भाजपा-रजनीकांतः‘विन-विन सिच्युएशन’

जयललिता के निधन के बाद अन्ना-द्रमुक दो गुटों में बिखर गई। इनमें से पन्नीरसेलवम का एक बड़ा गुट भाजपा के अनुकूल है। यदि वह साथ में आए तो भाजपा-रजनीकांत गठजोड़ को बहुत बल मिल सकता है। दिल्ली का समर्थन तो उन्हें होगा ही। इस तरह भाजपा-रजनीकांत ‘विन-विन सिच्युएशन’ (दोनों का लाभ, किसी की हानि नहीं) में होंगे। भाजपा के लिए रजनीकांत दक्षिणायन की सीढ़ी बन सकते हैं।
तमिलनाडु की राजनीति पुनः चर्चा में है। अन्ना-द्रमुक की नेता जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में बहुत उलटफेर हुआ है। उनके चले जाने से उत्पन्न रिक्तता को भरने का उसकी निकट सहयोगी शशिकला ने प्रयास शुरू कर दिया था, लेकिन उन्हें अपने पूर्व-कर्म के कारण जेल की हवा खानी पड़ी। जयललिता जब जेल में थी तब उन्होंने अपने ‘पादुका-राज’ को चलाने के लिए पन्नीरसेलवम का चयन किया था और उन्होंने भी पूरी ‘भरत-निष्ठा’ से उसे सम्हाला भी था। ठीक यही प्रयोग शशिकला ने भी किया और पलानीस्वामी को ‘पादुका-राज’ के लिए चुना, लेकिन पलानीस्वामी कुर्सी के मोह में फंस गए। सत्ता के मोह में संयम टूट गया। उन्होंने शशिकला को दोराहों पर छोड़ कर पन्नीरसेलवम से हाथ मिला लिया। कहा जाता है कि पलानीस्वामी की पन्नीरसेलवम से दोस्ती के पीछे भाजपा ही मुख्य प्रेरणा-स्रोत था।
लोकसभा के चुनाव के लिए अभी पौने दो साल बाकी है फिर भी भारतीय राजनीति की सिरमौर बनी भाजपा ने चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। तमिलनाडु में अन्ना-द्रमुक की सरकार बचाने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी; क्योंकि करुणानिधि की पार्टी द्रमुक के हाथ में सत्ता न जाने देने में ही भाजपा की भलाई थी। भाजपा के लिए २०१९ का चुनाव महत्वपूर्ण है। ३५० सीटें जीतने का लक्ष्य भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यद्यपि रखा है फिर भी वर्तमान स्थिति देखते हुए इसमें कुछ कमी आ सकती है। इसलिए भाजपा के नेता सतर्कता के साथ कदम उठा रहे हैं। हमेशा साथ देने वाले राज्यों में कुछ सीटें कम हो जाए तो अन्य राज्यों से उसकी भरपाई करने पर बल दिया जा रहा है।
तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता के निधन के बाद काफी उलटफेर हो रहे हैं और इसी पृष्ठभूमि में भाजपा ने उत्तर भारत के बाद अब दक्षिण भारत की ओर अपने विजय-रथ को मोड़ दिया है। कर्नाटक के बाद तमिलनाडु और केरल में भाजपा अपनी ताकद बढ़ाने की कोशिश में है। लेकिन क्षेत्रीय दलों की राजनीति में भाजपा शायद ही टिक पाए। पिछले लोकसभा चुनाव में देश भर में मोदी-लहर थी, लेकिन तमिलनाडु में भाजपा को सफलता नहीं मिल सकी। यही क्यों, वहां विधान सभा चुनावों में भाजपा क्लिनबोल्ड हो गई। फिर भी तमिलनाडु की वर्तमान अस्थिर राजनीति का लाभ उठाते हुए दक्षिण में अपना वजूद कायम करने का भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का प्रयास है। तमिलनाडु में लोकसभा की ३९ सीटें हैं और भाजपा को अपने बलबूते पर सफलता की अपेक्षा नहीं है। अतः भाजपा को अनुकूल पार्टी तमिलनाडु में सत्ता में बनी रहे इसलिए भाजपा ने दांव खेले और वे सफल रहे।
तमिलनाडु में फिल्म उद्योग और राजनीति का अटूट रिश्ता है। अब तक तमिलनाडु में हुए सात मुख्यमंत्रियों में से पांच फिल्मी अभिनेता रहे हैं। २०१९ के लोकसभा चुनावों की गूंज सुनाई देने लगी है और तमिलनाडु के राजनीतिक क्षितिज पर एक नाम तेजी से उभरने लगा है। और, इस नाम में राजनीतिक समीकरण और गणित बदलने की क्षमता होने से उस नाम के प्रति देश भर में उत्सुकता है। वह नाम है तमिलनाडु के साथ देश भर में लोकप्रिय रहे फिल्मी अभिनेता रजनीकांत का। तमिलनाडु के फिल्म उद्योग में रजनीकांत का स्थान सर्वोच्च है। वे लोगों के मन पर राज करने वाले सुपर स्टार हैं। द्रमुक और