हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
दिन भर का इंतज़ार

दिन भर का इंतज़ार

by सुशांत सुप्रिय
in कहानी, देश हित में मतदान करें -अप्रैल २०१९
0

“बिस्तर के पैताने पर टिकी हुई उसकी निगाह धीरे-धीरे शिथिल हुई। अपने ऊपर उसकी पकड़ भी अंत में ढीली हो गई और अगले दिन वह बेहद सुस्त और धीमा था और वह बड़ी आसानी से उन छोटी-छोटी चीज़ों पर रोया, जिनका कोई महत्व नहीं था।”
——–

जब वह खिड़कियां बंद करने के लिए कमरे में आया, तो हम सब बिस्तर पर ही लेटे थे और मैंने देखा कि वह बीमार लग रहा था। वह कांप रहा था, उसका चेहरा स़फेद था और वह धीरे-धीरे चल रहा था, जैसे चलने से दर्द होता हो।
क्या बात है , शैट्ज़ ?
मुझे सिर-दर्द है ।
बेहतर होगा, तुम वापस बिस्तर पर चले जाओ।
नहीं, मैं ठीक हूं।
तुम बिस्तर पर जाओ। मैं कपड़े पहनकर तुम्हें देखता हूं।
पर, जब मैं सीढ़ियां उतर कर नीचे आया, तो वह अलाव के पास कपड़े पहन कर तैयार बैठा था। वह नौ वर्ष का एक बेहद बीमार और दुखी लड़का लग रहा था।
जब मैंने अपना हाथ उसके माथे पर रखा, तो मुझे पता चल गया कि उसे बुखार था।
तुम बिस्तर पर जाओ, मैंने कहा, तुम बीमार हो।
मैं ठीक हूं, उसने कहा।
जब डॉक्टर आया, तो उसने लड़के का बुखार जांचा।
कितना बुखार है? मैंने उससे पूछा।
एक सौ दो।
डॉक्टर अलग-अलग रंग के कैप्सूलों में तीन अलग-अलग तरह की दवाइयां और उन्हें देने के बारे में हिदायतें भी दे गया। एक दवा बुखार उतारने के लिए थी, दूसरी एक रेचक थी और तीसरी अम्लीय स्थिति पर क़ाबू पाने के लिए थी। इन्फ्लुएंज़ा के कीटाणु केवल अम्लीय स्थिति में ही जीवित रह सकते हैं, उसने बताया। लगता था, उसे इन्फ़्लुएंज़ा के बारे में सब कुछ मालूम था और उसने कहा कि यदि बुख़ार एक सौ चार डिग्री से ऊपर नहीं गया, तो डरने की कोई बात नहीं।
यह फ़्लू का एक हल्का हमला है और यदि आप निमोनिया से बच कर रहें, तो ख़तरे की कोई बात नहीं थी।
कमरे में वापस जा कर मैंने लड़के का बुख़ार लिखा और अलग-अलग तरह के कैप्सूलों को देने का समय नोट किया।
क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कुछ पढ़ कर सुनाऊं?
ठीक है। अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो, लड़के ने कहा।
उसका चेहरा बेहद स़फेद था और उसकी आंखों के नीचे काले घेरे थे। वह बिस्तर पर चुपचाप लेटा था और जो कुछ हो रहा था, उससे बेहद निर्लिप्त लग रहा था।
मैं उसे हॉर्वर्ड पाइल की ’समुद्री डाकुओं की किताब’ ज़ोर से पढ़ कर सुनाने लगा, लेकिन मैं देख सकता था कि मैं जो पढ़ रहा था, उसमें वह दिलचस्पी नहीं ले रहा था।
अब कैसा महसूस कर रहे हो, शैट्ज़? मैंने उससे पूछा।
अब तक ठीक वैसा ही, उसने कहा।
मैं बिस्तर के एक कोने पर बैठ कर अपने लिए पढ़ता रहा और उसे दूसरा कैप्सूल देने के समय का इंतज़ार करता रहा। उसका सो जाना स्वाभाविक होता, लेकिन जब मैंने निगाह ऊपर उठाई, तो वह बड़े अजीब ढंग से बिस्तर के पैताने को घूर रहा था।
तुम सोने की कोशिश क्यों नहीं करते? मैं तुम्हें दवा देने के लिए उठा दूंगा।
मुझे जगे रहना अधिक पसंद है।
थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा- अगर आपको परेशानी हो रही है पापा, तो आपका यहां मेरे पास रहना ज़रूरी नहीं।
मुझे तो कोई परेशानी नहीं हो रही।
नहीं, मेरा मतलब है अगर आपको परेशानी हो, तो आप यहां मत रुकिए।
मैंने सोचा, शायद बुखार के कारण वह थोड़ा व्याकुल हो गया था और ग्यारह बजे उसे निर्दिष्ट कैप्सूलों को देने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए बाहर चला गया।
वह एक चमकीला, ठंडा दिन था और ज़मीन ब़र्फ से ढंकी हुई थी। ब़र्फ जम गई थी, जिससे लगता था कि बिना पत्तों वाले सभी पेड़ों, झाड़ियों, सारी घास और ख़ाली ज़मीन को ब़र्फ से रोगन कर दिया गया हो। मैंने आइरिश नस्ल के छोटे कुत्ते को सड़क पर कुछ दूर तक सैर करा लाने के लिए अपने साथ ले लिया। मैं उसे एक जमी हुई संकरी खाड़ी के बगल से ले गया, पर कांच जैसी सतह पर खड़ा होना या चलना मुश्किल था और वह लाल कुत्ता बार-बार फिसलता और गिर जाता था और मैं भी दो बार ज़ोर से गिरा। एक बार तो मेरी बंदूक़ भी हाथ से छूट कर गिर गई और ब़र्फ पर फिसलते हुए दूर तक चली गई।
