुख्य धारा में लाने के लिए मदरसों के पाठ्यक्रम में सुधार का निर्णय और मुस्लिम बेटियों की शादी आदि के लिए योगी सरकार का अपना खजाना खोलना सियासत के पहले पन्ने पर ‘सबका साथ-सबका विकास़’ की सुनहरी इबारत लिख रहा है। ‘पूत के पांव पालने’ में ही दिखाई पड़ने लगे हैं। आगाज जब इतना रोमांचकारी है तो अंजाम के क्रांतिकारी होने के कयास लगाए जा सकते हैं फिलहाल तो बस योगी सरकार के लिए इतना ही कि- हमारे हौसलों की दाद तुमको आंधियां देंगी। हमारा नाम इज्जत से अभी तूफान लेता है।

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