अन्ना-द्रमुक के बीच चलते संघर्ष और जयललिता के निधन से तमिलनाडु की राजनीति में उत्पन्न रिक्तता को भरने में भाजपा बेहद उत्सुक है। इस पृष्ठभूमि में रजनीकांत १९९६ के बाद पुनः एक बार तमिलनाडु की राजनीति में उतरने के प्रयास में दिखाई देते हैं। दक्षिण-विजय के लिए भाजपा के पास प्रभावी चेहरा न होने से तमिलनाडु में प्रचंड लोकप्रिय रहे रजनीकांत को अपनी ओर मोड़ने के भाजपा ने प्रयास शुरू किए हैं और भाजपा के प्रति अपने आकर्षण को भी रजनीकांत ने कभी छिपाया नहीं है। फिर भी भाजपा में आने की अपेक्षा रजनीकांत के अपनी नई पार्टी गठित करने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि, तमिलनाडु में भाजपा की विचारधारा को मानने वाला वर्ग नगण्य ही है। क्षेत्रीय दलों की तुलना में कांग्रेस या भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों का अस्तित्व भी वहां नगण्य है। एक बात और गौर करने लायक है। वह यह कि तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास पर ध्यान दें तो दिखाई देगा कि वहां केंद्र के खिलाफ माहौल बना रहता है। रजनीकांत की लोकप्रियता पर सवार होकर वहां प्रवेश करने का भाजपा का इरादा दिखाई देता है। लेकिन वह कितना व्यावहारिक होगा इसे भाजपा भी जानती है। इसी कारण, बताते हैं कि, उन्हें यह सलाह दी गई है कि या तो वे अन्ना-द्रमुक पर हावी हो जाए अथवा अपनी नई पार्टी गठित करें।
तमिलनाडु की राजनीति और फिल्मी दुनिया का गहरा रिश्ता है। तमिलनाडु पर वर्चस्व स्थापित करने वाले सभी फिल्मी दुनिया से सम्बंधित थे। सी.के.अन्नादुरै, एमजीआर अर्थात एम.जी.रामचंद्रन, करुणानिधि, जयललिता परदे से उतर कर राजनीति में आए सितारें हैं। लिहाजा, फिल्मी दुनिया से आए सभी राजनीति में सफल नहीं हुए यह भी उतना ही सच है। शिवाजी गणेशन इसकी बेहतर मिसाल है। वे तमिल में ‘नाडिगार सिलकम’ याने अभिनय-रत्न के रूप में लोकप्रिय थे। हिन्दी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन को भी राजनीति रास नहीं आई। मतलब यह कि परदे की लोकप्रियता राजनीति में सफलता दिलाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं होती। इसके बावजूद रजनीकांत ने बिना किसी राजनीतिक बयानबाजी के अत्यंत सांकेतिक भाषा और कृति के जरिए राजनीति में प्रवेश करने के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा है कि वे इसलिए राजनीति में आना चाहते हैं क्योंकि तमिलनाडु की जनता वैसा चाहती है।
दिसम्बर २०१६ में अन्ना-द्रमुक नेता जयललिता के निधन के बाद अन्ना-द्रमुक दो धड़ों में बिखर गई। दोनों को एक करने के प्रयास हुए, परंतु सफल नहीं हुए। तमिलनाडु की दूसरी प्रमुख पार्टी द्रमुक है। इसका नेतृत्व एम. करुधानिधि करते हैं। उनकी उम्र अभी ९४ वर्ष की है। उनके चार में से दो पुत्रों- स्तालिन और अलेगिरी- में द्रमुक के नेतृत्व को लेकर संघर्ष है। सार यह कि तमिलनाडु की राजनीति अस्थिर है, जनता अस्वस्थ है। तमिलनाडु की जनता अन्ना-द्रमुक और द्रमुक के विकल्प के रूप में नए राजनीतिक बदलाव की उम्मीद रखती है। तमिलनाडु के इस माहौल में भाजपा वहां की ३९ लोकसभा सीटों में से कुछ जीतने के लिए रजनीकांत का विकल्प के रूप में उपयोग करना चाहती है। भाजपा को रजनीकांत की लोकप्रियता से बल मिले तो तमिलनाडु की राजनीति में निश्चित रूप से बदलाव आ सकता है। रजनीकांत भी राजनीति में अपने भाग्य को आजमाने का अवसर खोना नहीं चाहते। १९९८ में जयललिता के विरोध में रजनीकांत ने मोर्चा खोला था। जयललिता भ्रष्टाचार के आरोप में उलझी थी। इस अवसर का लाभ उठाते हुए करुणानिधि ने रजनीकांत का समर्थन प्राप्त किया था। और, उस समय रजनीकांत की लोकप्रियता के कारण जयललिता को पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी। वही रजनीकांत अब राजनीति में पुनः भाग्य आजमाना चाहते हैं। भाजपा को रजनीकांत की