हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

पटना टु गांधीनगर

by गंगाधर ढोबले
in गौरवान्वित उत्तर प्रदेश विशेषांक - सितम्बर २०१७, राजनीति
0

 

समग्र देश में सत्ता हासिल करने की भाजपा की दौड़ पटना होते हुए गांधीनगर तक पहुंची है। बिहार में नीतीश कुमार के साथ वह फिर काबिज है; जबकि गुजरात में राज्यसभा की तीसरी सीट दो कांग्रेसी विधायकों की बेवकूफी के कारण वह हार गई। चुनावों में हारजीत तो नित्य का खेल है, परंतु अहमद पटेल को न हरा पाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अंतःपुर में सेंध लगाने का मलाल भाजपा को अवश्य रहेगा।

पटना की फतह के बाद गांधीनगर की विजय ने भाजपा के मुकुट में एक और सितारा जड़ दिया है। इसे समग्र देश के संदर्भ में देखा जाए तो ऐसा लगता है कि भाजपा देश की अब सब से बड़ी पार्टी है और उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं बचा है। कभी भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय क्षत्रपों की तूती बोलती थी; लेकिन अब वे भी परदे के पीछे जाते नजर आ रहे हैं। कम से कम वर्तमान संकेत तो यही कहते हैं कि २०१९ के लोकसभा चुनावों तक क्षत्रपों का शक्तिक्षय हो जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर दूर दूर तक कांग्रेस का कोई भविष्य नजर नहीं आता। हो सकता है कि राजनीतिक मजबूरी के कारण छितर चुके दलों में कोई गठबंधन हो। फिर भी, उसमें कोई दम नहीं होगा। जनता उसे बहुत घास नहीं डालेगी।

इसके राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक परिणाम क्या होंगे? इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है। आज इस बारे में बहुत कुछ कहना जल्दबाजी ही होगी। लेकिन कुछ निष्कर्ष उभरते दिखाई दे रहे हैं जैसे शक्तिशाली सत्तारूढ़ भाजपा और शक्तिविहीन विपक्ष, सत्तापक्ष के पास योजनाओं और कार्यक्रमों की भरमार जबकि विपक्ष के पास लक्ष्यहीन कार्यक्रम और जन समर्थन का अभाव, सरकार के समक्ष सब को साथ ले चलने की चुनौती और निरंकुशता से बचने के लिए स्वयंसंयम की अनिवार्यता आदि।

इन निष्कर्षों पर कोई राय बनाने के पूर्व पिछले सालभर में हुई घटनाओं पर गौर करना होगा। लोकसभा में तो २०१४ में बहुमत मिला ही था, अब राज्यसभा में भी भाजपा का बहुमत हो गया। उत्तर में पंजाब छोड़ दिया जाए तो सारे राज्य भाजपा के अधीन हैं। पूर्वोत्तर में ओडिशा और प.बंगाल छोड़ दिए तो असम तक बाकी सभी राज्य भाजपा शासित हो गए हैं या हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्य हमेशा केंद्र में जो पार्टी सत्ता में हो लगभग उसके साथ ही रहते हैं; क्योंकि उन्हें अधिकाधिक अनुदान ऐंठना होता है। दक्षिण में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक के तीन प्रमुख राज्य हैं, जहां भाजपा को बहुत काम करना है। एक अनुमान के अनुसार देश के प्रमुख २० राज्यों की ७०% जनता भाजपा की सत्ता का अनुभव कर रही है। ये संकेत विपक्ष के बिखराव के हैं। प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी दल कांग्रेस के कमजोर हो जाने से अन्य छोटे-मोटे दलों के उसके साथ जुड़ने की संभावना कम ही है। इसलिए भाजपा के लिए मैदान साफ होता नजर आ रहा है।

बिहार जैसा कोई महागठबंधन तो अब शायद ही बने; क्योंकि विपक्ष में छवि वाला कोई नेता दिखाई ही नहीं देता। नीतीश कुमार को राष्ट्रीय नेता के रूप में विपक्ष उछालते रहा, लेकिन अब उन्होंने खुद ही स्वीकार कर लिया है कि ‘सन २०१९ में मोदीजी का मुकाबला करने की किसी में क्षमता नहीं है।’ लालू का साथ उन्होंने क्यों पकड़ा था और अब क्यों छोड़ा, इसका एक ही उत्तर हो सकता है- मजबूरियां। कहते हैं कि उन्हें लालू से अपनी कुर्सी का खतरा पैदा हो गया था। नीतीश का दावा है कि लालू ने दो केंद्रीय मंत्रियों के जरिए भाजपा नेतृत्व तक यह संदेश पहुंचाया था कि वे भाजपा के साथ सरकार बनाने को तैयार हैं; बशर्तें कि उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार आदि के मामलों को तूल न दिया जाए। इसकी खबर लगते ही नीतीश ने दांव चला और खुद ही भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना ली। भाजपा के लिए भी लालू के साथ बैठने के बजाए नीतीश के साथ हाथ मिलना राजनीतिक दृष्टि से सुविधाजनक था। अवसर को थाम लेना ही राजनीति है। जो अवसर को पकड़ नहीं पाता वह राजनीति में विफल हो जाता है। इसलिए कल तक एक दूसरे को दूषण देने वाले भाजपा और नीतीश एकसाथ क्यों आए, यह सवाल निरर्थक हो जाता है। सच तो यही है कि राजनीति में हमेशा के लिए कोई दुश्मन नहीं होता, न कोई स्थायी दोस्त होता है। चाणक्य नीति तो यही कहती है।