हमने मिट्टी के एक ऊंचे टीले पर लटके झाड़-झंखाड़ में छिपे बटेरों के एक झुंड को उत्तेजित करके उड़ा दिया और जब वे टीले के ऊपर से उस पार ओझल हो रही थीं, मैंने उनमें से दो को मार गिराया। झुंड में से कुछ बटेरें पेड़ों पर जा बैठीं पर उनमें से ज़्यादातर झाड़-झंखाड़ के ढेर में तितर-बितर हो गईं और झाड़-झंखाड़ के ब़र्फ से लदे टीलों पर कई बार उछलना ज़रूरी हो गया, तब जा कर वे उड़ीं। जब आप बर्फ़ीले, लचीले झाड़-झंखाड़ पर अस्थिर ढंग से संतुलन बनाए हों, तब उन्हें निशाना साध कर गोली मारना मुश्किल रहता है और मैंने दो बटेरें मारीं, पांच का निशाना चूका और घर के इतने पास एक झुंड को पाने पर प्रसन्न हो कर वापस लौट चला। मैं इसलिए भी ख़ुश था कि किसी और दिन शिकार करने के लिए इतनी सारी बटेरें बची रह गई थीं।
घर पहुंचने पर लोगों ने बताया कि लड़के ने किसी को भी कमरे में आने से मना कर दिया था।
तुम लोग अंदर नहीं आ सकते, उसने सबसे कहा, तुम्हें इस बीमारी से दूर रहना चाहिए, जो मुझे हो गई है।
मैं उसके पास भीतर गया और उसे ठीक उसी अवस्था में पाया, जिसमें उसे छोड़ कर गया था। उसका चेहरा स़फेद था, पर उसके गालों का ऊपरी हिस्सा बुखार के कारण लाल हो गया था। वह सुबह की तरह बिना हिले-डुले बिस्तर के पैताने को घूर रहा था। मैंने उसका बुखार जांचा।
कितना है ?
सौ के आस-पास, मैंने कहा। बुखार एक सौ दो से थोड़ा ज़्यादा था।
बुखार एक सौ दो था, उसने कहा।
यह किसने बताया?
डॉक्टर ने।
तुम्हारा बुखार ठीक-ठाक है, मैंने कहा, चिंतित होने की कोई बात नहीं।
मैं चिंता नहीं करता, उसने कहा, लेकिन मैं खुद को सोचने से नहीं रोक सकता।
सोचो मत, मैंने कहा, तुम केवल आराम करो।
मैं तो आराम ही कर रहा हूं, उसने कहा और ठीक सामने देखने लगा। साफ़ लग रहा था कि वह किसी चीज़ के बारे में सोच-सोच कर बेहद चिंतित हो रहा था।
यह दवा पानी के साथ ले लो।
क्या आप सोचते हैं कि इससे कोई फ़ायदा होगा?
हां, ज़रूर होगा।
मैं बैठ गया और समुद्री डाकुओं वाली किताब खोलकर पढ़ने लगा, लेकिन मैं देख सकता था कि उसका ध्यान कहीं और था, इसलिए मैंने किताब बंद कर दी।
आप क्या सोचते हैं, मैं किस समय मरने वाला हूं?
क्या?
मेरे मरने में अभी और कितनी देर लगेगी?
तुम कोई मरने-वरने नहीं जा रहे हो। ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे हो?
हां, मैं मरने जा रहा हूं। मैंने डॉक्टर को एक सौ दो कहते हुए सुना।
लोग एक सौ दो बुखार में नहीं मरते। बेव़कूफ़ी भरी बात नहीं करो।
मैं जानता हूं, वे मरते हैं। फ़्रांस में लड़कों ने मुझे स्कूल में बताया था कि तुम चौवालीस डिग्री बुखार होने पर जीवित नहीं बच सकते। मुझे तो एक सौ दो बुखार है।
तो वह सुबह नौ बजे से लेकर दिन भर मरने का इंतज़ार करता रहा था।
ओ मेरे बेचारे शैट्ज़, मैंने कहा, मेरे बेचारे बच्चे शैट्ज़। यह मीलों और किलोमीटरों की तरह है। तुम कोई मरने-वरने नहीं जा रहे। वह एक दूसरा थर्मामीटर है। उस थर्मामीटर में सैंतीस सामान्य होता है, जबकि इस थर्मामीटर में अट्ठानवे सामान्य होता है।
क्या आपको पक्का पता है?
बेशक, मैंने कहा। यह मीलों और किलोमीटरों की तरह है। जैसे कि, जब हम कार से सत्तर मील की यात्रा करते हैं, तो हम कितने किलोमीटर की यात्रा करते हैं, समझे?
ओह, उसने कहा।
लेकिन, बिस्तर के पैताने पर टिकी हुई उसकी निगाह धीरे-धीरे शिथिल हुई। अपने ऊपर उसकी पकड़ भी अंत में ढीली हो गई और अगले दिन वह बेहद सुस्त और धीमा था और वह बड़ी आसानी से उन छोटी-छोटी चीज़ों पर रोया, जिनका कोई महत्व नहीं था।
——–

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

सुशांत सुप्रिय

Next Post
बोलती गुफा

बोलती गुफा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0