लोकप्रियता के बल पर दक्षिण में अपने वजूद को कायम करना है। लेकिन अपने बेबाक बयानों एवं साफगोई के लिए देश भर में प्रसिद्ध भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दक्षिण के मेगास्टार रजनीकांत को भाजपा में लाने का खुल कर विरोध किया है। तमिलनाडु की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में तमिल अस्मिता हमेशा अहम् मुद्दा होता है और वहां की राजनीति इसी मुद्दे के इर्दगिर्द घूमती है। पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की हत्या में सजायाफ्ता सात लोगों की जेल से रिहाई के लिए केंद्र पर लगातार दबाव लाना भी तमिल अस्मिता का ही मुद्दा है। राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई को कांग्रेस का तीव्र विरोध है। भाजपा ने बीच का रास्ता अपनाया है। वह यह कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ही सजायाफ्ताओं की रिहाई का फैसला किया जाएगा। इन हत्यारों की रिहाई का मुद्दा वहां चुनावों में प्रचार का मुद्दा हो सकता है। तमिलनाडु में तमिल अस्मिता बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। रजनीकांत तमिल न होकर मराठी-कन्नड़ हैं। यह मुद्दा भी वहां अत्यंत महत्व रखता है। तमिल अस्मिता के इर्दगिर्द हमेशा विचरण करने वाला तमिलनाडु- गैरतमिल पृष्ठभूमि वाले रजनीकांत को राजनीतिक रूप से कितना स्वीकार करेगा यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है।
अनेक राष्ट्रीय मुद्दों पर जयललिता की भूमिका उनकी राष्ट्रीय दृष्टि की पहचान होती थी। इसकी मिसाल है १९८४ में राज्यसभा में अम्मा का वक्तव्य। उन्होंने अपने वक्तव्य में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और धर्मांधता के विरोध में जबरदस्त हमला बोला था। उन्होंने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारतीय संविधान के तहत लाने का प्रस्ताव पेश किया था। अयोध्या में राम मंदिर के बारे में अपनी ठोस भूमिका प्रस्तुत करते हुए उन्होंने पूछा था कि राम मंदिर अयोध्या में नहीं तो और कहां बनाएंगे? कावेरी जल समस्या पर केंद्र से हस्तक्षेप का उनका आग्रह हुआ करता था। नरेंद्र मोदी और जयललिता में वैचारिक एकात्मता थी। विकास और राष्ट्रीय नेतृत्व के मुद्दों पर जयललिता ने मोदी के समर्थन की भूमिका ली थी। जयललिता ने राष्ट्रीय विचारों का विस्तार तमिल राजनीति में करने का प्रयास किया। रजनीकांत भी आध्यात्मिक हिंदुत्व- राष्ट्रीयत्व का पुरजोर समर्थन करते हैं। रजनीकांत क्षेत्रीय विकास की भावना के साथ राष्ट्रीय विचारों का हमेशा समर्थन करते हैं। इस पृष्ठभूमि में रजनीकांत भाजपा के दक्षिणायन की सर्वोत्तम सीढ़ी साबित हो सकते हैं। साथ में पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेलवम गुट के साथ भाजपा के निकट सम्बंधों का रजनीकांत को लाभ मिल सकता है। अम्मा की मृत्यु के बाद बिखरी अन्ना-द्रमुक का एक बड़ा गुट साथ में आए तो भाजपा-रजनीकांत गठजोड़ को बहुत बल मिल सकता है। इसके अलावा दिल्ली का समर्थन मिलने पर भाजपा-रजनीकांत ‘विन-विन सिच्युएशन’ (दोनों का लाभ, किसी की हानि नहीं) में आ सकते हैं। इस स्थिति में रजनीकांत यदि नई पार्टी गठित करते हैं तो उन्हें बहुत जेहमत उठानी पड़ेगी। इसलिए रजनीकांत का भाजपा में आना बेहतर ही साबित होगा। १९४७ से १९६७ तक तीन दशकों में तमिलनाडु में सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस को १९६७ में तमिल मतदाताओं ने ठुकरा दिया। बाद में लगभग ५० सालों तक कोई राष्ट्रीय पार्टी वहां सत्ता में नहीं पा सकी, यह तमिलनाडु का इतिहास है। इस पृष्ठभूमि को देखेत हुए तमिलनाडु में सत्ता पर काबित होकर क्या भाजपा राष्ट्रीय भावना में पिरोने का श्रेय प्राप्त करेगी? इसका उत्तर तमिल जनता जल्द ही देगी।

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