इस गठजोड़ से किसका अधिक लाभ होगा? मंत्रिमंडल के गठन और विभागों को देखें तो लगता है कि भाजपा अधिक फायदे में रहेगी और ग्रामीण अंचलों में अपनी पैठ जमाने का उसे अवसर मिलेगा। भाजपा की ओर से सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री तो हैं ही, इसके अलावा कृषि, शहर विकास, सड़क निर्माण, आवास, स्वास्थ्य, कला और संस्कृति विभाग उनके पास है। सब से उल्लेखनीय यह कि दलित और महादलित विभाग पहली बार भाजपा के हाथ में आया है। इससे पिछड़े व अतिपिछड़े वर्गों में पैठ बनाना आसान हो जाएगा। मंत्रिमंडल में महादलित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में भाजपा ने प्रेम कुमार को प्रस्तुत किया है। उनके पास फिलहाल कृषि विभाग है। लालू और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में कभी उनके सहायक रहे और आजकल स्विट्जरलैण्ड में प्राध्यापक बने डॉ. प्रशांत दास कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में परिवर्तन के मसीहा साबित हुए। उन्होंने बिहार की लगातार खस्ता होती हालत सुधारने की राजनीतिक उम्मीद जगाई। लेकिन राजद (लालू) का साथ लेने से उनकी उम्दा छवि को नुकसान पहुंचा। …मोदी का नीतीश के साथ होने का मतलब है केंद्र का बिहार के साथ होना, और इन दोनों का आपस में मिलना दो अच्छे इच्छुक राजनीतिक नेताओं का मिलना है।’’

नीतीश कुमार के लालू का साथ पकड़ने और अब छोड़ने के पीछे जो तर्क उन्होंने दिए हैं, वे उतने सार्थक नहीं लगते। लालू का साथ लेते समय सन २०१३ में उन्होंने भाजपा से साम्प्रदायिकता के नाम पर नाता तोड़ा था। उन्हें उसके अगले वर्ष अर्थात २०१४ में नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में नाम पसंद नहीं था; क्योंकि उनकी अपनी आकांक्षाएं थीं। साम्प्रदायिकता का राग तो केवल बहाना था। उसी तरह सन २०१४ आते-आते उन्होंने भ्रष्टाचार सहन न करने का अपना मुख्य मुद्दा भी छोड़ दिया और लालू के साथ गठबंधन कर लिया। जब यह गठबंधन हुआ तब लालू को चारा घोटाले में सजा सुनाई जा चुकी थी। अतः नीतीश का अब की बार भ्रष्टाचार के नाम पर लालू के पुत्र और परिवार को कोसने का कोई अर्थ ही बचता। इसका अर्थ यही हो सकता है कि राजनीतिक मजबूरी में उन्हें लालू भ्रष्टाचारी नहीं दिखे और अब वैसी ही राजनीतिक मजबूरी में उनका पूरा परिवार भ्रष्टाचारी दिखाई देने लगा। यह लिखते समय मैं लालू या किसी की भ्रष्टता का समर्थन नहीं करना चाहता; केवल इतना उजागर करना चाहता हूं कि नेतागण किस तरह गिरगिटिया रंग बदलते हैं। नीतीशजी के रंग को राजनीति के खिलाड़ी अवश्य ही जानते होंगे। लेकिन इससे यह संदेह अवश्य पनपता है कि उन पर कितना भरोसा किया जाए? नीतीश का बर्ताव भी तथाकथित तीसरे मोर्चे के नेताओं की तरह है, जिनका सिद्धांतों से कम, सत्ता से अधिक लेनादेना होता है।

नीतीश ने अपना महागठबंधन तो तोड़ ही दिया, उनकी पार्टी में फूट उजागर होने लगी है। उनकी पार्टी जदयू के एक कद्दावर परंतु अब बागी नेता शरद यादव जनसंवाद कार्यक्रम के नाम पर प्रदेश में घूम-घूम कर नीतीश का विरोध कर रहे हैं। उधर, लालू के बेटे और उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव भी ‘जनादेश अपमान यात्रा’ पर निकले हैं। शरद यादव और लालू की ताकत जुड़ जाए तो नीतीश के खिलाफ ऐसा माहौल बनेगा कि उसे सम्हालना उनके लिए मुश्किल होगा। इस बीच भाजपा का मैदानी काम चल रहा होगा, जिसका उसे सन २०१९ में लाभ ही मिलेगा।

