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भारतीय दिवालिया और ॠण शोधन अक्षमता बोर्ड

भारतीय दिवालिया और ॠण शोधन अक्षमता बोर्ड

by अमरनाथ शर्मा
in प्रकाश - शक्ति दीपावली विशेषांक अक्टूबर २०१७, राजनीति
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नामचीन उद्योगपति विजय माल्या के द्वारा बैंकों का कर्ज डुबा देने के समाचार कई दिनों तक सुर्खियों में रहे। जिन बैंकों का पैसा कार्पोरेट्स में डूबा है उनके लिए सरकार ने एक नया कानून बनाया है, इससे बैंकों को एनपीए से राहत मिल सकेगी।
एक बात तो सभी मानेंगे कि मा. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में भारत सरकार एक के बाद एक बड़े फैसले ले रही है। मन्शा साफ हो, इच्छाशक्ति हो और कुछ कर गुजरने का माद्दा हो तभी एक के बाद एक बड़े फैसले लिए जाते हैं। इतने बड़े-बड़े फैसले राजनैतिक नफा-नुकसान देखने वाले नहीं ले सकते।
भारत सरकार के फैसलों के बारे में अगर आप किसी से भी पूछेंगे तो वे सब से पहले निम्नलिखित तीन फैसले बतांएंगे:-
१) विमुद्रिकरण (डिमोनेटाईजेशन)
२) बेनामी प्रापर्टी कानून, और
३) जी.एस.टी. (गुड़्स एवं सर्विस टैक्स)
पर इतना ही बड़ा एक और फैसला भारत सरकार ने किया है और वह है ’इन्सॉल्वेन्सी एण्ड बैंकरप्सी कोड २०१६’ कई कानूनों में जरूरत के हिसाब से बदलाव कर और कई देशों में व्याप्त कानूनों का अध्ययन कर एक नया बड़ा कानून बनाया गया। उसका नाम है आईबीसी-२०१६। अब बात यह आती है, आखिर इतना बड़ा एक नया कानून बनाने की क्या जरूरत थी? इससे क्या फायदे होंगे? इस तरह के कानून और कौन से देशों में हैं? वहां उन देशों में यह कानून कितना सफल रहा?
इस लेख के जरिये हम इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश करेंगे। हम सब जानते हैं और समय-समय पर समाचारों को सुनते और पढ़ते भी आए हैं कि लाखों करोड़ रुपये के बैंकों के कर्ज डूबे हुए हैं। बैंक वे कर्ज वसूल नहीं कर पा रहे हैं। इस तरह के ॠण वसूलने के लिए समय-समय पर कई कानून भी बनाए गए हैं। वे आज तक चलते आ रहे हैं। पर उन सब का वांछित परिणाम नहीं आ पा रहा था। बैंक दुखी थे। उनकी बैलेन्स शीट बिगड़ती जा रही थी। उससे सरकार के कई संभावित निर्णयों में भी बाधा आ रही थी। व्यापारी भी त्रस्त था। परोक्ष और अपरोक्ष रूप से व्यापार पर बड़ा उलटा असर हो रहा था। लालफीताशाही आड़े आ रही थी। निर्णय अधर में लटके हुए थे। इस तरह के कानून का कई बेइमान लोन लेने वाले भी फायदा उठा रहे थे। यह सब देख कर सरकार ने बड़ी हिम्मत के साथ और एक समय सीमा में एक नया और तर्कसंगत बड़ा कानून बनाया जिसका नाम है आईबीसी-२०१६ अब इस कानून के हम फायदे बताएंगे और बहुत सूक्ष्म में यह किस तरह काम करेगा, उस पर प्रकाश डालेंगे।
अब इस कानून के द्वारा जिन-जिन बैंकों का पैसा कारपोरेट्स में डूबा हुआ है उन पर नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिबुनल के जरिए कानूनी प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस प्रक्रिया के द्वारा बैंक एक इन्सॉल्वेन्सी प्रोफेशनल की नियुक्त करेगी। और एनसीएलटी में आवेदन स्वीकृत होने पर ये इन्सॉल्वेन्सी प्रोफेशनल सभी फाईनेन्शिअल क्रेडिटर्स की कमेटी बना कर उस कम्पनी को जिंदा रखने के अलग-अलग पहलुओं पर विचार करेंगे। उसको रिजोल्यूशन प्लॅन कहते हैं। उन अलग-अलग रिजोल्यूशन प्लॅन में जिस पर फाईनेन्शिअल क्रेडिटर्स की सहमति होगी उसे एनसीएलटी के पास भेज दिया जाएगा। वह एनसीएलटी में स्वीकृत होने पर कम्पनी पर लागू हो जाएगा। इस तरह से कम्पनी भी जिंदा रह पाएगी और बैंक का कर्ज भी डूबने से बच जाएगा। यह सब प्रक्रिया १८० दिनों में पूरी करनी होगी। जरूरत पड़ने पर केवल एक बार ९० दिनों का अतिरिक्त समय मिल सकता है।
अगर किसी रिजोल्यूशन प्लॅन पर सहमति नहीं बनी या एनसीएलटी में स्वीकृत नहीं हुआ तो कम्पनी Liquidation में जाएगी। तब येइन्सॉल्वेन्सी प्रोफेशनलही Liquidatorबन जाएगा। और एक कानूनी प्रक्रिया द्वारा दो सालों के अंदर कमपनी की प्रापर्टी बेच कर अलग-अलग फाईनेन्शिअल क्रेडिटर्स और ऑपरेशनल क्रेडिटर्स का पैसा चुकाया जाएगा।
एनसीएलटी के ऊपर एनसीएलएटी (नैशनल कंपनी लॉ एपलैट ट्रिब्यूनल) रहेगा। उसके बाद सीधा सुप्रीम कोर्ट में याचिका होगी और केवल कानूनी पहलुओं पर ही चर्चा होगी।
इस नए कानून के जरिए इस तरह से कम्पनी को जिंदा रखने की कोशिश की जाएगी। इसमें कम्पनी का मैनेजमेंट बदलना, दूसरी बड़ी कम्पनी के द्वारा अधिग्रहण करना आदि सब इसके पहलू हो सकते हैं। उद्देश्य यह है कि कम्पनी जिंदा रहे। उसे कानूनी पचड़े में डाल कर बंद नहीं किया जाए। बंद होने पर उसके बेचने लायक एसेट में भी जंग लग जाती है।
कम्पनी को बंद करने के बाद और सालों साल उसकी प्रापर्टी और अन्य सम्पदा को ऐसे ही छोड़ने के कारण उनकी कीमतों में काफी र्हास हो जाता है। इससे न ही बैंकों को ठीक से पैसा मिल पाता न ही क्रेडिटर्स को मिल पाता है। बेरोजगारी बढ़ती है। बैंकों की बैलेन्स शीट खराब होती है। लोगों को कर्ज कम दिए जाते हैं। देश में उत्पादन और रोजगार की संभावनाएं कम बनती हैं।
अब इस तरह के कानून से सभी धारक फायदे में रहेंगे। इस तरह का कानून अमेरिका, जर्मनी आदि देशों में भी लागू हैं और उनके अनुभव बहुत अच्छे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि यह कानून अपने देश में भी सफल होगा।

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अमरनाथ शर्मा

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