अब गुजरात की ओर चलते हैं। राज्यसभा की तीन सीटों में से एक के लिए वहां जिस तरह रस्साखेंच हुई उससे लोगों का बहुत मनोरंजन हुआ। गुजरात विधान सभा में संख्याबल होने से भाजपा के दो उम्मीदवारों- अमित शाह और स्मृति ईरानी- को तो जीतना ही था, लेकिन तीसरी सीट भी हासिल कर कांग्रेस के चाणक्य -अहमद पटेल- को पटखनी देने का लक्ष्य भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रखा था। इस तरह भाजपा के चाणक्य- अमित शाह का कांग्रेस के चाणक्य- अहमद पटेल से मुकाबला था। सनद रहे कि अहमद पटेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार हैं और कहते हें कि मैडम उनकी ही सलाह पर राजनीतिक ही नहीं, निजी निर्णय भी करती हैं। इसलिए उन्हें जिताना कांग्रेसियों के लिए बेहद प्रतिष्ठा का मुद्दा था। यदि वे हार जाते तो कांग्रेस का नैराश्य और बढ़ जाता और अहमद पटेल की सोनियाजी के दरबार में फिर कोई औकात न होती।

चुनाव के पूर्व काफी मोर्चेबंदी हुई थी। कांग्रेस के शंकर सिंह वाघेला को तोड़ने में भाजपा को सफलता मिली। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उनके साथ कुछ और विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया। रणनीति यह थी कि कांग्रेस के विधायकों को पर्याप्त संख्या में तोड़ दिया जाए तो अहमद पटेल के वोट कम हो जाएंगे और वे अपने-आप ही हार जाएंगे। लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस के दो विधायकों की अति होशियारी (या साजिश!) ने सारा खेल बिगाड़ दिया और अमित शाह की रणनीति मात खा गई। ये दो वोट रद्द हो गए। ये दो वोट उन्होंने भाजपा को दिए थे और वे रद्द नहीं होते तो भाजपा के तीसरे उम्मीदवार बलवंतसिंह राजपूत जीत जाते।

याद रहे कि जिस नियम के कारण ये दो वोट रद्द हुए वह नियम भी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने ही बनाया था। सन २००३ में सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून १९५१ में संशोधन कर दो नए नियम बनाए थे। एक यह था कि राज्यसभा चुनाव के लिए सम्बंधित राज्य का मूल निवासी होने की शर्त रद्द कर दी गई। दूसरा यह कि चूंकि राज्यसभा चुनाव पार्टी आधार पर होते हैं इसलिए पार्टियों को अपना एक अधिकृत एजेंट नियुक्त करने की अनुमति दी गई। मतपत्र पर वरीयता क्रम डाल कर विधायक उसे मतपेटी में डाले इसके पूर्व अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को वह दिखा सकता है (अन्य को नहीं); ताकि क्रासवोटिंग की बेईमानी और खरीद-फरोख्त रुक सके। इन नियमों को पत्रकार कुलदीप नैयर ने तब उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने २३ अगस्त २००६ को इन नियमों को वैध करार दिया।

अधिकृत एजेंट के अलावा अन्य को मतपत्र न दिखाने के नियम का सब से पहले इस्तेमाल भाजपा ने ही हरियाणा के राज्यसभा चुनावों में किया था। भाजपा की शिकायत पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का वोट रद्द हुआ था। सुरजेवाला ने हरियाणा में जो चूक की थी, वही गुजरात के दो विधायकों ने कर दी और अपना मतपत्र अमित शाह याने अनधिकृत व्यक्ति को दिखा दिया। यह भी हो सकता है कि सोची-समझी चाल के अंतर्गत ऐसा किया गया हो। राजनीति में सबकुछ संभव है। जो हो लेकिन गुजरात में तड़के तक चले इस नाटक में भाजपा के हाथ में तुरुप का कोई पत्ता ही नहीं बचा था। वैसे भी एकाध सीट हार जाने से कोई आकाश-पाताल नहीं टूटा है। केवल कांग्रेस के अंतःपुर में सेंध न लगा पाने का मलाल रह गया। इसलिए इसे बहुत तूल देने की आवश्यकता नहीं है।

भाजपा की सत्तासीन होने की जम्मू-कश्मीर और मणिपुर से चली अंधड़ पटना होते हुए गांधीनगर तक पहुंची है। अगले साल गुजरात विधान सभा के चुनाव हैं, इसलिए यह बयार कुछ धीमी भले हो परंतु बहती ही रहेगी। चूंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष दोनों गुजरात से हैं इसलिए गुजरात में भारी जीत हासिल करने का दबाव उन पर अवश्य बना रहेगा।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

गंगाधर ढोबले

Next Post

हर कोने में तीर्थ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0